अफवाहें बेलगाम होती हैं. उन की कोई सरहद नहीं होती. लेकिन ये जब हदों को लांघ जाती हैं, तो लोगों और समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाती हैं. ऐसी ही अफवाह ने एक 65 साला गरीब दलित औरत की जान ले ली.

दरअसल, उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के मुटनई गांव की रहने वाली दलित मान जाटव के लिए 2 अगस्त, 2017 जिंदगी की आखिरी तारीख बन गई. मान जाटव तड़के शौच के लिए खेतों में गई थीं. उन्हें कम दिखाई देता था. अंधेरे की वजह से वे रास्ता भटक कर बघेल समाज की बस्ती में निहाल सिंह के घर के बाहर पहुंच गईं.

इसी बीच एक लड़की ने उन्हें देख कर शोर मचा दिया, जिस के बाद लोग जाग गए और पहली ही नजर में मान जाटव को चोटी काटने वाली ‘डायन’ करार दे दिया गया.

इस के बाद मान जाटव के साथ रूह कंपा देने वाली हैवानियत हुई. निहाल सिंह के बेटे मनीष व सोनू समेत दूसरे लोगों ने उन्हें लाठीडंडों से पीटना शुरू कर दिया. वे चिल्ला रहे थे कि चोटी काटने वाली ‘डायन’ पकड़ी गई है, जबकि मान जाटव बचने की हरमुमकिन कोशिश कर रही थीं और उन्हें बता रही थीं कि वे ‘डायन’ नहीं हैं, बल्कि उन्हीं के गांव की हैं.

गुस्से के गुबार में मान जाटव की कोई भी सुनने को तैयार नहीं था. अंधविश्वास के चश्मे ने लोगों को एक बेकुसूर औरत को बेरहमी से पीटने वाला मर्द बना दिया था.

पीटने वाले लोग अंधविश्वास में बुरी तरह अंधे थे. इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे मान जाटव को यह कह कर पीपल के पेड़ के पास ले गए कि वहां पीटने से पीपल पर रहने वाले भूतप्रेत भी कभी किसी को परेशान नहीं करेंगे.

उन्होंने मान जाटव को अधमरा कर के उन्हें दूसरी जगह ले जा कर पटक दिया. शोरशराबा होने पर मान जाटव के परिवार वालों को पता चला, तो वे वहां पहुंचे और उन्हें अस्पताल ले गए, लेकिन चोटें इतनी गंभीर थीं कि उन की मौत हो गई.

अंधविश्वास की इस भेंट से गांव में तनाव पैदा हो गया. पुलिस पहुंची, तो आरोपी अपने घरों से फरार हो गए.जांच में पता चला कि इलाके में औरतों व लड़कियों की चोटी काटने वाले कथित साए की अफवाह व दहशत थी. आरोपी परिवार की एक औरत की चोटी एक दिन पहले कट गई थी. इसी से उन्हें लगा कि ‘डायन’ चोटी काटने आई है.

अंधविश्वास ने मान जाटव को हमेशाहमेशा के लिए उन के परिवार से दूर कर दिया. उन का बेटा गुलाब कहता है, ‘पीटने वालों ने यह भी नहीं सोचा कि मेरी मां बुजुर्ग हैं. ऐसे तो कोई भी किसी को ‘डायन’ बता कर मार डालेगा.’

वैसे, इस बात में कोई दोराय नहीं है कि अगर मान जाटव का ताल्लुक किसी दबंग परिवार या ऊंची जाति से होता, तो शायद ही उन पर हमला होता. जब सामने वाले से ईंट का जवाब पत्थर से मिलने का डर हो, तो सारा गुरूर हवा हो जाता है.

यह वारदात कानून व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा कर गई. अगर कानून का डर होता, तो शायद ऐसा करने से लोग डरते.

एसएसपी दिनेश चंद्र दुबे कहते हैं, ‘घटना के कुसूरवार बख्शे नहीं जाएंगे. लोगों को समझना चाहिए कि चुड़ैल, डायन या भूतप्रेत जैसा कुछ नहीं होता है. अफवाह फैलाने वालों की सूचना पुलिस को देनी चाहिए.’

