आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष में सेंचुरी लगा दी है. थोड़ी देर पहले श्रीहरिकोटा से इसरो का 100वां सैटेलाइट लौन्च हुआ. इसरो ने एक साथ 31 सैटेलाइट अंतरिक्ष में लौन्‍च किए. PSLV C-40 अपने साथ सबसे भारी कार्टोसैट 2 सीरीज के उपग्रह के अलावा 30 दूसरी सैटलाइट भी अंतरिक्ष में ले गया है.

इसमें एक भारतीय माइक्रो सैटेलाइट और एक नैनो सैटेलाइट के अलावा 28 छोटे विदेशी उपग्रह हैं. इसरो के वैज्ञानिक एएस किरण ने बताया कि पिछले पीएसएलवी लौन्च के दौरान हमें समस्याएं हुईं थी और आज जो हुआ है उससे यह साबित होता है कि समस्या को ठीक से देखा गया और उसमें सुधार किया गया.

देश को इस नए साल का उपहार देने के लिए शुभकामनाएं. आपको बता दें कि चार महीने पहले 31 अगस्त 2017 इसी तरह का एक प्रक्षेपास्त्र पृथ्वी की निम्न कक्षा में देश के आठवें नेविगेशन उपग्रह को वितरित करने में असफल रहा था. पीएसएलवी-सी40 वर्ष 2018 की पहली अंतरिक्ष परियोजना है.

ISRO के 100वें सैटेलाइट लौन्च की 10 खास बातें

  • PSLV C-40 अपने साथ 31 सैटेलाइट लेकर उड़ा, जिसमें कार्टोसैट-2 सीरीज़ के निगरानी सैटेलाइट के अलावा एक भारतीय माइक्रो सैटेलाइट और एक नैनो सैटेलाइट है.
  • 28 छोटे विदेशी सैटेलाइट भी अंतरिक्ष में भेजे गए, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, फिनलैंड और दक्षिण कोरिया के सैटेलाइट हैं, जिनमें अकेले अमेरिका के 19 सैटेलाइट हैं.
  • कार्टोसैट 2 सैटेलाइट सीरीज एक निगरानी उपग्रह है जिसकी मदद से अब डिफेंस और कृषि क्षेत्र की तत्‍काल जानकारी मिलेगी. इसका इस्‍तेमाल तटीय क्षेत्रों और शहरों की निगरानी के लिए इस्‍तेमाल किया जाएगा.
  • कार्टोसैट 2 सैटेलाइट सीरीज में हाईरेजुलेशन कैमरा लगा है जिससे खींची फोटो का इस्‍तेमाल किया जाएगा. ये लौन्‍च चार स्‍तर पर है और अब तक तीन लौन्‍च सफल रहे हैं.
  • इसरो के एएस किरण ने बताया कि पिछले पीएसएलवी लौन्च के दौरान हमें समस्याएं हुईं थी और आज जो हुआ है उससे यह साबित होता है कि समस्या को ठीक से देखा गया और उसमें सुधार किया गया. देश को इस नए साल का उपहार देने के लिए शुभकामनाएं.
  • पृथ्वी अवलोकन के लिए 710 किलोग्राम का काटरेसेट-2 सीरीज मिशन का प्राथमिक उपग्रह है. इसके साथ सह यात्री उपग्रह भी है जिसमें 100 किलोग्राम का माइक्रो और 10 किलोग्राम का नैनो उपग्रह भी शामिल हैं.
  • चौथे चरण के पीएसएलवी-सी-40 की ऊंचाई 4 मीटर और वजन 320 टन होगा. पीएसएलवी के साथ 1332 किलो वजनी 31 उपग्रह एकीकृत किए गए हैं ताकि उन्हें प्रेक्षपण के बाद पृथ्वी की ऊपरी कक्षा में तैनात किया जा सके.
  • 42वें मिशन के लिए इसरो भरोसेमंद कार्योपयोगी ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी40 को भेजेगा जो कार्टोसेट-2 श्रृंखला के उपग्रह और 30 सह-यात्रियों, जिनका कुल वजन करीब 613 किलोग्राम है.
  • श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पहले लौन्च पैड से इस 4 मीटर लंबे रौकेट को प्रक्षेपित किया जाएगा. सह-यात्री उपग्रहों में भारत का एक माइक्रो और एक नैनो उपग्रह शामिल है जबकि छह अन्य देशों – कनाडा, फिनलैंड, फ्रांस, कोरिया, ब्रिटेन और अमेरिका के तीन माइक्रो और 25 नैनो उपग्रह शामिल किए जा रहे हैं.
  • इसरो और एंट्रिक्स कौर्पोरेशन लिमिटेड के बीच हुए व्यापारिक समझौतों के तहत इन 28 अंतरराष्ट्रीय उपग्रहों को प्रक्षेपित किया जाएगा. यह 100वां उपग्रह कार्टोसेट -2 श्रृंखला का तीसरा उपग्रह होगा. कुल 28 अंतर्राष्ट्रीय सह यात्री उपग्रहों में से 19 अमेरिका, पांच दक्षिण कोरिया और एक-एक कनाडा, फ्रांस, ब्रिटेन और फिनलैंड के हैं.

