मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक परेशानी या झंझट से मुक्त होकर चैन की सांस और नींद भी नहीं ले पाते कि तुरंत दूसरी आफत आ खड़ी होती है. उनकी नई परेशानी का नाम मेधा पाटकर जो किसी पहचान का मोहताज नहीं जिनके मोहताज अब शिवराज सिंह होते नजर आ रहे हैं. नर्मदा बचाओ आंदोलन की मुखिया मशहूर समाज सेविका मेधा पाटकर निमाड अंचल के बड़बानी जिले के गांव चिखल्दा में अब से 12 दिन पहले आमरण अनशन पर बैठी थीं पर लगातार गिरते सेहत से वे अब बैठ भी नहीं पा रहीं थीं इसलिए लगभग अचेतावस्था में जमीन पर दरी बिछाकर लेटी रहीं. उन्हें ऐसी ही हालत में पुलिस गिरफ्तार कर ले गई.
मुख्य मुद्दा विस्थापितों के पुनर्वास का है जिसे सरकार बेहद हल्के में लेकर टरकाने की नाकाम कोशिश कर रही है. मेधा के साथ अनशन पर नर्मदा बचाओ आंदोलन के 11 और कार्यकर्ताओं के अलावा सैकड़ों ग्रामीण सरकार की तरफ से किसी अच्छी खबर की आस लिए बैठे हैं. जिद्दी मेधा अब कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं तो नर्मदा घाटी के हालात भी विस्फोटक होते नजर आ रहे हैं. लड़ाई आंकड़ो के अलावा सरकार की मनमानी की भी है.
नर्मदा विवाद किसी गोरखधंधे से कम नहीं, नर्मदा किनारे सरदार सरोवर बांध साल 2006 में बनकर तैयार हुआ था जिसकी ऊंचाई तब 125.92 मीटर थी. इस बांध के बनने से कोई 3 लाख 20 हजार लोग बेघर और विस्थापित हो गए थे इनमें से 95 फीसदी आदिवासी समुदाय के थे. सरदार सरोवर बांध का उदघाटन गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 दिसंबर 2006 में किया था. मेधा पाटकर और दूसरे कई समाजसेवी और बाबा आमटे सरीखे पर्यावरणविद इस बांध का विरोध करते रहे हैं. यह लड़ाई असाधारण इस लिहाज से रही कि आंदोलनकारियों के अदालत में जाने से एक वक्त में वर्ल्ड बेंक ने भी इस से हाथ खींच लिए थे.
मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में है लेकिन विवाद नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद और बढ़ा जिन्होंने इस मानव भक्षी बांध की ऊंचाई 17 मीटर और बढ़ाए जाने की इजाजत दे दी. पहले ही लाखों लोग बेघर होकर दर दर की ठोकरें खा रहे थे पर अपने गृह प्रदेश को फायदा पहुंचाने की गरज से नरेंद्र मोदी ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की अनदेखी की तो मेधा पाटकर फिर उग्र हो उठीं और अनशन की चेतावनी भी उन्होंने दी जिस पर पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकारों की तरह भाजपा सरकारों ने भी कभी तटस्थ तो कभी दमन कारी रवैया अपनाया.
इस बार मेधा के अनशन पर बैठते ही प्रशासन ने बड़ी मासूमियत से गिनाया और बताया कि अब सिर्फ 1700 परिवारों का ही पुनर्वास होना बाकी है जबकि मेधा पाटकर के दावे के मुताबिक प्रभवितों की संख्या अभी भी हजारों में है. एनबीए यानि नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनुसार सरकार लगातार झूठ बोलकर गुमराह करती रही है. इसके पहले के पुनर्वासों में जमकर हुई धांधली, भ्रष्टाचार और दलाली किसी सबूत के मोहताज नहीं लेकिन ताजा संकट मेधा पाटकर के बिगड़ती सेहत और बढ़ते समर्थन का था. एक ट्वीट के जरिये शिवराज सिंह ने मेधा से अनशन खत्म करने की अपील की थी पर इस बार आर पार की लड़ाई के मूड में आ गई मेधा ने उन्हें झिड़क दिया था. इस पर सियासत का नया टोटका अपनाते शिवराज सिंह ने एक नामी संत भय्यू जी महाराज को मध्यस्थता की जिम्मेदारी सौंपते हुए एक सरकारी प्रतिनिधि मण्डल उनके साथ मेधा पाटकर को मनाने भेजा.
विस्थापन और पुनर्वास की समस्या एक हद तक राजनैतिक भी है और सामाजिक भी है जिसका हल धार्मिक तौर पर निकालने की शिवराज सिंह की कोशिश भी काम नहीं आई उल्टे आंदोलनकारियों सहित ग्रामीण और गुस्से से भर उठे तो शिवराज सिंह को नहीं सूझा कि अब क्या करें. मेधा की गिरफ्तारी उन्हें सहूलियत भरा रास्ता लगा पर यह हल नहीं है. केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भी जज्बाती होकर मेधा को घेरने की कोशिश की थी परंतु बात बनी नहीं. अब सरकार की चिंता विस्थापित कम मेधा का बिगड़ता स्वास्थ ज्यादा था जो किसी भी तरह की चिकित्सीय सहायता नहीं ले रहीं थी इस पर आखिर सरकार ने वही किया जो आमतौर पर ऐसे हालातों में किया जाता है.
7 अगस्त को भारी पुलिस बल तैनात कर मेधा पाटकर को धरना स्थल से जबरन हटा दिया गया. इस पर गुस्साये आंदोलनकारियों ने एतराज जताया तो पुलिस ने उन पर डंडे भी बरसाए. अब एनबीए के कार्यकर्ता आगे की रणनीति बना रहे हैं लेकिन सरकार का दमनकारी चेहरा एक बार फिर उजागर हो गया है जो ऐसे आंदोलनो का मर्म न समझते उन्हें लाठी से दबाने की गलती कर उन्हें और हिंसक बनाने उकसाती है. मुख्य मंत्री शिवराज सिंह खुद चिखल्दा जाकर मेधा पाटकर से बात करते तो शायद कोई रास्ता निकलता लेकिन नर्मदा प्रेमी शिवराज सिंह ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है तो इसके नतीजे उनके और भाजपा के हक में तो कतई निकलने बाले नहीं.