Best Hindi Story : पूरे मोहल्ले में सब से खराब माली हालत महेंद्र की ही थी. इस शहर से कोसों दूर एक गांव से 2 साल पहले ही महेंद्र अपनी बीवी सुनीता और 2 बच्चों के साथ इस जगह आ कर बसा था. वह गरीबी दूर करने के लिए गांव से शहर आया था, लेकिन यहां तो उन का खानापीना भी ठीक से नहीं हो पाता था.
महेंद्र एक फैक्टरी में काम करता था और सुनीता घर पर रह कर बच्चों की देखभाल करती थी. बड़ा बेटा 5 साल से ऊपर का हो गया था, लेकिन अभी स्कूल जाना शुरू नहीं हो पाया था.
सुनीता काफी सोचती थी कि बच्चे को किसी अगलबगल के छोटे स्कूल में पढ़ने भेजने लगे, लेकिन चाह कर भी न भेज सकती थी.
जिस महल्ले में सुनीता रहती थी, उस महल्ले में सब मजदूर और कामगार लोग ही रहते थे. ठीक बगल के मकान में रहने वाली एक औरत के साथ सुनीता का उठनाबैठना था.
जब उस को सुनीता की मजबूरी पता लगी, तो उस ने सुनीता को खुद भी काम करने की सलाह दे डाली. उस ने एक घर में उस के लिए काम भी ढूंढ़ दिया.
सुनीता ने जब यह बात महेंद्र को बताई, तो वह थोड़ा हिचकिचाया, लेकिन सुनीता का सोचना ठीक था, इसलिए वह कुछ कह नहीं सका.
सुनीता उस औरत द्वारा बताए गए घर में काम करने जाने लगी. वह काफी बड़ा घर था. घर में केवल 2 लोग ममता और रमन पतिपत्नी ही थे, जो किसी बड़ी कंपनी में काम करते थे.
दोनों का स्वभाव सुनीता के प्रति बहुत नरम था. ममता तो आएदिन सुनीता को तनख्वाह के अलावा भी कुछ न कुछ चीजें देती ही रहती थी.
रमन और ममता के पास किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, लेकिन घर में एक भी बच्चा नहीं था.
रविवार के दिन ममता और रमन छुट्टी पर थे. काम खत्म कर सुनीता जाने को हुई, तो ममता ने उसे बुला कर अपने पास बिठा लिया. वह सुनीता से उस के परिवार के बारे में पूछती रही.
सुनीता को ममता की बातों में बड़ा अपनापन लगा, तो वह अचानक ही
उस से पूछ बैठी, ‘‘जीजी, आप के कोई बच्चा नहीं हुआ क्या?’’
ममता ने मुसकरा कर सुनीता की तरफ देखा और धीरे से बोली, ‘‘नहीं, लेकिन तुम यह क्यों पूछ रही हो?’’
सुनीता ने ममता की आवाज को भांप लिया था. वह बोली, ‘‘बस जीजी, ऐसे ही पूछ रही थी. घर में कोई बच्चा न हो, तो अच्छा नहीं लगता न. शायद आप को ऐसा महसूस होता हो.’’
ममता की आंखें उसी पर टिक गई थीं. वह भी शायद इस बात को शिद्दत से महसूस कर रही थी.
ममता बोली, ‘‘तुम सही कहती हो सुनीता. मैं भी इस बात को ले कर चिंता में रहती हूं, लेकिन कर भी क्या सकती हूं? मैं मां नहीं बन सकती, ऐसा डाक्टर कहते हैं…’’
यह कहतेकहते ममता का गला भर्रा गया था. सुनीता भी आगे कुछ कहने की हिम्मत न कर सकी थी. उस के पास शायद इस बात का कोई हल नहीं था.
ममता और रमन शादी से पहले एक ही कंपनी में काम करते थे, जहां दोनों में मुहब्बत हुई और उस के बाद दोनों ने शादी कर ली. कई साल तक दोनों ने बच्चा पैदा नहीं होने दिया, लेकिन बाद में ममता मां बनने के काबिल ही न रही. इस बात को ले कर दोनों परेशान थे.
सुनीता को ममता के घर काम करते हुए काफी दिन हो गए थे. ममता का मन जब भी होता, वह सुनीता को अपने पास बिठा कर बातें कर लेती थी. पर अब सुनीता ममता से बच्चा न होने या होने को ले कर कोई बात नहीं करती थी. दिन ऐसे ही गुजर रहे थे.
एक दिन ममता ने सुनीता को आवाज दी और उसे साथ ले कर अपने कमरे में पहुंच गई. उस ने सुनीता को अपने पास ही बिठा लिया.
