नजर न आने वाले निमेटोड (सूत्रकृमि) ज्यादातर जलीय जीव हैं, मगर ये जमीन में भी पाए जाते हैं. कुछ फसल के बाहरी भागों पर और ज्यादातर जमीन में पाए जाते हैं. यहां इस महत्त्वपूर्ण पादप परजीवी निमेटोड की पहचान, जीवनचक्र व रोकथाम के बारे में जानकारी दी गई है. पादप सूत्रकृमि या निमेटोड बेहद छोटे सांप जैसे जीव होते हैं, जिन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता है. ये सूक्ष्मदर्शी यंत्र से ही दिखाई देते हैं. ये अधिकतर मिट्टी में रह कर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं. इन के मुंह में एक सुईनुमा अंग स्टाइलेट होता है. इस की सहायता से ये पौधों की जड़ों का रस चूसते हैं, जिस के कारण पौधे भूमि से खादपानी पूरी मात्रा में नहीं ले पाते और उन की बढ़वार रुक जाती है. ये हर प्रकार की फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. दुनिया की 34 फीसदी फसलें रोगों, कीटों और खरपतवारों के कारण तबाह होती हैं. यहां नजर न आने वाले निमेटोड की खास प्रजातियों की भी जानकारी दी जा रही है :
बीज गाल (पिटिका) निमेटोड (एंगुनिया ट्रिटीसाई)
पहचान व जीवन चक्र : यह निमेटोड (सूत्रकृमि) विश्व में गेहूं उत्पादन क्षेत्रों में पाया जाता है. नर व मादा द्वारा प्रजनन करने के बाद मादा अंडे देना शुरू कर देती है. वह अगले 6 से 12 दिनों के अंदर 1000 अंडे नए गाल (पिटिका) के अंदर दे देती हैं. निमेटोड गाल (पिटिका) को फाड़ कर दूसरी अवस्था के लारवे कार्यशील हो जाते हैं और जमीन से 10 से 15 दिनों में बाहर आ जाते हैं. बीज के जमने के समय लारवे हमला कर देते हैं और बीज के जमने वाले भाग पर गाल बनाते हैं. ये तने और पत्ती की सतह पर पानी की पतली परत के सहारे ऊपर चढ़ जाते हैं. पत्ती के बढ़ने वाले भाग से पत्ती की चोटी पर चढ़ जाते हैं. ये पौधे की बढ़वार अवस्था में फूल व जननांग तंत्र पर हमला करते हैं और बाहरी परजीवी लारवे भीतरी परजीवी लारवों में बदल जाते हैं.
नुकसान के लक्षण
निमेटोड (सूत्रकृमि) से संक्रमित नवजात पौधे का आधारीय भाग हलका सा फूल जाता है व बीज के जमाव के 20-25 दिनों बाद तने पर निकली हुई पत्ती मुड़ जाती है. संक्रमित नवजात पौधे की बढ़वार रुक जाती है और अकसर पौधा मर जाता है. संक्रमित पौधा सामान्य दिखाई देता है. पौधे में बहुत फुटाव निकल आते हैं और बाली 30-40 दिनों पहले निकल आती है. बाली लंबे समय तक सामान्य बाली के मुकाबले हरी रहती है. बीजपत्र गाल (पिटिका) में बदल जाते हैं. इस रोग के कारण नवजात पौधे की पत्तियों पर हलका पीला सा पदार्थ जमा हो जाता है. संक्रमित पौधे की बाली में दाना नहीं बनता है. इस रोग के बीजाणु के कारण कभीकभी 80 फीसदी तक नुकसान होता है.
रोकथाम
बीज की सफाई : टुंडा रोग या बाल कोकल रोग रहित बीज प्राप्त करने के लिए बीजों को छन्नी से छान कर पानी में डाल कर तैरते हुए बीज अलग कर लेने चाहिए.
गरम पानी से उपचारित करना : बीजों को 4 से 6 घंटे तक ठंडे पानी में भिगोने के बाद 54 डिगरी सेंटीग्रेड गरम पानी में 10 मिनट तक उपचारित करना चाहिए.
फसल हेरफेर कर बोना : निमेटोड (सूत्रकृमि) खेत से बाहर करने के लिए पोषक फसल की 2 या 3 साल तक बोआई नहीं करनी चाहिए.
रोगरोधी किस्में : निमेटोड अवरोधी प्रजातियां खेत में बोनी चाहिए.
