संसार के 7 आश्चर्यों में से एक मिस्र के पिरामिडों का रहस्य जानने की नए सिरे से कोशिश हो रही है. इस अभियान में मिस्र के अलावा फ्रांस, कनाडा और जापान के विशेषज्ञ एकसाथ जुटे हैं, जिन का मुख्य उद्देश्य है पिरामिडों की तकनीक और इन के अंदर के चैंबर के रहस्य जानना. प्राचीन मिस्रवासियों की धारणा थी कि उन का राजा किसी देवता का वंशज है, अत: वे उसी रूप में उसे पूजना चाहते थे. मृत्यु के बाद राजा दूसरी दुनिया में अन्य देवताओं से जा मिलता है, इस धारणा के चलते राजा का मकबरा बनाया जाता था और इन्हीं मकबरों का नाम पिरामिड रखा गया था. दरअसल, प्राचीन मिस्र में राजा अपने जीवनकाल में ही एक विशाल एवं भव्य मकबरे का निर्माण कराता था ताकि उसे मृत्यु के बाद उस में दफनाया जा सके. यह मकबरा त्रिभुजाकार होता था. ये पिरामिड चट्टान काट कर बनाए जाते थे. इन पिरामिडों में केवल राजा ही नहीं बल्कि रानियों के शव भी दफनाए जाते थे. यही नहीं, शव के साथ अनेक कीमती वस्तुएं भी दफन की जाती थीं. चोरलुटेरे इन कीमती वस्तुओं को चुरा कर न ले जा सकें, इसलिए पिरामिड की संरचना बड़ी जटिल रखी जाती थी. प्राय: शव को दफनाने का कक्ष पिरामिड के केंद्र में होता था.
पिरामिड बनाना आसान नहीं था. मिस्रवासियों को इस कला में दक्ष होने में काफी समय लगा. विशाल योजना बना कर नील नदी को पार कर बड़ेबड़े पत्थर लाने पड़ते थे. पिरामिड बनाने में काफी मजदूरों की आवश्यकता होती थी. पत्थर काटने वाले कारीगर भी अपने फन में माहिर होते थे. ऐसी मान्यता है कि पिरामिड ईसापूर्व 2690 और 2560 शताब्दियों में बनाए गए. सब से पुराना पिरामिड सक्कारा में स्थित जोसीर का सीढ़ीदार पिरामिड है. इसे लगभग 2650 ईसापूर्व बनाया गया था. इस की प्रारंभिक ऊंचाई 62 मीटर थी. वैसे काहिरा में गीजा के दूसरी शताब्दी ईसापूर्व के पिरामिड संसार के 7 आश्चर्यों में शामिल हैं.
वर्तमान में मिस्र में अनेक पिरामिड मौजूद हैं, इन में सब से बड़ा पिरामिड राजा चिओप्स का है. राजा चिओप्स के पिरामिड के निर्माण में 23 लाख पत्थर के टुकड़ों का इस्तेमाल हुआ था. इसे बनाने में एक लाख मजदूरों ने लगातार काम किया था. इसे पूरा होने में करीब 30 वर्ष का समय लगा. इस के आधार के किनारे 226 मीटर हैं तथा इस का क्षेत्रफल 13 वर्ग एकड़ है. मिस्र के पिरामिडों का रहस्य जानने के लिए नवीनतम टैक्नोलौजी का उपयोग किया जा रहा है. इस दौरान जानने का प्रयास किया जाएगा कि इन पिरामिडों को किस तकनीक से बनाया गया है और इन के अंदर ऐसे चैंबर तो नहीं हैं, जिन्हें अब तक नहींखोला जा सका है. इस के लिए इन्फ्रोटड कार्योग्राफी का इस्तेमाल किया जाएगा. यह तकनीक किसी चीज से निकलने वाली इन्फ्रारैड ऊर्जा और उस के आकार वगैरा की पहचान करती है. फिर उस के जरिए छिपी हुई चीज का पता चलना आसान हो जाता है.
