इस देश में गुलामी, गरीबी, जाति की ऊंचनीच रखने में भाषा का बड़ा हिस्सा रहा है. पंडों ने गरीबों को सदियों से पढ़ना पाप घोषित कर रखा था और राम ने शूद्र शंबूक को मारा भी इसीलिए था कि वह पढ़ रहा था. मुगलों ने अपने कामकाज के लिए थोड़े से लोगों को पढ़ाया, पर वह नाकाफी था और हिंदू नीची जातियों को तो छोडि़ए, मुसलमान भी ज्यादातर अनपढ़ हैं. अंगरेजों ने इस बारे में उदारता बरती, पर 1857 के बाद उन्होंने समाज सुधारों का काम हिंदुस्तानियों पर छोड़ दिया और हिंदुस्तानी नेताओं ने सिर्फ ऊंची जातियों को पढ़ाया. 1947 के बाद आजादी की कुछ शर्तों या वादों में से हरेक को पढ़ाना शामिल था और चाहे सरकारी स्कूल कहिए या आरक्षण, पढ़ने का मौका बहुतों को मिला.

अब एक नई भाषा थोपी जा रही है. अंगरेजी तो पहले से ही थी, अब कंप्यूटर की भाषा थोपी जा रही है, ताकि जानकारी थोड़े से लोगों के हाथों में रहे. हर चीज को कंप्यूटर पर औनलाइन करने का मतलब है कि देश की 98 फीसदी जनता को अब न अपने बारे में कुछ पता चलेगा, न दूसरों के बारे में. उलटे अगर उन्होंने सरकारी औनलाइन भाषा में अपनी बात नहीं की तो वे सरकार की निगाहों में आदमी ही नहीं रहेंगे, आधी सदी पहले तक अछूतों की तरह. आधार कानून बनवा कर सरकार ने, इस में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों शामिल हैं, एक आदमी की मौजूदगी उस का कंप्यूटर पर होना बना दिया है. कंप्यूटर से बात करने के लिए उसे खास पंडों की जरूरत होगी, जो पहले के विघ्न खत्म करने वाले पंडों की तरह दक्षिणा ले कर काम करेंगे. किसी की भी कंप्यूटर की पत्री में गलत जानकारी डाल देना अब आसान हो गया है और एक बार जानकारी गलत डल गई, तो हजारों रुपए खर्च किए बिना ठीक न होगी.

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