पहले अर्थी को कंधा देना नेक कार्य माना जाता था पर अब औपचारिकता हो गई है. अब तो घर से मुक्तिवाहन तक और श्मशान घाट के प्रवेशद्वार से चितास्थल तक सांकेतिक कंधे देना प्रचलन में आ गया है. अधिकांश मुक्तिवाहन नगरनिगम के ‘राइटअप’ हो चुके ट्रकों का परिमार्जित संस्करण होते हैं. शहरों के बेतरतीब विकास को देख कर लगता है कि इन का विकास श्मशान घाट यानी कब्रिस्तान को केंद्र मान कर किया गया है. आदमी कहीं जाए या न जाए, पर यहां तो सभी को आना है. जैसे शासन की नीति है कि स्कूल सभी को जाना है, वैसे ही आदमी की नियति है कि अंत में सभी को यहीं आना है.

जिस प्रकार 2 किलोमीटर के दायरे में प्राइमरी स्कूल का शासकीय प्रावधान है, जिस से बच्चों को अधिक न चलना पड़े, वैसे ही 5 किलोमीटर के दायरे में श्मशान केंद्र होना चाहिए, जिस से ले जाने वालों को आत्मिक शांति मिल सके, जाने वाला तो चिरशांति को प्राप्त हो ही जाता है.

ऐसे ही, मुक्तिधाम की यात्रा पर दिवंगत पिताजी की अर्थी को ले कर मुक्तिवाहन से मंत्रीजी रवाना हुए. अभी कुछ ही आगे बढ़े थे कि अर्थी हिली, एक चमचा प्रकार का प्राणी बोला, ‘‘माननीय पिताजी लौट आए.’’

सभी अर्थी को देखने लगे, मंत्रीजी ने माथा छुआ, ठंडा था, नाक के आगे उंगली की, श्वास नदारद. वे गमगीन हो गए. इतने में अर्थी के साथसाथ वाहन में सवार अन्य लोग भी हिले, फिर तो हिलनेडुलने का सिलसिला चल निकला. किसी ने पंडितजी से पूछा, ‘‘पंडितजी, पिताजी स्वर्ग ही गए हैं न?’’ पंडितजी बोले, ‘‘सौ प्रतिशत, कनागत में प्राण छोड़े हैं, स्वर्ग के दरवाजे खुले मिलेंगे.’’

‘‘पर, स्वर्ग का रास्ता बहुत खराब है,’’ मंत्रीजी धीरेधीरे बोले.

‘‘आप के हाथ में है श्रीमान. आप वसुधा के इंद्र हैं, यहां पर स्वर्गमार्ग का निर्माण कर सकते हैं. इहलोक के साथसाथ परलोक में भी आप की कीर्तिपताका फहरेगी,’’ पंडितजी ने प्रशस्तिवाचन किया.

मंत्रीजी विचारमग्न हो गए. उन्हें इस घटना ने अंदर तक हिला दिया. जैसेतैसे अंतिम संस्कार संपन्न हुआ, तेरहवीं भी धूमधाम से संपन्न हुई. प्रशासन ने मंत्रीजी की भावनाओं के अनुरूप स्वर्गमार्ग के निर्माण की योजना प्रस्तुत की जो शासन द्वारा स्वीकृति को प्राप्त हुई. स्वर्गमार्ग का प्रचार जोरशोर से किया गया- ‘संवेदनशील शासन की पहचान, अब स्वर्ग जाना आसान.’ मार्ग के शुभारंभ हेतु माननीय मंत्रीजी के साथ प्रशासन व सम्माननीय नागरिक श्मशान घाट में उपस्थित थे. यहां की समस्याओं के समाधान हेतु यहीं बैठक आयोजित की गई.

