13 नवंबर, 2015. दिन शुक्रवार. समय 9 बज कर 49 मिनट. ‘‘रोज की तरह बताक्लां कंसर्ट हौल के कौफी बार में मैं शाम 5 बजे से अपने पाले का काम कर रहा था. मेरे साथ शेफ क्रिस्तफो, कौफी बार के संचालक बेख्तन, सर्विसमैन माकू और इवन भी अपनेअपने रोजमर्रा के काम में लगे हुए थे. कंसर्ट हौल में बैंड शो चल रहा था. अचानक भीतर से लगातार गोलियों की गड़गड़ाने की आवाज से पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई. कुछ भी समझने से पहले भगदड़ मच गई. पता चला आतंकी हमला हुआ है. ‘कौफी बार के संचालक बेख्तन ने हमें स्टोररूम में जा कर छिप जाने का निर्देश दिया. हम ने ऐसा ही किया और स्टोररूम का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. बावजूद इस के दर्द से कराहतेचिल्लाते लोगों की आवाजों से हमारे रोंगटे खड़े हो रहे थे. किसी भी क्षण आतंकी यहां भी पहुंच सकते थे. बाहर चीखपुकार के बीच हम सब भी डर के मारे स्टोररूम में एकदूसरे से लिपट कर रो रहे थे, बिलख रहे थे. इस बीच बेख्तन ने पुलिस को खबर दी, तब जा कर हमें वहां से सुरक्षित निकाला गया.’’ उस दिन के आतंक के लमहों का विवरण देने वाला है तारिक अहमद.
तारिक बताक्लां कंसर्ट हौल के कौफी बार में 7 सालों से काम कर रहा है. रोजगार की तलाश में वह 2003 में बंगलादेश से पेरिस गया. पेरिस में बिताए 12 सालों में तारिक के लिए यह सब से भयावह दिन था. तारिक ने अपने सहयोगियों को इस हमले में मरते हुए देखा है. तारिक बताता है कि नातली को मरते देखना मेरे लिए बहुत तकलीफदेह रहा. आंखों के सामने उस का बदन छलनी हो गया. वह थिएटर में काम करती थी. गोलियों की आवाज शुरू होने के बाद वास्तविक स्थिति से अनजान मैं ने थिएटर में जरा झांक कर देखा. तभी मैं ने नातली और कौफी बार के सर्विसमैन लूई को आतंकियों की अंधाधुंध गोलियों के आगे पड़ते देखा. नातली तो वहीं ढेर हो गई और लूई अस्पताल में अभी भी जिंदगी व मौत से पंजा लड़ा रहा है. फ्रैंच पत्रिका ला पौइंट का कहना है कि बताक्लां कंसर्ट हौल में बड़ी संख्या में अकसर यहूदी लोग आया करते हैं, संभवतया इसीलिए इसे टारगेट किया गया.
शार्ली एब्दो के कार्यालय में हमले के बाद पेरिस में अतिरिक्त सुरक्षा के इंतजाम के तहत रेलवे स्टेशन से ले कर शिक्षा प्रतिष्ठानों तक चौकसी बढ़ा दी गई थी. बावजूद इस के, 13 नवंबर को बड़े हमले को अंजाम देने में इसलामी स्टेट संगठन के आतंकवादी कामयाब रहे. अब चौकसी और बढ़ा दी गई है. यूरोप में शेनगेन इलाके में बसे 26 देशों में पासपोर्टवीजा के बिना घूमनेफिरने की आजादी पर भी इस का असर पड़ेगा. इस संबंध में यूरोपियन इकोनौमिक यूनियन के अधिकारियों ने आशंका भी जता दी है. इसी के मद्देनजर शेनगेन इलाके से जुड़े हरेक देश की सीमा में आनेजाने वालों से ले कर मालवाहनों पर कड़ी नजर रखी जा रही है. कुल मिला कर हमले में बेल्जियम और सीरिया के नागरिकों के शामिल होने के खुलासे के बाद बेल्जियम और जरमनी की सीमा पर चौकसी काफी बढ़ा दी गई है. कहा जा रहा है कि कुछ हमलावर शरणार्थी के रूप में पेरिस आए थे.
