मिला दुश्मन कि यार हो जैसे

पर फिर भी एतबार हो कैसे

बंधन प्यार का है अपना

बीच में फिर दीवार हो कैसे

उठ गया तेरे धोखे से जो

तुझ पे अब एतबार हो कैसे

जिस के आने से तू आ जाए

मरुस्थल में वो बहार हो कैसे

पिया न देखें किसी और को

करूं मैं बताओ सिंगार वो कैसे.

– हरदीप बिरदी

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