अम्मान : आने वाले वक्त में खेती के लिए भारत की उर्वरक जरूरतें जार्डन से पूरी की जाएंगी. यह फास्फेट की कमी से जूझ रही भारतीय कृषि के लिए बहुत राहत देने वाली बात?है. जार्डन द्वारा भारत की फास्फेट जरूरतों को पूरा करने के लिए वहां दुनिया के सब से बड़े फास्फोरिक अम्ल संयंत्र का आगाज हो चुका है. पश्चिम एशिया के 6 दिनों के दौरे की शुरुआत में जार्डन पहुंचे भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और जार्डन के शाह अब्दुल्ला द्वितीय ने मिल कर इस संयंत्र का उद्घटन किया. यह संयंत्र भारतीय सहकारी उर्वरक कंपनी इफको (इंडियन फार्मर्स फर्टीलाइजर्स कोआपरेटिव लिमिटेड) के सहयोग से जेपीएमसी (जार्डेनियन फास्फेट माइंस कंपनी) ने बनाया है. अम्मान से 325 किलोमीटर दूर स्थित इशीदिया शहर में बने इस संयंत्र की बुनियाद साल 2007 में रखी गई थी. इस बात का यकीन दिलाया जा रहा?है कि इस संयंत्र के चालू होने से?भारत की कृषि क्षेत्र की तमाम उर्वरक से जुड़ी जरूरतें पूरी हो सकेंगी. इस संयंत्र में बनने वाले फास्फोरिक एसिड का जार्डन के अकाबा बंदरगाह से गुजरात के कांडला बंदरगाह को निर्यात किया जाएगा. 860 मिलियन डालर यानी करीब 56 अरब रुपए की लागत से बने इस संयंत्र में इफको का आधे से ज्यादा यानी 52 फीसदी हिस्सा है.

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और शाह अब्दुल्ला ने जब इस संयंत्र का उद्घाटन किया तो उसे अल हुसैनिया महल में बड़े स्क्रीन पर देखा गया. इस उद्घाटन समारोह से पहले जार्डन की राजधानी अम्मान पहुंचने पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का जार्डन के शाह अबदुल्ला ने तहे दिल से जोरदार स्वागत किया. आधुनिक विचारों वाले शांत मिजाज अरब मुल्क जार्डन में दूसरे अरब देशों की तरह तेल का भंडार नहीं है, मध्यपूर्व के इस देश की अर्थव्यवस्था खनिज पर टिकी है. फास्फेट इस का खास उत्पाद है. इसीलिए भारत की इफको कंपनी ने जार्डन के साथ मिल कर फास्फेट के उत्पादन के लिए ‘जिफको’ नामक कंपनी का गठन किया?है. बहरहाल, इफको का यह नया कदम भारतीय खेती में नया मोड़ ला सकता है.  

सफेद मक्खी का बढ़ता प्रकोप

चंडीगढ़ : सफेद मक्खी एक ऐसा कीड़ा है, जो हरे पत्तों में लगता है और फसल को बरबाद कर देता है. खेतों में सफेद मक्खी का बढ़ता हमला किसानों के लिए एक नई मुसीबत ले कर आया है. मौसम की बेरुखी के साथसाथ मानसून के सही समय पर न आने के कारण खेत तो पहले से ही बरबाद हो रहे थे, ऊपर से सफेद मक्खी के आतंक ने किसानों की रहीसही उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है.

कपास, बाजरा, ग्वार व दूसरी फसलों को सफेद मक्खी ने जम कर नुकसान पहुंचाया है. किसान इस हमले से भौंचक हैं. सफेद मक्खी ने खेतों में जो भी नुकसान किया है, उस के आकलन के लिए हरियाणा सरकार ने विशेष जांच के आदेश दिए हैं और जल्दी ही रिपोर्ट देने को कहा है. कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश के 14 जिलों में सफेद मक्खी का आतंक है. भिवानी, हिसार, फतेहाबाद, सिरसा, झज्जर, महेंद्रगढ़, पलवल, जींद, पानीपत, गुड़गांव, रेवाड़ी, मेवात, सोनीपत व रोहतक जिलों में इस मक्खी से बाजरा व ग्वार की फसलों को ज्यादा नुकसान हुआ है.      

किसानों के मददगार रहाणे

मुंबई : भारतीय क्रिकेट टीम के दिग्गज बल्लेबाज अजिंक्य रहाणे ने महाराष्ट्र के किसानों की मदद के लिए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को 5 लाख रुपए का चैक दिया है. फडणवीस ने खुद ट्वीट कर के इस बात की जानकारी देते हुए रहाणे का शुक्रिया अदा किया है. पूर्व भारतीय कप्तान राहुल द्रविड़ को अपना आदर्श मानने वाले रहाणे भी द्रविड़ जैसे शांत मिजाज व नेकदिल इनसान हैं. किसानों के प्रति उन का जज्बा काबिलेतारीफ है.               

मुद्दा

अमूल का इश्तिहार विवाद गहराया

नई दिल्ली : अमूल की बाजार में एक अलग ही पहचान है. अमूल ब्रांड के दूधदही के साथसाथ छाछमक्खन की भी बाजार में काफी मांग है. इस के इश्तिहार भी आएदिन अखबारों के अलावा टेलीविजन पर  दिख जाते हैं. आजकल एक इश्तिहार ने काफी बवाल मचा रखा है. अमूल का यह इश्तिहार विवादों में घिरता दिखाई दे रहा है. बता दें कि अमूल ने अपनी 5वीं डिजिटल फिल्म का इश्तिहार दिया, जिस का विषय था कि हर घर अमूल घर प्यारा बंधन. इसे जीसीएमएमएफ  इश्तिहार एजेंसी ने बनाया था. जब यह इश्तिहार लाइव हुआ, तो तमाम ग्राहकों के साथसाथ पूरे बाजार जगत में भी इस की अच्छीखासी चर्चा हुई. इस इश्तिहार में एक छोटी सी लड़की घर में नन्हे भाई के आने को ले कर खूब खुश होती है, पर विरोध करने वाले तमाम जागरूक लोगों के मुताबिक घटनाक्रम कुछ यों आगे बढ़ता है, जिस से लगता है कि लड़के को लड़की के मुकाबले ज्यादा अहमियत दी जा रही है. यूट्यूब पर एक यूजर ने लिखा कि अमूल ने लिंगभेद को बढ़ावा दिया है. वहीं दूसरे यूजर ने कहा है कि प्रगतिशील भारत में किसी इश्तिहार के द्वारा ऐसी छवि पेश करना वाकई शर्मनाक है. अमूल का यह नया इश्तिहार बाजार में हलचल मचा रहा है, पर दबी जबान में कोई कुछ कह नहीं रहा है.

