एक वकील कमलेश वासवानी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में उत्तर देते हुए निर्णय से पहले ही नरेंद्र मोदी की सरकार ने 857 वैबसाइटों को बंद करवा कर अश्लील सामग्री पर चाहे पूरा प्रतिबंध लगाया हो या न हो, अपने लिए अपने मतलब के वैबसंचार पर पहरेदार नियुक्त करने का रास्ता खोल लिया है. जब भी जो सरकार किसी तरह का नियंत्रण थोपना चाहती है तो वह नैतिकता, स?चरित्रता, विकास की बात करती है जैसे इंदिरा गांधी ने 1975 में आपात स्थिति घोषित करते हुए की थी कि वे अनुशासन काल ला रही हैं, देश को विघटन व विनाश से बचा रही हैं. भजभज मंडली इस याचिका से खुश है हालांकि यह 2013 में मोदी सरकार से पहले सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की गई थी. सरकार स्वयं बहुत सी पुस्तकों, फिल्मों, मंचित नाटकों, पेंटिंगों पर प्रतिबंध लगाना चाहती है और इस प्रकार पौर्न साइटों का बहाना बना कर बहुतकुछ किया जा सकता है. पौर्न फिल्में मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुरी हैं या नहीं, यह अब तक साबित नहीं हो पाया है. दुनिया के जिन देशों में इन पर न के बराबर नियंत्रण है वहां भी अपराध होते हैं और इसलामी देशों में जहां पूर्ण प्रतिबंध हैं, वहां भी सैक्स अपराध उतने ही, बल्कि उस से ज्यादा होते हैं. पौर्न फिल्मों के निर्माण में कोई जोरजबरदस्ती होती है, इस के प्रमाण कहीं नहीं मिलते. उस से ज्यादा जोरजबरदस्ती तो वेश्यावृत्ति में होती है जिस में लड़कियों को अगवा कर के देहव्यापार में झोंक दिया जाता है.पौर्न सदियों से चला आ रहा है. लगभग सभी धर्मग्रंथों में यौन क्रिया का खुला विवरण है और कई में तो अति विस्तृत विवरण है. धर्म के दुकानदारों ने प्रौढ़ व वृद्ध औरतों को पटाने के नाम पर युवा औरतों पर पाबंदियां भले लगा दी हों पर वे भी औरत के शरीर के दुरुपयोग को रुकवा नहीं पाए. यौन संबंधों को परदे में रखने के कारण पौर्न एक व्यापार बन गया और इंटरनैट की तो जान ही यह है. जो पैसा इंटरनैट को पौर्न के कारण मिलता है, न मिले तो इंटरनैट शायद उसी तरह ठप हो जाए जैसे आज पुस्तक व्यापार ठप हो रहा है क्योंकि उस का पौर्न हिस्सा इंटरनैट खा गया.
मोदी सरकार ने जल्दबाजी में अपने दूर के लक्ष्य के कारण फैसला लिया है पर इस से उस ने विचारों व व्यक्तिक स्वतंत्रता के सवाल खड़े कर दिए हैं. बंद कमरों में लोग क्या पढ़ें, क्या सुनें, क्या देखें, यह फैसला सरकार ले, यह मान्य नहीं हो सकता, कम से कम लोकतंत्र में तो नहीं. हां, इसे छद्म धर्मतंत्र बनाना हो, जैसा विश्व हिंदू परिषद कहती रहती है, तो बात दूसरी.