यों तो सोशल मीडिया तकनीकी क्रांति की बेहतरीन मिसाल के तौर पर आम लोगों तक पहुंची है लेकिन हाल में मुजफ्फरनगर दंगों समेत कई मौकों पर इस के दुरुपयोग के मामलों ने सोशल मीडिया के गंभीर साइड इफैक्ट से वाकिफ कराया है. ऐसे में कई सियासी दलों ने इस पर अंकुश लगाने की बात की है. प्रधानमंत्री ने भी इस के दुरुपयोग पर चिंता जता कर सोशल मीडिया पर लगाम लगाने के मामले पर नई बहस छेड़ दी है.
अगर निजी जीवन में सोशल मीडिया के दखल की बात करें तो आज के डिजिटल युग में बड़ी उम्र के व्यक्तियों को तो छोड़ ही दीजिए, छोटी उम्र के बच्चे भी टैक्नोलौजी से प्रभावित हो रहे हैं. वे उस की मांग कर रहे हैं.
एकदूसरे से जुड़ने के सामाजिक साधनों में बड़े तो फेसबुक का उपयोग कर ही रहे हैं, छोटे बच्चे भी इस में शामिल होना चाहते हैं. बच्चों के लिए फेसबुक में प्रवेश की उम्र 13 वर्ष रखी गई है पर ऐसा देखने में आ रहा है कि 10-11 वर्ष की उम्र के बच्चे भी फेसबुक पर हैं. दरअसल, वे अपनी वास्तविक उम्र में रजिस्टर्ड नहीं हो रहे हैं. यानी 13 वर्ष की उम्र औफिशियल जरूर है लेकिन व्यवहार में वह नहीं है. 13 वर्ष तो बस एक नंबर के रूप में ही है और मातापिता इस बात से वाकिफ भी हैं.
टीनएजर से छोटी उम्र के बच्चे इस सोशल नैटवर्किंग साइट पर आने की होड़ में हैं क्योंकि उन के दोस्त इस पर हैं. और न केवल उन के दोस्त, बल्कि बच्चे यह भी जानते हैं कि अधिकतर सभी लोग जिस में मातापिता भी शामिल हैं, इस सोशल नैटवर्किंग के अंतर्गत हैं. इस बाबत वे अपनी उम्र को बढ़ा कर रजिस्टर्ड करने के चक्कर में हैं. 13 से 19 साल के बच्चे को टीनएजर कहा जाता है. कई मातापिता अपने बच्चों की फेसबुक पर आने की मांग को नजरअंदाज नहीं कर पा रहे हैं, उन की मांग के आगे नतमस्तक हो रहे हैं. यहां तक कि वे उन्हें उन की उम्र को भी इस बाबत बढ़ाने में मदद कर रहे हैं ताकि बच्चे फेसबुक पर आ सकें, उस का इस्तेमाल कर सकें.
एक पिता का कहना है कि फेसबुक पर मेरा बेटा मुझ से सिर्फ 9 महीने छोटा है. फेसबुक पर उस का अकाउंट खोलने में मैं ने उस की जन्मतिथि और अपने जन्मवर्ष का प्रयोग किया है. उन का कहना है कि उन के खयाल में उम्र के बारे में इस बाबत कोई भी मातापिता ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं. वे कहते हैं कि उन के बेटे के बहुत से दोस्त फेसबुक पर हैं और यही कारण है कि वह भी फेसबुक पर जाना चाहता था. वे आगे कहते हैं आजकल तो बच्चे इसी तरह से संपर्क रखते हैं, फेसबुक से और टैक्ंिस्टग से. टैक्ंिस्टग का मतलब फोन, एसएमएस, चैटिंग वगैरह है. उन का बेटा अब 13 साल का हो गया है लेकिन वह 11 साल की उम्र से ही फेसबुक पर है.
मातापिता का कहना है कि उस के लिए अकाउंट खोलने का हमारा एक मकसद यह भी था कि हम उसे यह बता सकें कि हम जानते हैं कि उस का फेसबुक अकाउंट है और हम उसे कभी भी चैक कर सकते हैं. यदि वह चुपचाप खुद ही अकाउंट खोलता, जैसा कि कई बच्चे कर रहे हैं, तो हमें इस बात का ज्ञान ही न होता और हम उस पर निगरानी रखने की न सोचते. अब कम से कम बच्चे को इस बात का भय रहेगा कि हम कभी भी उस के अकाउंट को चैक कर सकते हैं, इसलिए वह गलत वैबसाइट्स पर जाने से घबराएगा.
उधर, फेसबुक ऐसा ‘टूल’ बनाने जा रही है जिस से कि मातापिता व छोटे बच्चे एकसाथ औनलाइन आ सकें, शायद सहअकाउंट के साथ. तब तक के लिए मातापिता को अपनेअपने तरीकों से बच्चों की औनलाइन होने की इच्छा और उन को सुरक्षित रखने के उपायों से जूझना होगा.
