विश्व आज आतंकवाद के मुहाने पर खड़ा है. कोई भी देश ऐसा नहीं है जो किसी न किसी रूप में आतंकवाद का शिकार नहीं है. खासतौर पर मुसलिम देशों में तो आतंकवाद बुरी तरह पांव पसारे हुए है. इन में से कई देश आतंकवाद को हवा दे रहे हैं जिस का नतीजा जैश ए मोहम्मद, अलकायदा, तालिबान और इसलामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठन हैं. ये संगठन धार्मिक कट्टरता की आड़ में विश्व की शांति में खलल डाल रहे हैं और आएदिन ऐसी वारदातों को अंजाम देते हैं जिन में हजारों बेगुनाहों को जान गवांनी पड़ती है.

13 नवंबर, 2015 तो विश्व के आतंकवादी इतिहास में एक रक्तरंजित दिवस के रूप में दर्ज हो चुका है. इस दिन फ्रांस की राजधानी पेरिस में आईएस के आतंकवादियों ने बम धमाके किए, जिस में 130 लोगों की जान चली गई. इस घटना ने न केवल फ्रांस को दहलाया बल्कि अमेरिका समेत तमाम यूरोपीय देशों की भी नींद उड़ा दी. इस से पूरे विश्व में बेचैनी भरा माहौल पैदा हो गया है. जो देश एकदूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे वे अब आईएस के विरुद्ध लामबंद हो रहे हैं और एक बार फिर गैरइसलामी देशों के बीच एकता नजर आने लगी है. रूस, ब्रिटेन और अमेरिका भी आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हो गए हैं. इस की वजह तुर्की द्वारा रूस के एक यात्री विमान को गिराया जाना है. अमेरिकी ट्विन टावर और पेंटागन पर हुए हमले के जख्म अभी भरे नहीं हैं, इसलिए अब वह आतंकवाद का सफाया करने को बेताब है. अमेरिका रूस और ब्रिटेन के साथ आतंकवाद के सफाए के मुद्दे पर साथ हो गया है.

दूसरी ओर जापान, जरमनी और आस्ट्रेलिया भी सतर्क हो गए हैं और संकट की इस घड़ी में वे भी अमेरिका व यूरोपीय देशों के साथ आ खड़े हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने आईएस के हौसलों को नेस्तानाबूद करने के लिए आईएस और अलकायदा की फंडिंग रोकने के लिए प्रस्ताव पारित किया है.

आईएस की शक्ति युवा

आईएसआईएस यानी इसलामिक स्टेट औफ ईरान ऐंड सीरिया का मुख्य मकसद काफिरों यानी गैरमुसलिम देशों को अपना निशाना बनाना और अपना दबदबा कायम करना है. आईएस का गठन अप्रैल, 2013 में हुआ था. इस से पहले यह अलकायदा में  ही शामिल था, लेकिन बाद में अलकायदा से अलग हो गया और सीरिया में सरकारी बलों से लड़ने के लिए मुख्य जिहादी समूहों में से एक बन गया और अब अबू बक्र अल बगदादी के नेतृत्व में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है.

इस आतंकवादी संगठन की मुख्य शक्ति युवा हैं. इस ने विश्व के मुसलिम युवाओं को धर्म का पाठ पढ़ा कर काफिरों के खिलाफ बंदूक उठाने के लिए तैयार किया. आज इस संगठन में युवाओं की काफी बड़ी फौज है जो आत्मघाती बमों और जैविक हथियारों से लैस  है. दुनियाभर में इन का भरती अभियान तेजी से चल रहा है. आईएस के आकाओं ने औनलाइन भरतियां भी शुरू की हैं. ये गैरमुसलिम देशों के मुसलमान युवकों को इंटरनैट के जरिए गुमराह कर अपने गिरोह में शामिल कर रहे हैं और उन के परिवारों को मोटी रकम दी जाती है. इसलिए मुसलिम युवा आसानी से इन के झांसे में आ जाते हैं.

भारत में भी आईएस अपना भरती अभियान औनलाइन चला रहा है. हालांकि उसे भारत में खास सफलता नहीं मिली, क्योंकि यहां का मुसलमान जानता है कि भारत एक अमन पसंद देश है. यहां किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है. हर जाति और धर्म के लोगों को अपने तरीके से रहने की छूट है. वे अपनी मरजी से नौकरी या व्यवसाय कर सकते हैं. ऐसे में आईएस का भारतीय मुसलिम नवयुवकों को गुमराह करना इतना आसान नहीं है.

पिछले दिनों हैदराबाद की एक महिला को गिरफ्तार किया गया जो आईएस के लिए औनलाइन भरती अभियान चला रही थी. दिलचस्प बात यह है कि ऐसे औनलाइन भरती मिशन भारत में कामयाब नहीं हो रहे हैं. अलबत्ता कुछ युवक जरूर आईएस की ओर खिंच रहे हैं, लेकिन फिर भी कुछ गुमराह युवक आईएस में शामिल हो रहे हैं. मुंबई के मालवाणी इलाके के 3 युवकों के आईएस में शामिल होने की खबर है. आतंकवाद विरोधी दस्ता (एसटीएस) के अनुसार औटो ड्राइवर मोहसिन शेख (26), वाजिद शेख (25) और कौल सैंटर में काम करने वाला अयाज सुलतान (23) 16 दिसंबर को आईएस में शामिल होने चले गए. अयाज सुलतान ने 30 अक्तूबर को घर छोड़ते समय कहा था कि वह पुणे जा रहा है, वहां से कुवैत चला जाएगा. मोहसिन यह कह कर घर से निकला था कि वह दोस्त की शादी में जा रहा है और वाजिद यह कह कर घर से निकला था कि वह आधार कार्ड में नाम सही कराने जा रहा है. लेकिन ये तीनों युवक आज तक वापस नहीं लौटे हैं. एसटीएस को शक है कि ये सीरिया और इराक भाग गए हैं.

