तनु वेड्स मनु रिटर्न्स
मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री अब ऐसे बच्चों के हाथों में आ गई है जो न परिवार को जानतेसमझते हैं, न जिन्हें सामाजिक मुद्दों से कोई सरोकार है. हिंदीअंगरेजी की खिचड़ी में बढ़ी यह जमात कुछ क्षण हंसने वाली और 140 कैरेक्टर से ज्ञान लेने वाली है और आजकल इसी तरह की फिल्में बना रही है. बड़े बैनर तले बनी अच्छे सितारों के साथ ‘तनु वेड्स मनु’ में थोड़ीबहुत कहानी और सामान्य मध्यवर्ग की समस्याओं का आईना था, यहां उस के रिटर्न्स में यह आईना सरकारी टेढ़ेमेढ़े आईनों की तरह है जिन में किसी का अक्स नहीं दिखता. पूरी फिल्म में हर पात्र गलती करता चला जाता है और निर्मातानिर्देशक गलती को गलत न मानते हुए सामान्य मानता चलता है. विवाह टूटता है, पति पागलखाने में भेज दिया जाता है, पत्नी दूसरों पर डोरे डालने लगती है, पति उस की एक हमशक्ल महिला पर लट्टू हो जाता है, हमशक्ल बिना कारण प्रेम को स्वीकार कर लेती है, पत्नी पति के दूसरे विवाह में जबरन घुस जाती है आदि बेतुकी बातों को बढि़या ढंग से फिल्माया गया है. ऐसा लगता है कि पांचसितारा भव्य शादी में चमचम फोटो पर विवाह तोड़ने की नई आकर्षक दिखती रैसिपी परोस दी गई हो. मुबई फिल्म निर्माताओं ने मान लिया है कि उन्हें फिल्म और उस की बहनों टीवी, कंप्यूटर व मोबाइल स्क्रीनों को देखने वालों की मानसिक भूख से कोई लेनादेना नहीं है. वह तो मात्र बार डांसर है. शराब छलकाओ, ठुमके दिखाओ, 125 मिनट मन बहलाओ, बस. फिल्म में कंगना राणावत ने अपने दोनों रोलों में अच्छा अभिनय किया है पर फिल्म दी एंड होते ही दिमाग से बाहर हो जाती है. 4 साल पहले आई ‘तनु वेड्स मनु’ में कंगना राणावत की परफौर्मेंस दर्शकों को बहुत भाई थी. उस के बाद फिल्म ‘क्वीन’ में भी कंगना ने शीर्ष अभिनय किया और वह बौलीवुड की क्वीन बन गई.
हां, अगर यह सोच कर फिल्म बने कि फिल्म चाहे कैसी भी हो, उस की कहानी और उसे कहने का अंदाज ऐसा होना चाहिए कि दर्शक उस से खुद को जुड़ा महसूस कर सकें तो निर्माता सफल है. ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ की कहानी एकदम सीधी है, ‘पति, पत्नी और वो’ वाली कहानी है कि हर कोई एकदूसरे को खाने को तैयार लगता है. यह फिल्म कानपुर शहर के गलीमहल्लों और उन में रहने वाले किरदारों का बारीकी से चित्रण करती है.
फिल्म की कहानी पिछली फिल्म से आगे बढ़ती दिखाई गई है. तनु उर्फ तनूजा त्रिवेदी (कंगना राणावत) की शादी लंदन बेस्ड डाक्टर मनु उर्फ मनोज शर्मा से हो चुकी है. शादी को 4 साल हो गए हैं. अब उन दोनों के बीच नोकझोंक शुरू हो चुकी है. बात तलाक तक पहुंच चुकी है. दोनों की काउंसलिंग होती है. काउंसलिंग के वक्त मनु एग्रैसिव हो जाता है. उसे पागलखाने भेज दिया जाता है. तनु अपने घर कानपुर लौट आती है. उधर मनु का दोस्त पप्पी (दीपक डोबरियाल) मनु को पागलखाने से छुड़ा कर वापस कानपुर ले आता है. तनु के घर में रह रहा एक किराएदार (मोहम्मद जीशान अयूब) पेशे से वकील है. वह तनु की तरफ से मनु को तलाक का नोटिस भेजता