फालतू पौधे निकालना : निमेटोड संक्रमित पौधे पता लगा कर अगेती अवस्था में नष्ट कर देने चाहिए. सूप से फटकना या हवा में उड़ाना: यह विधि भी सहायक गाल को बाहर करने के लिए होती है. इस विधि से 100 फीसदी गाल (पिटिका) अलग नहीं होते हैं.
जड़गांठ (सूत्रकृमि) मेलोइडोगाइन प्रजातियां
पहचान व जीवन चक्र : जड़गांठ सूत्रकृमि की प्रजातियां बैगन, भिंडी, टमाटर, मिर्च, घिया, तुरई, करेला, खीरा, गाजर आदि फसलों में पाई जाती हैं. जड़गांठ सूत्रकृमि की 1 मादा लगभग 4 सौ अंडे देती है. यह अच्छे पोषक पौधे पर 2 हजार तक अंडे देती है. अंडों में पहली अवस्था के लारवे विकसित होते हैं व दूसरी अवस्था अंडे से बाहर निकल कर जमीन की ओर जाती है और पौधे की चोटी से घुसती है. निमेटोड की दूसरी अवस्था ही संक्रमित या परजीवी अवस्था है. जीवनचक्र गरमी व बरसात में 21 से 27 दिनों का, जबकि सर्दियों में 50 से 80 दिनों से ऊपर का होता है. यह वातावरण के तापमान पर निर्भर करता है. 1 साल में 7 से 8 पीढि़यां पाई जाती हैं.
नुकसान के लक्षण
जड़गांठ सूत्रकृमि की समस्या ज्यादातर रेतीली मिट्टियों में देखने को मिलती है. इस के नवजात का पौधे पर अधिक असर पड़ता है. समय से पहले फलों का शुरू हो जाना इस की वजह से होता है. जमीन में नीचे मूल में गाल निमेटोड से संक्रमित होने की पहचान है. पौधे की जड़ पर गांठ का आकार निमेटोड की संख्या और फसल की आयु पर निर्भर करता है. गांठ के कारण जड़ का वजन कम हो जाता है और जड़तंत्र छोटा होने के कारण पौधे खाना कम लेने के कारण कम बढ़ते हैं. इस निमेटोड से सब्जी वाली फसल अधिक प्रभावित होती है. कद्दूवर्गीय सब्जियों में भारी गांठ पाई जाती है. जड़गांठ निमेटोड द्वारा सब्जी फसल में 11 फीसदी और खेत में अधिकतम 25 से 50 फीसदी तक हानि होती है.
रोकथाम
कृषि क्रियाएं विधि : खेत की गरमी के दिनों यानी मईजून में 2-3 गहरी जुताई करें. फसलों को बदल कर व बोआई का समय बदल कर बोने से इस के संक्रमण को कम किया जा सकता है. फसलचक्र में अनाज वाली फसल बोनी चाहिए.
फसलों के अवशेषों को जला कर नष्ट करने से इन की संख्या को कम किया जा सकता है. अंत: फसल जैसे प्याज व लहसुन को पोषित फसल के बीच में बोने से इस के असर को कम किया जा सकता है.
अवरोधी प्रजातियां : जड़गांठ अवरोधी प्रजातियां बोने से आर्थिक हानि से बचा जा सकता है.
* टमाटर की पंजाब एनआर 07, हिसार ललित, बनारस जैंट आदि प्रजातियां मुफीद हैं.
* बैगन की माइजर हरा, विजय संकरण, ब्लैक ब्यूटी, पूसा परपिल लौंग प्रजातियां मुफीद हैं.
* भिंडी की लौंग ग्रीन स्मूथ, आईसी 9273, आईसी 18960 वगैरह प्रजातियां मुफीद हैं.
* मिर्च की पूसा ज्वाला, कैप 63, ज्वाला प्रजातियां मुफीद हैं.
रासायनिक विधि : पौध वाली फसलों की नर्सरी को उपचारित करना चाहिए. सीधे खेत में बोने वाली फसलों जैसे भिंडी, कद्दू व लोबिया के बीजों को कार्बोफ्युरान 2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम से उपचारित करना चाहिए. बैगन व टमाटर की पौध की जड़ों को 0.1 फीसदी मोनोक्रोटोफास के घोल या 0.05 फीसदी ट्राइजोफोस के घोल में खेत में लगाने से 6 घंटे पहले भिगो लेना चाहिए.
खेत में लैविक करंज, महुआ और नीम की खली 2.5 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालना लाभदायक होता है.
