संयुक्त राष्ट्र की संस्था अंतर्राष्ट्रीय टैलीकम्युनिकेशन यूनियन आईटीयू की एक रिपोर्ट में अनुमान जाहिर किया गया है कि साल के आखिर तक 3.2 अरब से ज्यादा लोग औनलाइन हो जाएंगे, जबकि दुनिया की जनसंख्या फिलहाल 7.2 अरब है. साफ है कि दुनिया की लगभग आधी आबादी सूचना और तकनीक के संक्रमण से गुजर रही है. अगर विश्व की जनसंख्या से नवजात शिशुओं, बुजुर्गों और शारीरिक तौर पर अक्षमों की संख्या हटा दी जाए तो कहना कतई गलत नहीं होगा कि पूरी दुनिया ही इंटरनैट और डिजिटल युग में खो चुकी है. वर्चुअल वर्ल्ड में गोता लगाती इस दुनिया को जरा भी भान नहीं है कि सूचना और तकनीक की ओवरडोज किस तरह तन और मन को अवसाद, तनाव व मानसिक व्याधियों के घेरे में घेर चुकी है. मौजूदा दौर में अगर अपने आसपास के सूचना और तकनीक से घिरे किसी कामकाजी व्यक्ति की दिनचर्या पर बारीकी से गौर फरमाएं तो उस का दिन कुछ यों बीतता है :

सुबह उठते ही सोशल मीडिया यानी फेसबुक, वाट्सऐप, इंस्टाग्राम, टंबलर या ट्विटर पर अपने स्टेटस में गुड मौर्निंग या हैविंग कौफी नाऊ अपडेट कर औफिस जाने की तैयारी होती और नाश्ते की टेबल पर नाश्ते से ज्यादा ध्यान उस टैबलेट या आइपैड पर होता है जिस में ई न्यूज या इंटरटेनमैंट की मुफ्त खुराक परोसी जा रही होती है.

घर से दफ्तर की राह में कानों में इयरफोन लग जाता है. तमाम रास्ते यूट्यूब के वीडियो या आईट्यूंस पर गाने सुनते हुए दफ्तर तक का सफर पूरा होता है.

दफ्तर में दाखिल होते ही पहला काम पीसी यानी कंप्यूटर को स्टार्ट करना होता है. जहां काम की फाइलें जमा करने के साथ सोशल मीडिया की हलचल पर नजर डालने से ले कर जीमेलिंग का खेल शुरू हो जाता है. इसी सूचना और तकनीक की गोद में बैठेबैठे दोचार प्रैजेंटेशन निबटा दिए जाते हैं.

लंचबे्रक होते ही स्मार्ट फोन अपनी स्मार्टनैस दिखाने लगता है. वाट्सऐप चालू हो जाता है और जीभर कर गौसिप, बौस को ले कर बनाए नए जोक्स और वेजनौनवेज चुटकुलों की साझेदारी होने लगती है. इस बीच दोचार फोन भी खटखटा लिए जाते हैं. लंचबे्रक के बाद नजरें फिर कंप्यूटर स्क्रीन पर शाम तक के लिए गड़ जाती हैं.

फ्तर बंद होता है और एक बार फिर स्मार्ट फोन की बैटरी फुल हो जाती है, जिस पर फिर से फेसबुक पर उंगलियां रेंगने लगती हैं. घर पहुंचने तक यह सिलसिला चलता रहता है.

घर पहुंच कर नातेरिश्तेदारों को कौन्फ्रैंस कौल में ले कर या वीडियो चैट लिए लैपटौप की खिड़की खुल जाती है. और जब तक यह खिड़की बंद होती है तब तक सोतेसोते गुडनाइट या स्वीटड्रीम के आखिरी स्टेटस के साथ दिनचर्या खत्म होती है. अगली सुबह फिर वही कहानी चलती है. इस बीच कई लोग ब्लौगिंगश्लौगिंग भी करते हैं. कमोबेश, यही हाल स्कूलकालेज जाते छात्रों और अन्य युवाओं का है.

पहलेपहल आकर्षक सी लगने वाली यह डिजिटल दिनचर्या इतनी सीधी नहीं जितनी दिखती है, बल्कि यह भविष्य के गर्भ में सब के लिए घातक बीज बो रही है. आज के दौर में सब का मन और तन सूचना तकनीक की गिरफ्त में आ चुका है. उस के होने वाले खतरों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चीन में इंटरनैट एडिक्ट के लिए ट्रीटमैंट कैंप चलते हैं. यानी वर्चुअल दुनिया में व्यस्त हो चुके लोग अब मानसिक तौर पर बीमार हो रहे हैं, जिन के इलाज के लिए नएनए कैंप खुल रहे हैं. ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है. भारत का हाल भी कुछ अच्छा नहीं है. दुनियाभर के देशों में इंटरनैट की लत से लोगों को निकालने के लिए स्पैशलिस्ट सैंटर्स होते हैं, वैसे ही भारत में भी खुलने शुरू हो चुके हैं. दिल्ली के एक एनजीओ ‘सैंटर फौर चिल्ड्रैन इन इंटरनैट ऐंड टैक्नोलौजी डिस्ट्रैस’ इंटरनैट की लत से पीडि़त बच्चों की काउंसिलिंग करता है.

