सुबहसुबह लखनऊ से सालीजी का फोन आया, ‘‘जीजाजी नमस्कार, आप की साली रंजना बोल रही हूं, इस बार होली साथसाथ मनाएंगे. कल की गाड़ी से आ रही हूं.’’ न जाने किस का मुंह देखा था जो इतना अच्छा समाचार मिल गया. हम अपनी इकलौती साली के साथ होली मनाने और उसे रंगने के सपने देखने लगे. अभी होली के 15 दिन बाकी थे. साली के आने से होली की तैयारियों में भी मजा आ जाएगा. खैर, अगले दिन साली साहिबा आ गईं, और घर रंगों से भर गया.
पहले सामान लेने के लिए बाजार जाने में हम अलसाते थे, लेकिन इस बार तो दौड़ कर जाते और भाग कर वापस आ जाते. इसी के चलते एक दिन बाजार से सामान रीद कर लौटते समय मियां रफ्फू मिल गए. हम उन को दूध में मिश्री घोलघोल कर साली के आने वाली बात बताने लगे. जब हम घर पहुंचे तो दरवाजे पर सालीजी खड़ी सामान का और हमारा इंतजार कर रही थीं. हमें देखते ही बोलीं, ‘‘जीजाजी, लगता है बुढ़ापा आ गया, पहले तो आधपौन घंटे में बाजार से लौट आते थे लेकिन इस बार पूरा डेढ़ घंटा लग गया, यानी कि बुढ़ापे की वजह से चाल में फर्क आ गया.’’
साली की बात बेचैनी बढ़ाने वाली थी. हम अपनी उम्र का हिसाब लगाने बैठ गए, वो अम्मा कहती थीं, ‘जब मुल्क आजाद हुआ था, उस से 2 महीने पहले हम पैदा हुए थे,’ इस हिसाब से अभी हमारी उम्र 68 के आसपास चल रही है. लेकिन अभी तक हम अपने को छैलछबीला ही समझ रहे थे. इसी के साथ श्रीमतीजी का भी राग उमरिया चालू हो गया. वे कोई मौका हाथ से जाने नहीं देती थीं. वे बोलीं, ‘‘सुनते हो जी, ये कब तक सूखी बगिया में काला रंग घोलते रहोगे, अरे जब सिर पर झाडि़यां ही नहीं हों तो रंगने का क्या मतलब?’’
श्रीमतीजी की बात पर हम ने गौर किया और जब सिर पर हाथ फेरा तो मालूम हुआ कि सिर, सपाट मैदान बन चुका. हम महसूस कर रहे थे कि एक बात खत्म नहीं होती, श्रीमतीजी एक मुद्दा पकड़तीं तो साली दूसरा पकड़ लेती.
अब साली बोलीं, ‘‘जीजाजी, होली खेलना आसान थोड़े न है, उस के लिए दम चाहिए. होली में अभी 10-15 दिन बाकी हैं. अभी से थोड़ीबहुत कसरत करना चालू कर दो…’’ इस के बाद वह रहस्यमयी हंसी के साथ जोर से हंस दी, फिर बरामदे में 5 से 10 किलो तक के रखे हुए पत्थरों को दिखाते हुए साली ने कहा, ‘‘देखो जीजाजी, अब आप को ‘वर्ल्ड चैंपियन’ तो बनना नहीं है, इसलिए होली तक आप इन्हीं से सेहत बनाओ.’’ इधर, सालीजी हमारी हैल्थ पर लगी थीं तो श्रीमतीजी की निगाह हमारे खानपान पर लग गई थी, वे बोलीं, ‘‘अब होली की गुजिया, पापड़ी भूल जाओ, तुम्हारे लिए तो दलिया वगैरह ठीक रहेगा, अरे तंदुरुस्ती का मामला है. और कल ही तो डाक्टर ने तुम्हें ब्लडप्रैशर हाई बताया है.’’
हम सोचने लगे श्रीमतीजी की बात तो सोलह आने ठीक है पर ये ब्लडप्रैशर नहीं हुआ, कोई प्रैशर कुकर हो गया, जिस की सीटी कभी भी बजने को तैयार रहती है. इस बार हम अपने निगोड़े बुढ़ापे को कोस रहे थे, जिस ने होली पर हमारा जीना दूभर कर दिया था और अच्छीखासी जिंदगी में तूफान ला दिया था. खैर, साली के संग होली खेलने के सपने देख कर मन में लड्डू फूट रहे थे. तभी श्रीमतीजी ने कहा, ‘‘सुनते हो, वो तुम्हारी साली कह रही थी कि जीजाजी से कह देना इस बार खाली गुलाल की ही होली खेलें, अरे उम्र का खयाल रखें, बेकार में रंग लगाने, लगवाने के चक्कर में गिर गए तो मुफ्त में अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ेंगे.’’ इस तरह से रहीसही कसर साली ने और निकाल दी और उस ने हमारी रंगबिरंगी होली को बेरंग बना दिया.
होली से पहले श्रीमतीजी ने फिर हमारे ऊपर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘मुझे होली के बहुत से काम निबटाने हैं लेकिन तुम रातभर खर्राटे लेते रहते हो जिस से मेरी नींद खराब होती है. अब कल से तुम बाहर दालान में सोया करो.’’
अगले दिन दालान में जब हम सो कर उठे तो देखा कि हमारे महल्ले के 4-5 आवारा कुत्ते भी हमारे साथ सो रहे थे. बाद में मालूम हुआ कि महल्ले के लड़के हमें खटिया से नीचे डाल कर, खटिया होली में जलाने के लिए ले गए हैं. इस बार श्रीमतीजी ने साली के साथ होली खेलने के हमें मौके दिए ही नहीं, क्योंकि घर में अंदर बहुओं का राज था और मानमर्यादा का ध्यान रखना जरूरी था. इस तरह से होली पर हमारी हर उम्मीद पर पानी फिरता जा रहा था.
होली वाले दिन पोतेपोतियां जिद करने लगे कि दादाजी, घोड़ा बन कर हमें पीठ पर बैठाओ, हमें होली का जुलूस निकालना है. जब हम मना करने लगे तब साली ने फिर कहा, ‘‘अरे जरा बच्चों का दिल रख लोगे जीजाजी, तो आप गधे तो नहीं बन जाओगे. चलो जल्दी से अपना जुलूस निकलवाओ.’’
अब हमारी पीठ पर नातीपोते लद गए. बुढ़ापे की कमर थी, सो दरक गई और हमें 2-3 महीने के लिए खटिया पकड़नी पड़ी.
साली का बेसुर का सुर फिर चालू हो गया, ‘‘होली पर फूल से बच्चों का वजन तो उठा नहीं सकते, फिर काहे के जवान. अरे अब तो मान लो जीजाजी कि बुढ़ापा आ गया है.’’
लेकिन हम में अभी भी अकड़ बाकी थी, इसलिए हम ने फिर भी अकड़ कर कहा, ‘‘सालीजी, होली के लिए दिल जवान होना चाहिए, उम्र बाली होनी चाहिए, समझीं न.’’
अब श्रीमतीजी ने फिर नहले पर दहला मारते हुए कहा, ‘‘अरे मियां, दिल को कौन देखता है, पहले तो लोगों को तुम्हारा पिचकी पिचकारी जैसा चेहरा ही देखेगा न और अब से ये साली, रंग, होली सोचना बंद कर दो.’’
साली और श्रीमतीजी की अब तक की बातों से हमारा जोश खत्म हो चला था और हम दालान के कोने में बैठे ललचाई निगाहों से साली को होली खेलते देखते हुए, होली खेलने के सपनों में खो गए.