जैविक रोकथाम : फंगस पेसीलोकमाइसस लिलासीनस और जीवाणु पस्टुरिया पनीटरंस जड़गांठ के मुख्य जैविक नियंत्रक हैं.
गांठसिस्ट निमेटोड (हेटरोडेरा प्रजातियां)
पहचान व जीवनचक्र : यह निमेटोड गेहूं, अरहर, मक्का, धान और जौ आदि फसलों को हानि पहुंचाता है. जौ का मोल्या रोग इसी की वजह से होता है. गांठ सिस्ट निमेटोड जड़ में एक ही स्थान पर रह कर खाने वाला कीट है. यह अंडे गांठ के अंदर देता है, जो कई सालों तक जीवित रहते हैं. ये गांठ से अलग हो कर जमीन में निकल आते हैं और अगले साल संक्रमण करते हैं.
नीबू के आकार की गांठ में मार्चअप्रैल और अक्तूबरनवंबर तक 400 अंडे रहते हैं. इस समय अंडों में दूसरी अवस्था वाले लारवे सोई अवस्था में रहते हैं. फसल की अगली बोआई के समय नवंबर से जनवरी के बीच संक्रमित लारवे दूसरी अवस्था वाली गांठ से निकलने शुरू हो जाते हैं. एक सीजन में 50 फीसदी अंडे फूट जाते हैं और बाकी अगले सीजन तक सुरक्षित रहते हैं. जड़ के सिकुड़ने पर सिस्ट के निकलने पर सामान्य प्रभाव पड़ता है और ज्यादातर लारवे निकलते हैं. दूसरी अवस्था के लारवे जड़ की चोटी से घुसते हैं. इन का जीवन चक्र 9 से 14 सप्ताह में पूरा हो जाता है. 1 साल में इस की 1 पीढ़ी पाई जाती है.
नुकसान के लक्षण
इस निमेटोड के लक्षण खेत में टुकड़ों में दिखाई देते हैं. शुरुआती लक्षण लगभग 3 से 4 सप्ताह बाद फसल के जमने के समय दिखने लगते हैं. इस के अलावा बढ़वार रुक जाती है और संक्रमित पौधे पीले और हरेपीले रंग के दिखाई देते हैं. पत्तियां रंगहीन हो जाती हैं और तना पतला व कमजोर हो जाता है, ऐसे पौधों में बहुत कम दाने बनते हैं. ज्यादा संक्रमण होने पर दाने बिलकुल नहीं बनते. संक्रमित पौधे के आधार पर मूसला जड़ बन जाती है. हलकी जमीन में इस का प्रकोप अधिक होता है. इस से 45 से 48 फीसदी हानि होती है.
रोकथाम
कृषि क्रियाएं विधि : यह निमेटोड सूखा न सहने वाला होता है. फसलचक्र व गरमी की जुताई से इस पर काबू पाया जा सकता?है. पोषक अवरोधी फसलें जैसे सरसों, चना, गाजर व फ्रैंचबीन लगाना ठीक रहता है.
अपोषक फसलें उगाने पर संक्रमित फसल में 60 फीसदी तक निमेटोड की संख्या कम की जा सकती है. मईजून के महीनों में 2-3 बार गरमी की जुताई करने पर निमेटोड की संख्या घटाई जा सकती है, क्योंकि गरमी में गांठ पोषक क हो जाते हैं. अगेती बोआई से गेहूं की फसल का नुकसान कम होता है. 1 से डेढ़ महीने की फसल निमेटोड के आक्रमण को सहन करने की कूवत रखती है.
अवरोधी प्रजातियां : भारत में गेहूं की निमेटोड अवरोधी प्रजातियां सीसीएनआरवी 1 व राज एमआर 1 उगाई जाती है.
जौ की अवरोधी प्रजातियां राज किरन, आरडी 2035, आरडी 2052 और सी 164 संक्रमित इलाके में उगाई जाती हैं. इन प्रजातियों में मादा के अंडे देने में असफल होने के कारण निमेटोड की संख्या कम हो जाती है.
रासायनिक विधि : जमीन को 3 ग्राम कार्बोफ्यूरान या फोरेट 10 ग्राम प्रति 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर डालने पर निमेटोड पर काबू पाया जा सकता है.
एकीकृत नियंत्रण : मईजून के महीने में गरमी की जुताई और अपोषक फसलों की बोआई जैसे सरसों, चना या अवरोधी प्रजाति बोने पर निमेटोड की संख्या कम की जा सकती है.