यह एनजीओ वर्कशौप, काउंसिलिंग सैशन आदि आयोजित कराता है, जिस में बच्चे अपनी बात कह सकते हैं. बच्चों को साथ बैठा कर इंडोरगेम्स खिलाए जाते हैं. उन्हें इंटरनैट से दूर रखने की कोशिश की जाती है. हताशा का आलम यह है कि दुनियाभर के रिसर्चर्स में यह बहस अभी भी चल रही है कि इंटरनैट एडिक्शन को मैंटल डिसऔर्डर की लिस्ट में रखा जाए या नहीं. यानी सूचना और तकनीक की यह दुनिया आप के तन को न सिर्फ बीमार कर रही है बल्कि मन को पागलपन की हद तक ले जाने पर आमादा भी है. आज युवा पीढ़ी मोबाइल और इंटरनैट के जरिए नैटवर्किंग से निरंतर जुड़े हुए हैं. इस से दैनिक जीवन में व्यस्तता आशातीत रूप से बढ़ गई जो अपनेआप में तनाव का एक बड़ा कारण है. सोचने वाली बात यह है कि इंटरनैट की जिस मैली गंगा में पूरी दुनिया डुबकियां लगाने को बेताब दिखती है वहां काम की जानकारी मिले न मिले मन को भटकाने, बीमार करने वाले तत्त्व बेतहाशा मौजूद हैं. मसलन, 37 प्रतिशत वैब में पौर्न भरा है जबकि 30 हजार वैबसाइट्स रोज हैक होती हैं. इतना ही नहीं, शांति और सुकून के लिए माकूल माने जाने वाले माउंट एवरेस्ट तक हाईस्पीड इंटरनैट की पहुंच हो चुकी है. आलम यह है कि इंटरनैट ट्रैफिक में इंसानों से ज्यादा गूगल बोट और मालवेयर रहते हैं. रोज तकरीबन 1 लाख नए डौट कौम डोमैन रजिस्टर होते हैं. और तो और, चीन में पीसी से ज्यादा मोबाइल इंटरनैट यूजर हैं. ये तमाम आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि आज के दौर में सूचना और तकनीक के माध्यम बुरी तरह से अपनी जड़ें लोगों के तन और मन में जमा चुके हैं.

व्यक्तिगत इस्तेमाल के अलावा समाज को भी सूचना और तकनीक के डंक ने बुरी तरह से घायल किया है. इस की बानगी तब देखने को मिली जब सोशल मीडिया में उड़ी अफवाहों के चलते पूर्वोत्तर के लोग अपनेअपने राज्यों और घरों को भागने पर मजबूर हो गए थे. दंगों तक की नौबत आ गई थी. सूचना तकनीक के क्षेत्र में इन्फौर्मेशन यानी सूचना का अतिशयोक्ति बन कर लोगों के मन में घर होना या राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनना दीपिका पादुकोण के माई चौइस वीडियो, एआईबी रोस्ट या ऐसे ही किसी सनसनीखेज वीडियो के वायरल होने के दौरान देखा जाता है. इस दौरान हर कोई अपना जरूरी काम छोड़ कर मन और तन के साथ इन्हीं सूचनाओं को शेयर करने, कमैंट करने या बहस करने में व्यस्त दिखता है. मन को विक्षिप्त करने वाले डिजिटल वर्ल्ड में गैरसामाजिक व अश्लील सामग्री भी भरी पड़ी है. कुंठित मानसिकता से ग्रस्त लोग जो अश्लील वीडियो, रेप की घटना से संबंधित वीडियो को चटकारे ले कर शेयर करते हैं या फिर पौर्न कंटैंट, एमएमएस अपलोड करते हैं, वे युवाओं तक पहुंच कर उन के मन में सिवा गंदगी के और कुछ नहीं भरते.

इसी कड़ी से बिगड़े युवा साइबर क्राइम की चपेट में उलझते जाते हैं जहां वैबसाइट हैक करना या फिर इंटरनैट पर ठगी जैसी वारदातें सामने आती हैं. सैकड़ों युवा तो औनलाइन संसार में आशिकी के चक्कर में सिर्फ धोखा ही खाते हैं. कोई फर्जी आईडी बना कर फेसबुकिया प्यार में इन्हें उलझा कर इन का तन, मन और धन सब लूट लेता है तो कोई इस सूचना तकनीक का दुरुपयोग कर आतंकी वारदातों को अंजाम देने से नहीं चूकता. तन और मन को घेरती सूचना और तकनीक के इन पहलुओं को आइए जरा विस्तार से समझते हैं.