वरिष्ठ संघ के अध्यक्ष ने माइक संभाला और बोले, ‘‘राजा हो, रंक हो, सभी को यहां आना है. यह हमारे शासन की, माननीय मंत्रीजी की संवेदनशीलता है कि वे मुर्दों की भी चिंता करते हैं. जिंदा लोग तो अपनी यात्रा कैसे भी पूरी कर लेते हैं, पर मुर्दा बेचारा क्या कर सकता है? न चल सके, न बोल सके? कैसे अपनी व्यथा कहे? उस की व्यथा को शासन ने अनुभूत किया और हमारे आदरणीय मंत्रीजी के सदप्रयासों से यह शुभ घड़ी आई. हम उन्हें हार्दिक धन्यवाद देते हैं कि अब हम निश्ंिचत हो कर मर सकेंगे, धन्यवाद.’’

श्मशान घाट तालियों से गूंज उठा, एक आक्रोशित युवा नागरिक ने माइक पकड़ा और बोला, ‘‘सर, यह तो ठीक है पर हमें यहां की समस्याओं पर भी ध्यान देना चाहिए. हम यहां आते हैं, कभीकभी हमें एकदो घंटे इंतजार भी करना पड़ता है. समय ही सोना है, जिन्हें सोना था वे तो हमेशा के लिए सो गए, पर हमें समय का सदुपयोग करना सीखना होगा. श्मशान घाट में एक साइबर कैफे हो, जिस से समय का सदुपयोग हो सके.’’

‘‘अवश्य, तुम्हारा मन नहीं भटकेगा, चैटिंग भी होगी और सैटिंग भी, दुख से प्रभावित नहीं होंगे, अच्छा सुझाव है,’’ नगीना बाबू बोले.

‘‘पुराने लोग, पुरानी बातें,’’ कुछ नवयुवक एकसाथ बोले.

‘‘शांत युवको, शांत. आप तरुण हैं, आप वर्तमान हैं, ये अतीत,’’ मंत्रीजी अब बुजुर्गवार की ओर देखते हुए बोले, ‘‘इन की सुननी पड़ेगी, चाचा, साइबर कैफ का सुझाव अच्छा है. और कोई सुझाव युवको?’’

‘‘सर, स्वर्ग में एक स्पा भी खुल जाए तो अच्छा रहे, यहीं से फ्रैश हो कर बाहर निकलें,’’ एक आधुनिक युवक बोला.

‘‘स्विमिंग पूल और भी अच्छा रहेगा, नहाने के साथ ऐक्सरसाइज भी हो जाएगी.’’

‘‘सत्य वचन’’, पंडितजी ने समर्थन किया, फिर बोले, ‘‘श्मशान घाट जाने से व्यक्ति अशुद्ध हो जाता है. पूर्वकाल में घाट पर स्नान करने का विधान था. घाट शब्द इसी का सूचक है, जैसे नर्मदा के घाट, गंगा के घाट वैसे ही श्मशान घाट, यहां मृत शरीर अग्नि स्नान करता है और हम जल स्नान.’’

तभी मंत्रीजी को किसी ने एक पर्ची थमा दी, पढ़ कर वे गंभीर स्वर में बोले, ‘‘भाइयो और बहनो, आवागमन निरंतर प्रक्रिया है, कल हम वहां थे, आज यहां हैं, कल कहां होंगे, कुछ नहीं पता.’’ एक अंतिम यात्रा का जुलूस वहां से गुजरा. मंत्रीजी भावविह्वल हो गए, ‘‘ये जो हमें छोड़ कर जा रहे हैं, हमारे बचपन के मित्र हैं.’’ फिर पर्ची देखते हुए बोले, ‘‘रामदयाल जी, राम की इन पर दया हो गई, अपने पास बुला लिया. हमें अभी और भुगतना है, सो, हम यहां हैं. इन के बेटे, हो सकता है, हमें न जानते हों, पर हम जानते हैं. मैं ने इन्हें बचपन में खिलाया है.’’

‘प्रभु, आप अंतर्यामी हैं, घटघट वासी हैं,’ नगीना बाबू मन ही मन बोले फिर कहा, ‘‘आप को कौन नहीं जानता, मान्यवर. यहां का एकएक वोटर जानता है. किसी महान आत्मा ने ही यह नश्वर शरीर धारण किया है श्मशान को आबाद करने के लिए.’’

