पंजाब का अमृतसर शहर कुछ अरसे से एक आसमानी आतंक के साए में है. यह आतंक गट्टू का है. गट्टू नाम का यह आतंक आसमान से कब किसी पर टूट पडे़गा, कोई नहीं जानता. आसमान से होने वाला गट्टू का हमला अब तक कई हादसों का सबब बन चुका है. हादसों में कुछ लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी, कई गंभीर रूप से घायल हो कर अस्पताल में पहुंच गए. गट्टू सरकार के लिए एक बड़ी परेशानी और आम लोगों के लिए खतरा बना हुआ है.
आखिर गट्टू है क्या
गट्टू दरअसल चीन में बनी पतंग उड़ाने वाली डोर का देसी नाम है. अपनी मजबूती और तेज धार के कारण भारतीय बाजार में कदम रखने के बाद से ही यह डोर पतंगबाजों की पहली पसंद बन गई है. गट्टू के प्रति लोगों में दीवानगी इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि चीन से आने वाली दूसरी चीजों की भांति ही यह पारंपरिक भारतीय डोर के मुकाबले काफी सस्ती है. सस्तेपन की चाहत में भारतीय ग्राहक चीनी माल के घातक और नकारात्मक पहलुओं को हमेशा ही अनदेखा करते रहे हैं. गट्टू के मामले में भी ठीक कुछ ऐसा ही हुआ. एक तो सस्ती, दूसरी, मजबूत और तेज, गट्टू के मुकाबले में पारंपरिक भारतीय डोर टिक नहीं सकी. देखते ही देखते उस का भारतीय बाजार पर पूरा कब्जा ही हो गया.
चीनी डोर को ड्रैगन डोर के नाम से भी जाना जाता है किंतु आम बोलचाल की जबान में लोग इस को गट्टू ही कहते हैं. गट्टू के दीवाने लोगों को शुरूशुरू में यह समझ ही नहीं आया कि गट्टू की असलियत क्या थी और वह कितनी घातक थी, उस की मजबूती और तेज धार कितनी खतरनाक और जानलेवा थी? वास्तव में गट्टू डोर को बनाने में एकदम से गैर पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल किया गया. डोर सूत के बजाय प्लास्टिक के धागे से बनाई गई. उस पर जो मांझा चढ़ाया गया, उस में कांच के बुरादे के स्थान पर लोहे के अति घातक बुरादे का प्रयोग किया गया. इस से उस की स्थिति बिजली के तार जैसी हो गई जिस में से आसानी से करैंट गुजर सकता है. गट्टू के हाईवोल्टेज बिजली के तारों के ऊपर गिरने से पतंगबाजों को बुरी तरह झुलसने की असंख्य घटनाएं घट चुकी हैं. कई बार तो गट्टू डोर में आए करैंट की वजह से पतंगबाजी करने वाले व्यक्ति की मौत भी हो गई.
गट्टू की मजबूती और धार की बात करें तो यह जानलेवा ही है. अगर किसी की गरदन के गिर्द लिपट जाए तो उस को काटती चली जाएगी और दूसरी आम पारंपरिक डोरों की भांति टूटेगी नहीं. गट्टू से पतंग उड़ाने वाले की उंगलियों में आए चीरों के जख्म भी आसानी से नहीं भरते. गट्टू का शिकार अधिकतर छत पर धूप का आनंद लेने वाले लोग और स्कूटर या मोटरसाइकिल सवार बनते हैं. आकाश में उड़ने वाली कोई पतंग कब कटेगी और नीचे को गिरती उस की डोर कब किसी पर आफत बन टूट पड़ेगी, यह किसी को मालूम नहीं होता. अगर गट्टू की डोर किसी तेज रफ्तार स्कूटर या मोटरसाइकिल सवार पर गिर गई तो बाइकसवार के शरीर के किसी हिस्से पर गहरा जख्म हो जाना तय है. डोर में उलझने से ऐक्सिडैंट की संभावना भी प्रबल रहती है.
