व्यस्तताओं के बीच हमें खाने का भी वक्त नहीं मिलता. ऐसे में खाना पकाने के लिए वक्त निकाल पाना दूर की बात है. ऐसे में अकसर लोग बाजार में बिकने वाले रेडी टू ईट यानी खाने की तैयार चीजों पर निर्भर हो जाते हैं और अपनी भूख को तुरंत शांत करने के लिए इन के उत्पादकों के बेहद शुक्रगुजार भी होते हैं. औफिस जाने वालों के लिए तो ऐसी चीजें जीवनदायी साबित होती हैं, क्योंकि उन के पास खाना बनाने का वक्त नहीं होता है. आजकल ऐसे लोगों की आबादी बेहद तेजी से बढ़ रही है, खासतौर से महानगरों और बड़े शहरों में, जहां काम का दबाव ज्यादा होने के साथसाथ काम के लिए रोज लंबी दूरी भी तय करनी पड़ती है. वहीं, ऐसे परिवारों की संख्या भी कम नहीं है जो पूरी तरह से पैक्ड फूड या रेडी टू ईट फूड पर निर्भर हो चुके हैं. उन्हें इस बात का एहसास नहीं है कि ऐसा कर के वे अपनी सेहत के साथ किस कदर समझौता कर रहे हैं.

जीवन को सिर्फ आसान बनाने वाली चीजों की तलाश करना काफी नहीं है बल्कि जीवन को स्वस्थ बनाने वाली चीजों को प्राथमिकता देना भी जरूरी है. पैक्ड फूड का कभीकभी इस्तेमाल कर लेना खराब नहीं है, लेकिन अकसर इस पर निर्भर रहना गलत है. आप शायद इन के लेबल पढ़ कर खुद को संतुष्ट कर लेते होंगे जहां लिखा होता है कि इस में ट्रांसफैट, प्रिजर्वेटिव या मोनोसोडियम ग्लूटामेट यानी एमएसजी नहीं मिलाया गया है. लेकिन इन में ऐसे कई छिपे तत्त्व भी होते हैं जिन के चलते प्रोसैस्ड और रेडी टू ईट फूड के लंबे समय तक इस्तेमाल से डायबिटीज, मोटापा और यहां तक कि कैंसर भी हो सकता है.

पैक्ड फूड की असलियत

पैकट वाले खाने की चीजों की प्रोसैसिंग इस तरीके से की जाती है कि उन्हें लंबे समय तक स्टोर किया जा सके और वे खाने के लिए सुरक्षित व स्वादिष्ठ रहें. इस प्रक्रिया के दौरान इन बातों का ध्यान रख पाना संभव नहीं होता कि इन में पोषण भी बरकरार रहे. बड़े ब्रैंड अपने उत्पादों में चीनी, नमक, फैट जैसी चीजें अच्छी क्वालिटी की इस्तेमाल करते हैं, जबकि सस्ते ब्रैंड के मामले में इन चीजों की गुणवत्ता की गारंटी नहीं होती है. ये उत्पाद बनाने वाली कंपनियां उत्पादों को लंबे समय तक ताजा बनाए रखने, उन का फ्लेवर बढ़ाने और टैक्चर व रंग अच्छा दिखाने के लिए कृत्रिम शुगर, नमक, फैट इस्तेमाल करती हैं.

हानिकारक तत्त्व

कृत्रिम शुगर : ग्राहक अकसर खाने की चीजों के पैकेट पर शुगर फ्री का लेबल देख कर खुश हो जाते हैं, लेकिन वे यह नहीं सोचते हैं कि इस में कृत्रिम शुगर मिलाई गई है. डायबिटीज पीडि़त लोग तो इसे अपने लिए वरदान मान लेते हैं. मगर वे इस बात को ले कर जागरूक नहीं होते हैं कि सैक्रीन, ऐस्पारटेम और फ्रूक्टोस जैसी कृत्रिम शुगर उत्पादकों के लिए आसानी से और कम कीमत पर उपलब्ध होती हैं. यही वजह है कि वे तकरीबन सभी पैकेट वाली चीजों में इन का इस्तेमाल करते हैं. अध्ययन बताते हैं कि इन के लंबे समय तक इस्तेमाल से कैंसर हो सकता है.

