हथेलियों पे सजा कर उठाए जाते हैं
महान होते नहीं हैं, बनाए जाते हैं
खुला है खेल ये गालिब, फरक्काबादी है
कि लेनदेन से सौदे पटाए जाते हैं
तुझे बुलंदी की हसरत, उसे शबाब तेरा
हवस में दोनों अदब को जलाए जाते हैं
जो बेच आते हैं शोहरत के भाव तन अपना
सितारे वही जगमगाए जाते हैं
जो लोग लेते हैं ठेका महान करने का
हमीं में, आप में शातिर वो पाए जाते हैं
कोई भी शै नहीं मिलती जहां में फोकट में
महानता के भी डौलर चुकाए जाते हैं.
– राम मेश्राम
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