सुनीता अपनी मालकिन ममता के बराबर में बैठने से हिचकती थी, लेकिन ममता ने उसे हाथ पकड़ कर जबरदस्ती बिठा ही लिया.
ममता ने सुनीता का हाथ अपने हाथ में लिया और बोली, ‘‘सुनीता, तुम से एक काम आ पड़ा है, अगर तुम कर सको तो कहूं?’’
ममता के लिए सुनीता के दिल में बहुत इज्जत थी, भला वह उस के किसी काम के लिए क्यों मना कर देती. वह बोली, ‘‘जीजी, कैसी बात करती हो? आप कहो तो सही, न करूं तो कहना.’’
ममता ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, ‘‘सुनीता, डाक्टर कहता है कि मैं मां तो बन सकती हूं, लेकिन इस के लिए मुझे किसी दूसरी औरत का सहारा लेना पड़ेगा… अगर तुम चाहो, तो इस काम में मेरी मदद कर सकती हो.’’
ममता की बात सुन कर सुनीता का मुंह खुला का खुला रह गया. उस को यकीन न होता था कि ममता उस से इतने बड़े व्यभिचार के बारे में कह सकती है.
सुनीता साफ मना करते हुए बोली, ‘‘जीजी, मैं बेशक गरीब हूं, लेकिन अपने पति के होते किसी मर्द की परछाईं तक को न छुऊंगी. आप इस काम के लिए किसी और को देख लो.’’
ममता हैरत से बोली, ‘‘अरे बावली, तुम से पराया मर्द छूने को कौन कहता है… यह सब वैसा नहीं है, जैसा तुम सोच रही हो. इस में सिर्फ लेडी डाक्टर के अलावा तुम्हें कोई नहीं छुएगा. यह समझो कि तुम सिर्फ अपनी कोख में बच्चे को पालोगी, जबकि सबकुछ मैं और मेरे पति करेंगे.’’
सुनीता की समझ में कुछ न आया था. सोचा कि भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई आदमी औरत को छुए भी नहीं और वह मां बन जाए.
सुनीता को हैरान देख कर ममता बोल पड़ी, ‘‘क्या सोच रही हो सुनीता? तुम चाहो तो मैं सीधे डाक्टर से भी बात करा सकती हूं. जब तुम पूरी तरह संतुष्ट हो जाओ, तब ही तैयार होना.’’
सुनीता हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘जीजी, मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूं… अगर मैं तैयार हो भी जाऊं, तो मेरे पति इस बात के लिए नहीं मानेंगे.’’
ममता हार नहीं मानना चाहती थी. आखिर उस के मन में न जाने कब से मां बनने की चाहत पल रही थी. वह बोली, ‘‘तुम इस बात की चिंता बिलकुल मत करो. मैं खुद घर आ कर तुम्हारे पति से बात करूंगी और इस काम के लिए तुम्हें इतना पैसा दूंगी कि तुम 2 साल भी काम करोगी, तब भी कमा नहीं पाओगी.’’
सुनीता यह सब तो नहीं चाहती थी, लेकिन ममता से मना करने का मन भी नहीं हो रहा था.
काम से लौटने के बाद सुनीता ने अपने पति से सारी बात कह दी. महेंद्र इस बात को सिरे से खारिज करता हुआ बोला, ‘‘नहीं, कोई जरूरत नहीं है इन लोगों की बातों में आने की. कल से काम पर भी मत जाना ऐसे लोगों के यहां. ये अमीर लोग होते ही ऐसे हैं.
‘‘मैं तो पहले ही तुम्हें मना करने वाला था, लेकिन तुम ने जिद की तो कुछ न कह सका.’’
सुनीता को ऐसा नहीं लगता था कि ममता दूसरे अमीर लोगों की तरह है. वह उस के स्वभाव को पहले भी परख चुकी थी. वह बोली, ‘‘नहीं, मैं यह बात नहीं मान सकती. ऐसी मालकिन मिलना आज के समय में बहुत मुश्किल काम है. आप उन को सब लोगों की लाइन में खड़ा
मत करो.’’
महेंद्र कुछ कहता, उस से पहले ही कमरे के दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई, फिर दरवाजा बजाया गया.
सुनीता को ममता के आने का एहसास था. उस ने झट से उठ कर दरवाजा खोला, तो देखा कि सामने ममता खड़ी थी.
सुनीता के हाथपैर फूल गए, खुशी के मारे मुंह से बात न निकली, वह अभी पागलों की तरह ममता को देख ही रही थी कि ममता मुसकराते हुए बोल पड़ी, ‘‘अंदर नहीं बुलाओगी सुनीता?’’
सुनीता तो जैसे नींद से जागी थी.