26/11 जैसा हमला रोकने में मदद करेगा इसरो

इस साल 26/11 जैसे आतंकी हमलों से बचने के लिए सरकार इसरो की मदद लेने जा रही है. सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के लिए गृह मंत्रालय जल्द ही इसरो की मदद लेगी. इसरो आने वाले समय में सेटेलाइट तस्वीरों के जरिए संदिग्ध जहाजों और नौकाओं का निगरानी की जाएगी. साथ ही समुद्र से सटे तटीय इलाको और समुद्र की सुरक्षा के लिए इसरो मार्च 2018 तक 100 ट्रांसपोर्डर भी देगा. इसके तहत सैटेलाइट निगरानी के लिए 20 मीटर कम लंबी नावों के लिए प्रस्तावित किया गया है.

10 दिन में रौकेट बनाने का प्लान

इस साल इसरो ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है. इस साल इसरो ने सैटालाइट लौन्च सिस्टम में एक बड़ी क्रांति लाई है. इसरो ने इस साल घोषणा की है कि वो एक छोटे लौन्च व्हीकल को तैयार करने में जुटा है, जिसे सिर्फ तीन दिनों में असेंबल किया गया जा सकेगा. पीएसएलवी जैसे रौकेट्स को तैयार करने में आमतौर पर 30 से 40 दिन लग जाते हैं, ऐसे में इसरो का यह प्रयास सैटलाइट लौन्चिंग की दिशा में बड़ी क्रांति जैसा होगा. यही नहीं इस रौकेट को तैयार करने में पीएसएलवी की तुलना में 10 फीसदी राशि ही खर्च होगी.

दुनिया भर में लौन्च व्हीकल की मैन्युफैक्चरिंग कौस्ट फिलहाल 150 से 500 करोड़ रुपये तक होती है. यह 2018 के अंत या फिर 2019 की शुरुआत तक तैयार हो सकता है. इस व्हीकल की कीमत पीएसएलवी के मुकाबले 10 फीसदी ही होगा. हालांकि यह रौकेट 500 से 700 किलो तक के सैटलाइट्स को ही लौन्च कर सकेगा.

2021 तक पहला प्राइवेट रौकेट लौन्च करेगा इसरो

इसरो ने फैसला किया है कि प्राइवेट कंपनियों के साथ मिलकर स्पेस रौकेट बनाएगा. ऐसा पहली बार होगा कि पूरी तरह से प्राइवेट एजेंसी के द्वारा इस तरह के रौकेट बनाए जाएंगे. 2021 तक इस रौकेट को लौन्च करने का प्लान किया गया है. इसरो की ही एक वैज्ञानिक का कहना था कि हम मौजूदा लौन्च पैड्स से ही सैटेलाइट को लौन्च करने की संख्या बढ़ाना चाह रहे हैं. हम श्रीहरिकोटा में तीसरे लौन्च पैड का प्लान भी कर रहे हैं. इससे हमारी क्षमता बढ़ेगी.

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अभी भी हमारे पास संचार प्रणाली के मद्देनजर कम सैटेलाइट हैं, इसलिए इसरो सैटेलाइट लौन्च करने की प्रकिया को दोगुना करने के प्रयास में है. अभी हम एक साल में 8 से 10 सेटेलाइट लौन्च करते हैं. 2018 तक ये 20 के करीब होगा. हमारा टारगेट अगले 5 साल में 60 सैटेलाइट लौन्च करने का है.

सबसे विशाल रौकेट के प्रक्षेपण के लिए तैयार है इसरो

भारत में विकसित करीब 200 बड़े हाथियों के बराबर वजन वाला रौकेट ‘भारतीय जमीन से भारतीयों को अंतरिक्ष में पहुंचा सकता है.’ आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित रौकेट केंद्र पर देश के सबसे आधुनिक और भारी जियोसिंक्रोनस उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क तीन (जीएसएलवी एमके-3) को रखा गया है जो अब तक के सबसे वजनदार उपग्रहों को ले जाने में सक्षम है. इसके साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने विश्व के कई करोड़ डौलर के प्रक्षेपण बाजार में मजबूत स्थिति बना ली है.

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