देशभक्ति पर बहस ने कई रूप ले लिए हैं. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारत के टुकड़े करने के नारों का नाम ले कर जो गुब्बारा फुलाया गया वह एक वर्ग में काफी कामयाब हुआ और देश का अंधभक्त वर्ग जो अंधविश्वासों को आस्था मानता है, तर्क को विश्वासघातक मानता है, दान को मुक्ति का रास्ता मानता है, पूजापाठ, व्रत को समृद्धि का अकेला मार्ग मानता है, अब देशभक्ति की आड़ में अपने कट्टरपन को दूसरों पर थोपने का मार्ग ढूंढ़ रहा है. देशभक्ति होती है देश के लिए काम करना और उस के लिए न तो झंडा लहराना जरूरी है और न ही 26 जनवरी को इंडिया गेट व 15 अगस्त को लालकिले में वंदना करना. देशभक्ति होती है देश के संविधान की भावना का आदर करना, बराबरी के सिद्धांत को मानना, परिश्रम कर देश व खुद को उन्नत करना. देशभक्ति में स्वयं का उद्धार व स्वयं की सफलता छिपी है पर दूसरों की कीमत पर नहीं, खुद की मेहनत पर.
देशभक्ति का अर्थ है हर नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना, सामाजिक नियमों का पालन करना, कानूनों का अनुसरण करना और सही तरह से लोकतंत्र की प्रक्रिया को अपनाना. देशभक्ति का अर्थ है कि हर व्यक्ति को, जो भारतीय है या नहीं पर भारत में है, को कानूनों की सुरक्षा देना और हरेक को गौरव दिलवाना. नई देशभक्ति का मतलब हो रहा है कि तिरंगा लहराओ और देशभक्त हैं के नारे लगाओ और बाकी सभी कर्तव्यों को भूल जाओ. नई देशभक्ति है कि जो हम कह रहे हैं वह देशभक्ति है, जो हम से सहमत नहीं वह देशद्रोही है. देशभक्त वह है जो भारत माता की पूजा संतोषी माता की तरह करे वरना देशद्रोही. देशभक्त वह है जो प्रधानमंत्री के पांव पूजे और उन सब के पांव पूजे जिन के पांव प्रधानमंत्री पूजते हैं वरना देशद्रोही. देशभक्ति धर्मभक्ति है और उस धर्म की भक्ति जो सत्तारूढ़ धनपतियों का है.
देश के गरीबों, दलितों, पिछड़ों, मुसलिमों, आदिवासियों, बेकारों, अनपढ़ों, भूखों, बीमारों की तो छोडि़ए, देश के उच्च वर्णों और वर्गों की औरतों का हाल तो देखिए जो धर्मभक्ति यानी देशभक्ति के बोझ से दबीकुचली हैं. कितनी विधवाओं को देश का समाज बराबरी का हक देता है? कितनी कुंआरियों को सम्मान मिलता है? कितनी बांझों को समाज में बराबरी की जगह मिलती है? पुनर्विवाह में कितनी विधवाओं और तलाकशुदाओं को बराबरी का पति मिल पाता है, अगर मिल भी जाए? सिर्फ औरतों को ही क्यों व्रतों, उपवासों, पूजा, साधू सेवा में ठूंस दिया जाता है? रिवाजों के नाम पर कितनी औरतों को मीलों नंगे पैर चलवा कर मंदिरों में जाने को मजबूर करा जाता है? स्वतंत्र देश में कितनी औरतें अपनी इच्छा के अनुसार वोट दे पाती हैं? कितनी औरतें परिवार यानी पति की इच्छा के खिलाफ चुनावों में भाग ले पाती हैं?
बराबरी का हक देशभक्ति की निशानी है पर दफ्तरों, दुकानों, कारखानों में कितनी औरतें नजर आती हैं? देशभक्ति तब आड़े नहीं आती जब औरतों को धार्मिक कामों में पुरुषों से अलग कर दिया जाता है. देशभक्ति का सवाल तब नहीं उठता जब विरासत का हिस्सा पुरुषों के हाथों में चला जाता है. जो पुत्रवती भव: कह कर कन्या भू्रण हत्या करते हैं, करवाते हैं या होने देते हैं उन्हें देशद्रोही नहीं कहा जाता. देशभक्ति को पूजापाठ के बराबर न बनाएं. देश के सही कानूनों व नियमों का उल्लंघन तो ठीक है पर नारा लगाना उसी तरह खराब है जैसे काले धब्बे वाले देवीदेवताओं की पूजा तो ठीक है पर उन के साथ जुड़ी विवादास्पद बातों की चर्चा करना ईश निंदा करना है.
देशभक्ति धर्मभक्ति और अंधभक्ति से कहीं अलग और कहीं ऊपर है. देशभक्ति में देश व सरकार की आलोचना शामिल है. देशभक्ति में असहमति शामिल है. देशभक्ति में देश में रह कर देश के फैसलों का विरोध करना शामिल है. देशभक्ति में तो देश से अलग हो जाने का हक भी शामिल है. क्या उन लाखों नागरिकों को देशद्रोही कहेंगे, जिन्होंने भारत छोड़ कर दूसरे देशों में पहले नौकरियां कीं, फिर नागरिकता ली और भारत की नागरिकता छोड़ी? वे भी देशद्रोही नहीं हैं, क्योंकि देशभक्ति में व्यक्तिगत विचार, मरजी से काम करने का हक, अलग रहने का हक शामिल है. जब तक देश में रह कर खूनखराबा न किया जाए. मारपीट करना, जेल में बंद करना, भाषणों की तेजाबी वर्षा करना देशभक्ति नहीं है. देशभक्त बनना है तो कम से कम पहले आधी दुनिया यानी औरतों को तो देशभक्ति का सुख देना सीखो.