खाने में फाइबर न सिर्फ बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी है बल्कि कई बड़ी बीमारियों से दूरी बनाए रखने में भी इस की बड़ी भूमिका होती है. लेकिन जंक फूड के शौकीनों को अपनी अनियमित खानपान की आदत के चलते इस जरूरी तत्त्व से महरूम रहना पड़ता है. नतीजा, पाचनतंत्र में गड़बड़ी और ढेर सारी बीमारियां. क्या है उपाय, बता रही हैं सुमन बाजपेयी.

त्योहारों के खुशनुमा माहौल में प्रसन्नचित्त मन उल्लास से भर जाता है. गृहिणियां पूरे जोश के साथ साजसजावट और खानेपीने की तैयारियों में जुट जाती हैं. वैसे भी त्योहार का हर्षोल्लास बिना पकवानों के अधूरा है. अत: तरहतरह के व्यंजन बनाए, खाए जाते हैं. लेकिन स्वाद के साथसाथ सेहत का ध्यान रखना, यह आप की समझदारी है. स्वस्थ रहेंगे तभी तो त्योहारों का पूरा मजा ले सकेंगे.

व्यस्त लाइफस्टाइल के इस दौर में ज्यादातर लोग जंक फूड पर निर्भर हैं जिस के चलते खाने में फाइबरयुक्त भोजन लगातार नजरअंदाज हो जाता है और इस की कमी से खाना ठीक से डाइजैस्ट न हो पाने की वजह से कब्ज की समस्या हर उम्र के लोगों में देखने को मिलती है. पाचन क्रिया में गड़बड़ी तब होती है जब आप अपने आहार में फाइबरयुक्त या रेशेदार पदार्थ नहीं लेते हैं. पिज्जा, छोलेभठूरे, बर्गर, नूडल्स आदि, जो टैस्टी लगने के कारण आज हर वर्ग के लोगों के बीच लोकप्रिय हो चुके हैं, उन में फाइबर बिलकुल भी नहीं होता. उन्हें पचने में समय लगता है या वे आंतों में ही चिपक कर पाचनतंत्र को खराब कर देते

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आनेवाले त्योहारों पर व्यंजन बनाते समय उन में थोड़ा सा ट्विस्ट देते हुए उन्हें पौष्टिक बनाएं यानी कि फाइबरयुक्त पदार्थों का इस्तेमाल करते हुए पकवान बनाएं, जो स्वाद में लाजवाब होते हैं और आप की सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाते.

फाइबरयुक्त भोजन के फायदे

अनाज, फल, पत्तेदार सब्जियों व फूड प्रोडक्ट्स के उस हिस्से को फाइबर कहते हैं जो बिना पचे व अवशोषित हुए ही आंत के जरिए बाहर निकल जाता है, जिस से पेट व आंत की सफाई भी आसानी से हो जाती है. न चिपकने वाला फाइबर भरपूर मात्रा में लेने से कई तरह की दूसरी पाचन संबंधी गंभीर समस्याएं भी दूर हो जाती हैं.

पेट की खराबी व कब्ज में आंत की अंदरूनी सतह क्षतिग्रस्त हो जाती है और छोटीछोटी थैलियां सी बन जाती हैं. रेशेयुक्त भोजन करने से मल मुलायम हो कर आसानी से बाहर निकल जाता है. इस तरह फाइबर की अधिक मात्रा आंत के आसपास पड़ने वाले दबावों को रोकने में मदद करती है. रेशेदार पदार्थ पाइल्स रोग से भी बचाते हैं, पेट में गैस नहीं बनती और पाचनतंत्र ठीक रहता है व शरीर को पर्याप्त ऊर्जा मिलती रहती है. फाइबर शरीर में बुरे कोलैस्ट्रौल को बढ़ने से रोकता भी है.

भोजन में फाइबर का होना उतना ही आवश्यक है जितना कि प्रोटीन, विटामिन या मिनरल्स. फाइबर एक महत्त्वपूर्ण ऐंटीऔक्सीडैंट भी है. जिन भोज्य पदार्थों में फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है उन में लो कैलोरी होती है और वे जरूरी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स और ऐंटीऔक्सीडैंट्स के अच्छे स्रोत होते हैं जैसे कि औरेंज में फाइबर, विटामिन सी और ऐंटीऔक्सीडैंट प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो वजन घटाने में मदद करते हैं. सेब, ब्रोकली, खीरा, गाजर, ओट (जई), जौ और गेहूं में भी फाइबर बहुत होता है.