मशीन पढ़ लेगी मन को

कुछ वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उन्होंने 1 साल पहले ऐसी मशीन बना ली है जिस के जरिए किसी के जटिल से जटिल मन की बात को पढ़ पाना संभव होगा. और इस मशीन के जरिए पकड़े गए अपराधियों व आतंकवादियों के मन को पढ़ पाने में सफलता मिलेगी. यही नहीं आतंकी वारदात को अंजाम देने में या आतंकियों को अपने मकसद में कामयाब होने से रोका जा सकेगा, क्योंकि यह मशीन अपराधी प्रवृत्ति के लोगों के मन का खाका बना देती है. न्यूरल इंजीनियरिंग पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया था कि ब्रौडली गे्रग के नेतृत्व में वैज्ञानिकों का एक दल मस्तिष्क द्वारा दिए गए संकेतों को शब्दों में रूपांतरित करने की दिशा में काफी समय से लगा हुआ था, हालांकि उन का मकसद अपराधियों या आतंकियों के मन को पढ़ना नहीं था.दरअसल, इन वैज्ञानिकों ने पक्षाघात के मरीजों, जो बोल पाने या समझ पाने में अक्षम होते हैं, को ध्यान में रख कर इस पर काम शुरू किया था, ताकि उन के मन की बात को समझने में सहूलियत हो. ब्रौडली गे्रग और उन के सहयोगी वैज्ञानिकों  ने अपना ध्यान मस्तिष्क के उस हिस्से पर केंद्रित किया जिस हिस्से में शब्दों का गठन होता है.

वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के उस हिस्से में एक बटननुमा यंत्र लगाया. यह बटन पहले मन से संकेतों को प्राप्त करता है. फिर उन का विश्लेषण कर के उन्हें कंप्यूटर पर भेज देता है. इन संकेतों और इन के विश्लेषणों को कंप्यूटर संरक्षित कर लेता है. बाद में कंप्यूटर अपने तथ्य भंडार से उन संकेतों का मिलान कर सूचित करता है कि मरीज के मन में क्या चल रहा है. रोजेनफील्ड का मानना था कि अगर यह मशीन पहले बन गई होती तो 9/11 जैसी वारदात को रोका जा सकता था. कुछ साल पहले यह मशीन अखबारों की सुर्खियां बनी थी ‘झूठ पकड़ने वाली मशीन’ के नाम से. आम भाषा में यह ‘लाई डिटैक्टर मशीन’ कहलाई.

लेकिन पौलीग्राफ टैस्ट की विश्वसनीयता को ले कर हमेशा से ही सवाल उठाए जाते रहे हैं और अब भी उठ रहे हैं. इस कारण ऐसे टैस्ट के नतीजे को ले कर दुनियाभर में कई शोध हुए और आज भी हो रहे हैं. अब तक के शोध का नतीजा यही सामने आया है कि इस पर पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता. लोगों के दिलोदिमाग में घुसपैठ करती सूचना तकनीक जबतब प्रयोगों के दौर से गुजरती रहती है. ज्यादातर मामलों में तकनीक के साइडइफैक्ट इस की उपयोगिता पर भारी पड़ जाते हैं. लिहाजा, अभी हमें इस के नुकसानों से बच कर इसे नियंत्रित करना होगा, वरना इस की मनमरजी हित में नहीं है.

छलावा है फेसबुकिया प्यार

पटना के रहने वाले युवक मनीष और मुंबई में रहने वाली नाबालिग लड़की रीना की दोस्ती फेसबुक के जरिए हुई. चैटिंग होतेहोते फेसबुकिया दोस्ती मुहब्बत में तबदील हो गई. दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर लिया और बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. 6 महीने तक यह सिलसिला चलता रहा. उस के बाद दोनों ने एकदूसरे से फेस टू फेस मिलने का मन बनाया. मनीष रीना से मिलने मुंबई जा पहुंचा. उस के बाद कुछ दिनों तक दोनों के बीच प्यार की गुटरगूं चलती रही और फिर रीना अपने घरवालों को बताए बगैर चुपके से मनीष के साथ पटना चली आई. 4 फरवरी को 14 साल की रीना घर से भागी तो उस के पिता ने अपने स्तर से काफी छानबीन की. रीना का पता नहीं चला. 6 फरवरी को उस के पिता ने मुंबई के कांपली थाना में एफआईआर दर्ज कराई. पुलिस ने रीना के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर डाल दिया. कुछ ही समय के बाद पुलिस को उस का नंबर पटना के बुद्धा कालोनी थाना के आसपास का मिला.

मुंबई पुलिस की टीम पटना पहुंची और रीना को बुद्धा कालोनी के हौस्पीटो इंडिया जांचघर के पास से बरामद कर लिया. पुलिस को देख कर मनीष भागने में कामयाब हो गया. फेसबुक के जरिए दोस्ती गांठने के बाद चैटिंग की शुरुआत होती है और फिर प्यार की पींगें बढ़ने लगती हैं. उस के बाद लड़का और लड़की नई दुनिया बसाने का सपना लिए घर से फरार हो जाते हैं. समाजविज्ञानी हेमंत राव बताते हैं कि फेसबुक का प्यार रेगिस्तान में पानी की धारा होने का भ्रम पैदा करने की तरह ही है. इस छलावे में फंसने वाले को अकसर धोखा ही मिला है. फरेबी बातों के जाल में फंस कर लड़के व लड़कियां अपनी जिंदगी बरबाद कर रहे हैं और अपने परिवार वालों के लिए परेशानियां खड़ी कर रहे हैं.