है. उधर मनु को दिल्ली जाना पड़ता है. वहां उस की मुलाकात हरियाणा के झज्जर जिले की ऐथलीट कुसुम उर्फ दत्तो (कंगना की दूसरी भूमिका) से होती है. कुसुम की शक्ल तनु से मिलतीजुलती है. मनु को उस से प्यार हो जाता है. परिस्थितियां इस प्रकार घटती हैं कि तनु की मुलाकात अपने पुराने प्रेमी राजा अवस्थी (जिमी शेरगिल) से होती है. वह तनु को बताता है कि उस का पति मनु कुसुम से प्यार की पींगें बढ़ा रहा है और वह उस की और कुसुम की शादी में बहुत बड़ा रोड़ा बना हुआ है. तनु राजा के साथ कुसुम के घर पहुंच जाती है जहां मनु और कुसुम की शादी की तैयारियां हो रही होती हैं. वह अपने पति की शादी में जम कर नाचती है लेकिन उस के अंदर टीस भी है. आखिरकार ऐन फेरों के वक्त मनु अपना फैसला बदल लेता है और फिर से तनु को अपना लेता है. फिल्म की यह कहानी और इस की पटकथा काफी सिरफिरी है. पर फिल्म का निर्देशन अच्छा है. पूरी फिल्म कंगना के कंधों पर है और उस ने इसे बखूबी संभाला है. आर माधवन ने एक पति और प्रेमी दोनों भूमिकाओं को बखूबी निभाया है. परदे पर पप्पी (दीपक डोबरियाल) अच्छा लगा है. राजा अवस्थी की भूमिका में जिमी शेरगिल का काम भी अच्छा है. फिल्म के संवाद अच्छे हैं. ‘मैं कोई संतरा हूं कि रस भर जाएगा’ और ‘पिछली बार भैयादूज पर सैक्स किया था’ जैसे संवाद गुदगुदाते हैं. पप्पी की प्रेमिका की शादी में पप्पी, मनु और कुसुम का जाना और वहां से पप्पी की प्रेमिका को उठा लाने वाला प्रसंग ठहाके लगाने के लिए रखा गया है. फिल्म का गीतसंगीत अच्छा है. कोई भी गीत ठूंसा गया नहीं लगता. फिल्म का छायांकन काफी अच्छा है.
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बौंबे वेलवेट
इस साल की सब से महंगी (लगभग 120 करोड़ रुपए) फिल्म ‘बौंबे वेलवेट’ का बुरा हश्र हुआ है. शुरू के 3 दिनों में ही दर्शक थिएटरों से गायब रहे. फिल्म का इतना बुरा हाल होगा, यह किसी ने सोचा न था. इस की सब से बड़ी वजह फिल्म की कहानी बताने का खराब तरीका रही. फिल्म का म्यूजिक भी दर्शकों को नहीं जमा. दर्शक फिल्म से जुड़ नहीं पाए. फिल्म फटा वेलवेट खाली वालेट बन कर रह गई. गुजरे जमाने को हूबहू परदे पर दिखाना आसान काम नहीं होता. पूरे के पूरे शहर को पुराने जमाने जैसा बनाया जाता है. शहर में चलने वाली कारें, साइकिलें, दुकानें भी वैसी ही दिखाई जाती हैं. पात्रों के कौस्ट्यूम्स, उन की बौडी लैंग्वेज को भी ठीक वैसा ही दिखाया जाता है. अनुराग कश्यप की फिल्म ‘बौंबे वेलवेट’ में 60 के दशक की मुंबई को दिखाया गया है. निर्देशक ने मुंबई को 60 के दशक जैसा दिखाने के लिए श्रीलंका में बाकायदा एक सैट बनवाया. उस वक्त शहर में चल रही ट्रामों को दिखाने के लिए उस ने उस सैट पर पटरियां बिछवाईं और ट्राम चलवाई है. विंटेज कारों को जमा कर शहर में उन्हें चलता हुआ दिखाया है. होटल में इस्तेमाल होने वाली कटलरी पर ‘बीवी’ लिखा है. इस सब पर अनुराग कश्यप ने काफी मेहनत की है. कलात्मकता की दृष्टि से फिल्म कुछ अच्छी है परंतु मनोरंजन की दृष्टि से फिल्म काफी कमजोर है.