रूस-अमेरिका के बीच सहमति
हाल के दिनों में सीरिया में रूस के कूद पड़ने के कारण शीतयुद्ध की दूसरी पारी को ले कर सुगबुगाहट से दुनिया आशंकित थी. पेरिस की घटना ने रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच की दूरियां खत्म कर दी हैं. इस बर्बरता का उपयुक्त जवाब देने के लिए एकसाथ खड़े हो कर आईएस के नियंत्रण वाले तमाम इलाकों को मुक्त कराने पर सहमति बन चुकी है. हमले के तुरंत बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की बैठक हुई और दोनों देशों के बीच साथ मिल कर आईएस से निबटने के लिए सहमति बनी.
इस से पहले असद को बचाने से ज्यादा आईएस का खात्मा पुतिन का मकसद था. गौरतलब है कि हाल ही में मिस्र से उड़ान भरने वाले रूसी विमान को आईएस ने मार गिराने का दावा किया है, जिस में 224 लोग मारे गए थे. हालांकि रूस ने सीरिया पर कार्यवाही से पहले अमेरिका समेत यूरोपीय देशों को साथ आने का आह्वान किया था लेकिन तब अमेरिका अलग से अपना राग अलाप रहा था. यही कारण है कि सहमति के बावजूद पुतिन ने यह कहते हुए इन देशों को आड़े हाथ लिया कि जी 20 के कुछ देशों समेत दुनिया के और भी 40 देश आईएस की मदद कर रहे हैं.
एकजुट हुआ नाटो
फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने आईएस के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया है. नतीजतन, नाटो समझौते की धारा 5 के तहत नाटो के तमाम सदस्य देश कमर कस कर मैदान में उतरने को तैयार हो रहे हैं. दरअसल, नाटो समझौते की धारा 5 कहती है कि यूरोप और उत्तर अमेरिका के किसी एक देश पर हमला सब पर हमला माना जाएगा. फ्रांसीसी राष्ट्रपति ओलांद और अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के बीच बात हो चुकी है. जरमनी सहित नाटो के अन्य देश भी आईएस की निर्ममता का जवाब देने को साथ आने के लिए सहमति दे चुके हैं. आने वाले दिनों में इराक और सीरिया में आईएस को हराने के लिए नाटो सेना जोरदार हमला करेगी. लेकिन इराक और अफगानिस्तान में लंबे समय तक अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के लगातार हस्तक्षेप को देखते हुए यह सवाल उठना लाजिमी है कि नाटो की यह कार्यवाही रणनीतिक रूप से कहीं महंगी तो नहीं पड़ेगी. ऐसे ही हस्तक्षेप के कारण दुनिया के कट्टरपंथी इसलामी संगठनों में जबरदस्त नाराजगी है. इसी के नतीजे के तहत दुनिया के विभिन्न देशों के युवा आईएस का रुख कर रहे हैं. इसीलिए यह भी देखना होगा कि नाटो के हमले से आईएस की सदस्य संख्या में कहीं बढ़ोत्तरी तो नहीं होगी. नतीजा कुछ भी हो, इतना तय है कि नाटो के हमले से सीरिया में जानमाल का नुकसान होगा. और अधिक पलायन होगा. शरणार्थियों की संख्या बढ़ेगी. अब देरसबेर यूरोप इन शरणार्थियों को अपने यहां शरण देने से पीछे हटेगा, क्योंकि हमले के बाद इस दिशा में यूरोप के देश लामबंद हो रहे हैं.