फेसबुकिया प्रेम के जाल में युवा ही नहीं, शादीशुदा लोग भी फंस रहे हैं. मगध विश्वविद्यालय, पटना के प्रोफैसर अरुण कुमार प्रसाद कहते हैं कि फेसबुक पर सैकड़ोंहजारों दोस्त बने होते हैं, जिन में से ज्यादातर लोगों के बारे में तो पता ही नहीं होता है. फेसबुक अकाउंट खोलने पर दर्जनों फ्रैंड रिक्वैस्ट आती हैं और लोग दोस्तों का आंकड़ा बढ़ाने के चक्कर में हर रिक्वैस्ट को स्वीकार कर लेते हैं. फेसबुक पर अकसर लड़कियां और लड़के एकदूसरे का फोटो व प्रोफाइल देख चैटिंग शुरू कर देते हैं. चैटिंग के जाल में जो फंसा, उस की जिंदगी में उथलपुथल होना तय है. कई लोग तो फेसबुक पर अपना फोटो लगाने के बजाय किसी दूसरे का या हीरोहीरोइनों के फोटो लगाते हैं. फर्जी फोटो के झांसे में लड़के और लड़कियां फंस जाते हैं और फिर पहले चैटिंग, उस के बाद लव और आखिरकार धोखा मिलता है.

पारिवारिक मामलों की वकील सीमा सहाय कहती हैं कि आज की भागमभाग जिंदगी में फेसबुक समेत कई सोशल वैबसाइटों ने अपने पांव जमा लिए हैं. युवा ही नहीं, अधेड़ और बुजुर्ग भी इस के मायाजाल में फंसे हुए हैं. फेसबुक के जरिए पनपने वाली मुहब्बत रेगिस्तान की मरीचिका ही साबित होती है. इस से जुड़े अपराध यही साबित करते हैं कि बच्चों और अभिभावकों के बीच तेजी से संवादहीनता बढ़ रही है. प्रोफैसर रीमा राय कहती हैं कि काम में व्यस्त मातापिता अपने बच्चों, उन के रवैयों, उन के दोस्तों, उन के हावभाव, उन की परेशानियों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं.

लड़कियों के नाम से अकाउंट

फेसबुक पर हजारोंलाखों अकाउंट फर्जी नाम और फोटो से बने हुए हैं. इन पर रोक लगाने के लिए फेसबुक समयसमय पर एहतियात बरतती रहती है. पर फर्जी अकाउंट पर रोक नहीं लग सकी है. पटना से सटे बिहटा इलाके का रंजय मिश्रा बताता है कि उस ने सुनीता कुमारी के नाम से फेसबुक पर फर्जी अकाउंट बना रखा है और फोटो किसी महिला मौडल की लगा दी है. वह लड़की बन कर करीब 4 लड़कों के साथ चैटिंग करता है और प्यार व सैक्स की बातें करता है. लड़के खूब मजे ले कर उस के साथ चैटिंग करते हैं. उस ने बताया कि एक दिन एक लड़के ने उस से मोबाइल नंबर मांगा और फोन पर बात करने को कहा. रंजय ने चैटबौक्स में लिखा कि उस के मोबाइल में बैलेंस नहीं है. लड़के ने उस का मोबाइल नंबर मांगा और तुरंत 200 रुपए का रिचार्ज करा दिया. उस के बाद रंजय लड़की की आवाज बना कर उस से बातें करने लगा. उस के बाद रंजय ने बाकी तीनों फेसबुक फ्रैंड के साथ भी यही नुस्खा आजमाया और अपने मोबाइल फोन को रिचार्ज कराया. रंजय बताता है कि उस के मोबाइल में हमेशा हजार दो हजार रुपए का बैलेंस रहता है. इस तरह के न जाने कितने फर्जी अकाउंट फेसबुक पर होंगे और न जाने कौन किस तरह से उस का बेजा इस्तेमाल कर रहा होगा.

मोबाइल नंबर देने से पहले

ऐंटीवायरस और कंटैंट सिक्योरिटी सौल्यूशन प्रदान करने वाले प्रमुख नाम ईस्कैन ने महिलाओं को अपना मोबाइल नंबर कहीं देने से पहले एक बार सोचने के लिए सावधान किया है. आज के डिजिटल युग में हमारे पास बेहद चर्चित क्रौस मोबाइल मैसेजिंग प्लेटफौर्म वाट्सऐप मौजूद है जिस के पास 700 मिलियन से अधिक उपयोगकर्ता हैं. पूरी दुनिया में लोग इस के जरिए 3 हजार करोड़ संदेश रोजाना भेजते हैं. फेसबुक द्वारा इस के अधिग्रहण के बाद भी इस मोबाइल मैसेजिंग सेवा का उपयोग बढ़ता ही जा रहा है और इस के उपयोगकर्ताओं की संख्या ट्विटर के 28.4 करोड़, इंस्टाग्राम के तकरीबन 30 करोड़ और खुद फेसबुक के कुल उपयोगकर्ताओं की संख्या से भी अधिक है.