अनुराग कश्यप की यह फिल्म इतिहासकार ज्ञान प्रकाश की पुस्तक ‘मुंबई फेबल्स’ से प्रेरित है. कहानी भारतपाक विभाजन के दौर की है. जौनी बलराज (रणबीर कपूर) अमीर बनने का ख्वाब लिए अपनी मां के साथ बौंबे आता है. वह एक बिजनैसमैन कैजाद खंबाब (करन जौहर) के बौंबे वेलवेट क्लब में मैनेजर बन जाता है. रोजी (अनुष्का शर्मा) उसी क्लब में जैज सिंगर है. बलराज को रोजी से प्यार हो जाता है. कैजाद अपराध की दुनिया का बादशाह है. उस की नजर सरकार की उस प्लानिंग पर है जिस में मुंबई को देश को बड़ा बिजनैस हब बनाने की योजना है. इस के लिए वह एक मिनिस्टर को ब्लैकमेल करता है. वह अपनी प्लानिंग को पूरा करने के लिए जौनी बलराज को इस्तेमाल करता है. लेकिन जब बलराज उस के काबू में नहीं आता तो वह उस की प्रेमिका रोजी को मरवा देना चाहता है. परंतु जौनी उस की यह मंशा पूरी नहीं होने देता. वह कैजाद को मार डालना चाहता है परंतु कैजाद और मंत्री के आदमी जौनी बलराज और रोजी दोनों को मार डालते हैं. फिल्म दुखांत है. नायकनायिका दोनों को अंत में मार डाला जाता है. फिल्म की गति बहुत धीमी है. अनुराग कश्यप ने हालांकि 60 के दशक के शहर की हर छोटीछोटी बात पर ध्यान दिया है लेकिन उस का कहानी कहने का ढंग निराशाजनक है. फिल्म में ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ जैसी मारधाड़ व गोलीबारी भी है, मगर वह प्रभावित नहीं कर पाती. रणबीर कपूर की ऐक्ंिटग देख कर युवाओं को मजा नहीं आएगा. रोजी के किरदार में अनुष्का जंची है. करन जौहर को खलनायक की भूमिका में देख कर दिवंगत प्राण की याद ताजा हो आई. केके मेनन का काम भी अच्छा है. फिल्म का गीतसंगीत 60 के दशक जैसा ही है. सैट अच्छे हैं. छायांकन खूबसूरत है.
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कुछ कुछ लोचा है
सनी लियोनी के जिस्म को दिखाती फिल्म ‘कुछ कुछ लोचा है’ में बहुत से लोचे हैं. निर्देशक ने पूरी फिल्म में सनी लियोनी और इवलिन शर्मा को बिकिनी पहना कर दर्शकों का ध्यान उन दोनों पर केंद्रित करने की कोशिश की है. फिल्म का लोचा नं. 1, फिल्म की कहानी कमजोर है. लोचा नं. 2, फिल्म का निर्देशन कमजोर है. लोचा नं. 3, फिल्म का नायक राम कपूर बिलकुल अच्छा नहीं लगता. लोचा नं. 4, फिल्म में द्विअर्थी संवाद और घटिया जोक्स हैं. लोचा नं. 5, सनी लियोनी ऐक्ंिटग में जीरो, सैक्सी अदाएं दिखाने में ही लगी रही है. उस की डायलौग डिलिवरी भी कमजोर है. फिल्म में डबिंग दोष भी साफ नजर आता है.
अभी पिछले दिनों सनी लियोनी की ‘लैला : एक पहेली’ रिलीज हुई है, जिस में सनी ने खुल कर अंग प्रदर्शन किया. यह फिल्म भी उसी स्तर की है. अग्रिम पंक्ति के दर्शक सनी लियोनी और इवलिन शर्मा के क्लीवेज देख कर भले ही खुश हो जाएं लेकिन फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जो दर्शकों को अपनी ओर खींच सके. कहानी एक गुजराती बिजनैसमैन प्रवीन पटेल (राम कपूर) की है. वह लगभग 50 साल का है. उस की पत्नी पारंपरिक महिला है और धर्मकर्म में लगी रहती है. बेटा जिगर (नवदीप छाबड़ा) पड़ोस में रहने वाली एक लड़की नैना (एवलिन शर्मा) से प्यार करता है. प्रवीन पटेल बौलीवुड ऐक्ट्रैस शनाया (सनी लियोनी) की ओर आकर्षित हो जाता है. वह एक कौंटैस्ट जीत कर शनाया से मिलने जाता है. जाने से पहले वह अपनी पत्नी को कोई बहाना बना कर मायके भेज देता है. कहानी में ट्विस्ट उस वक्त आता है जब प्रवीण पटेल को शनाया के साथ अधिक से अधिक वक्त गुजारने के लिए अपने बेटे जिगर से अपने बाप की ऐक्ंिटग करने को कहना पड़ता है. नैना को उस की मां बनना पड़ता है. यहीं से प्रवीन पटेल की लाइफ में परेशानियां शुरू होने लगती हैं. अंत में शनाया उसे सबक सिखा कर छोड़ जाती है. यह फिल्म कुछकुछ सैक्स कौमेडी जैसी है. राम कपूर टीवी पर तो अच्छा लगता है परंतु इस फिल्म में उस ने निराश किया है. इवलिन शर्मा तो बदन दिखाने में सनी लियोनी से होड़ लगाती दिखी.फिल्म के संवाद चालू हैं. संवादों में गुजरातीपन झलकता है. गीतसंगीत साधारण है. पहला गाना पानी में लोटपोट करती हुई कई सुंदरियों पर फिल्माया गया है जो काफी हौट है. छायांकन अच्छा है.