एक दफा नशे की लत भले ही छूट जाये पर बाबाओं की लागी नहीं छूटती. बाबा यत्र तत्र सर्वत्र हैं. एक बाबा मार्केट से बाहर होता नहीं कि दस नए अवतरित हो जाते हैं, इनमें से भी जिन्हें राजाश्रय मिल जाता है उन्हें अपनी बाबागिरी साबित करने न तो यह बताना पड़ता कि उन्होंने कितने हजार साल हिमालय पर तपस्या की है और न ही यह कि साक्षात शंकर ने प्रगट होकर त्राहि त्राहि कर रहे मानव समाज का कल्याण करने धरती पर जाने कहा है.

ऐसे ही एक नवोदित बाबा हैं सद्गुरु जग्गी वासुदेव जिनके दर्शन मात्र से ही लगता है कि हो न हो वे भी कल्याण के लिए ही अवतरित हुये हैं. इन जग्गी बाबा के चेहरे से भी नूर बरसता है. वे बड़ी भली भली बातें करते हैं लेकिन उनकी विशेषज्ञता और दिलचस्पी नदियों में ज्यादा हैं. वे मोह माया और मोक्ष के चलताऊ उपदेश या प्रवचन नहीं करते. सांवले चेहरे पर श्वेत धवल दाढ़ी उनकी त्रेता और द्वापर के ऋषि मुनियों की सी छवि प्रस्तुत करती है तो लोग खामखा ही भाव विभोर हो उठते हैं और साष्टांग होते पुराने कलुष धो लेते हैं कि यही हैं वे बाबा जिनकी सदियों से प्रतीक्षा थी अब तक का फर्जीवाड़ा भुलाने ही इन्हें भेजा गया है.

ईशा फाउंडेशन के संस्थापक ये बाबा नदियों के संरक्षण पर जोर देते हैं और इस नेक काम के लिए अंगरेजी में एक मुहिम रैली फॉर रिवर्स चला रहे हैं. उनका यह विरला कल्याणकारी अभियान टांय टांय फिस्स होकर रह जाता अगर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नजर उन पर पड़ने से चूक जाती. मीडिया नाम के जहाज पर सवार जग्गी बाबा दक्षिण तरफ से भ्रमण करते मध्य प्रदेश आए तो शिवराज सिंह की बांछें खिल उठी, उनकी तलाश पूरी जो हो गई थी. दोनों की आंखें चार हुईं और देखते ही देखते दो सितारों का जमीन पर मिलन हो गया.

Jaggi Vasudev

एक दशक से भी ज्यादा वक्त से सूबे की हुकूमत चला रहे संत प्रेमी शिवराज के चेहरे पर आती सलवटें आला अफसरों ने देखीं तो फिर देखते ही देखते राज्य में ढिंढोरा पिट गया कि बस अब इंतजार की घड़ियां समाप्त हुईं, एक सद्गुरु आ गए हैं. अब वे प्रदेश का विधिवत कल्याण करेंगे और देखते ही देखते ही जग्गी बाबा नर्मदा नदी के कुछ घाटों पर अपने चरण रखने के पश्चात सीधे सीएम हाउस जा पहुंचे, जहां पूरे आदर सत्कार से बैठाल कर सीएम ने सपत्नीक उनकी जितनी हो सकती थी उससे भी ज्यादा खातिर की.

इस खातिरदारी के बिल जल्द ही सरकारी खजाने में पहुंच जाएंगे. लोग कहीं नर्मदा सेवा परिक्रमा को भूल न जाएं, इसलिए मेहमान और मेजबान दोनों ने नदियों के गिरते (जल) स्तर पर चिंता जताई, पेड़ पौधों यानि वृक्षारोपण की महत्ता बताई और जमकर एक दूसरे की तारीफों में ऐसे कसीदे गढ़े कि भांड भी शर्मा जाए. फिर बाबा मुख्यमंत्री के गृह नगर विदिशा गए, जहां उनके ही बनवाए गणेश मंदिर पर जादू के जोर से हजारों श्रद्धालु पहले से ही मौजूद थे. जग्गी बाबा खूब खुश हुये और फिर शिवराज की प्रशंसा की. इस तरह जनता के करोड़ों रुपए फूंक देने मात्र से नदियों का संरक्षण सम्पन्न हो गया.

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शिवराज सिंह ने बाबा की कार ड्राइविंग की तारीफ की और बाबा ने उनके सरकार चलाने के तौर तरीकों की. इस पूरे ड्रामे या अनुष्ठान में चिंता की एकलौती गंभीर बात शिवराज सिंह का लगातार बाबाओं पर आश्रित होते जाना है. जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे वैसे वे विकट के अंधविश्वासी भी होते जा रहे हैं जिसका खामियाजा भुगतने आम जनता को तैयार रहना चाहिए. कोई कानून तो दूर की बात है, आम जागरुकता की कमी इस तरह आ रही है कि कोई नहीं पूछता कि सरकारी जलसों और अभियानों में बाबा किस हैसियत से बुलाकर पूजे और पूछे जाते हैं, जनता ने तो इन्हें नहीं चुना. रही बात राज्य सरकार के अधिकारों की तो हाल में ही कोलकाता हाइकोर्ट बहुत तल्खी से कह चुका है कि राज्य सरकार के अधिकार असीमित नहीं हैं, इत्तफाक से वह प्रसंग भी धर्म से ताल्लुक रखता हुआ था.

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