दरअसल, ‘चोटीकटवा’ की यह अफवाह नए किरदार के रूप में आई. इस से पहले साल 2001 में ‘मंकी मैन’ ने भी खूब दहशत फैलाई थी. इस के बाद ‘मुंहनोचवा’ आ गया था. कभी ‘काली बिल्ली’, कभी ‘बच्चा चोर’, तो कभी लोगों के घरों में आग लगने के किस्से सुने जाते रहे थे.

हैरानी की बात यह है कि किसी का भी कभी ठोस नतीजा सामने नहीं आया. समय के साथ ऐसी घटनाएं और किस्से थम जाते हैं. ऐसी अफवाहों को वैज्ञानिक अंधविश्वास और मनोचिकित्सक ‘आईडैंटिटी डिसऔर्डर’ नामक बीमारी का नाम देते हैं.

अफवाहें और अंधविश्वास जिस तेजी से अपना काम करते हैं, वे कानून व्यवस्था के लिए खतरा बन जाते हैं. इस के चक्कर में कभी किसी बेकुसूर को पीटा जाता है, तो कभी किसी की हत्या कर दी जाती है.

मान जाटव भी इसी का शिकार हुईं. ऐसी अफवाहों से जादूटोना व तंत्रमंत्र करने वालों की दुकानें जरूर चालू हो जाती हैं, क्योंकि समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो अंधविश्वास का शिकार हो कर हर मर्ज का इलाज ऐसी जगहों पर खोजते हैं. अंधविश्वास का फायदा उठा कर उन्हें जम कर लूटा जाता है.

डायन या चुड़ैल जैसी कोई चीज दुनिया में नहीं होती, लेकिन ज्यादातर मामलों में अपढ़ व दलित औरतें ही इस का शिकार होती हैं. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश के झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, कर्नाटक, असम, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में यह बुराई फैली हुई है.

साल 2000 से साल 2012 के बीच ही जादूटोना करने के आरोप में देशभर में 2 हजार से ज्यादा लोगों की हत्याएं हुईं. इन में ज्यादातर औरतें ही थीं. बांझ, कुंआरी या विधवा औरतों को शिकार बनाना आसान होता है. ऊंची जाति वाले व दबंग लोग गरीब व आदिवासियों को डायन के रूप में बदनाम कर देते हैं.

संपत्ति का अधिकार छीनने, तंत्रमंत्र के काम को आबाद करने व भेदभाव के चलते भी ऐसी वारदातें होती हैं. यह लोगों की ओछी सोच को दिखाती है कि वे भूतप्रेत, डायन या चुड़ैल के नाम पर किसी की हत्या तक कर देते हैं.

एक साल पहले झारखंड राज्य के रांची के मांडर गांव में डायन बता कर अलगअलग परिवार की 5 औरतों की हत्या कर दी गई थी. इस राज्य में हत्याओं का आंकड़ा 12 सौ के पार है.

बिहार के भागलपुर जिले में भी एक महिला को ‘डायन’ बता कर मार डाला गया. दरभंगा जिले के पीपरा में तो दबंगों ने एक दलित औरत को डायन बता कर न सिर्फ उस के साथ मारपीट की, बल्कि मूत्र पिलाने की कोशिश भी की.

दहशत में परिवार ने गांव ही छोड़ दिया. इस राज्य की 418 औरतें चंद सालों में ऐसे ही अंधविश्वास की भेंट चढ़ गईं.

असम में ‘डायन’ बता कर एक औरत का सिर काट दिया गया. समाज की ऐसी हैवानियत यह बताने के लिए काफी है कि अंधविश्वास का आईना कितना खौफनाक है.

इस बात में कोई दोराय नहीं है कि अंधविश्वास से होने वाली घटनाएं सभ्य समाज को कलंकित करती हैं. लोगों को इस से बाहर निकलना चाहिए. अंधविश्वास और अफवाहें न फैलें, इस के उपाय सरकार को भी करने होंगे, ताकि फिर कोई मान जाटव अंधविश्वासों के गुस्से का शिकार न हो.

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