3डी लेजर स्कैन तकनीक में से किसी चीज के अंदरूनी हिस्से के आकलन में मदद मिलेगी. इस से स्कैनिंग के बाद उस की 3डी इमेज बनाई जाएगी. कौस्मिक डिटैक्टर तकनीक के जरिए भवनों के अंदर गए बिना भी उन के अंदर रखी चीजों का पता चल जाता है और उस चीज को नुकसान भी नहीं पहुंचता. विचार यह है कि पिरामिड की बनावट की अंदरूनी जानकारी जुटा कर 3डी इमेज बनाई जाए. मिस्र के गीजा के पिरामिड पर किए जा रहे एक थर्मल स्कैन प्रोजैक्ट में रहस्यमयी हीट स्पौट्स नजर आए हैं. ‘स्कैन पिरामिड’ नाम से चलाए जा रहे इस प्रोजैक्ट में पिरामिड के इन्फ्रारैड थर्मल को स्कैन किया गया. सूर्योदय व सूर्यास्त के समय जब तापमान में बदलाव आता है तो उस समय इन स्कैनर्स के जरिए ये स्पष्ट नजर आए. वैज्ञानिकों का मानना है कि इन पिरामिडों में खासतौर पर सब से बड़े खुफू पिरामिड में और कब्रें व गलियारे मौजूद हैं, जिन के बारे में अभी दुनिया के लोग नहीं जानते. मिस्र, जापान, कनाडा और फ्रांस के वैज्ञानिक और आर्किटैक्ट इस प्रोजैक्ट पर काम कर रहे हैं. एक समय था जब यहां लोगों की इतनी भीड़ होती थी कि मिस्र के पिरामिडों की तसवीर लेना भी दूभर होता था. 2010 में जहां यहां डेढ़ करोड़ पर्यटक आए थे वहीं 2014 में उन की संख्या घट कर 90 लाख रह गई. आज आईएस के बढ़ते खौफ के चलते पर्यटक हजारों साल पुरानी इन अद्भुत कलाकृतियों को देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. आतंकी घटनाओं के चलते पर्यटक अपनी जान जोखिम में नहीं डालना चाहते. कभी लाखों पर्यटकों की भीड़ से गुलजार रहने वाला यह विश्वविख्यात पर्यटन स्थल आज वीरान पड़ा है और इक्केदुक्के लोग ही यहां नजर आते हैं.
पर्यटन व्यवसाय को हुए बड़े नुकसान का खमियाजा स्थानीय लोगों को भुगतना पड़ रहा है. हालत यह है कि उन्हें फाके करने पर मजबूर होना पड़ रहा है. मिस्र में कुछ समय से पिरामिडों पर चल रहे शोध में वैज्ञानिकों को बड़ी जानकारी हाथ लगी है. वैज्ञानिकों और मिस्र सरकार के अधिकारियों का दावा है कि ‘वैली औफ किंग्स’ में तूतनखामन की ममी के नीचे और भी कमरे हैं, जिन में ऐसे राज हैं जिन के बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है. आर्कियोलौजिस्ट निकोलस रीव्स के अनुसार तूतनखामन की ममी को एक बाहरी चैंबर में रखा गया है, जिस के नीचे और कमरे या गलियारे हो सकते हैं, जिन में सामान व ममीज भी हो सकती हैं. रीव्स का कहना है कि तूतनखामन की कब्र को असल में रानी नेफरतीती के लिए बनाया गया था. विशेषज्ञों के अनुसार तूतनखामन की कब्र के नीचे ही किसी अन्य कमरे में नेफरतीती की भी कब्र हो सकती है. ऐसा माना जाता है कि लगभग 3 हजार से 3,500 साल पहले तूतनखामन की मौत हुई उस समय उन की उम्र 19 साल के आसपास थी.
1922 में तूतनखामन की ममी को खोजा गया था. ब्रिटिश पुरातत्त्ववेत्ता हौवर्ड कार्टर ने फराओ (राजा) की इस ममी को ढूंढ़ा था. ममी ने तावीज पहन रखा था और पूरा चेहरा सोने से बने मास्क से ढका हुआ था. कार्टर और उन की टीम ने फराओ के चेहरे से मास्क भी उतारा था. कहा जाता है कि अब तक केवल 50 लोगों ने तूतनखामन के चेहरे को देखा है. इस ममी को एक ताबूत में रखा गया था और जब इस प्राचीन शासक के शरीर को इस से बाहर निकाला गया तो उस का चेहरा झुर्रीदार और काला था. हालांकि बाद में वापस मास्क लगा दिया गया था. उन की कब्र से सोने और हाथी दांत की बनी ढेरों कीमती चीजें मिली थीं.