व्यस्तताओं के बीच हमें खाने का भी वक्त नहीं मिलता. ऐसे में खाना पकाने के लिए वक्त निकाल पाना दूर की बात है. ऐसे में अकसर लोग बाजार में बिकने वाले रेडी टू ईट यानी खाने की तैयार चीजों पर निर्भर हो जाते हैं और अपनी भूख को तुरंत शांत करने के लिए इन के उत्पादकों के बेहद शुक्रगुजार भी होते हैं. औफिस जाने वालों के लिए तो ऐसी चीजें जीवनदायी साबित होती हैं, क्योंकि उन के पास खाना बनाने का वक्त नहीं होता है. आजकल ऐसे लोगों की आबादी बेहद तेजी से बढ़ रही है, खासतौर से महानगरों और बड़े शहरों में, जहां काम का दबाव ज्यादा होने के साथसाथ काम के लिए रोज लंबी दूरी भी तय करनी पड़ती है. वहीं, ऐसे परिवारों की संख्या भी कम नहीं है जो पूरी तरह से पैक्ड फूड या रेडी टू ईट फूड पर निर्भर हो चुके हैं. उन्हें इस बात का एहसास नहीं है कि ऐसा कर के वे अपनी सेहत के साथ किस कदर समझौता कर रहे हैं.

जीवन को सिर्फ आसान बनाने वाली चीजों की तलाश करना काफी नहीं है बल्कि जीवन को स्वस्थ बनाने वाली चीजों को प्राथमिकता देना भी जरूरी है. पैक्ड फूड का कभीकभी इस्तेमाल कर लेना खराब नहीं है, लेकिन अकसर इस पर निर्भर रहना गलत है. आप शायद इन के लेबल पढ़ कर खुद को संतुष्ट कर लेते होंगे जहां लिखा होता है कि इस में ट्रांसफैट, प्रिजर्वेटिव या मोनोसोडियम ग्लूटामेट यानी एमएसजी नहीं मिलाया गया है. लेकिन इन में ऐसे कई छिपे तत्त्व भी होते हैं जिन के चलते प्रोसैस्ड और रेडी टू ईट फूड के लंबे समय तक इस्तेमाल से डायबिटीज, मोटापा और यहां तक कि कैंसर भी हो सकता है.

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