इस लोकप्रियता ने विभिन्न प्रचार गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया है जो मुख्यरूप से वाट्सऐप उपयोगकर्ताओं को टारगेट करते हैं. वाट्सऐप बल्क मार्केटिंग सर्विस इस ऐप का इस्तेमाल करने वाले सैकड़ोंहजारों यूजर्स को बड़ी संख्या में वाट्सऐप टैक्स्ट/फोटो संदेश भेजने का वादा करती है. इस सर्विस को एक लोकप्रिय प्लेटफौर्म माना जाता है जो उपयोगकर्ताओं को एकदूसरे से संपर्क करने की सुविधा देता है. इस बात को ध्यान में रखते हुए अधिक से अधिक कंपनियां अपने टारगेट ग्राहक वर्ग तक पहुंचने के लिए इस सेवा को चुनने लगी हैं. लेकिन यहां एक महत्त्वपूर्ण सवाल है कि क्या वाट्सऐप उपयोगकर्ताओं की जानकारी बेचता है? जैन कुम, जिन्होंने ब्रायन एक्टन के साथ मिल कर वाट्सऐप की शुरुआत की, बताते हैं कि यह मैसेजिंग सेवा अपने उपयोगकर्ताओं की काफी कम जानकारी इकट्ठा करती है. यह मुफ्त ऐप उपयोगकर्ता का ईमेल पता नहीं पूछता और न ही इस के लिए कोई वास्तविक साइनअप की जरूरत होती है. अन्य दूसरी चीजें जो वाट्सऐप इकट्ठा नहीं करता है, वे हैं घर का पता, जीपीएस लोकेशन, आप की पसंद और सर्च हिस्ट्री.

सवाल है कि अगर खुद वाट्सऐप अपने उपयोगकर्ताओं की जानकारी इकट्ठा नहीं कर रहा है तो फिर ऐसी कंपनियों को मोबाइल नंबरों का डाटाबेस कहां से मिलता है जिस में लाखों वाट्सऐप उपयोगकर्ताओं के नंबर होते हैं?

इन परिस्थितियों में देते हैं नंबर

हम जरूरत से अधिक अपना मोबाइल नंबर बांटते हैं. जब भी हम कोई फौर्म भर रहे होते हैं तो अपना मोबाइल नंबर देने में नहीं हिचकिचाते, फिर चाहे यह कोई लकी ड्रा हो, एक साइनअप फौर्म हो, कौंटैस्ट एंट्री हो, वारंटी रजिस्ट्रेशन हो या फिर सोशल नैटवर्किंग प्रोफाइल के लिए हो. हम में से कई तो ईमेल के हस्ताक्षर में भी अपना मोबाइल नंबर देते हैं.

हम में से अधिकतर लोग ऐप इंस्टौल करते वक्त उपयोग की शर्तों को स्वीकार कर लेते हैं. मोबाइल उपभोक्ता ‘उपयोग की शर्तें’ पढ़े या समझे बिना ही उन्हें स्वीकार कर लेते हैं.

डेटिंग वैबसाइट्स पर मोबाइल नंबर भी खूब दिए जाते हैं. मोबाइल उपयोगकर्ता डेटिंग और रोमांस वैबसाइट्स पर साइनअप के दौरान आसानी से अपना मोबाइल नंबर दे देते हैं.

सोशल मीडिया साइट्स पर अपने नंबर देने से लोग हिचकिचाते नहीं. सोशल नैटवर्किंग साइट्स उपयोगकर्ताओं के फोन नंबर और ईमेल पते दर्शाती हैं. यह एक अन्य जरिया है जिस से कंपनियों को आप का मोबाइल नंबर हासिल होता है.  

प्रोडक्ट वारंटी कार्ड्स के चलते लोग अपने नंबर औनलाइन दे देते हैं. जब कोई उपभोक्ता किसी नए प्रोडक्ट को खरीदने के लिए औनलाइन रजिस्टर करता है, तो उसे अपना मोबाइल नंबर, नाम, पता और ईमेल दर्ज करना होता है, जिसे बाद में मार्केटिंग कंपनियों और डाटा कलैक्शन ब्रोकर्स को बेचे जाने की संभावना होती है.

यों बरतें सावधानी

कभी भी अपना फोन नंबर बताने के लिए जल्दबाजी न करें. हो सकता है कि सिर्फ आप के ईमेल ऐड्रैस से ही काम चल जाए.

किसी कौन्टैस्ट या लकी ड्रा में रजिस्टर करते वक्त सावधान रहें. वहां दी गई जानकारी और कौंटैस्ट के नियमों को ध्यान से पढ़ें.

वैबसाइट्स पर रजिस्टर करते वक्त सावधान रहें.

स्मार्टफोन पर कोई ऐप डाउनलोड करते वक्त, उस ऐप की प्राइवेसी पौलिसी पढ़ें और ऐप को इंस्टौल करने से पहले उस की सही जानकारी हासिल करें.

इंटरनैट ठगी से बचें

इंटरनैट के बढ़ते प्रचलन के साथ ही एक नए किस्म की ठगी की शुरुआत हुई है, यह है हैकिंग या इंटरनैट ठगी. हैकर्स कंप्यूटर सौफ्टवेयर के अति कुशल ज्ञाता होते हैं जो अति चतुराई से अनधिकृत रूप से कंपनियों, बैंकों या आम लोगों के कंप्यूटर सिस्टम में प्रविष्ट हो कर वहां से महत्त्वपूर्ण जानकारियां चुरा लेते हैं जिन से वे नाजायज लाभ उठाते हैं. इंटरनैट ठग सर्वप्रथम औनलाइन बैंकिंग सुविधा का इस्तेमाल करने वाले व्यक्तियों के औनलाइन बैंकिंग पासवर्ड चुराते हैं. ये पासवर्ड वे गुप्त कोड होते हैं जिन के जरिए किसी भी बैंक खाताधारी के खाते में से पैसे निकाले जा सकते हैं. पासवर्ड चुराने की प्रक्रिया को फिशिंग के नाम से जाना जाता है. जिस तरह एक चतुर मछुआरा पानी में तैरती हुई मछलियों को अपने जाल में फांस लेता है उसी तरह शातिर हैकर्स बड़ी सफाई से इंटरनैट में ट्रांसमिट होते हुए औनलाइन बैंकिंग पासवर्डों का पता लगा लेते हैं. इंटरनैट ठगी के शिकार ज्यादातर वे लोग होते हैं जो साइबर कैफे में इंटरनैट का इस्तेमाल करते हैं. चालाक हैकर्ज साइबर कैफे में जा कर वहां के कंप्यूटरों में अपना सौफ्टवेयर स्थापित कर देते हैं.

