सुबहसुबह दरवाजे की घंटी बजी. वे सोच रहे थे कि इतनी सुबह कौन हो सकता है कि तभी उन के नौकर जेम्स ने आ कर बताया कि एक नौजवान लड़का उन से मिलना चाहता है. अपने गाउन की डोर बांधते हुए वे मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़े. सामने एक सुदर्शन सा युवक खड़ा था. उस के कपड़े और चेहरे का हाल बता रहा था कि वह रातभर सफर कर के आया है. माथे पर बिखरे हुए बालों को हाथ से पीछे हटाते हुए उस ने प्रणाम करने की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए. चेहरे पर असमंजस के भाव लिए उन्होंने उस के नमस्कार का जवाब दिया. युवक ने कहा कि वह अपनी व्यक्तिगत जिंदगी में एक बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रहा है और वही उस की मदद कर सकते हैं. इसलिए वह उन्हें ढूंढ़ते हुए नोएडा से पूरी रात का सफर कर के मध्य प्रदेश के इस छोटे से शहर रतलाम में उन से मिलने आया है और क्योंकि वह इस शहर में किसी को जानता नहीं है इसलिए ट्रेन से उतरने के बाद सीधा उन्हीं के पास चला आया है.
उन्होंने उसे अंदर आने को कहा और जेम्स से चाय लाने के लिए कहा. युवक को सोफे पर आराम से बैठने का इशारा करते हुए वे भी सामने वाले सोफे पर बैठ गए. उन्होंने युवक से अपना परिचय कुछ और विस्तार से देने को कहा. युवक ने अपना नाम कबीर बताते हुए कहा कि वह उन का दामाद है, वह उन की बेटी श्रेया का पति है. दामाद शब्द सुनते ही वे चौंक कर सोफे से उठ कर खड़े हो गए. उन्होंने जेब से रूमाल निकाल कर माथे पर आई पसीने की बूंदें पोंछीं और किसी सोच में खो गए. कबीर के टोकने पर वे अपनी सोच के दायरे से बाहर आए. चाय खत्म कर कबीर से उन्होंने कहा कि वे उस के नहाने का इंतजाम कर के आते हैं और वे जेम्स को जरूरी निर्देश देने के लिए भीतर चले गए. कबीर के नहाने के लिए जाने के बाद वे अपनी अतीत की यादों के भंवर में डूब गए…
उन की और पल्लवी की शादी एक सादे समारोह में घरपरिवार वालों की मरजी से हुई थी. पल्लवी के पिता रेलवे में साधारण कर्मचारी थे एवं परिवार बड़ा होने की वजह से उस की सारी जिंदगी अभावों में गुजरी थी. उन के अपने परिवार में पैसे की तो कोई कमी नहीं थी पर घर में एक विधवा मां और 2 अविवाहित बहनों की जिम्मेदारी थी. पिताजी ठीकठाक पैसा छोड़ कर गए थे और मां व दोनों बहनें नौकरी करती थीं. पिताजी के छोड़े 2 मकान थे जिन में से एक में वे रहते थे और एक किराए पर दे रखा था. अभावों में पली पल्लवी और उस के परिवार की माली हालत को देख कर उन्होंने सोचा कि उन के घर में आने के बाद पल्लवी को जब अपने घर से बेहतर सुखसाधन मिलेंगे तो वह अपने पुराने अभाव भूल जाएगी और उन के परिवार के साथ तालमेल बना कर सुखशांति से चलेगी. बस, यहीं उन से गलती हो गई. पल्लवी के परिवार ने तो कुछ और ही प्लान कर रखा था. इस की एक झलक उन्हें अपने हनीमून के दौरान मिल भी गई थी जब किसी बात पर पल्लवी ने उन से कहा था, ‘अभी शादी के 7 साल तक तो मैं आप की जवाबदारी हूं और अगर मुझे कुछ हो गया तो आप को और आप के परिवार को जेल हो जाएगी.’उन्हें यह बात कुछ अजीब तो लगी पर अपने सरल स्वभाव की वजह से उन्होंने ज्यादा गौर नहीं किया और बात आईगई हो गई.
पल्लवी का तालमेल उन के परिवार में किसी से नहीं बैठा और अपनी हीनभावना की वजह से वह घर में सब से कटीकटी रहने लगी. उन के घर वालों की सामान्य सी छोटीछोटी बातों पर भी वह तूफान खड़ा कर देती. घर में सब से अलग अपने कमरे में ही बंद रहती. प्रकृति ने उसे जिंदगी बदलने का जो सुअवसर प्रदान किया था उस ने तो जैसे उस का लाभ न उठाने की कसम सी खा रखी थी. वह सारा समय अपने परिवार और ससुराल की मन ही मन तुलना करती रहती और अपनी ही कुंठाओं में घिरी रहती. अपने पति की तरक्की की भी तुलना जब वह अपने भाइयों से करती तो भी उसे जलन होती. ऐसे समय में वह यह भी भूल जाती कि उस के पति ने यह नौकरी और तरक्की अपनी मेहनत और बुद्धिमानी से पाई है जबकि उस के दोनों भाई आवारा हैं जो सारा दिन इधरउधर घूमफिर कर समय बरबाद करते हैं.
उन्होंने एकदो बार पल्लवी के भाइयों की कुछ आर्थिक मदद भी की ताकि वे किसी रोजगार में लग जाएं और पल्लवी की कुंठाओं व असुरक्षा की भावना को कुछ विराम लग जाए. पर बिना मेहनत के मिला हुआ पैसा उन की जिंदगी नहीं बदल पाया और थोड़े ही दिनों में उन की आवारागर्दी में उड़ गया. फिर एकदो जगह उन्होंने सिफारिश कर के उन की नौकरी लगवा दी. बड़े को तो शीघ्र ही चोरी के इल्जाम में नौकरी से निकाल दिया गया और छोटा 2 ही महीनों में मेहनत की नौकरी न कर पाने की वजह से खुद ही नौकरी छोड़ कर चला आया.
जिंदगी किसी तरह चल रही थी. पल्लवी का अपने पिता के यहां आनाजाना चलता रहा. उन्होंने नोट किया कि पल्लवी जब भी अपने घर जाती, कोई न कोई जेवर या पर्स खो कर ही लौटती थी. वे यह समझ तो गए कि वे जेवर या पर्स खोए नहीं थे बल्कि पल्लवी जानबूझ कर उन्हें अपने पिता व भाइयों को दे आती थी. घर में आएदिन के क्लेश से परेशान उन्होंने इस बात को भी नजरअंदाज कर देना ही उचित समझा. इसी बीच, उन की जौब बदल जाने की वजह से वे गुड़गांव जा कर जौब करने लगे एवं उन की मां और दोनों बहनें वहीं रतलाम में नौकरी करती रहीं. गुड़गांव में मकानों के बढ़ते किराए को देखते हुए उन्होंने शीघ्र ही रतलाम वाला अपना एक मकान बेच कर गुड़गांव में एक फ्लैट खरीद लिया. पल्लवी की असुरक्षा की भावना को देखते हुए उस मकान की रजिस्ट्री पल्लवी के नाम ही कराई गई. गुड़गांव में रहते हुए इसी फ्लैट में ही उन की बेटी श्रेया का जन्म हुआ. पल्लवी के स्वभाव में श्रेया के जन्म के बाद भी कोई परिवर्तन नहीं आया.