अमूल तो अपना बचाव करेगा ही, नहीं तो बाजार में उस की साख पर बट्टा लग जाएगा. देखते हैं कि यह इश्तिहार डब्बाबंद होता है या लोगों की जबान पर चढ़ता है.            

मुहिम

खाली जमीनों पर बच्चों के स्टेडियम

लखनऊ : बच्चों को खेलने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ही लोक निर्माण एवं राजस्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने निर्देश दिए हैं कि गांव और न्याय पंचायत लेवल पर तालाबों व चारागाहों की खाली पड़ी जमीनों पर प्राइमरी लेवल के बच्चों के लिए स्टेडियम बनाए जाएं. उन्होंने राजस्व विभाग के अधिकारियों को गांवों का दौरा कर के खाली पड़ी जमीनों को चिन्हित करने के निर्देश दिए हैं. शिवपाल यादव की कोशिश क्या रंग लाती है, यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा, लेकिन इस बात में कोई शक नहीं है कि शिवपाल यादव द्वारा उठाया गया कदम एक अच्छी सोच है. खुदगर्जी के दौर में बच्चों के बारे में सोच कर मंत्री ने मिसाल पेश की है.                                                      ठ्

मदद

तालाब निर्माण पर अनुदान

पटना : राज्य में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को तालाब बनाने के लिए 90 फीसदी तक का अनुदान दिया जाएगा. तालाब के साथ ही उन्हें ट्यूबवेल और पंपिंग सेट की खरीद पर कुल मूल्य का 90 फीसदी अनुदान मिलेगा. पिछली 6 सितंबर को कैबिनेट की मंजूरी के बाद पशुपालन और मत्स्य संसाधन विभाग ने इस योजना को समूचे राज्य में लागू कर दिया है. इस योजना के बारे में विभाग के मंत्री बैद्यनाथ साहनी ने बताया कि बिहार में मछलीपालन और उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एकसाथ कई योजनाओं को मंजूरी दी गई?है. आज की तारीख में राज्य में जितनी मछली की खपत होती है, उस का एक तिहाई दूसरे राज्यों से मंगवाना पड़ता है. गौरतलब है कि राज्य जल संसाधनों की कमी नहीं होने के बाद भी मछली उत्पादन में काफी पीछे?है. बिहार में 93.29 हजार हेक्टेयर में तालाब और पोखर हैं. इस के अलावा 25 हजार हेक्टेयर में जलाशय और 3.2 हजार हेक्टेयर में सदाबहार नदियां हैं. एससीएसटी किसानों को पोखर और तालाब निर्माण के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है.

तालाब को बनाने पर जितना खर्च आएगा, उस खर्च का 90 फीसदी हिस्सा सरकार मुहैया कराएगी. तालाबों में पानी भरने के लिए 1045-1045 ट्यूबवेलों और पंपिंग सेटों पर भी 90 फीसदी अनुदान दिया जाएगा. बिहार में मछली की सालाना खपत 5.81 लाख टन है और वहां 4.32 लाख टन का ही उत्पादन होता है. सूबे में सालाना 7460 लाख मछलीबीज की जरूरत होती?है, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद महज 4810 लाख मछलीबीज का ही उत्पादन हो पाता?है.          

जज्बा

नाना ने खोली नाम संस्था

मुंबई : गरीब किसानों की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती. खेतीबारी में हो रहे नुकसान से परेशान किसान खुदकुशी कर रहे हैं और उन के घर में रोटी के लाले पडे़ हैं.  इस दर्द को समझा है हिंदी सिनेमा के मशहूर अभिनेता नाना पाटेकर ने, क्योंकि वे खुद भी एक किसान हैं. किसान ही एक किसान का दर्द समझ सकता है. उन्होंने नाम फाउंडेशन नामक एक संस्था बनाई है. वे इस संस्था के जरीए गरीब किसानों की मदद करना चाहते हैं. नाम फाउंडेशन को बनाने के पीछे नाना पाटेकर और उन के साथी ऐक्टर मकरंद अनस्पुरे हैं. इन दोनों ने मिल कर ही इस संस्था को अपनी पहचान दी है. उन्होंने इस साल 113 अकाल पीडि़त परिवारों की मदद की. नाना पाटेकर ने कहा कि फाउंडेशन ने खाता खोलने के पहले दिन ही 80 लाख रुपए जमा कर लिए थे. लोग इस में इतनी मदद कर रहे हैं कि उन्हें 400-500 करोड़ रुपए तक मिलने की उम्मीद है. 