आजकल हैकर्स ने पासवर्ड फिश्ंिग के लिए एक अन्य अनूठा तरीका ढूंढ़ निकाला है. वे बैंकों के ग्राहकों को क्रैडिट कार्ड या होमलोन की किसी नई स्कीम के बारे में एक आकर्षक ईमेल भेजते हैं. ईमेल पढ़ने वाले को ऐसा लगता है कि यह ईमेल उस के बैंक ने ही भेजा है क्योंकि उस में उस के बैंक के लोगो की हूबहू नकल होती है. इस स्कीम के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए ग्राहक को जवाबी ईमेल भेजना होता है जिस में उसे अपना औनलाइन बैंकिंग पासवर्ड भी देना होता है. इस ईमेल का जवाब देते ही ग्राहक हैकर के शिकंजे में फंस जाता है क्योंकि उस का यह जवाबी ईमेल उस के बैंक को न जा कर हैकर की किसी जाली इंटरनैट साइट पर जा पहुंचता है. चूंकि इंटरनैट ठगी का खुलासा होने से बैंकों की औनलाइन सुविधाओं की पासवर्ड सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न खड़े हो सकते हैं, इसलिए हैकिंग के कई मामलों में बैंक अधिकारी अपने ग्राहकों को हरजाने के तौर पर थोड़ेबहुत पैसे दे कर मामले को रफादफा करा देते हैं. वैसे भी, अभी तक इंटरनैट अपराधियों को दंड देने के लिए हमारे देश में कोई विशेष कानून नहीं बना है. इस का लाभ इंटरनैट ठग उठा रहे हैं और बखूबी पनप रहे हैं.

साइबर अपराध

सूचना व तकनीक का एक बड़ा खमियाजा साइबर क्राइम के रूप में आया है. साइबर अपराध की घटनाएं दिनबदिन बढ़ रही हैं. तथ्यों की चोरी ही नहीं, इन के बेजा इस्तेमाल की भी कई घटनाएं इन दिनों घट रही हैं. अभी कुछ साल पहले की घटना है. एक साइबर क्रिमिनल संजय केडिया को साइबर अपराध के तहत गिरफ्तार किया गया था. यही संजय केडिया कभी दिल्ली आईआईटी का मेधावी स्टूडैंट रहा था. लेकिन पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने कोलकाता के साल्टलेक के सैक्टर-5 में अपना औफिस खोला. इस औफिस से वह 29 अमेरिकी दवा संस्थाओं के लिए आउटसोर्सिंग किया करता था. अमेरिकी दवा कंपनी के साथ कुछ दिन काम करने के बाद डाक्टरों के मार्फत फर्जी प्रेस्क्रिप्शन यानी पर्ची बनवा कर इंटरनैट के जरिए अमेरिका और यूरोप के खरीदारों को निषेध दवाओं को बेचा करता था. संजय केडिया सैक्टर-5, कोलकाता के औफिस से हर रोज लगभग 5 लाख डौलर का कारोबार किया करता था. 2007 में अमेरिकी ड्रग एन्फोर्समैंट विभाग से कोलकाता पुलिस को मिली खबर के आधार पर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने संजय को गिरफ्तार किया.

इसी तरह तथ्यों की चोरी और उन का बेजा इस्तेमाल भी देखनेसुनने में आता है. अमेरिका और यूरोप के अनगिनत लोगों के क्रैडिट कार्ड के नंबर और लोगों के आर्थिक लेनदेन के तमाम तथ्य चुरा कर उन के पैसे ले उड़ने की खबरें अब भारत में भी आम हो गई हैं. इस के अलावा विभिन्न बैंकों व विश्वविद्यालयों की वैबसाइटों को हैक करना भी देखा गया. नैट के जरिए हासिल गुप्त संकेतों से आतंकी आपस में सुरक्षित संपर्क बनाए रख कर भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सालों पहले देशभर के पुलिस और खुफिया विभाग के लिए सूचना तकनीक आधारित अपराध दमन का प्रशिक्षण देने के लिए एक योजना तैयार की थी, लेकिन यह कितनी कारगर है, बताने की जरूरत नहीं.

