9वीं कक्षा में था. कक्षा अध्यापक का फरमान मिला. सभी बच्चों को संचायिका पासबुक खोलनी है. इस पासबुक को ले कर बच्चे अपने जेबखर्च में से 1, 2, 3 यानी जितने भी रुपए बचते हैं, बैंक में जमा करा सकते थे. जरूरत पड़ने पर निकाल भी लेते. बाद में पता चला कि इस योजना का मकसद बच्चों में बचत का भाव पैदा करना था. बाद में संचायिका चली अथवा नहीं, यह मालूम नहीं है. इधर, रिजर्व बैंक ने एक ऐसा ही आदेश जारी किया है जिस के तहत 10 साल का बच्चा भी अपने मातापिता के सहयोग के बिना बैंक में खाता खुलवा सकता है.

रिजर्व बैंक का कहना है कि बच्चा स्वतंत्र रूप से अपना खाता खोले और बैंक बहुत अधिक औपचारिकताओं के बिना उस में बचत करने की आदत विकसित करने के भाव से उस का खाता खोलें. यही नहीं, उसे इंटरनैट बैंकिंग, एटीएम, डेबिट कार्ड, चैकबुक आदि की सुविधा उपलब्ध कराएं.

बैंकों को खाता खोलने के आवश्यक दस्तावेज अपने स्तर पर तय करने की छूट दी गई है. इस से बच्चों में नैतिक बल भी बढ़ेगा और उन में बचत करने की आदत भी विकसित हो सकती है.

अब तक बैंक 18 साल से कम उम्र के बच्चों को उस के मातापिता अथवा अभिभावक के साथ खाता खोलने की अनुमति देते थे लेकिन अब बैंक के लिए एक बच्चा भी ग्राहक है और नए दिशानिर्देश के अनुसार, बैंक अपने सामान्य ग्राहक को जो सुविधाएं दे रहे हैं वही सुविधा बाल ग्राहक को भी देंगे.

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