हालात

महंगाई की मार खाद्य तेलों पर भी

नई दिल्ली : कोई कुछ भी कहे, पर महंगाई की काट किसी भी सरकार के पास नहीं है. महंगाई के नाम पर पहले प्याज ने लोगों की हालत खराब की, उस के बाद अरहरमसूर की दाल ने, लोगों का बजट बिगाड़. अब खाने वाला तेल भी महंगा होने जा रहा है, वह भी तीजत्योहार के सीजन में. सूत्रों के मुताबिक किसानों को तिलहन उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने और घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बाहर से आने वाले खाद्य तेलों पर 5 फीसदी आयात शुल्क बढ़ा दिया गया है. सरकार के इस कदम से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ सकती हैं. वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाले केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने क्रूड और रिफाइंड दोनों किस्म के तेलों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है. कू्रड खाद्य तेलों के आयात पर अब साढे़ 7 फीसदी के बजाय साढे़ 12 फीसदी की दर से शुल्क लगेगा, जबकि रिफाइंड तेल पर 15 फीसदी के बजाय 20 फीसदी शुल्क लगेगा. इस फैसले से तिलहन की फसल पैदा करने वाले किसान खुश होंगे. जब देश में तिलहन का उत्पादन बढ़ेगा, तो यहां तेल निकालने वाली कंपनियों को भी फायदा होगा. हालांकि इस फैसले से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ सकती है. बता दें कि तिलहनी फसलें अब फायदे का सौदा न होने की वजह से किसान इन्हें छोड़ कर ज्यादा फायदा देने वाली फसलें बोते हैं. इस वजह से अपने देश में तिलहनी फसलें नहीं हो पा रही हैं.

कृषि मंत्रालय के मुताबिक, देश में साल 2015-16 में तिलहन का उत्पादन 198.90 लाख टन होने का अनुमान है, जबकि साल 2014-15 के दौरान देश में तिलहन का उत्पादन 266.75 लाख टन हुआ था. यानी आसार अच्छे नहीं हैं.

योजना

किसानों की फोन डायरेक्टरी

पटना : बिहार के सभी प्रगतिशील किसानों की फोन डायरेक्टरी बनाने का काम शुरू किया गया है. उस में किसानों के फोन नंबरों व पतों के साथ उन की उपलब्धियों के बारे में पूरी जानकारी दर्ज की जाएगी. कृषि महकमे का दावा है कि इस से खेती की ट्रेनिंग ट्रेंड किसानों के जरीए आम किसानों को देने से उन किसानों के साथसाथ खेती को भी काफी फायदा पहुंचेगा. किसानों को खेती के गुर बताने और उन्हें ट्रेंड करने के लिए प्रगतिशील किसानों की मदद ली जाएगी. इस के अलावा किसानों को ट्रेनिंग देने के लिए साल भर का कैलेंडर तैयार किया जा रहा है. इस के अलावा प्रगतिशील किसानों को दूसरे राज्यों में भेज कर उन्हें वहां की खेती के तौरतरीकों से वाकिफ कराने की भी योजना है. आम किसानों को हर फसल के बेहतरीन उत्पादन के तरीके सिखाने के लिए प्रगतिशील किसानों के खेतों तक भी ले जाया जाएगा. इस से किसानों को प्रैक्टिकल जानकारी हासिल हो सकेगी.

इस के साथ ही हर प्रखंड में किसी कृषि वैज्ञानिक को यह जिम्मेदारी दी जाएगी कि वे सरकारी योजनाओं को खेतों में उतारने से पहले अफसरों की मदद करें. वे अनाज उत्पादन से ले कर भंडारण तक के बारे में किसानों को जानकारी देंगे. इस के लिए जिला व प्रखंड स्तर पर वैज्ञानिकों, कृषि विभाग के अफसरों और दूसरे संबंधित विभागों के अफसरों की टीमें बनाने पर काम चल रहा?है. विभाग का मानना?है कि इस से जहां किसानों और खेती की तमाम समस्याओं का निबटारा हो सकेगा, वहीं तमाम किसानों को उन के खेत पर ही खेती की नई जानकारी मिल सकेगी. कृषि महकमे द्वारा बनाई गई यह योजना वाकई काबिलेतारीफ है.              

अजूबा

भेड़ से निकली ऊन का रिकार्ड

मेलबर्न : एक भेड़ से कितनी ऊन मिल सकती है? 2 किलोगाम, 5 किलोग्राम या फिर 10 किलोग्राम? लेकिन आस्ट्रेलिया में एक भेड़ से तकरीबन 40 किलोग्राम ऊन निकाली गई. यह अपनेआप में एक अनोखा रिकार्ड है. यह भेड़ कैनबरा के बाहरी इलाके में मिली थी, जो कई साल से जंगलों में भटक रही थी. कैनबरा इलाके के रहने वालों ने झाड़ी के आसपास इस विशालकाय भेड़ को देखा और स्थानीय आस्ट्रेलियन एनिमल वेलफेयर एजेंसी को खबर दी. वहां के एक अधिकारी ने बताया कि यह भेड़ सामान्य आकार से काफी बड़ी थी. इस भेड़ के शरीर पर काफी ऊन थी. इस भेड़ के बाल इतने घने थे कि ट्रिमिंग के बाद उस के शरीर से 40 किलोग्राम ऊन निकली. उन्होंने आगे बताया कि इस भेड़ का वजन लगातार बढ़ता जा रहा था. इस वजह से उसे चलने में भी परेशानी हो रही थी. ऊन निकालने में कहीं उस की जान न चली जाए, इसलिए कोई भी भेड़ से ऊन निकालने को राजी नहीं हुआ. बाद में आस्ट्रेलियन एनिमल वेलफेयर के मुलाजिमों ने ऊन कतरने के लिए 4 बार के नेशनल अवार्ड विजेता इयान इल्किंस को बुलाया. इयान इल्किंस ने इस काम को एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने कामयाबी भी पाई.    

तकनीक

मनरेगा की निगरानी स्मार्ट फोन से

पटना : बिहार में मनरेगा के तहत चलने वाले कामों की निगरानी के लिए स्मार्ट फोन का इस्तेमाल किया जाएगा. ग्रामीण विकास विभाग इस के लिए मनरेगा योजनाओं से जुड़े सभी मुलाजिमों को स्मार्ट फोन मुहैया कराएंगी. इन में प्रोग्राम औफिसर, जूनियर इंजीनियर, पंचायत टेक्नीकल असिसटेंट और पंचायत रोजगार सेवक को शामिल किया गया है. इस साल के दिसंबर महीने तक सभी मुलाजिमों को स्मार्ट फोन के साथ सिम कार्ड और साफ्टवेयर दे दिए जाएंगे. उस के बाद स्मार्ट फोन के जरीए ही मनरेगा की योजनाओं की मौनेटरिंग की जा सकेगी. मुलाजिमों के द्वारा स्मार्ट फोन के जरीए भेजे गए फोटो को विभाग की बेवसाइट पर डाला जाएगा. उस में काम शुरू होने से पहले, काम शुरू होने, आधा काम होने और काम खत्म होने के बाद की सारी तसवीरें रहेंगी. विभाग के सूत्रों के मुताबिक मनरेगा की आकस्मिकता निधि से स्मार्ट फोन की खरीदारी की जाएगी.       