मोनोसोडियम ग्लूटामेट यानी एमएसजी : यह तत्त्व कृत्रिम या प्राकृतिक दोनों रूपों में उपलब्ध है. मोनोसोडियम ग्लूटामेट खाने की प्राकृतिक चीजों का फ्लेवर बढ़ाता है. लेकिन इस के साथ समस्या यह है कि यह उत्पाद ब्लडब्रेन बैरियर को पार कर सकता है, जिस से कुछ लोगों को माइग्रेन की समस्या हो सकती है. 

सोडियम नाइट्रेट : पैक्ड फूड व रेडी टू ईट खाने की चीजों, खासतौर से मीट वाले उत्पाद की लाइफ बढ़ाने के लिए इस में सोडियम नाइट्रेट मिलाया जाता है. सोडियम नाइट्रेट वाली चीजें खाने से बालों के झड़ने, त्वचा में एलर्जी, सिरदर्द और पेट की समस्याएं हो सकती हैं. जब तक जरूरी न हो, पैक्ड जूस न पिएं. इन में शुगर काफी ज्यादा होती है और प्रिजर्वेटिव भी खूब होते हैं, जो आप को फ्रैश जूस की तरह ताजगी व तंदरुस्ती दे पाने में नाकाम हैं. शोधकर्ताओं ने पाया है कि पैक्ड सलाद खाना हानिकारक हो सकता है. वे मानते हैं कि सलाद  की हरी पत्तेदार सामग्री में अकसर बैक्टीरिया पनप जाते हैं और वे फूड पौइजनिंग का कारण बन सकते हैं. आप को आश्चर्य होगा कि उत्पादकों के लेबल पर प्राकृतिक शब्द के इस्तेमाल के लिए एफडीए के तय मानदंड या दिशानिर्देश नहीं हैं. इस शब्द का इस्तेमाल करना कंपनियों का ऐसा हथकंडा है जिस से आमतौर पर लोग चक्कर खा जाते हैं. फूड पैकेजिंग ऐक्ट के अनुसार प्रत्येक पैक्ड खाद्य पदार्थ की पैकिंग पर बैच नंबर, निर्माण की तिथि तथा उचित उपयोग की अवधि लिखना अनिवार्य है. लेकिन कुछ उत्पादकों द्वारा इस का पालन नहीं किया जाता है. लब्बोलुआब यह है कि प्रोसैस्ड और रेडी टू ईट खाने की चीजों के बहुत ज्यादा इस्तेमाल से बचें.

जब भी डब्बाबंद या पैकेट वाली खाने की चीजें खरीदें तब अपने दिमाग में यह बात जरूर रखें कि यह आप की सेहत के लिए खतरनाक है. अगर आप लगातार इस का इस्तेमाल कर रहे हैं तो इस के लाजवाब स्वाद और फ्लेवर की आप को आदत लग सकती है. ऐसे में अपनी सेहत की खातिर ऐसी चीजों के लगातार इस्तेमाल व इस की लत में पड़ने से बचें. स्वास्थ्य की दृष्टि से घर में पके खाने का कोई जवाब नहीं होता. वहीं, कृत्रिम चीजें तो हमेशा कृत्रिम ही रहेंगी. अगर आप अकसर पैक्ड व रेडी टू ईट फूड का इस्तेमाल करते हैं तो इसे तुरंत बंद कर दें.     

 – कनिका मलहोत्रा

(लेखिका हैल्थकेयर ऐट होम में सीनियर क्लीनिकल न्यूट्रीशनिस्ट हैं)

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