आईएस ने किया रेडियो स्टेशन शुरू

अपना नैटवर्क बढ़ाने के लिए आईएस ने अफगानिस्तान के पूर्वी प्रांत नांगरहार में अपना रेडियो स्टेशन शुरू किया है. पश्तो भाषा में प्रसारण के माध्यम से वह अपने विचारों का प्रचार और आतंकियों की नई भरतियों के विज्ञापन जारी कर रहा है. बावजूद इस के भारत के मुसलिम युवक आईएस के झांसे में नहीं आ रहे हैं. यहां युवाओं को कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं :

धार्मिक संकीर्णता में न पड़ें

अकसर कठमुल्ले धर्म का वास्ता दे कर युवाओं को बरगलाने की कोशिश करते हैं, उन्हें दूसरी कौमों के प्रति नफरत फैलाने के लिए उकसाते हैं, युवाओं को चाहिए कि वे ऐसे लोगों के झांसे में न आएं.

बंधुत्व की भावना

हर युवा में बंधुत्व की भावना का होना नितांत जरूरी है, चाहे वह किसी जाति अथवा समुदाय का हो. आपस में मजबूत मित्रता को बढ़ावा दें, एकदूसरे को अपना समझें, सभी धर्मों के त्योहारों को मिलजुल कर सैलिब्रेट करें. एकदूसरे के घर जाएं, विचारों का आदानप्रदान करें. अगर ऐसा माहौल बन जाएगा तो कोई भी ताकत युवाओं को गुमराह करने में कामयाब नहीं होगी.

कैरियर पर दें ध्यान

युवा ध्यान रखें कि आतंकवाद आप को कुछ नहीं दे सकता. इसलिए पढ़लिख कर अपने कैरियर पर ध्यान दें. अच्छी नौकरी कर अपना भविष्य संवारें.               

धर्म आतंकवाद की जड़

आतंकवाद आज विश्व में अपने फन फैलाए हुए है. अगर सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो आतंकवाद का मुख्य कारण धार्मिक ग्रंथ हैं. इन ग्रंथों में इस बात की तालीम भरी हुई है कि अपने संप्रदाय को मजबूत करना है तो उस के लिए जो कुछ भी करना पड़े उस के लिए तैयार रहना चाहिए. जो इन धर्मग्रंथों के मुताबिक आचरण नहीं करता, वह अपने धर्म के प्रति गैरजिम्मेदार है और उसे जीने का कोई हक नहीं है. इतिहास गवाह है कि चाहे मुसलिम देश हों या फिर यूरोपियन सभी शुरू से धर्म युद्ध में मशगूल रहे हैं और धर्म को ले कर लड़ाइयां लड़ी जाती रही हैं.

क्रिश्चियन और यहूदियों में 13वीं शताब्दी से ही युद्ध होते रहे हैं. 11वीं शताब्दी के शुरू में कू्रसेडरों ने जब येरुशलम को घेरा तो मुसलमान धर्म के नाम पर जिहाद के लिए इकट्ठा हुए. सीरिया को एकजुट कर मुसलमानों ने इसलामिक गणराज्य बनाया और ईसाइयों को खदेड़ दिया. ईसाइयों ने अपनी भूमि येरुशलम पर कब्जा करने के लिए इसलामिक गणराज्य के साथ कई धर्मयुद्ध लड़े. युद्धों का यह सिलसिला कई शताब्दियों तक चलता रहा. मध्ययुगीन युद्धों के पीछे यूरोप की मनशा विश्व पर अपना दबदबा बनाए रखने की थी और उस ने यह साबित भी कर दिखाया. 1914 तक यूरोपीय देशों ने विश्व मानचित्र के 84% हिस्से पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया.

यूरोप के ताकतवर होने के पीछे वे नेता थे जो आईएसआईएस की तरह ही युद्ध करते थे. उन युद्ध नेताओं के पराक्रम की वजह से ही उन के अनुयायियों की संख्या बढ़ती चली गई. आज आईएसआईएस के अनुयायी भी इस की ताकत की वजह से इस ओर खिंच रहे हैं और यह आतंकवादी संगठन मजबूत हो रहा है. लेकिन इन युद्धों और आतंकवाद की जड़ में धर्म और धार्मिक ग्रंथ ही हैं जो सोचनेसमझने की शक्ति मंद कर देते हैं और युवा कूपमंडूक से इन के झांसे में आ कर हथियार थाम लेते हैं.

बेहतर तो यही होगा कि युवाओं को ऐसे धर्मग्रंथों की असलियत से वाकिफ कराया जाए ताकि वे एक इंसान बनें न कि हिंदू, मुसलमान या ईसाई.

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