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अपनी नौकरी के चलते गीता को घर का काम निपटा कर जल्दी सोना होता था और सुबह जल्दी ही उठना पड़ता  था. लेकिन उस दिन उठने में थोड़ी देर हो गई थी. अब उस के पास एक ही रास्ता था कि जल्दी से रसोई का काम निपटाए. काम भी कम नहीं था. सुबह के नाश्ते से ले कर दोपहर का खाना तक बनाना होता था. इस की वजह यह थी कि उस की बेटी सुदीक्षा कालेज जाती थी, जो दोपहर को घर लौटती थी. इसलिए उस का खाना बनाना जरूरी था. साथ ही यह भी कि उसे खुद को और पति कुलदीप को अपना लंच बौक्स साथ ले कर जाना होता था.

दरअसल 37 वर्षीय गीता पंजाबी भाषा की प्रोफेसर थी और पिछले 15 सालों से सिविल लाइंस लुधियाना स्थित एक शिक्षण संस्थान में पढ़ाती थी. उस का पति कुलदीप रेलवे में बतौर इलेक्ट्रिशियन तैनात था.
कुलदीप सुबह साढ़े 8 बजे अपनी ड्यूटी पर चला जाता था और शाम को साढ़े 5 बजे घर लौटता था. कुलदीप के चले जाने के बाद साढ़े 9 बजे गीता भी अपने कालेज चली जाती थी. जबकि सुदीक्षा कालेज के लिए 10 बजे घर से निकलती थी. सब के जाने के बाद घर में कुलदीप का छोटा भाई हरदीप अकेला रह जाता था.

हरदीप नगर निगम लुधियाना की पार्किंग के एक ठेकेदार के पास काम करता था. उस की रात की ड्यूटी होती थी. वह अपने भाईभाभी के पास ही रहता था. हरदीप रात 8 बजे घर से ड्यूटी पर जाता था और सुबह 9 बजे लौटता था. काम से लौट कर वह दिन में घर पर ही सोता था.

कुलदीप, उस की पत्नी गीता, बेटी सुदीक्षा और हरदीप सहित 4 सदस्यों का यह परिवार लुधियाना के अजीत नगर, बकौली रोड, हैबोवाल के मकान नंबर 1751/21 ए की गली नंबर-3 में रहता था. कुलदीप के पिता राममूर्ति की कुछ वर्ष पहले मौत हो चुकी थी.

पिता की मौत के बाद कुलदीप ही घर का एक मात्र बड़ा सदस्य था. कुलदीप को मिला कर परिवार में 3 कमाने वाले थे, सो घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था.

पिता की दुश्मन बेटी

उस दिन कुलदीप, गीता और सुदीक्षा घर से जाने की तैयारी कर रहे थे. अपनेअपने हिसाब से सभी को जल्दी थी. गीता ने नाश्ता तैयार कर लिया था. उस ने पति को आवाज दी, ‘‘नाश्ता लग गया है, जल्दी आ जाइए. मुझे कालेज के लिए देर हो रही है.’’

कुलदीप नाश्ते की टेबल पर आ कर बैठ गया तो गीता ने उसे परांठे परोस दिए. कुलदीप नाश्ता करने लगा तो उसे बेटी का ध्यान आया. उस ने गीता से पूछा, ‘‘सुदीक्षा कहां है?’’

‘‘अपने कमरे में होगी, तुम नाश्ता करो.’’

कुलदीप ने वहीं बैठेबैठे सुदीक्षा को आवाज दे कर पुकारा, पर वह नहीं आई. कुलदीप ने 2-3 बार आवाज दी पर सुदीक्षा के कमरे से कोई जवाब नहीं आया. गीता ने एक बार फिर टोका, ‘‘तुम नाश्ता करो, वह आ जाएगी.’’ पर कुलदीप को चैन नहीं आया, क्योंकि उसे सुबह का नाश्ता और रात का खाना पत्नी और बेटी के साथ खाना पसंद था.

पत्नी के मना करने के बावजूद कुलदीप नाश्ता छोड़ कर बेटी के कमरे में गए. सुदीक्षा के कमरे में जा कर उन्होंने देखा कि सुदीक्षा कानों में हैडफोन लगाए किसी से हंसहंस कर बातें कर रही थी. यह देख कर कुलदीप को गुस्सा आ गया. उस ने आगे बढ़ कर देखा तो स्क्रीन पर तरुण का नाम था.