रुतबा

यूरोपीय देशों में भी दार्जिलिंग चाय का जलवा

कोलकाता : यूरोपीय देशों में दार्जिलिंग की चाय खूब खरीदी जाती है, क्योंकि वहां चाय के शौकीन कुछ ज्यादा ही हैं. वहां हर घर में महंगी से महंगी चाय पी जाती है. जबान पर चढ़ चुकी इस चाय के दीवाने तमाम लोग हैं. यूरोपीय देशों में भारी मात्रा में चाय की खरीदारी इस बात का संकेत है कि दार्जिलिंग चाय असोसिएशन साल 2016 से दार्जिलिंग की ही चाय बेचेगी. बता दें कि यूरोप में पहले मिश्रित चाय बेची जाती थी, जिस में सिर्फ  दार्जिलिंग की चाय ही नहीं हुआ करती थी, बल्कि दूसरी चायों को भी इस में मिलाया जाता था. पर इस मिश्रित चाय को भी दार्जिलिंग की चाय के नाम से ही बेचा जाता था. दार्जिलिंग चाय असोसिएशन के चेयरमैन ने बताया कि उम्मीद है कि यूरोपीय संघ भारत से और चाय की खरीदारी करेगा, क्योंकि दार्जिलिंग चाय के नाम पर बिकने वाली मिश्रित चाय को हटाने और 2016 से ग्राहकों को ताजा दार्जिलिंग चाय बेचने का फैसला किया गया है. दार्जिलिंग टैग लगने का मतलब है कि यूरोपीय देशों में सिर्फ  दार्जिलिंग में पैदा हुई चाय को ही दार्जिलिंग चाय के नाम से बेचा जाए. जो लोग दार्जिलिंग चाय के नाम से मिश्रित चाय बेचते थे, उन को दार्जिलिंग चाय बेचने के लिए 5 साल का समय दिया गया था. यह समय सीमा साल 2016 में खत्म हो रही है.

यूरोपीय आयोग ने साल 2011 में दार्जिलिंग की चाय को पीजीआई प्रोडक्ट के तौर पर रजिस्टर्ड किया था. हालांकि यूरोपीय संघ का निर्यात तो बढ़ा है, लेकिन पिछले साल से चाय के दाम नहीं बढ़े हैं और उत्पादन की लागत हर साल बढ़ रही है. अनुमान है कि साल 2015 के आखिर तक तकरीबन 40 लाख किलोग्राम दार्जिलिंग चाय का निर्यात होगी जो 2014 की तुलना में ज्यादा होगा. दार्जिलिंग की 87 कंपनियों ने इस साल 80 लाख किलोग्राम चाय का उत्पादन किया है.                                                                                 

योजना

एम्स में औषधीय पौधों की नर्सरी

पटना : एम्स के कैंपस में औषधीय पौधों की नर्सरी लगाई जाएगी. नर्सरी में औषधीय पौधों की 300 से ज्यादा प्रजातियां होंगी. देश के कुल 7 एम्स में से पटना एम्स में पहली बार इस तरह का प्रयोग किया जा रहा?है. इस साल के आखिर तक 15 हजार वर्गफुट में नर्सरी शुरू की जाएगी. इस योजना पर 15 लाख रुपए खर्च होंगे. नर्सरी में लगे औषधीय पौधों पर रिसर्च होगी कि कौन से पौधे किन बीमारियों के इलाज में कारगर हो सकते?हैं. नर्सरी में हिमालय क्षेत्र के साथ तटीय क्षेत्र के भी औषधीय पौधे लगाए जाएंगे. एम्स के डायरेक्टर जीके सिंह ने बताया कि दवाओं के क्षेत्र में नए प्रयोग करना और रिसर्च के लिए औषधीय पौधों की नर्सरी डेवलप करना जरूरी?है. इस के सथ ही नर्सरी में ग्रीन हाउस भी बनाया जाएगा, जिस से तय और जरूरी तापमान पर पौधों को उगाया जा सके. औषधीय पौधों से एम्स के छात्रों को रिसर्च करने में काफी मदद मिलेगी. गौरतलब है कि मधुमेह के इलाज में गुलमार, प्रतिरोधी कूवत बढ़ाने में गुरूची, ब्लडप्रेशर के लिए अश्वगंधा व सर्पगंधा, किडनी के लिए पुनर्नवा, हड्डी रोग के लिए गुग्गुल व रासना, पेट की बीमारियों के लिए शंखी, जिराक व विपली, दिमागी रोग के लिए ब्राह्मी व शंखपुष्पी, दिल के लिए पुष्परमूल व अर्जुन नाम के औषधीय पौधों का इस्तेमाल होता है.    

