देश के हर नागरिक को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के मकसद से सरकार स्वास्थ्य योजना शुरू कर चुकी है. योजना के तहत कम मूल्य पर लोगों को बेहतर सुविधा दी जाएगी. इस का फायदा अभी जमीन पर तो नजर नहीं आ रहा है लेकिन इस दिशा में लगातार कदम उठाए जा रहे हैं.
इसी क्रम में सरकार ने नई दवाओं को डेढ़ माह के भीतर मंजूरी देने की व्यवस्था की है. इन में वे दवाएं शामिल हैं जिन्हें पहले ही जापान, आस्टे्रलिया और यूरोपीय यूनियन के देशों से मंजूरी मिल चुकी है. इस का सीधा मतलब है कि जो दवाइयां इन विकसित देशों में प्रचलन में हैं उन्हें भारत में क्लीनिकल परीक्षण से नहीं गुजरना पड़ेगा.
दवा महानिदेशालय का कहना है कि सरकार के इस फैसले से प्रमाणित दवाएं समय पर देश के बाजार में आ जाएंगी.
क्लीनिकल प्रमाणिकता के चक्कर में कई बार दवाओं को बाजार में उतारने के लिए अनावश्यक देरी का सामना करना पड़ता है. लेकिन इस फैसले से दवा उद्योग तथा उपभोक्ता दोनों को फायदा होगा.
बड़ी दवा कंपनियों का रिकार्ड देखने पर साफ पता चलता है कि उनका एकमात्र एजेंडा सिर्फ मुनाफा होता है। इसके लिए ये कंपनियां पेटेंट को सबसे बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं। यह उन्हें बाजार में एकाधिकार का ऐसा कवच प्रदान करता है, जिसके जरिए दवाओं की मनमाफिक काफी ऊंची कीमतें तय की जाती हैं।
नीतियां सरल हों, सरकार का यह फैसला अच्छा है लेकिन सरकार की सरल नीतियों का निजी लाभ के लिए दवा कंपनियां फायदा उठाएं, इस पर ध्यान देने की जरूरत है.
नकली दवाओं से बाजार पटा पड़ा है. कोई भी दवा विक्रेता डाक्टर की परची के आधार पर बिल के साथ दवा नहीं देता है. इस का सीधा मतलब है कि बाजार में घोटाला चल रहा है. सो, व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए बुनियाद पर अंकुश लगाना आवश्यक है.