तरुण उर्फ तेजपाल सिंह भाटी, सुदीक्षा का बौयफ्रैंड था, यह बात कुलदीप अच्छी तरह जानता था. तरुण हंसबड़ारोड पर पंज पीर के पास मेहर सिंह नगर में रहता था, उस की मैडिकल शौप थी. पिछले 3 सालों से सुदीक्षा और तरुण के प्रेमसंबंध थे. कुलदीप शुरू से ही इन संबंधों का विरोध करता था. इसे ले कर उस ने सुदीक्षा को कई बार फटकारा भी था. इतना ही नहीं तरुण को ले कर बापबेटी म७ें कई बार कहासुनी भी हुई थी. फिर भी सुदीक्षा ने तरुण का साथ नहीं छोड़ा.

कुलदीप उसे बराबर समझाता था कि फालतू के प्यारव्यार के चक्कर में न पड़ कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे. लेकिन सुदीक्षा ने पिता की बात कभी नहीं मानी. वह खुद को आजाद मानती थी और आजाद ही रहना चाहती थी. अपनी जिंदगी में उसे किसी की दखलंदाजी बरदश्त नहीं थी. तरुण के मामले में तो वह किसी की भी नहीं सुनती थी.

फोन की स्क्रीन पर तरुण का नंबर देख कर कुलदीप के तनबदन में आग लग गई. उस ने डांटते हुए सुदीक्षा से कहा, ‘‘हजार बार मना किया है कि इस लफंगे से संबंध नहीं रखना, पर तुम हो कि मानती ही नहीं. क्या मेरी बातें तुम्हारी समझ में नहीं आतीं, या सब कुछ जानसमझ कर अनजान बनने का नाटक करती हो.’’

सुदीक्षा के कमरे से पति के जोरजोर से बोलने की आवाज सुन कर गीता भी वहां आ गई. उस ने भी बेटी को डांट कर चुप रहने के लिए कहा. लेिकन बापबेटी के बीच फोन पर तरुण से बातचीत को ले कर कहासुनी चालू रही. इस बहस में दोनों में से कोई हारने को तैयार नहीं था.

कुलदीप पिता होने का अधिकार समझ कर बेटी को गलत राह पर जाने से रोक रहा था, जो अपनी जगह पर ठीक भी था. जब बच्चे अपना लक्ष्य भूल कर रास्ता भटकने लगते हैं, तो पिता का कर्तव्य बन जाता है कि वह अपनी संतान को गलत राह पर जाने से रोके और अपनी समझ के अनुसार उस का सही मार्गदर्शन करे. यही कुलदीप कर रहा था.

दूसरी ओर कोई तरुण को भलाबुरा कहे यह सुदीक्षा को बरदाश्त नहीं था. यही कारण था कि कुलदीप जब भी बेटी को समझाने की कोशिश करता तो वह हत्थे से उखड़ जाती थी. इस के साथ ही बापबेटी के बीच तरुण को ले कर महाभारत शुरू हो जाता था.

तरुण के मामले में सुदीक्षा अपने पिता को अपना कट्टर दुश्मन मानती थी. उस दिन कहासुनी से शुरू हुई बात अचानक इतनी ज्यादा बढ़ गई कि गुस्से में कुलदीप ने सुदीक्षा के हाथों से मोबाइल छीन कर फर्श पर पटक दिया. इस के बाद वह गुस्से में नाश्ता किए बिना ही घर से निकल गया. खाने का टिफिन भी घर पर ही छोड़ दिया था.

परिवार में किसी तीसरे का  दखल भी बढ़ाता है कलह

कुलदीप के बिना कुछ खाएपीए घर से निकल जाने के बाद गीता और सुदीक्षा भी बिना नाश्ता किए अपनेअपने कालेज चली गईं. रात को कुलदीप ने एक बार फिर बेटी को प्यार से समझाने के लिए खाने की टेबल छत पर लगवाई. कुलदीप का भाई हरदीप खाना खा कर काम पर जाने की तैयारी कर रहा था.
गीता, सुदीक्षा और कुलदीप ने जब तक खाना शुरू किया तब तक हरदीप जा चुका था. मांबाप और बेटी के बीच जो थोड़ा बहुत मनमुटाव था, वह एक साथ खाना खाने से खत्म हो गया. खाना खाने के बाद कुलदीप नीचे अपने कमरे में सोने के लिए चला गया. गीता और सुदीक्षा छत पर ही सो गईं. यह बीती 19 जुलाई की बात है.

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