‘‘यह समय महिमामंडन का नहीं, हम श्रद्धांजलि दे कर आते हैं,’’ कहते हुए मंत्रीजी ने मृतशरीर पर पुष्पांजलि अर्पित की, हाथ जोड़े, आंखें बंद कीं, सिर झुकाया. अभी तक राम नाम सत्य है, के नारे लग रहे थे, एकाएक नारों का स्वर बदला, अब ‘मंत्रीजी जिंदाबाद, रामदयाल अमर रहें. मंत्रीजी संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं, मंत्रीजी अमर रहे,’ के नारे लगने लगे.

‘मंत्रीजी अभी मरे कहां हैं, जो अमर रहेंगे,’ नगीना बाबू सोच रहे थे.

मंत्रीजी नारों से ऊर्जा ग्रहण कर रहे थे. ऊर्जा अश्रुरूप में बह निकली. सभी भावविह्वल हो गए. रामदयाल के पुत्र व सगेसंबंधी अचंभित थे कि पापा की मित्रता मंत्रीजी से थी और उन्होंने बताया भी नहीं, कितने सिद्धांतवादी थे, मित्रता का दुरुपयोग नहीं किया. 2 बेरोजगार बेटे और एक कुंआरी बेटी छोड़ कर गए. किसी से कुछ नहीं मांगा. बेटों के हृदय में आशा की किरण फूटी. संवेदना जागी. मंत्रीजी की ओर देखते हुए वे रो पड़े, ‘‘चाचाजी, पापा तो रहे नहीं, अब आप ही सहारा हैं.’’

‘‘बिलकुल, कभी भी आ जाना, हम हैं न,’’ मंत्रीजी ने दिलासा दी.

रामदयाल के बड़े भैया गंभीर हो गए. उन्होंने मंत्रीजी की बचपन की शक्ल याद करने की कोशिश की. असफल रहे तो हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘भैया रामू तो रहा नहीं, अब तुम्हीं हो, तुम्हारी दोस्ती की चर्चा तो गलीगली में थी, क्या जोड़ी थी सुदामाकृष्ण की. रामू जातेजाते कह गया था, ‘भैया, हर काम का शुभारंभ मंत्रीजी करते हैं. अगर मैं मर जाऊं तो मुझे पहली लकड़ी मेरा दोस्त मंत्री दे, उसे भी याद आ जाएगा रामदयाल नहीं रहा.’ ’’

मंत्रीजी अचकचा गए. फिर बात संभालते हुए बोले, ‘‘हम किसी का अधिकार नहीं छीनते. लकड़ी देने का पहला अधिकार पुत्र को है. वही देंगे. जल्दी करें, विलंब अच्छा नहीं. राम नाम सत्य है.’’ यह कह कर मंत्रीजी ने हाथ जोड़े. वह अंतिम यात्रा आगे बढ़ गई.

मंत्रीजी वापस लौट आए, फिर सिर उठा कर बोले, ‘‘सब नियति है, जो होना था, होगा पर शो मस्ट गो औन. हां, आगे कहिए?’’

‘‘सर, साइबर कैफे, स्विमिंग पूल तो ठीक हैं, पर बजट में प्रावधान नहीं है,’’ नगर निगम के अधिकारी बोले.

‘‘सड़क का प्रावधान था क्या? पर बन रही है न. सब हो जाएगा. आप सोचिए मत, सोचने का काम हमारा है. आप आदेशों का पालन करें. हमारे यहां सोचने की बहुत बुरी बीमारी है. चपरासी सोचता है औफिस हम चला रहे हैं. साहिब सोचते हैं हम, समय कहता है सब हम से चलता है,’’ मंत्रीजी ने समझाया.

‘और आप समझते हैं कि देश हम चला रहे हैं. वह तो रामभरोसे चल रहा है,’ अधिकारी मन ही मन कुड़कुड़ाते हुए सोच रहा था, प्रत्यक्ष में बोला, ‘‘सर, ठीक है.’’

‘‘पंडितजी, आप बताइए, आप तो श्मशान आते ही रहते हैं,’’ मंत्रीजी ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘देखिए श्रीमान, हम ने अभी तक 15,001 शरीरों का अंतिम संस्कार कराया है.’’