योजना

सरकारी रकम से उपजाऊ जमीन

जयपुर : महात्मा गांधी मनरेगा योजना में अब किसान ‘अपना खेत, अपना काम’ योजना के तहत अपने खेतों की दशा सुधार सकेंगे. साथ ही मवेशियों के लिए टीन शेड बनवा कर उन्हें पनाह देने की भी सरकार की योजना है. इस के लिए पात्र किसानों को 3 लाख रुपए तक की रकम मनरेगा के जरीए दी जाएगी. जानकारी के अनुसार ‘अपना, खेत अपना काम’ योजना के तहत किसान अपने खेतों में भूमि समतलीकरण व भूमि सुधार के लिए छोटे बांध व तलाई वगैरह से उपजाऊ मिट्टी ला कर डाल सकेंगे, जिस से भूमि ज्यादा उपजाऊ होगी. साथ ही किसान मेंड़ बांधने के काम भी कर सकते हैं. लघु सिंचाई योजना में नहर बनाने व जलभराव वाले इलाके में पानी की निकासी के लिए नाली बनाने जैसे काम किए जाएंगे. इस के साथ ही किसान अपने खेतों में सिंचाई व बागबानी के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत अनुदान राशि भी हासिल कर सकते हैं. फायदा पाने वाले किसानों के पास ग्राम पंचायत द्वारा जारी किया  जौबकार्ड होना जरूरी है  उस के पिता या पति के नाम खातेदारी भूमि होना जरूरी है. ऐसे परिवार जिन के कब्जे की भूमि की खातेदारी पैतृक नाम से है, वे सादा कागज पर ग्राम पंचायत में आवेदन कर सकते हैं, जिस में मूल खातेदार से संबंध का जिक्र करते हुए नोटेरी से शपथपत्र सत्यापित करा कर लगाना होगा. 

पड़ताल

फसल बीमा धांधली की जांच

पटना : बिहार में फसल बीमा के मामले में बड़े पैमाने पर हो रही धांधली को रोकने के लिए बीमा कराने वाले किसानों की एलपीसी (भूमि स्वामित्व कागजात) की जांच का काम शुरू किया गया?है. गैर ऋणी किसानों द्वारा बीमा के लिए दिए गए जमीन के कागजातों की खासतौर पर जांच की जा रही?है. सहकारिता विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक विभाग ने बीमा कंपनी और संबंधित बैंकों से 1 महीने के अंदर गैर ऋणी किसानों के एलपीसी की जांच करने को कहा?है. जांच के दौरान फसल बीमा का लाभ लेने वाले सभी किसानों को खुद पूरे कागजात के साथ जांच के लिए हाजिर होना पड़ेगा. जांच और सत्यापन की समीक्षा का काम सभी जिलों के जिलाधीशों को सौंपा गया है. सहकारिता विभाग के ज्वाइंट सेक्रेटरी के मोहन ने बताया कि जांच के दौरान किसी भी तरह की गड़बड़ी मिलने पर किसानों को फसल बीमा का फायदा नहीं मिलेगा और आगे भी उन किसानों की फसलों का बीमा नहीं किया जाएगा. फसल बीमा में काफी गड़बड़ी को देखते हुए इस साल भदई धान और भदई मकई के बीमा का जिम्मा एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी आफ इंडिया को सौंपा गया है.

इस के अलावा किसी प्राइवेट बीमा कंपनी को फसल बीमा का काम नहीं दिया गया है. प्रीमियम की दर फसल बीमित राशि की ढाई फीसदी तय की गई है. गौरतलब है कि छोटे और सीमांत किसानों को बीमा प्रीमियम की राशि में 10 फीसदी का अनुदान भी दिया जाएगा. इस अनुदान की राशि का बोझ केंद्र और रज्य सरकारें मिल कर उठाती हैं. सरकार द्वारा किसानों के हित में उठाए गए कदमों के बीच धांधली और बेईमानी के कारनामे वाकई शर्मनाक हैं.    

तकनीक

ईमेल व वाट्सएप देंगे जानकारी

बीकानेर : ईमेल और वाट्सएप से खेती की जानकारी मिलने की बात सुन कर आप हैरान जरूर होंगे, लेकिन सूबे में अब ऐसा ही होने जा रहा है. स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, श्रीगंगानगर केंद्र अब ‘इनफारमेशन एंड कम्यूनिकेशन टेक्नोलाजी’ पर काम करेगा. इस से किसानों को घर बैठे खेतीबारी की नई तकनीकों की जानकारी मिलेगी.

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत विश्वविद्यालय को अनुसंधान के 3 प्रोजेक्ट मिले हैं, जिन की लागत 1 करोड़ 58 लाख रुपए तय की गई है. फिलहाल केंद्र कपास उत्पादक किसानों को जानकारी मुहैया कराएगा. कपास की खेतीबारी के मामले में किसान मोबाइल पर वाट्सएप व ईमेल के जरीए कृषि वैज्ञानिकों से सीधे जुड़ सकेंगे. एसएमएस तकनीक भी इस में शामिल है.             

सुविधा

कृषि भवन में लगी पारदर्शी सेवा मशीन

बस्ती : किसानों को खेती व खेती से संबंधित योजनाओं की जानकारी देने के लिए बस्ती के कृषि भवन में संचार सुविधाओं से लैस पारदर्शी किसान सेवा मशीन लगाई गई?है. टच स्क्रीन सुविधा से लैस इस मशीन से किसानों को फसलों में लगने वाले कीटबीमारियों की रोकथाम, बीजों की प्रजातियों व खाद की मात्रा वगैरह की जानकारी मिलेगी. उपनिदेशक कृषि डा. पीके कन्नौजिया ने बताया कि इस मशीन से किसानों को सीजनवार फसलों की जानकारी उंगली रखने पर मिल जाएगी. इस मशीन से किसानों को फसल के लिए खेत की तैयारी, मिट्टी का चयन, खादउर्वरक की मात्रा, सिंचाई व भंडारण सहित तमाम चीजों की जानकारी हासिल होगी. अकसर छपे हुए साहित्य को किसानों तक पहुंचाने में देरी हो जाती?है, ऐसे में किसान खुद कृषि भवन में जा कर खेती से जुड़ी जानकारियां ले सकते हैं.                                                                       

तरक्की

मगही पान खोलेगा अकल का ताला

पटना : बिहार का मशहूर मगही पान अब विदेशियों की बंद अकल का ताला खोलने को तैयार है. इस साल के आखिर तक मगही पान समेत जर्दालु आम, कतरनी चावल व शाही लीची अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों में धमाल मचाने लगेंगे. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद पूरी तरह से जैविक खाद से इन उत्पादों को तैयार कर रहा है. इस से जहां राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा मिल रहा है, वहीं विदेशों में इन उत्पादों को सप्लाई करने से किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी.