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बीमारियों से बचाव

डायटीशियन डा. शिखा शर्मा के अनुसार, ‘‘फाइबर एक ऐसा न्यूट्रिएंट है जिस की महत्ता के बारे में अधिकतम लोग जानते हैं, पर फिर भी अपने भोजन में शामिल करने की बात आते ही उसे नजरअंदाज कर जाते हैं. फाइबर एक इनडाइजेटेबल पदार्थ होता है जो पौधों की बाहरी

परतों में पाया जाता है. फाइबर एक विशेष तरह का कार्बोहाइड्रेट होता है जो मानव के पाचनतंत्र से बिना बदले, बिना टूटे न्यूट्रिएंट्स में बदलता हुआ गुजरता है. फाइबर का खास काम होता है पाचनतंत्र को हैल्दी रखना. इस से शरीर से मल व टौक्ंिसस तेजी से बाहर निकलने में मदद मिलती है. ऐसा न होने पर कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं.’’

तरहतरह के फाइबर

यह 2 तरह के होते हैं. डा. शिखा के मुताबिक, ‘‘एक सोल्यूबल फाइबर जो पानी में घुल सकता है. इस प्रकार का फाइबर खट्टे फलों, बींस, ओट, जौ, सूखी फलियों, दालों, मटर, सोयामिल्क और सोया उत्पादों में पाया जाता है. यह घुलनशील फाइबर रक्त के कोलैस्ट्रौल स्तर को कम करने के साथसाथ रक्त के शर्करा स्तर को भी कम करता है. दूसरे प्रकार का फाइबर होता है इनसोल्यूबल, जो पानी में घुलनशील नहीं होता है. इस तरह के फाइबर साबुत अनाजों, आटा, आटे की भूसी, चावल की भूसी, फलों व सब्जियों के छिलकों, सूखे मेवों,बीजों में पाया जाता है. इस तरह के फाइबर के सेवन से कब्ज की शिकायत दूर होती है और डाइजैस्टिव ट्रैक हैल्दी बना रहता है.’’

हड्डियां मजबूत

आहार विशेषज्ञ मानते हैं कि फाइबर से केवल दिल ही मजबूत नहीं होता है, हड्डियों में भी इस के सेवन से मजबूती आती है. आर्थ्राइटिस फाउंडेशन औफ इंडिया के क्लीनिकल अध्ययनों के अनुसार जिन लोगों के खाने में फाइबर की मात्रा बेहतर रही है उन में कम फाइबर लेने वालों की अपेक्षा जोड़ों की समस्या कम देखी गई. 1 महीने में शरीर को कम से कम 700 ग्राम फाइबर की आवश्यकता होती है.

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कितनी मात्रा में लें

डा. शिखा के अनुसार 50 वर्ष से अधिक की महिला को 1 दिन में 21 ग्राम और पुरुषों को 30 ग्राम फाइबर, वहीं 50 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को 25 ग्राम व पुरुषों को 38 ग्राम फाइबर लेना चाहिए, अन्यथा कब्ज हो सकती है.

नहीं लगती बारबार भूख

हाई फाइबर डाइट से पेट जल्दी भर जाता है और भूख पर भी नियंत्रण रहता है, अत्यधिक फाइबरयुक्त भोजन को चबाने में अधिक समय लगता है, यानी आप धीरेधीरे खाना खाएंगे. इस तरह खाने की मात्रा में कमी हो जाएगी और आप कैलोरी भी अधिक मात्रा में नहीं लेंगे. फाइबरयुक्त पदार्थ का सेवन करने से रक्त प्रवाह में शर्करा का स्राव भी धीमी गति से होता है जिस से चीनी की मात्रा नियंत्रित रहने से बारबार भूख नहीं लगती है और आप हर समय खाने से बच जाते हैं.

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अगर निर्धारित मात्रा से अधिक फाइबर का सेवन किया जाता है तो उस का गलत प्रभाव पड़ सकता है. अत्यधिक फाइबर का सेवन करने से जरूरी मिनरल्स जैसे जिंक, कैल्शियम व आयरन की कमी हो सकती है. ये खनिज फाइबर को कई बार जकड़ लेते हैं जिस की वजह से वे शरीर से खनिजों को रक्त प्रवाह में जाने दिए बिना निकल जाते हैं.

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