वह हड़बड़ा कर बोली, ‘‘हांहां जीजी, आओ…’’ यह कहते हुए वह दरवाजे से एक तरफ हटी और महेंद्र से बोली, ‘‘देखोजी, अपने घर आज कौन आया है… ये जीजी हैं, जिन के घर पर मैं काम करने जाती हूं.’’
महेंद्र ने ममता को पहले कभी देखा तो नहीं था, लेकिन अमीर पहनावे और शक्लसूरत को देख कर उसे समझते देर न लगी. उस ने ममता से दुआसलाम की और उठ कर बाहर चल दिया.
ममता ने उसे जाते देखा, तो बोल पड़ी, ‘‘भैया, आप कहां चल दिए? क्या मेरा आना आप को अच्छा नहीं लगा?’’
महेंद्र यह बात सुन कर हड़बड़ा गया. वह बोला, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो इसलिए जा रहा था कि आप दोनों आराम से बात कर सको.’’
ममता हंसते हुए बोली, ‘‘लेकिन भैया, मैं तो आप से ही बात करने आई हूं. आप भी हमारे साथ बैठो न.’’
महेंद्र न चाहते हुए भी बैठ गया. ममता का इतना मीठा लहजा देख वह उस का मुरीद हो गया था. उस के दिमाग में अमीरों को ले कर जो सोच थी, वह जाती रही.
सुनीता सामने खड़ी ममता को वहीं बिछी एक चारपाई पर बैठने का इशारा करते हुए बोली, ‘‘जीजी, मेरे घर में तो आप को बिठाने के लिए ठीक जगह भी नहीं, आप को आज इस चारपाई पर ही बैठना पड़ेगा.’’
ममता मुसकराते हुए बोली, ‘‘सुनीता, प्यार और आदर से बड़ा कोई सम्मान नहीं होता, फिर क्या चारपाई और क्या बैड. आज तो मैं तुम्हारे साथ जमीन पर ही बैठूंगी.’’
इतना कह कर ममता जमीन पर पड़ी एक टाट की बोरी पर ही बैठ गई.
सुनीता ने लाख कहा, लेकिन ममता चारपाई पर न बैठी. हार मान कर सुनीता और महेंद्र भी जमीन पर ही बैठ गए. सुनीता ने नजर तिरछी कर महेंद्र को देखा, फिर इशारों में बोली, ‘‘देख लो, तुम कहते थे कि हर अमीर एकजैसा होता है. अब देख लिया.’’
महेंद्र से आदमी पहचानने में गलती हुई थी.
तभी ममता अचानक बोल पड़ी, ‘‘सुनीता, क्या तुम मुझे चाय नहीं पिलाओगी अपने घर की?’’
सुनीता के साथसाथ महेंद्र भी खुश हो गया. एक करोड़पति औरत गरीब के घर आ कर जमीन पर बैठ चाय पिलाने की गुजारिश कर रही थी.
सुनीता तो यह सोच कर चाय न बनाती थी कि ममता उस के घर की चाय पीना नहीं चाहेंगी. जब खुद ममता ने कहा, तो वह खुशी से पागल हो उठी,
महेंद्र और सुनीता की इस वक्त ऐसी हालत थी कि ममता इन दोनों से इन की जान भी मांग लेती, तो भी ये लोग मना न करते.
चाय बनी, तो सब लोग चाय पीने लगे. इतने में सुनीता का छोटा बेटा जाग गया. ममता ने उसे देखा तो खुशी से गोद में उठा लिया और उस से बातें करने में मशगूल हो गई.
महेंद्र और सुनीता यह सब देख कर बावले हुए जा रहे थे. उन्हें ममता में एक अमीर औरत की जगह अपने घर की कोई औरत नजर आ रही थी.
थोड़ी देर बाद ममता ने बच्चे को सुनीता के हाथों में दे दिया और महेंद्र की तरफ देख कर बोली, ‘‘भैया, मैं कुछ बात करने आई थी आप से. वैसे, सुनीता ने आप को सबकुछ बता दिया होगा.
‘‘भैया, मैं आप को यकीन दिलाती हूं कि सुनीता को सिर्फ लेडी डाक्टर के अलावा कोई और नहीं छुएगा. यह इस तरह होगा, जैसे कोयल अपने अंडे कौए के घोंसले में रख देती है और बच्चे अंडों से निकल कर फिर से कोयल के हो जाते हैं, अगर आप…’’
महेंद्र ममता की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा, ‘‘बहनजी, आप जैसा ठीक समझें वैसा करें. जब सुनीता को आप अपना समझती हैं, तो फिर मुझे किसी बात से कोई डर नहीं. इस का बुरा थोड़े ही न सोचेंगी आप.’’