कृषि मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बताया कि विदेश भेजे जाने वाले उत्पादों के रजिस्ट्रेशन का काम चल रहा?है. एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट एक्सपोर्ट डेवलपमेंट औथरिटी (एपिडा), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और बिहार कृषि विभाग द्वारा मिल कर विदेशों में भेजे जाने वाले उत्पादों की लिस्ट तैयार की जा रही है और उसी आधार पर उन के उत्पादन की तैयारी की जा रही है. इस से उत्पाद विदेशों में मानदंड पर पूरी तरह से खरे उतर सकेंगे. बिहार के नालंदा, नवादा, गया व मगध इलाकों में बड़े पैमाने पर मगही पान की खेती होती है. यह हाई क्वालिटी का पान माना जाता है और इसे ज्यादा समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है.

नालंदा में स्थित पान अनुसंधान केंद्र उम्दा किस्म के मगही पान के उत्पादन में मदद करता?है. इस के साथ ही चीन की लीची को टक्कर देने वाली बिहार की शाही लीची का मुजफ्फरपुर, मोतिहारी और समस्तीपुर जिलों में भरपूर उत्पादन होता?है. मिठास से भरपूर इस लीची में गूदा ज्यादा होता है और बीज काफी पतला होता है. इसी तरह से भागलपुर और बांका जिलों में पैदा होने वाले कतरनी चावल की सुगंध और स्वाद के दीवाने देशविदेश में हैं. इसे पुलाव और खीर बनाने में काफी इस्तेमाल किया जाता है.         

सख्ती

सहकारी समितियों पर लगेगा ताला

पटना : बिहार की 89 सहकारी समितियों पर हमेशा के लिए ताला लटकेगा. जिन सोसाइटियों ने औडिट रिपोर्ट नहीं सौंपी है, उन को बंद कर दिया जाएगा. बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की मनमानी पर नकेल कसने के लिए रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने यह कदम उठाया है. रिजर्व बैंक के बिहारझारखंड के रीजनल डायरेक्टर मनोज कुमार वर्मा ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि 91 सहकारी समितियों को औडिट रिपोर्ट देने को कहा गया था, जिन में से केवल 2 ने ही रिपोर्ट जमा कराई?है. इस के बाद ही बाकी 89 सोसाइटियों को बंद करने की सिफारिश राज्य से की गई?है. इस के अलावा 170 अन्य संस्थाओं को भी औडिट रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया है. जो संस्थाएं समय पर रिपोर्ट नहीं देंगी, उन्हें भी बंद कर दिया जाएगा. मनोज कुमार वर्मा ने बताया कि नान बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के खिलाफ बिहार में कुल 78 केस दर्ज हैं. इन केसों के निबटारे के लिए हर कमिशनरी में विशेष अदालत के गठन पर विचार चल रहा है. ‘प्रोटेक्शन औफ इंटरेस्ट औफ डिपौजिटर्स एक्ट’ का उल्लंघन कर के अगर राज्य के किसी भी हिस्से में नान बैंकिंग कंपनी चलती?है, तो इस के लिए उस इलाके के थानेदार जिम्मेदार होंगे.

इस के सथ ही सही तरीके से काम करने वाली वित्तीय कंपनियों को नाहक परेशान न करने की भी हिदायत दी गई?है. इस से नान बैंकिंग कंपनियों पर लगाम लगेगी और आम जनता ठगी की शिकार नहीं हो सकेगी. कामचोर व काहिल किस्म की सहकारी समितियों के खिलाफ रिजर्व बैंक द्वारा उठाया गया यह कदम काबिलेतारीफ कहा जा सकता?है. इस सख्त कदम से अन्य सहकारी समितियां नसीहत ले सकती हैं.                      

सुविधा

माइक्रो एटीएम से बैंकिंग सुविधा

जयपुर : सामाजिक सुरक्षा पेंशन, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा, मनरेगा, छात्रवृत्ति व जननी सुरक्षा योजना के हकदारों को गांवों में ही बैंकिंग सुविधा मुहैया कराने के लिए प्रदेश सरकार ने तैयारी कर ली है. इस के लिए योजनाओं के हकदारों को माइक्रो एटीएम सुविधा से जोड़ा जाएगा. इस के अलावा प्रदेश सरकार की ओर से चुनी गई ग्रामपंचायतों में जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है. योजना के तहत सरकारी योजनाओं के हकदारों को ग्राम पंचायत के आईटी सेंटर पर बैंकिंग सुविधा से जोड़ा जाएगा. माइक्रो एटीएम मशीनें लगा कर एटीएम कार्ड की मदद से लोगों को फायदा दिया जाएगा. एटीएम कार्ड के जरीए हकदार 1 दिन में ज्यादा से ज्यादा 1 हजार रुपए निकाल सकेंगे. इस से ज्यादा रकम के लिए उन्हें अगले दिन का इंतजार करना होगा. माइक्रो एटीएम सेवा का फायदा लेने के लिए हकदार को भामाशाह व आधार कार्ड का रजिस्ट्रेशन कराना होगा. 

लापरवाही

अनाज उठाव में हो रही कोताही

पटना : बिहार में खाद्य सुरक्षा को ले कर चल रही योजनाओं के लिए मिलने वाले अनाजों की खेप के उठाव में लापरवाही बरती जा रही?है. अफसरों की लापरवाही की वजह से जिलों में गरीबों को समय पर सस्ता अनाज नहीं मिल रहा?है. पूर्णियां, भागलपुर, समस्तीपुर, सुपौल, खगडि़या, बेतिया, मुंगेर, मधुबनी, रोहतास, सीतामढ़ी, अररिया, जहानाबाद, किशनगंज व कटिहार वगैरह कई जिलों में अनाज उठाव का काम कछुए की चाल चल रहा?है. खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के सूत्रों के मुताबिक विभाग की समीक्षा बैठक में इस बात का खुलासा हुआ?है. राज्य के सभी 38 जिलों में 35 फीसदी से भी कम अनाज का उठाव होने से गरीबों को ससता अनाज देने की मुहिम को झटका लगा है. समय पर अनाज का उठाव नहीं होने से अनाज के लैप्स होने का खतरा भी मंडरा रहा?है, लेकिन अफसर इस बात को गंभीरता से नहीं ले रहे?हैं. विभाग के सचिव पंकज कुमार ने सभी जिला प्रबंधकों को समय पर अनाज उठाने और बांटने की हिदायत दी?है.        

