सवाल
मैं 36 वर्षीय विवाहिता हूं. बचपन से ही रात में सोने से पहले दूध पीने की आदत रही है. पर अब कुछ महीनों से न तो मुझे थैली का दूध हजम होता है और न ही भैंस का. जब भी दूध पीती हूं पेट गड़बड़ा जाता है, गैस बनने लगती है. अब तो मैं दूध पीने से ही डरने लगी हूं. कृपया बताएं कि इस अचानक आए परिवर्तन का क्या कारण हो सकता है? क्या इस कमी को किसी घरेलू नुसखे से दूर किया जा सकता है?
जवाब
हमारी छोटी आंत की अंदरूनी पाचक सतह में एक पाचक ऐंजाइम बनता है, जिस की मदद से ही हम दूध में मिलने वाली कुदरती शुगर को पचा पाते हैं. यह ऐंजाइम लैक्टेज के नाम से जाना जाता है और इस का काम दूध में मौजूद लैक्टोज शुगर को पचा कर सरल ग्लूकोस और ग्लैक्टोज में तबदील करना होता है.
कुछ लोगों में यह पाचक ऐंजाइम जन्म से ही नहीं होता तो कुछ में यह किशोर उम्र में अथवा वयस्क उम्र में पहुंचने पर बनना बंद हो जाता है. यह समस्या प्राय: आनुवंशिक होती है और व्यापक स्तर पर किए गए सामुदायिक अध्ययनों के अनुसार, एशियाई मूल के लोगों में यह 50% लोगों में होती है. आप ही की तरह इन लोगों में भी दूध और दूसरे डेयरी उत्पाद ग्रहण करने पर तरहतरह की परेशानियां होती हैं. पेट दर्द, गैस बनना, अफारा, पेट गड़बड़ा जाना आदि इसी परेशानी के हिस्से हैं.
छोटी आंत की अंदुरूनी पाचक सतह का यह विकार लैक्टोज इनटौलरैंस कहलाता है. अब तक ऐसी कोई कामयाब दवा नहीं बन पाई है जिस में यह ताकत हो कि उसे लेने पर छोटी आंत में लैक्टोज ऐंजाइम फिर से बनने लगे और न ही कोई ऐसा फौर्मूला ईजाद हो सका है, जिस से आंत में इस ऐंजाइम की भरपाई हो सके. गनीमत समझिए कि आप इतने वर्षों तक इस विकार से मुक्त रह सकीं.
आप आगे इस समस्या से बची रहें इस का आसान सा समाधान सिर्फ यह है कि अब आप दूध और दूसरे डेयरी उत्पादों से परहेज करें. हां, यह बंदिश दही ओर योगर्ट पर लागू नहीं होती. यह सच है कि ये भी दुग्ध उत्पाद हैं, पर जिस समय ये बनते हैं उस समय लैक्टोबैक्टीरिया इन में मौजूद लैक्टोज शुगर को पचा देते हैं, जिस से ये लैक्टोज मुक्त हो जाते हैं.
बाजार में लैक्टोज मुक्त दूध भी मिलता है. यह सामान्य दूध से महंगा होता है. आप इसे आसानी से पी सकती हैं. सोयाबीन दूध भी लैक्टोज मुक्त होता है.
दूध और दूसरे डेयरी उत्पाद बंद करने पर शरीर में कैल्सियम और विटामिन डी की कमी होने का खतरा बढ़ जाता है. अत: उस की भरपाई के लिए या तो कैल्सियम युक्त भोजन लें या फिर पूरक के रूप में गोलियां लेती रहें. प्रोटीन की जरूरत पूरी करने के लिए दालें, अन्न, मछली, गोश्त आदि अच्छे स्रोत हैं.