क्वींस विश्वविद्यालय के एक मीडिया प्रोफैसर सिडनीव मैट्रिक्स, जिन्होंने साइबर बुली पर काम किया है, का कहना है कि फेसबुक द्वारा औपचारिक विकल्प अच्छा है तथापि वे मातापिता को कंपनी की प्रेरणा के कारणों के बारे में चेतावनी देना चाहती हैं, उन्हें सावधान करना चाहती हैं.
प्रो. मैट्रिक्स कहती हैं, ‘‘यदि यह सहअकाउंट मातापिता को बच्चों पर बेहतर निगरानी रखने में समर्थ बनाता है तो यह बड़ी अच्छी बात है लेकिन फेसबुक का वास्तविक कार्यक्रम सामुदायिक भावना, विचारधारा को प्रोत्साहन देना नहीं है बल्कि विज्ञापन है. मैं इन छोटी उम्र के बच्चों को ब्रैंड कंपनियों का लक्ष्य बनने के बारे में चिंतित हूं.’’
उन का कहना है कि वे चाहती हैं कि मातापिता इस सोशल मीडिया से अपने बच्चों को परिचित कराते हुए उन से अपना संवाद बनाए रखें. अनेक मातापिता यह कर रहे हैं, और उन्हें यह करना भी चाहिए. मातापिता को बच्चों को फेसबुक पर जाने से पहले इस बात का ज्ञान कराना चाहिए कि लोग उस की फेसबुक की बातों पर नजर रखेंगे, इसलिए वह सावधानी बरते. मातापिता को सुरक्षात्मक बातों के लिए भी बच्चों को सावधान करना चाहिए, जैसे बच्चे को किसी भी अनजाने व्यक्ति से संपर्क नहीं करना है, साथ ही ऐसी फोटोज पोस्ट नहीं करनी हैं जिन से उन के रहने आदि का पता लगता हो या दूसरी कोई भी ऐसी व्यक्तिगत जानकारी जिस से कोई दुराचारी व्यक्ति उस का दुरुपयोग कर सके.
फेसबुक का एक आकर्षण यह भी है कि बहुत सारे लोग इस पर हैं. लेकिन यह सोशल नैटवर्किंग का एक सिरा है. अब टीनएजर बच्चे ट्वीटर व अन्य उपादानों की ओर अग्रसर हो रहे हैं. और इस का सब से बड़ा आकर्षण यह भी है कि मातापिता अभी इन सेवाओं से बहुत अधिक परिचित नहीं हैं जिस से इस दिशा में उन की निगरानी कम है.
मातापिता को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि निगरानी से वे बच्चों की प्राइवेसी में दखलंदाजी कर रहे हैं वरना छोटे बच्चों के टीनएजर बनते ही यह समस्या और भी बढ़ जाएगी.
कुछ मातापिता या अभिभावकों का कहना है कि वे अभी भी बच्चों की गतिविधियों पर निगरानी रख रहे हैं लेकिन यह निगरानी दिनोंदिन कम हो रही है क्योंकि बच्चों ने उन का विश्वास जीत लिया है. यह अच्छी बात है लेकिन बाल्यावस्था व किशोरावस्था की यह उम्र कभी भी बच्चों के कदमों को बहका सकती है, इसलिए इस उम्र में मातापिता को बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है. बच्चे अच्छे हैं और उन पर विश्वास किया भी जाना चाहिए, फिर भी इस उम्र में निर्देशन की आवश्यकता से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. इस उम्र में बच्चों के पास वह परिपक्वता नहीं है जो बड़ी उम्र के मातापिता के पास है.
बच्चे फिर भी बच्चे ही हैं, नादान हैं. वे इन चेतावनियों को भूल सकते हैं. इसलिए उन की सुरक्षा के लिए फेसबुक पर निगरानी रखना जरूरी हो जाता है ताकि बाद में पछताना न पड़े. कई बार औनलाइन, इंटरनैट पर किया गया कोई कृत्य केवल एक यादगार घटना बन कर ही रह जाता है पर कभीकभी वह इतनी गंभीर समस्या में परिवर्तित हो जाता है कि बच्चे न तो उस से निबट पाने में समर्थ होते हैं और न ही वे भय या अन्य किसी कारण से किसी को बता पाने में. जब पानी सिर के ऊपर से गुजर जाता है तब उन की सहायता करना कई बार मातापिता की सीमा से भी बाहर हो जाता है और दुष्परिणाम रोंगटे खड़े करने वाले हो जाते हैं. ऐसी स्थिति उत्पन्न न हो इस के लिए मातापिता और युवाओं दोनों को सावधान रहने की जरूरत है.