‘‘फिर तो आप गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स में प्रविष्टि क्यों नहीं भेज देते,’’ नगीना बाबू ने सुझाव दिया.

पंडितजी मुसकराए, ‘‘यह तो हमारा कर्म है, सांसारिक वस्तुओं से हमें क्या? हमारे यजमान हमें जीवित होने पर देते हैं और उन की संतानें मृत्यु पश्चात. श्रीमानजी, आप जैसे पुरुष मिलते कहां हैं? एक सत्यवादी हरिश्चंद्र थे जिन्होंने श्मशान अपनाया और एक आप कलियुग के हरिश्चंद्र. आप धन्य हैं. शास्त्रों में लिखा है, मुत्युपरांत आत्माएं कुछ समय यहीं निवास करती हैं. देखिए कैसा वीरान है यह घाट, हमारे पूर्वजों की आत्माएं कितना कष्ट उठाती होंगी? क्यों न इस के सौंदर्यीकरण की सोची जाए, जिस से आत्माओं को अच्छा वातावरण मिल सके.’’

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं? अवश्य, अच्छा सुझाव है. बताइए, कितनी जमीन है, क्या व्यय आएगा?’’ मंत्रीजी ने पूछा.

‘‘सर, 20 एकड़, एक एकड़ में क्रियाकर्म, सभाएं होती हैं, जीवंत हैं, शेष 19 एकड़ अनुपयोगी है, मृतप्राय है,’’ नगरनिगम अधिकारी बोले.

‘‘इस मृतप्राय जमीन का इलाज किया जाए, इस में प्राण फूंके जाएं?’’ मंत्रीजी बोले.

‘‘सर, पैसा? निगम घाटे में है,’’ अधिकारी ने हस्तक्षेप किया.

‘‘आप यहां के हैं नहीं, आप क्या जानें यहां का दर्द, काम में अड़ंगे न लगाएं, पैसे का इंतजाम हम करेंगे,’’ मंत्रीजी तल्ख लहजे में बोले.

तभी एक सूटबूटधारी उठ कर बोला, ‘‘सर, मैं डैवलपमैंट वर्ल्ड का सीनियर कंसल्टैंट, हमारे प्रोजैक्ट रशिया, लेटिन अमेरिका, फ्रांस जैसे 50 देशों में चल रहे हैं. इंडिया में हम ने इंट्रोड्यूज किया है. पीपीपी मोड, यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में यहां डैवलपमैंट किया जा सकता है. जमीन हमारी, डैवलपमैंट उन का, साथ में आय भी, 19 एकड़ लैंड वह भी सिटी के सैंटर में, मौल बन सकता है, औफिस खुल सकते हैं. श्मशान घाट चमन हो जाएगा. ब्यूटीफुल श्मशान. फाउंटेन लग जाएंगे, आत्माएं लोग नहाएंगी, साइलैंट जोन डैवलप करेंगे, जोनल प्लानिंग ठीक रहेगी, क्रिएशन जोन, इंटरटेंमैंट जोन, बिजनैस जोन, मीटिंग जोन, सबकुछ. जब अर्थी श्मशान घाट में प्रवेश करेगी, फूलों की वर्षा होगी. सर, इट्स अ ब्यूटीफुल आइडिया, ग्रेट. यू आर ग्रेट. हाऊ सैंसिबल यू आर. आदेश हो तो प्रोजैक्ट तैयार करें.’’

सभी मंत्रमुग्ध हो कर सुन रहे थे. मंत्रीजी नगरनिगम के अधिकारी को समझाते हुए बोले, ‘‘देखो, जहां चाह, वहां राह, पैसे का भी इंतजाम हो गया. चलिए, टैंडर निकालिए, कुछ सीखें, विजन बढ़ाएं, संसार में क्या हो रहा है, देखें. फाइल के कीड़े न बनें. चलिए, प्रोजैक्ट बनाएं, सब का आभार.’’ और मंत्रीजी उठ गए.

‘यह पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप क्या होती है?’ नगीना बाबू सोच रहे थे.

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