कंप्यूटर के अनदेखे खतरे

हम काफी हद तक अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कंप्यूटर पर निर्भर हो चुके हैं, चाहे वह ट्रेन टिकट, हवाई टिकट या किसी नई पिक्चर की टिकट बुकिंग, देशविदेश की ताजा जानकारी हासिल करना, नएनए उत्पादों की जानकारी निकालना, पुराने दोस्तों को ढूंढ़ना अथवा वर्तमान मित्रों से बातचीत करना हो. इंटरनैट ने जहां हमारी जिंदगी को नए आयाम दिए हैं वहीं उस ने कई साइबर खतरों को जन्म भी दिया है. मुंबई का 27/11 का केस भी इंटरनैट टैक्नोलौजी की ही देन है. कई आपराधिक मामलों में सोशल नैटवर्किंग साइट्स का भरपूर उपयोग किया जाता है. कई साइट्स स्पैम मेल द्वारा हमारी ईमेल आईडी व पासवर्ड हैक कर के उन का दुरुपयोग किया जा सकता है. कई बार आप ने सुना होगा कि अपराधी किसी गलत आईडी से डराने वाला मेल करते हैं व बेगुनाह लोग फंस जाते हैं. आज आवश्यकता है हमें जागरूक होने की तथा इन अनजानेअनदेखे खतरों से बचाव करने की.

कंप्यूटर वायरस आमतौर पर 3 तरीकों से फैल सकता है. रिमूवेबल मीडिया से, इंटरनैट डाउनलोड से और ईमेल अनुलग्नकों से. कुछ वायरस हमें दोस्तों द्वारा भेजे गए ईमेल से होते हैं और कुछ अनजान स्रोतों से. परंतु जैसे ही हम इसे खोलते हैं, वायरस कंप्यूटर के अंदर घर कर लेता है. वायरस अकसर कंप्यूटर के अनियमित व्यवहार का कारण होते हैं, जैसे स्क्रीन गायब होना, गति धीमी होना, स्माइली चेहरा आना, फाइलों का डुप्लीकेट होना या कंप्यूटर क्रैश होना आदि. कुछ वायरस सिस्टम में निष्क्रिय स्थिति में रहते हैं और एक निश्चित तिथि को अटैक करते हैं. कुछ स्थितियों में कंप्यूटर काम के बीच में ही क्रैश हो सकता है या काफी समय के लिए फ्रीज हो जाता है.

स्पायवेयर एक ऐसा खतरनाक प्रोग्राम है जो प्रयोगकर्ता के जाने बिना कंप्यूटर से महत्त्वपूर्ण सूचना एकत्रित कर लेता है, जैसे कि किसी व्यक्ति द्वारा कुछ व्यक्तिगत कारणों से विजिट किया गया वैबपेज, उस में प्रयुक्त की गई जानकारी, क्रैडिट कार्ड नंबर, पासवर्ड इत्यादि. व्यक्तिगत जानकारी का चोरी होना किसी के लिए भी एक वास्तविक चिंता का कारण हो सकता है. उस का दुरुपयोग किया जा सकता है. स्पैममेल यानी अवांछित ईमेल अकसर किसी संदिग्ध वित्तीय या यौन प्रकृति के उत्पादों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पोस्ट किए जाते हैं. इस से बचने के लिए आप कभी भी संदिग्ध वैबसाइटों और इंटरनैट बुलेटिन बोर्ड पर अपना ईमेल पता न दें. कई बार आप ने कोई ऐसा ईमेल देखा होगा जिस में आप के लिए किसी बड़े धनसंबंधी इनाम या किसी लौटरी का संदेश होता है. ऐसे मेल को खोलना काफी खतरनाक हो सकता है क्योंकि जब आप ऐसे मेल को खोलते हैं तो आप को कुछ व्यक्तिगत जानकारी देनी होती है जो किसी अनजाने व्यक्ति द्वारा आप को परेशान करने के लिए उपयोग में लाई जा सकती है.

फिश्ंिग तकनीक भी आजकल इंटरनैट व ई-बैंकिंग का प्रयोग करने वालों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. इस तकनीक में आप को बहुत ही विश्वसनीय स्रोतों, जैसे कि इ-बे या आप का बैंक भी हो सकता है, से आप के बैंक अकाउंट का विवरण जांचने के लिए ईमेल प्राप्त हो सकता है. ये जानकारियां दिखने में वास्तविक लगती हैं परंतु ये सब उपयोगकर्ता का नाम व पासवर्ड जानने के लिए करते हैं. इस से बचने के लिए आप दिए गए सीधे लिंक पर न जा कर ब्राउजर की नई विंडो खोलें. पौर्नोग्राफी बच्चों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है. इस के लिए जब आप के बच्चे औनलाइन हों तो उन पर नजर रखें कि वे होमवर्क या पढ़ाई से संबंधित सर्च कर रहे हैं या कोई अवैध साइट अथवा पौर्नोग्राफी तो नहीं देख रहे हैं. कई बार ऐसे वैबपेज, कुछ सर्च करते समय किसी विज्ञापन की तरह भी आ सकते हैं जिन्हें ऐडवेयर कहते हैं.इन सब से बचने के लिए आप उन के वैबपेज ऐक्सैस को ब्लौक कर सकते हैं या किसी सर्विलांस टूल का उपयोग कर सकते हैं. आप बच्चों को सेफ सर्च सिखाएं व किसी अनजान व्यक्ति से चैट न करने के लिए समझाएं. 