समस्या की जड़ की पड़ताल
पेरिस हमले के लिए आधुनिक मलयेशिया के जनक पूर्व प्रधानमंत्री महाथिर बिन मोहम्मद ने इसराईल को जिम्मेदार ठहराया है. महाथिर मोहम्मद का मानना है कि 1948 में एक राष्ट्र के रूप में इसराईल की स्थापना से पहले दुनिया में कहीं इस तरह की आतंकी वारदात का नामोनिशान नहीं था. अपने बयान में उन्होंने यह भी कहा कि जब तक फिलिस्तीनी समस्या का समाधान नहीं होगा तब तक इस तरह के हमले की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
वैसे इसलामी आतंकवाद के लिए केवल फिलिस्तीन समस्या को ही जिम्मेदार कतई नहीं ठहराया जा सकता. अमेरिका ने इराक में जो कुछ किया उस के नतीजे में भी मौजूदा इसलामी आतंकवाद को देखा जाना चाहिए. सद्दाम हुसैन इराक में तानाशाही भले ही चला रहा था, लेकिन अपने रहते इराक में सद्दाम हुसैन ने अलकायदा को घुसने तक नहीं दिया. लेकिन उस के बाद अलकायदा ने न केवल इराक में पैर जमाए बल्कि उस से भी कहीं अधिक खूंखार गुट आईएस को पूरे दमखम के साथ पनपने का मौका मिला. इस समय खाड़ी के देशों में अराजक स्थिति बनी हुई है. इस के लिए एक बड़ी हद तक अमेरिका, सऊदी अरब और इसराईल जिम्मेदार हैं. जहां सीरिया में रूसी कार्यवाही का सवाल है तो सीरिया में असद सरकार से बातचीत व समझौते के बाद रूस वहां कूदा है.
जहां तक अमेरिका का सवाल है तो साबित हो चुका है कि वही भस्मासुर पैदा कर के बारबार अपनी गलती दोहरा रहा है. पहले अफगानिस्तान में रूसी कार्यवाही को प्रभावित करने के लिए अमेरिका ने वहां के कबीलाई दलों को इसलाम बचाने की गाजर दिखा कर रूस के खिलाफ तैयार किया. सीरिया के विद्रोहियों को भी अमेरिका हथियार सप्लाई कर के अपनी गलतियों को दोहरा रहा है. आज पूरी दुनिया जानती है कि अफगानिस्तान का यही कबीलाई ग्रुप आगे चल कर तालिबान बना. इसी तालिबान से ओसामा बिन लादेन खड़ा हुआ. तालिबान का विकसित रूप आईएस है, जो पूरी दुनिया में अपना शरीया लागू करना चाहता है.
पेरिस पर हमले का नतीजा
तय है कि पेरिस पर हमले के नतीजे बहुमुखी, दूरगामी और दीर्घमियादी होंगे. हमले के प्रभाव को सीरिया में शांति स्थापना की कोशिश में पश्चिमी देशों के सैन्य हस्तक्षेप, यूरोप में शरणार्थी समस्या, ‘बौर्डरलैस’ यूरोपीय देशों की सुरक्षा के मद्देनजर देखना होगा. यह हमला ऐसे समय में हुआ जब हजारोंलाखों की तादाद में मुसलिम शरणार्थी यूरोप में शरण लेने को आ रहे हैं. पड़ोसी देश जौर्डन, तुर्की और लेबनान के अलावा समुद्र पार कर लगभग 2 लाख लोग अब तक यूरोपीय देशों में शरण ले चुके हैं. इन में केवल सीरियाई नहीं हैं बल्कि इराकी और अफगानिस्तानी भी शामिल हैं. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप इस समय भयंकर शरणार्थी समस्या से जूझ रहा है और यूरोपीय देशों की विभिन्न सरकार सीरिया के शरणार्थियों को अपने यहां समायोजित करने की दिशा में काम कर रही थीं पर शरणार्थियों के खिलाफ यहां जनमत भी तैयार हो रहा था. ऐसे में पेरिस पर हमले के बाद शरणार्थियों के लिए संकट तो गहराएगा ही, साथ में यूरोपीय देशों की सरकार के लिए भी अपनी जनता को नाराज कर के इस समस्या का समाधान ढूंढ़ पाना कठिन हो जाएगा. इस बीच पोलैंड शरणार्थियों को आश्रय देने में पीछे हट चुका है. वहीं शरणार्थियों के लिए अपने द्वार खोल देने के लिए जरमनी की चांसलर एंजेला मर्केल की समालोचना की जा रही है. बावरिया के मिनिस्टर प्रैसिडैंट हौर्स्ट सीहोफर ने जरमनी की ‘ओपन बौर्डर’ नीति की समालोचना की है. और तो और, स्वीडन भी शरणार्थियों के खिलाफ होने लगा है.