प्रतिबंध का उलटा असर
चीनी डोर से होने वाले हादसों को देख गत वर्ष प्रशासन ने गट्टू डोर की बिक्री और उस के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था. मगर इस प्रतिबंध का असर उलटा ही हुआ. जैसा कि आमतौर पर दूसरे मामलों में होता है. प्रतिबंध लगने से गट्टू के प्रति लोगों का आकर्षण और भी बढ़ा और उस की बड़े पैमाने पर कालाबाजारी होने लगी. इस बार सर्दी के मौसम की शुरुआत होते ही इस गट्टू की वजह से इतने ढेर सारे लोग हादसों का शिकार हो, मौत के करीब पहुंच गए कि प्रशासन को सक्रिय होना पड़ा. इस समय अमृतसर में घातक चीनी डोर गट्टू के विरुद्ध एक जबरदस्त अभियान चल रहा है. एक तरफ पुलिस जहां छापेमारी कर के गट्टू बेचने वालों को गिरफ्तार कर रही है तो वहीं प्रशासन स्कूलों के सहयोग से बच्चों को गट्टू के विरुद्ध जागरूक कर रहा है. बहुत ही सख्त रुख अपनाते हुए प्रशासन ने यहां तक कहा है कि अगर कोई बच्चा पतंग उड़ाने के लिए गट्टू का इस्तेमाल करता है तो अभिभावकों पर कानूनी कार्यवाही होगी.
हैरानी यह है कि इन सब के बावजूद, अभी भी बड़ी संख्या में पतंगें गट्टू के साथ ही आसमान में मंडरा रही हैं यानी सख्ती के बावजूद गट्टू डोर बिक रही है. ऐसे में भविष्य में भी हादसे होंगे. अच्छा होगा कि गट्टू बेचने वाले दुकानदारों को पकड़ने के बजाय प्रशासन उन स्रोतों पर चोट करे जिन स्रोतों से वह लगातार बाजार में आ रही है. ड्रैगन अर्थात गट्टू डोर के मामले में एक सचाई यह भी है कि इसे अवैध रूप से अब पूरी तरह भारत में तैयार किया जा रहा है. इस डोर की चरखी पर लगे लेबल के ऊपर उस को बनाने वाली कंपनी का कोई अतापता नहीं. लेबल पर दिए गए ईमेल और वैबसाइट के कोड बोगस हैं. मतलब यह कि अगर आप ड्रैगन डोर बनाने वाली कंपनी को ढूंढ़ने निकलेंगे तो वह आप को मिलेगी नहीं. सारा धंधा ही दो नंबर में चल रहा है.
मजे की बात यह है कि पुलिस और कानून की आंखों में धूल झोंकने के लिए ड्रैगन डोर को जरमन तकनीक से तैयार किया दर्शाया जा रहा है. पुलिस की कार्यवाही फिलहाल छापेमारी कर के ड्रैगन अर्थात गट्टू डोर को जब्त करने तक ही सीमित है और छोटेमोटे दुकानदार ही उस के निशाने पर हैं. ड्रैगन डोर का अवैध कारोबार करने वाली बड़ी मछलियां अब भी उस की पकड़ से कोसों दूर हैं. इसलिए लाख सख्ती के बावजूद, ड्रैगन डोर का धंधा बदस्तूर जारी है. ड्रैगन डोर के सहारे आज भी पतंगें बड़े मजे से आकाश में उड़ रही हैं और घटनाएं घटती रहती हैं.
यह बताना भी जरूरी है कि ड्रैगन डोर का भारतीय बाजार में प्रवेश तो हुआ था सिलाई के काम में आने के लिए, किंतु इस का भरपूर दुरुपयोग हुआ और इस को पतंग उड़ाने वाली घातक डोर की शक्ल दे दी गई.