खतरों से बचने के लिए आप निम्नलिखित उपायों को अपना सकते हैं :

एक विश्वसनीय एंटीवायरस प्रोग्राम इंस्टौल करें : जिस क्षण से आप कंप्यूटर चालू करते हैं उसी क्षण से आप के सिस्टम में विश्वसनीय एंटीवायरस होना चाहिए. चाहे आप का कंप्यूटर इंटरनैट से जुड़ा हो या नहीं, एक कम लागत वाला विश्वसनीय एंटीवायरस मशीन के लिए वरदान है. इंटरनैट पर कई फ्री डाउनलोडेबल एंटीवायरस उपलब्ध हैं, जो आप के कंप्यूटर को वायरस से बखूबी बचा सकते हैं. एंटी मैलवेयर व एंटी स्पायवेयर स्थापित करें : मैलवेयर से तात्पर्य ऐसे सौफ्टवेयर से है जो कि कंप्यूटर को नुकसान पहुंचाते हैं, जिस के मुख्य उदाहरण वायरस, वार्म, ट्रोजन होर्स व स्पायवेयर हैं. इंटरनैट पर कई उच्च क्वालिटी के एंटीस्पायवेयर मुफ्त उपलब्ध हैं.

संदिग्ध वैबसाइटों से बचें : वायरस सब से ज्यादा इंटरनैट से फैलता है. जब भी आप किसी हानिकारक वैबसाइट को विजिट या सौफ्टवेयर डाउनलोड करने का प्रयास करते हैं तो एक अच्छा एंटीवायरस आप को चेतावनी देता है. सो, अगर आप को कभी भी ऐसी चेतावनी मिले तो ऐक्शन को रोक दें वरना आप मुश्किल में पड़ सकते हैं.

अपने डाउनलोड्स पर नजर रखें : इंटरनैट का सब से मजेदार पहलू गाने, फिल्में व अन्य मनोरंजक सामग्री डाउनलोड करना है. चूंकि ये साइट्स काफी भारी होती हैं, सो वायरस चुपके से इन के साथ आ जाता है. इसलिए आप या तो इन्हें किसी विश्वसनीय साइट से डाउनलोड करें अथवा खोलने से पहले स्कैन करें.

फायरवौल इंस्टौल करें : फायरवौल एक ऐसा प्रोग्राम है जो इंटरनैट व नैटवर्क टै्रफिक को कंट्रोल करने के साथसाथ किसी भी अनधिकृत पहुंच से भी कंप्यूटर को बचाता है.

स्कैन करें : पैनड्राइव व अन्य बाहरी मीडिया को प्रयोग करने से पहले स्कैन अवश्य करें.

उपयुक्त उपायों से अपने कीमती कंप्यूटर को सुरक्षित रख सकते हैं. अगर आप कोई अच्छा व सस्ता एंटीवायरस लेना चाहते हैं तो कोई भी मल्टीयूजर पैक ले सकते हैं. इसे एक से ज्यादा लोग मिल कर लाइसैंस फी के साथ एक तय अवधि के लिए प्रयोग कर सकते हैं. भारत में 60-70 के दशक में क्रांति के तौर पर शुरू हुई सूचना तकनीक अपने परिपक्वता की अवस्था तक आतेआते देशदुनिया का तन और मन इस कदर बीमार कर देगी, किस ने सोचा था. भले ही सूचना तकनीक के आने से आधुनिक युग में विकास को गति प्राप्त हुई, जो अब मानव जीवन का एक आवश्यक हिस्सा भी बन चुकी है, लेकिन यह एक पैन्डोरा बौक्स की तरह तमाम बुराइयों व बीमारियों को कैद कर खुद में समाती जा रही है. जाहिर है इस बौक्स के खुलने से होने वाले नुकसान बेहद गंभीर होंगे. 2008 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए बराक ओबामा, जब अमेरिका घोर मंदी से जूझ रहा था, ने अमेरिका को ले कर अपने देश के आईटी महारथियों को खुले शब्दों में एक मंच से चेतावनी देते हुए कहा था, ‘आप लोग चेत जाइए नहीं तो बेंगलुरु आप से आगे निकल जाएगा.’

दरअसल, उस दौरान भारत की सौफ्टवेयर कंपनियां बड़ी तेज रफ्तार से दुनिया के आईटी मार्केट में सिलिकौन वैली के वर्चस्व को चुनौती दे रही थीं. ओबामा की उस चेतावनी पर अब तक हम गाहेबगाहे काफी खुश होते रहते हैं लेकिन जिस तरह से डिजिटल दुनिया ने हमें अपनी गिरफ्त में फंसाया है उसे देख कर यही कहा जा सकता है कि हम अपने ही बनाए हथियार के शिकार होते जा रहे हैं. इसलिए अब चेतने की बारी अमेरिका की नहीं, बल्कि हमारी है. अभी भी देर नहीं हुई है. सूचना और तकनीक के इस बवंडर को सूनामी बनने से पहले ही काबू किया जा सकता है वरना सूचना और तकनीक से लैस स्मार्ट फोन्स की यह डिजिटल दुनिया आदमी से दुनिया का सब से स्मार्ट प्रजाति होने का तमगा छीनने में जरा भी देर नहीं लगाएगी.

– राजेश कुमार के साथ बीरेंद्र बरियार ज्योति, साधना शाह, चांदनी अग्रवाल, मनोज सूद

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