मवेशी अपने पालकों को अच्छाखासा मुनाफा कराते हैं, इसलिए हर मवेशीपालक को अपने मवेशियों का खास ध्यान रखने की जरूरत है. अकसर मवेशी बीमार पड़ जाते हैं या चोट के शिकार हो जाते हैं या कभी जहरीला पौधा वगैरह खा कर बीमार पड़ जाते हैं. बीमार मवेशी को डाक्टर के यहां ले जाने से पहले अगर उस का शुरुआती इलाज कर दिया जाए तो मवेशी की बीमारी ज्यादा नहीं बढ़ती और इलाज का खर्च बहुत कम हो सकता है. अकसर लू लगने, जहरीला पौधा खा लेने  या खून के ज्यादा बह जाने से मवेशी की मौत हो जाती है और मवेशीपालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. इस से मवेशीपालकों की आमदनी भी बंद हो जाती है. इन परेशानियों से बचने के लिए मवेशीपालकों को मवेशियों के शुरुआती इलाज  की जानकारी होना बेहद जरूरी है.

सभी मवेशीपालकों को अपने पास रुई, फिटकरी, बांस की खपच्ची, टिंचर वैंजोइन, एंटीसेप्टिक क्रीम, नया ब्लेड, कारबोलिक एसिड, मैगनीशियम सल्फेट, जमालगोटा, जौ का आटा, तारपीन का तेल, कपूर, मांड, खडि़या, अरंडी का तेल, सेवलान या डिटाल व बोरिक एसिड वगैरह जरूर रखना चाहिए. ये सारी चीजें मवेशियों के इलाज में काम आती हैं. इस के अलावा मवेशीपालकों को अपने पास पशु अस्पताल व नजदीक के वेटनरी डाक्टर के फोन नंबर जरूर रखने चाहिए, ताकि मवेशी के बीमार पड़ने पर तुरंत ही डाक्टर से संपर्क किया जा सके. वेटनरी डाक्टर कौशल किशोर प्रसाद बताते हैं कि जैसे ही यह महसूस हो कि कोई मवेशी बीमार है, तो तुरंत ही उसे बाकी मवेशियों से दूर हटा कर बांध देना चाहिए. बीमार पशु को हवादार, साफ और शांत जगह पर ही रखना चाहिए. पशुओं के बेचैन होने, खानापीना छोड़ देने या कम कर देने, दूध में कमी होने या उस का रंग बदलने, मल और मूत्र के रंग में बदलाव होने, नथुने सूख जाने, लगातार रंभाने या चाल में बदलाव होने पर मवेशीपालकों को ध्यान रखना चाहिए और तुरंत ही उस का शुरुआती इलाज शुरू कर देना चाहिए. इस के बाद डाक्टर से जांच करा लेनी चाहिए.

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