उधर, सीरिया में गृहयुद्ध की समाप्ति, इसलामी जिहादियों के दमन और बशर अल असद को सत्ता से बेदखल करने के लिए अमेरिका समेत यूरोपीय देशों की सक्रियता बढ़ जाएगी. फ्रांस इसलामी आतंकवाद से निबटने के लिए तमाम पश्चिमी देशों के नेताओं को मतभेद भूला कर एकसाथ आने के लिए दबाव बनाएगा. बहरहाल, अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक प्रभाव के अलावा आर्थिक प्रभाव भी पड़ना लाजिम है. सब से पहले तो यूरोपीय पर्यटन उद्योग पर बड़ा झटका लगेगा. आने वाले दिनों में क्रिसमस और नए साल के फैस्टिवल में खलल पड़ना लाजिम है. माना जा रहा है कि फैस्टिवल के दौरान इन देशों के सीमांत इलाकों में चौकसी के कारण सामान की आवाजाही में दिक्कत पेश आनी ही है. आईएस से मुकाबले में इन देशों का बजट भी प्रभावित होगा.
हथियारों का कारोबार
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का एक आर्थिक पहलू भी है और इसे तेल की राजनीति से जोड़ कर देखा जाता है. मध्यपूर्व के देशों में तेल का अकूत भंडार है जिस पर अमेरिका समेत कई देशों की नजर है. वैसे, अमेरिका का स्वार्थ उस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाए रखना भी है. यही कारण है कि इन देशों के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप का कोई मौका अमेरिका गंवाना नहीं चाहता है. इस का दूसरा आर्थिक पहलू हथियारों का कारोबार है. दुनिया में बहुत सारे देश हैं जो हथियारों के कारोबार में लगे हुए हैं. अमेरिका को लें. एक तरफ वह दुनिया में शांति का पैरोकार बनता फिरता है वहीं हथियारों के धंधे में भी लगा हुआ है. वहीं, पेरिस में आतंकियों द्वारा इस्तेमाल की गई गाडि़यों से जो हथियार बरामद हुए हैं उन में मेड इन रशिया लिखा हुआ पाया गया है. स्टौकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट की सालाना रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में इस कारोबार में पहले पायदान पर अमेरिका और दूसरे पर रूस है, तीसरे नंबर पर चीन व उस के नीचे फ्रांस और जरमनी हैं.
दुनियाभर में जिहादी आतंकवाद के मद्देनजर निशाने पर मुसलिम आबादी है. 13 नवंबर को आतंकवादी हमले के बाद पेरिस की जनता प्रभावित लोगों की मदद के लिए बड़े पैमाने पर आगे आई है. इन सब में पेरिस के मुसलिम भी शामिल हैं. पर इन्हें शक की नजर से देखे जाने के कारण ये खुद भी एक अलग तरह के आतंक में जी रहे हैं. गौरतलब है कि फ्रांस की 8 प्रतिशत आबादी मुसलिम है. इस पूरी कौम को लोग अपना आतंकी समझने लगेंगे. कहते हैं कि फ्रांस में पहले से ही वर्णभेद है, हमले के बाद तो ऐसी सोच को और अधिक बल मिलेगा. तसवीर का दूसरा पहलू यह भी है कि आतंकवाद की जड़ें धर्म की अंधशिक्षा से जुड़ी हैं. जिहाद के नाम पर ही आतंकवादी बरगलाए जाते हैं जो खुद को बम से उड़ा कर यह समझते हैं कि उन्होंने अपने मजहब का भला किया है. अगर धार्मिक कट्टरता का पाठ दुनिया में न पढ़ाया जाता तो शायद आतंकवाद का नामोनिशान ही नहीं होता.