बेटी के साथ बलात्कार के बाद बदले की कहानी पर ‘मौम’ और ‘मातृ’ के बाद अब संजय दत्त अभिनीत फिल्म ‘‘भूमि’’ में भी वही कहानी दोहरायी गयी है. कहानी के स्तर पर कुछ भी नयापन नहीं है. फिल्म में कुछ संदेश परोसने की कोशिश की गयी है, मगर यह संदेश भी प्रभावशाली नहीं बन पाए हैं. बल्कि अति खून खराबा और हिंसा के सीन सत्तर के दशक की बदले की कहानी वाली बौलीवुड मसाला फिल्मों की याद जरुर दिलाते हैं.
फिल्म की कहानी आगरा निवासी व एक जूते की दुकान के मालिक अरूण सचदेव (संजय दत्त) के परिवार के साथ शुरू होती है, जो कि अपनी इकलौती बेटी भूमि (अदिति राव हादरी) के साथ रहे हैं. भूमि पढ़ी लिखी है. स्वतंत्र है. पिता पुत्री में अगाथ प्यार है. अरूण के पड़ोसी ताज (शेखर सुमन) उनके सुख दुख के साथी हैं. भूमि, नीरज (सिद्धांत गुप्ता) से प्यार करती है. दोनों की शादी तय हो जाती है.
यह बात उसी कालोनी के लड़के (विशाल) को पसंद नहीं आती. क्योंकि वह भूमि से इकतरफा प्यार करता है. इसलिए वह अपने चचेरे भाई व स्थानीय गुंडे धौली (शरद केलकर) की मदद से शादी से ठीक एक दिन पहले भूमि को अगवा कर उसके साथ रेप करता है. इससे अरूण व उनकी बेटी के सारे सपने टूट जाते हैं. पहले अरूण अपनी बेटी को सलाह देता है कि वह इस हादसे को भूल जाए और चुपचाप नीरज से शादी कर ले तथा अपने पति नीरज से कभी इस हादसे का जिक्र न करे. पर भूमि चुप नहीं रहना चाहती. उसके बाद मामला पुलिस स्टेशन, अदालत होते हुए बदले की कहानी में बदल जाता है.
फिल्म की शुरुआत कुछ उम्मीदें जगाती है, लेकिन जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है, वैसे वैसे दर्शक खुद ब खुद अंदाजा लगाने लगता है कि अब क्या होगा? इंटरवल के बाद तो फिल्म पूरी तरह से कई फिल्मों का मिश्रण और अति बासी कहानी के रूप में नजर आती है. फिल्म के अंदर अदालती सीन भी अच्छे नहीं बन पाए हैं. कमजोर कहानी के चलते फिल्म में उठाए गए मुद्दे ध्यान नहीं खींच पाते. पटकथा पर सही ढंग से मेहनत नहीं की गयी. पटकथा के स्तर पर अपराधियों के चेहरे पर कहीं भी शर्मिंदगी का भाव नहीं दिखाया गया. फिल्म का गीत संगीत असरदार नहीं है.
फिल्म के निर्देशक उमंग कुमार ने ‘मैरी काम’ निर्देशित कर राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ ही अपनी पहचान उत्कृष्ट निर्देशक के रूप में बना ली थी. उसके बाद वह ‘सरबजीत’ लेकर आए थे, पर इस फिल्म ने दर्शकों को निराश किया था. अब ‘भूमि’ भी उनके निर्देशन में बनी फिल्म है, जो कि दर्शकों को बांध नहीं पाती. माना कि फिल्म के लिए लोकेशन अच्छी चुनी गयी है. मगर निर्देशक के रूप में उमंग कुमार ‘वन फिल्म वंडर’ ही बनकर रह गए हैं.
जहां तक अभिनय का सवाल है, तो संजय दत्त ने बेहतरीन परफार्मेंस दी है. जेल से वापस आने के बाद संजय दत्त ने अभिनय में वापसी के लिए अच्छा प्रयास किया है, मगर अफसोस उन्होंने काफी कमजोर कहानी वाली फिल्म चुनी. भूमि के किरदार में अदिति राव हादरी ने भी अच्छा अभिनय किया है, मगर कुछ दृश्यों में वह निराश करती हैं. विलेन के किरदार में शरद केलकर खास नहीं जमे. वह विलेन कम कैरीकेचर ज्यादा नजर आए.
कुल मिलाकर ‘‘भूमि’’ को केवल संजय दत्त के कारण देखा जा सकता है, पर अहम सवाल है कि बिना कहानी वाली फिल्म को संजय दत्त कितनी सफलता दिलाएंगे?
2 घंटे 14 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘भूमि’’ का निर्माण टीसीरीज के साथ उमंग कुमार व संदीप सिंह ने मिलकर किया है. निर्देशक उमंग कुमार, पटकथा लेखक राज शांडिल्य, संगीतकार सचिन जिगर व इस्माइल दरबार, कैमरामैन अर्तुर जुरावस्की तथा कलाकार हैं- संजय दत्त, अदिति राव हादरी, शेखर सुमन, शरद केलकर, सिद्धांत गुप्ता व अन्य.