जिन अयोध्या के रामजी का नाम लेकर भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा की 2 सीटों से बहुमत की सरकार बनाने तक का सफर तय किया अब उन्ही राम को विपक्षी दलो के लिये छोड दिया है. भाजपा के नये प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या ने कहा ‘विरोधी दल राम का नाम लेकर राजनीति करे और उनका सहारा लेकर अपनी सरकार बना ले’. केशव प्रसाद मौर्या ने केवल इतने से ही अपनी बात को विराम नहीं दिया. केशव प्रसाद मौर्या ने साफ किया कि अगर केन्द्र में लोकसभा और राज्यसभा के दोनो सदनों में भाजपा को बहुमत होता, तो भी उनकी पार्टी राम मंदिर बनाने की जगह पर जीएसटी बिल को पहले पास कराती.
भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्या को उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव 2017 में पार्टी का सेनापति बनाकर मैदान में उतारा है. अपनी चुनावी रणनीति पर केशव ने कहा कि वह प्रधनमंत्री मोदी के नाम और काम पर चुनाव लड़ेंगे.
49 साल के केशव का जन्म कौशांबी जिले के कसिया गांव में हुआ था. पेशे से वह किसान है. बाद में उनका कई तरह का बिजनेस भी है. किशोरावस्था में वह आरएसएस के संपर्क में आये. वह संघ के तमाम संगठनों में काम करते रहे है. इनमें बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद प्रमुख है. विश्व हिन्दू परिषद के पुरोधा अशोक सिंहल के वे काफी करीबी रहे है. साल 2012 में वह पहली बार कौशांबी के सिराथू से विधायक बने, 2014 के लोकसभा चुनाव में वह लोकसभा का चुनाव लड़े और सांसद बन गये. अयोध्या से केशव का गहरा नाता रहा है. 2001 से लेकर 2010 तक संगठन मंत्री के तौर पर वह अयोध्या में रहे.
अयोध्या के संतों के साथ उनका गहरा नाता है. जिस समय भाजपा ने केशव को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष घोषित किया उस समय हिन्दूवादी ताकतों और राममंदिर को लेकर सकारात्मक सोच रखने वालों को लगा था कि शायद भाजपा विधानसभा चुनावों में राम मंदिर को अपना मुद्दा बनाये. प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार पार्टी के प्रदेश कार्यालय में पहली घोषणा में ही केशव प्रसाद मौर्या ने राम मंदिर को भाजपा के एजेंडे से बाहर करके राम जी को राम राम कर लिया है. दरअसल भाजपा ने राम मंदिर को लेकर जिस तरह की राजनीति कर कुर्सी हासिल की अब उस पर राम मंदिर बनवाने का दबाव बनने लगा. ऐसे में भाजपा को सही जवाब देना भारी पडने लगा है. एक तरपफ विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों के लोग राम मंदिर की मूर्ति गांव गांव लेकर जा रहे है दूसरी तरफ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राम मंदिर मुद्दे से दूर खडे हो गये हैं. यह पार्टी की दोहरी नीति का उदाहरण है. विरोधी दलों का आरोप है कि पार्टी राम के नाम पर वोट लेने के लिये राम मंदिर मसले का हल निकालने की बजाये उसको लटकाने में यकीन रखती है. जिससे लंबे समय तक इसका चुनावी लाभ लिया जा सके.