ममता खुशी से उछल पड़ी. सुनीता महेंद्र को मुंह फाड़े देखे जा रही थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि महेंद्र इतनी जल्दी हां कह सकता है. लेकिन महेंद्र तो इस वक्त किसी और ही फिजा में घूम रहा था. कोई करोड़पति औरत उस के घर आ कर झोली फैला कर उस से कुछ मांग रही थी, फिर भला वह कैसे मना कर देता.
ममता हाथ जोड़ कर महेंद्र से बोली, ‘‘भैया, मैं आप का यह एहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगी,’’ यह कहते हुए ममता ने अपने मिनी बैग से नोटों की एक बड़ी सी गड्डी निकाल कर सुनीता के हाथों में पकड़ा दी और बोली, ‘‘सुनीता, ये पैसे रख लो. अभी और दूंगी. जो इस वक्त मेरे पास थे, वे मैं ले आई.’’
सुनीता ने हाथ में पकड़े नोटों की तरफ देखा और फिर महेंद्र की तरफ देखा. महेंद्र पहले से ही सुनीता के हाथ में रखे नोटों को देख रहा था.
आज से पहले इन दोनों ने कभी इतने रुपए नहीं देखे थे, लेकिन महेंद्र कम से कम ममता से रुपए नहीं लेना चाहता था, वह बोला, ‘‘बहनजी, ये रुपए हम लोग नहीं ले सकते. जब आप हमें इतना मानती हैं, तो ये रुपए किस बात के लिए?’’
ममता ने सधा हुआ जवाब दिया, ‘‘नहीं भैया, ये तो आप को लेने ही पड़ेंगे. भला कोई और यह काम करता, तो वह भी तो रुपए लेता, फिर आप को क्यों न दूं?
‘‘और ये रुपए दे कर मैं कोई एहसान थोड़े ही न कर रही हूं.’’
इस के बाद ममता वहां से चली गई. महेंद्र ने ममता के जाने के बाद रुपए गिने. पूरे एक लाख रुपए थे. महेंद्र और सुनीता दोनों ही आज ममता के अच्छे बरताव से बहुत खुश थे. ऊपर से वे एक लाख रुपए भी दे गईं. ये इतने रुपए थे कि 2 साल तक दोनों काम करते, तो भी इतना पैसा जोड़ न पाते.
दोनों के अंदर आज एक नया जोश था. अब न किसी बात से एतराज था और न किसी बात पर कोई सवाल.
जल्द ही सुनीता को ममता ने डाक्टर के पास ले जा कर सारा काम निबटवा दिया. वह सुनीता के साथ उस के पति महेंद्र को भी ले गई थी, जिस से उस के मन में कोई शक न रहे.
ममता ने अब सुनीता से घर का काम कराना बंद कर दिया था. घर के काम के लिए उस ने एक दूसरी औरत को रख लिया था. सुनीता को खाने के लिए ममता ने मेवा से ले कर हर जरूरी चीज अपने पैसों से ला कर दे दी थी. साथ ही, एक लाख रुपए और भी नकद दे दिए थे.
ममता नियमित रूप से सुनीता को देखने भी आती थी. उस ने महेंद्र और सुनीता से उस के घर चल कर रहने के लिए भी कहा था, लेकिन महेंद्र ने वहां रहने के बजाय अपने घर में ही रहना ठीक समझा.
जिस समय सुनीता अपने पेट में बच्चे को महसूस करने लगी थी, तब से न जाने क्यों उसे वह अपना लगने लगा था. वह उसे सबकुछ जानते हुए भी अपना मान बैठी थी.
जब बच्चा होने को था, तब एक हफ्ता पहले ही सुनीता को अस्पताल में भरती करा दिया गया था. जिस दिन बच्चा हुआ, उस दिन तो ममता सुनीता को छोड़ कर कहीं गई ही न थी. सुनीता को बेटा हुआ था.
ममता ने सुनीता को खुशी से चूम लिया था. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. लेकिन सुनीता को मन में अजीब सा लग रहा था. उस का मन उस बच्चे को अपना मान रहा था.
अस्पताल से निकलने के बाद ममता ने सुनीता को कुछ दिन अपने पास भी रखा था. उस के बाद उस ने सुनीता को और 50 हजार रुपए भी दिए.
सुनीता अपने घर आ गई, लेकिन उस का मन न लगता था. जो बच्चा उस ने अपनी कोख में 9 महीने रखा, आज वह किसी और का हो चुका था. पैसा तो मिला था, लेकिन बच्चा चला गया था.
सुनीता का मन होता था कि बच्चा फिर से उस के पास आ जाए, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकता था. उस की कोख किसी और के बच्चे के लिए किराए पर जो थी.