वरिष्ठ भाजपाई नेता यशवंत सिन्हा (अब भाजपा में नहीं) को योद्धा कहा जाए या भगोड़ा, यह तय कर पाना मुश्किल काम है पर यह जरूर स्पष्ट हो गया है कि नरेंद्र मोदी से बैर ले कर भाजपा में रह पाना मुश्किल है. हां, खामोश बैठे रहो तो किसी को कोई एतराज नहीं होता.

यशवंत नोटबंदी, जीएसटी और किसानों की दुर्दशा को ले कर लगातार अपनी ही सरकार पर हमले करते रहे थे. इस पर भाजपा ने उन्हें न निगला न उगला. तो वे खुद ही हनुमान की तरह सुरसा के मुंह से बाहर आ गए. उन का पलायन निराशा और हताशा की बात है. उन्हें अपनी लड़ाई जारी रखनी चाहिए थी.

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