बेबसी

फसल बीमा का फायदा नहीं

जयपुर : खरीफ सीजन साल 2015-16 में फसल बीमा कराए किसानों को बीमा का फायदा नहीं मिलने वाला है. वहीं सूखे के कारण होने वाले फसल के नुकसान में राहत देने को ले कर सरकार पहले ही हाथ खड़े कर चुकी है. उधर, सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधियों की मानें तो सरकार की हालत फिलहाल ऐसी नहीं है कि वह किसानों को राहत की रकम का भुगतान कर सके. ऐसे में यह साल किसानों के लिए बेकार साबित होने वाला है. गौरतलब है कि कृषि बीमा योजना का निबटारा इलाके के हालात के आधार पर होता है. नुकसान का अंदाजा एक फार्मूले के आधार पर लगया जाता है और उस फार्मूले के कारण कई किसान फसल का नुकसान होने बावजूद बीमे की रकम पाने से रह जाते हैं. सूखे के कारण फसल में होने वाले नुकसान में राहत दिए जाने को ले कर अभी तक स्थिति साफ नहीं हो सकी है. किसानों को राहत मिलने की उम्मीद कम ही नजर आ रही है. सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधि तो पहले ही मान चुके हैं कि सरकार के पास राहत देने के लिए रकम ही नहीं है. प्रदेश के कई जिलों में रबी में हुए नुकसान की अभी तक दूसरी किस्त ही नहीं बांटी गई है, तो ऐसे में खरीफ में हुए नुकसान की रकम कहा से बांटी जाएगी. राज्य सरकार द्वारा हर साल बीमा की राशि तो किसानों को दिए जाने वाले ऋण में से काट ली जाती है, लेकिन फसल के नुकसान पर बीमा राशि नहीं दी जाती है.  

तकनीक

खेती में नवाचार अपनाएं किसान

करौली : करौली जिले के कलेक्टर विक्रम सिंह ने आत्मा योजना के तहत होने वाले कार्यक्रम की समीक्षा करते हुए कहा कि किसान खेती व पशुपालन के मामले में नवाचार अपनाएं. उन्होंने खेतीबारी अफसरों को किसानों की समस्याओं को तुरंत निबटाने के लिए भी निर्देश दिया. उन्होंने गांवों में होने वाली किसान गोष्ठियों में फिल्में व कामयाब किसानों की कहानियां दिखाने की बात कही और किसान स्वयं सहायता समूह बना कर किसानों को खेतीबारी के यंत्र भी मुहैया कराने के निर्देश दिए. उन्होंने डेरी कारोबार बढ़ाने के लिए किसानों को ट्रेनिंग देने की जरूरत बताई.  

तोहफा

कृषि मेले में सब से अच्छी गाय हुई सम्मानित

पंतनगर : उत्तराखंड के पंतनगर विश्वविद्यालय में 4 दिनों तक कृषि मेला चला. इस दौरान पशुचिकित्सा एवं पशुपालन विज्ञान महाविद्यालय के मैदान में पशुप्रदर्शनी लगाई गई. इस मेले के तीसरे दिन पशुपालकों ने अपनेअपने पशुओं का प्रदर्शन किया. इस पशुप्रदर्शनी को 8 हिस्सों में बांटा गया था. इस पशुप्रदर्शनी में फुलसुंगा गांव के बच्चा यादव की हालस्टीन दुधारू गाय को सब से अच्छा पशु चुना गया. पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय के डाक्टर जीके सिंह ने इस गाय को रिबन बांध कर सम्मानित किया. साथ ही हालस्टीन गाभिन गाय वर्ग में ओमप्रकाश चौधरी की गाय, हालस्टीन बछिया वर्ग में कालू कुरैशी की बछिया, दुधारू जर्सी गाय वर्ग में विजय प्रसाद की गाय पहले स्थान पर रहीं. इस के अलावा गाभिन जर्सी गाय वर्ग में सुनील यादव की गाय, साहीवाल दुधारू गाय वर्ग में अंकित सिंह की गाय और जर्सी बछिया वर्ग में आतिश की बछिया पहले स्थान पर रहीं.

सवाल किसानों के

सवाल : मुझे जैविक खेती और पौलीहाउस में आर्गेनिक खेती के बारे में जानकारी दें?

-अरविंद कुमार, पश्चिमी चंपारन, बिहार

जवाब : जैविक खेती चाहे खुले में करें या पौलीहाउस के अंदर, उस का तरीका एक ही होता है. इस में रासायनिक उर्वरकों व रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता. उन के स्थान पर गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, केंचुए की खाद, हरी खाद, एजोटो वैक्टर एजोस्पारिलम, पीएसबी व वीएएम वगैरह जैविक खादों व नीम का तेल, विवेरिया वेसियाना, ट्राइकोडर्मा व फेरोमेन?ट्रैप वगैरह कीटनाशकों का इस्तेमाल करते?हैं. ज्यादा जानकारी के लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें.

सवाल : आयुर्वेदिक औषधि कौंच के बोने की विधि बताएं. यह कौन सी मशीन से निकलती?है? यह मशीन कहां मिलेगी?

