सैक्स ऐसा विषय है जिस के बारे में अंगूठाछाप इंसान से ले कर विशारद की उपाधि ले चुके विद्वान तक खुद को ऐक्सपर्ट मानते हैं और अपने मित्रों व परिजनों को अपने ज्ञान से सिंचित करते रहते हैं. लेकिन सच इस के ठीक विपरीत है. ज्यादातर लोग, चाहे वे अनपढ़ हों या डिगरीधारी, इस विषय पर आधीअधूरी, सुनीसुनाई और आधारहीन जानकारियां रखते हैं. इसी जानकारी के आधार पर वे अपने ज्ञान से मित्रों को सिंचित करने के बजाय चिंतित कर देते हैं. महिलाओं व पुरुषों में सैक्स को ले कर कई तरह की गलतफहमियां और भ्रामक जानकारियां रहती हैं, जिन की वजह से उन की सैक्स लाइफ चौपट हो जाती है. आइए, जानते हैं ऐसी ही कुछ गलतफहमियों और भ्रमों के बारे में. ह्यूमन सैक्सुअल रिस्पौंस के लेखक विलियम मास्टर्स एवं वर्जिनिया जौन्सन ने इन के बारे में काफी पहले बताया था, लेकिन ये भ्रम आज भी ज्यों के त्यों मौजूद हैं.
भ्रम : सैक्सुअल परफौर्मेंस पर फोकस करना जरूरी है
सच : यह एक बड़ी भूल है. सैक्स कोई प्रोजैक्ट नहीं है जिस की एकएक ऐक्टिविटी पूर्वनियोजित और डैडलाइन से बंधी हो. अगर आप पहले से सोची हुई योजना पर अमल करते हुए अपने पार्टनर को छूते हैं और उस की ठीक वैसी ही प्रतिक्रिया नहीं पाते हैं, तो आप को निराशा ही हाथ लगेगी और आप कभी ठीक से सैक्स का आनंद नहीं उठा पाएंगे. मास्टर्स एवं जौन्सन कहते हैं, परफौर्मेंस का विश्लेषण करने के बजाय चीजों को अपने तरीके से होने दें और सैक्स का भरपूर आनंद उठाएं.
भ्रम : एक ही पार्टनर के साथ बारबार सैक्स से ऊब होने लगती है.
सच : सैक्स में ऊब होने की वजह लंबे समय तक एक ही पार्टनर के साथ समागम नहीं, बल्कि अपने पार्टनर की इच्छाओं को ठीक से न समझ पाना है.
मास्टर्स एवं जौन्सन का मानना है कि जीवनभर एक ही साथी के साथ यौन समागम निरंतर आनंददायक हो सकता है, बशर्ते साथी की इच्छा का सम्मान किया जाए और उस का सहयोग किया जाए. संबंधों में ऊब से बचने और ताजगी बरकरार रखने के लिए यौन संबंधों को जरा क्रिएटिव, एडवैंचरस और प्लेफुल बनाना जरूरी है. नए तरीके, नई जगह आजमाना जरूरी है, न कि नया पार्टनर.
भ्रम : पुरुषों में सैक्स किशोरावस्था में चरम पर होता है, फिर ढलान पर आने लगता है.
सच : दरअसल, टेस्टोस्टेरौन नामक पुरुष हार्मोन, जो यौन संबंधों में रोमांच जगाता है, वह 18-19 वर्ष की आयु में सब से उच्च स्तर पर होता है, लेकिन यह गलत है कि इस के बाद यह ढलान पर आने लगता है. वैसे भी पुरुषों का सैक्स पूरी तरह फिजियोलौजी पर निर्भर नहीं करता. वह खुद के बारे में कैसा महसूस करता है, अपने पार्टनर के बारे में क्या सोचता है और उस के शरीर की सैक्सुअल संबंधों में कैसी प्रतिक्रिया है आदि सारी बातें सैक्सुअल परफौर्मेंस को प्रभावित करती हैं. अपनी हैल्थ और फिटनैस पर ध्यान देने वाले पुरुष अधेड़ावस्था या वृद्धावस्था में भी अपने जीवनसाथी के सहयोग से अच्छा सैक्स करने में सक्षम होते हैं.
भ्रम : सैक्स में महिलाओं को पुरुषों से कम दिलचस्पी होती है.
सच : अगर कोई महिला पूरी तरह से स्वस्थ है, प्रसन्नचित्त रहती है, उस में ऊर्जा है और समय भी है, तो उस में सैक्स इच्छा निश्चित तौर पर एक पुरुष से ज्यादा होती है. इस बात से लगभग सभी सैक्स स्पैशलिस्ट सहमत हैं. लेकिन फिर भी महिलाओं को ले कर यह भ्रम इसलिए व्याप्त है क्योंकि शुरू से ही वे ऐसे माहौल में पलीबढ़ी होती हैं जहां उन्हें सौम्य बने रहने, कम बोलने और सैक्स जैसे विषयों पर चर्चा करने से बचने की सलाह दी जाती है. भले ही आजकल कुछ महिलाएं सैक्स पर खुल कर चर्चा करने से नहीं कतरातीं पर अब भी ज्यादातर महिलाएं सैक्स के मामले में पैसिव रहती हैं और अपनी फीलिंग्स का खुल कर इजहार करने से बचती हैं. लेकिन इस का मतलब यह बिलकुल नहीं कि उन को सैक्स की इच्छा नहीं होती.
भ्रम : महिला को ‘खुश’ करने की जिम्मेदारी पुरुष की.
सच : बिलकुल गलत. और यह भी गलत है कि पुरुष को खुश करने की जिम्मेदारी महिला की होती है. विशेषज्ञ कहते हैं सैक्स न तो सिर्फ पुरुष द्वारा करने की चीज है न ही महिला द्वारा. सैक्स तो वह आनंददायक प्रक्रिया है जो स्त्री और पुरुष एकदूसरे के साथ करते हैं, इसलिए इस में किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि दोनों की जिम्मेदारी होती है कि वे एकदूसरे को खुश करने की कोशिश करें और अपने पार्टनर की पसंदीदा ऐक्टिविटीज करें. सैक्स क्रिया के दौरान पति या पत्नी को अपने साथी की जरूरत या उस की चाह के मुताबिक यौन क्रीड़ा कर के उसे संतुष्ट करना चाहिए.
भ्रम : हफ्ते या 10 दिन में एक बार ही सैक्स करना चाहिए, वरना ऊब होने लगती है.
सच : कई लोग कहते हैं कि सैक्स करने से कमजोरी आ जाती है, कई कहते हैं कि लंबे अंतराल पर सैक्स करने से ज्यादा आनंद आता है वरना ऊब होने लगती है. ये दोनों बातें गलत हैं. सैक्स ऐक्सपर्ट लौरी मिंट्ज कहते हैं, ‘‘आप हफ्ते में कितनी बार सैक्स करते हैं, यह आप की इच्छा पर निर्भर करता है. अगर आप बीमार नहीं हैं, कोई सैक्सुअल डिजीज से पीडि़त नहीं हैं या किसी प्रकार की मजबूरी नहीं है, तो आप अपनी इच्छानुसार यौन क्रीड़ा का आनंद उठा सकते हैं. सैक्स का मतलब रोज संभोग करना नहीं, एकदूसरे को पुचकारना, बांहों में लेना और दुलारना भी आनंददायक हो सकता है.’’