अंडरवर्ल्ड की कहानी पर ‘‘शूट आउट एट लोखंडवाला’’ जैसी बेहतरीन फिल्म के निर्देशक अपूर्वा लाखिया ने जब अंडरवर्ल्ड की एक अन्य कहानी यानी कि मशहूर डान दाउद की बहन हसीना पारकर की सच्ची कहानी पर इसी नाम से बोयोपिक फिल्म बनाने की घोषणा की थी, तो उम्मीद जगी थी कि एक बेहतरीन कथानक वाली बेहतरीन फिल्म देखने का अवसर मिलेगा. लेकिन ‘हसीना पारकर’ देखकर कहीं से भी यह अहसास नहीं होता कि इसके निर्देशक अपूर्वा लाखिया ही हैं.

फिल्म देखते हुए एक ही बात समझ में आती है कि अपूर्वा लाखिया ने अंडवर्ल्ड से जुड़ी हसीना पारकर व उनके भाई दाउद आदि का महिमा मंडन करने के लिए यह फिल्म बनायी है. ऐसा करते समय वह सिनेमा की मूलभूत जरुरतों को भी अनदेखा कर गए. पिछले कुछ समय से जिस तरह नामचीन व बेहतरीन निर्देशक अपनी पहचान के विपरीत घटिया स्तर की फिल्में लेकर आए हैं, उससे एक सवाल उठता है कि क्या यह सब सिनेमा में बदलाव का असर है या कारपोरेट कंपनियों के आगमन के बाद हर फिल्मकार जल्द से जल्द फिल्म बनाकर कुछ धन जेब के हवाले करने की अजीब सी दौड़ का हिस्सा बना हुआ है और उसे अपनी पहचान को भी दांव पर लगाने से परहेज नहीं रहा.

फिल्म ‘‘हसीना पारकर’’ की कहानी मशहूर माफिया डान दाउद की बहन और अंडरवर्ल्ड से जुड़ी रही मुंबई की महिला डान कही जाने वाली हसीना पारकर की कहानी है. यह कहानी है कोंकणी मुस्लिम परिवार की एक लड़की के मुंबई की अंडरवर्ल्ड डान बन जाने की. फिल्म की कहानी शुरू होती है 2007 के उस अदालती मुकदमे से, जिसमें हसीना पारकर (श्रद्धा कपूर) पर चल रहे कई मुकदमों की सुनवाई होती है. उस पर अवैध वसूली, प्रोटक्शन मनी, धमकी सहित कई आरोप हैं. अदालती कारवाही के ही दौरान कहानी बार बार अतीत में जाती रहती है, जहां हसीना पारकर अपनी जिंदगी की दास्तानं बयां करती हैं.

Shraddha Kapoor

बतौर हसीना 12 बच्चों की परवरिश करने वाले उसके पिता (दधि पांडे) रिश्वतखोर नहीं, बल्कि ईमानदार पुलिसकर्मी थे. जो अपने दोनों बेटों दाउद (सिद्धांत कपूर) और साबिर पर काफी सख्त थे. मगर गरीबी, दूसरों की गुंडागर्दी और अपराध के लिए पुलिस से मिली शह के चलते वह तस्कर बन गए. वह अपने पति (अंकुर भाटिया) के संबंध में भी कई रोचक बाते बताती है. बाबरी मस्जिद, हिंदू मुस्लिम दंगे, मुंबई ब्लास्ट, पारिवारिक मुद्दों का बखान करती हैं. जबकि सरकारी वकील एक ही बात दोहराती रहती है कि हसीना ने अपने भाई दाउद का नाम उपयोग कर इतना डर फैला रखा है कि उनके खिलाफ गवाही देने को कोई तैयार नहीं.

इंटरवल से पहले फिल्म डाक्यूमेंट्री बनकर रह गयी है. इंटरवल के बाद का हिस्सा तो कुछ ज्यादा ही कमजोर हो गया है. इंटरवल के बाद के अदालती दृश्य हंसने पर मजबूर करते हैं. एडीटर ने अपने काम को ठीक से अंजाम नहीं दिया. फिल्म को कसने की जरुरत है. लेखक व निर्देशक फिल्म में हसीना पारकर उर्फ आपा को लेकर ठोस कुछ भी बयां नहीं कर पाए. टुकड़ों टुकड़ों में बयां की गयी कहानी पूरी तरह से बिखरी हुई है. भाई बहन की कहानी भी सही ढंग से नहीं बनी. लेखक इन पात्रों को विस्तार ही नही दे पाया. फिल्म की कहानी के साथ ही पात्रों के अनुरूप कलाकारों का चयन करना निर्देशक की जिम्मेदारी होती है, इन दोनों ही जिम्मेदारियों को निभाने में अपूर्वा लाखिया बुरी तरह से विफल रहे हैं. फिल्म का गीत संगीत भी प्रभावहीन है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो हसीना पारकर के किरदार में श्रद्धा कपूर बिलकुल नहीं जमीं. इसी तरह दाउद के किरदार में सिद्धांत कपूर भी नही जमे. दाउद इतना कमजोर हो सकता है, यह सपने में भी नहीं सोचा जा सकता.

दो घंटे चार मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘हसीना पारकर’’ का निर्माण नाहिद खान ने किया है. फिल्म के निर्देशक अपूर्वा लाखिया, लेखक सुरेश नायर, कैमरामैन फसाहत खान तथा कलाकार हैं – श्रद्धा कपूर, सिद्धांत कपूर, अंकुर भाटिया, दधि पांडे, सुनील उपाध्याय, राजेश तैलंग, प्रियंका सेतिया व अन्य.

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