-दीपक सोनी, मंदसौर, मध्य प्रदेश

जवाब : कौंच को व्यावसायिक तौर पर लाइनों में लगाया जाता है, जिस में पौधे से पौधे की दूरी 80-90 सेंटीमीटर और लाइन से लाइन की दूरी करीब 2 मीटर रखते?हैं. कौंच को जूनजुलाई में बीज बो कर लगाया जाता?है. दिसंबरजनवरी तक इस में फलियां लगनी शुरू हो जाती हैं.कौंच को ज्यादातर हाथों व डंडों से पीट कर ही अलग किया जाता रहा है, परंतु बाजार में उपलब्ध थ्रेसर मशीन से भी इस के बीज अलग किए जा सकते हैं. थ्रेसर मशीन बड़े बाजारों में मशीन की दुकानों में आसानी से मिल जाती है.

सवाल : 1 एकड़ जमीन में टीक व महोगनी के कितने पेड़ लगेंगे?

-सरवजीत, सरायकेला, झारखंड

जवाब : टीक व महोगनी की व्यावसायिक तौर पर खेती करने के लिए 1 एकड़ जमीन में 266 पौधे लगाए जा सकते?हैं और शुरू के 2 सालों तक उन के बीच में सब्जी व मसाले वाली फसलें भी ले सकते?हैं.

सवाल : नरमा (कपास) की खेती के बारे में जानकारी दें. सफेद मक्खी से कपास की फसल को कैसे बचाएं?

-प्रमोद, हरियाणा

जवाब : नरमा प्रजाति खासतौर पर राजस्थान सूबे के लिए मुफीद होती है. इस की बोआई मई के तीसरे हफ्ते से जून के पहले हफ्ते तक की जाती?है. 18-20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से ले कर उपचारित करने के बाद 60×30 सेंटीमीटर के फासले पर बोआई करनी चाहिए. इस बोआई से प्रति हेक्टेयर करीब 55 हजार पौधे होंगे. नरमा की खेती में 5-6 टन सड़ी गोबर की खाद, 60-100 किलोग्राम नाइट्रोजन 30-40 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. डाईफेंथोरान (अगास) 250 ग्राम व वाईफेंथरीन (इम्पीरियर) 250 मिलीलीटर का प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करने से फसल को सफेद मक्खी से बचाया जा सकता है.      

डा. हंसराज सिंह व डा. अनंत कुमार
कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद

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खतोकिताबत

जरूरी जानकारी

‘फार्म एन फूड’ का पहली अक्तूबर, 2015 का अंक पढ़ा. यह अंक जरूरी जानकारियों का खजाना लगा. इस के तमाम लेख खेतीजगत से जुड़े लोगों के लिए मददगार हैं. खासतौर पर इस अंक में छपी कवर स्टोरी ‘दुधारू पशुओं की देखभाल’ ने मुझे बेहद प्रभावित किया. मैं खुद दूध का कारोबार करता हूं, लिहाजा यह लेख मेरे लिए किसी सौगात से कम नहीं है. अकसर अपने मवेशियों की देखभाल में मुझ से चूक हो जाती?है और मुझे घाटा उठाना पड़ जाता है. मगर इस लेख को पढ़ने के बाद मुझे उम्मीद?है कि मैं अपना डेरी का काम बेहतर तरीके से कर सकूंगा. हकीकत तो यह?है कि अकसर तमाम पशुचिकित्सक भी सही सलाह नहीं दे पाते, लेकिन ‘फार्म एन फूड’ में छपे लेखों की बातें सोलह आने सच व ठोस होती?हैं.

-केसरीनंदन, बहराइच, उत्तर प्रदेश

आकर्षक अंक

खेतीकिसानी की लाजवाब पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ का 1?अक्तूबर, 2015 का अंक हासिल हुआ. अंक की सामग्री के साथसाथ साजसज्जा भी गजब की लगी. वाकई यह पत्रिका किसी ग्लैमर मैगजीन से कम आकर्षक नहीं?है. दरअसल किसी भी चीज या पत्रिका का आकर्षक होना लाजिम?है, तभी उसे देखने या पढ़ने का दिल करता?है. बहरहाल, इस आकर्षक अंक को मैं ने हमेशा की तरह पूरा पढ़ा और बेहद मुतास्सिर हुई. मैं तमाम आम लड़कियों की तरह महज किस्सेकहानियों की किताबों तक नहीं सिमटी रहती. मैं बेशक अन्य किताबें व पत्रिकाएं भी पढ़ती हूं, मगर ‘फार्म एन फूड’ जैसी सार्थक मैगजीनें ज्यादा पढ़ती हूं. यह पत्रिका मुझे अपनी गृहवाटिका के लिहाज से मुकम्मल लगती?है. हकीकत तो यह?है कि इसी के बल पर मैं अपनी गृहवाटिका का काम कर पाती हूं, वरना मैं कोई माहिर महिला किसान नहीं हूं. मेरा बैकग्राउंड भी देहात का नहीं है यानी बागबानी की जानकारी मुझे विरासत में भी नहीं मिली. यह महज मेरा शौक है, जो ‘फार्म एन फूड’ के बल पर चल रहा?है.

-सपना, सतना, मध्य प्रदेश

पंगेसियस मछली

‘फार्म एन फूड’ के 16 अगस्त, 2015 अंक में पंगेसियस मछली के बारे में पढ़ा, जो कि पटना से संबंधित था. मुझे पंगेसियस मछली के बारे में पूरी जानकारी चाहिए. मछलीपालकों को मालामाल करने वाली यह मछली वाकई कारगर साबित हो सकती?है. इस मछली के बच्चे कब व कहां से हासिल हो सकते?हैं और इन की कीमत क्या होगी? ये बातें जान कर इन का पालन करना फायदे वाला काम है. पंगेसियस मछलियों को कोई खास खाने वाली चीज देनी पड़ती?है या नहीं, यह जानना भी बहुत जरूरी?है. इन का खाना कहां व किस कीमत पर मिलेगा? उम्मीद है कि पत्रिका के आगामी अंकों में ये जानकारियां मिल सकेंगी.-विश्व पाल सिंह, बलरामपुर, उत्तर प्रदेश

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