भागतीदौड़ती जिंदगी में जब सबकुछ फास्ट हो गया है तो फूड भला पीछे क्यों रहे. बनने में आसान, स्वाद में बेजोड़ रेडी टु ईट फूड आज किचन की शान बनते जा रहे हैं. ऐसे में जानें रेडी टु ईट फूड के खतरे व कैसे बना सकते हैं आप इन्हें सेहतमंद.
पुलाव, मटरपनीर, पालकपनीर, दालमखनी, छोले, कोफ्ता, नवरतन कोरमा, बिरयानी, मटनकोरमा, शाही पनीर, टिक्का कबाब ही नहीं, बल्कि नूडल्स, सूप, चिकन नगेट्स, चिकन बौल्स, मीट बौल्स, मटन नगेट्स और न जाने क्याक्या, बनाने का झंझट नहीं और खाने में भी स्वादिष्ठ, मन तो आखिर ललचाएगा ही न.
जीवन की आपाधापी में तो कभी शौकिया और कभी अचानक किसी मेहमान के आ जाने पर पैकेट फूड या फ्रोजन फूड का बड़ा सहारा होता है. हम इसीलिए रेडी टु ईट फूड की तरफ जानेअनजाने बढ़ ही जाते हैं. सब से बड़ी बात यह कि ये रेडी टु ईट फूड मौल्स से ले कर नुक्कड़ की दुकानों तक हर जगह उपलब्ध हैं. महानगर या शहर ही नहीं, गांव और कसबे में भी रेडी टु ईट फूड ने किचन में अपनी जगह बना ली है. पैकेट बंद फ्रोजन फूड अनाज की दुकानों तक में मिल जाते हैं.
ये भी पढ़ें- जंक फूड को हेल्दी बनाने के कुछ शानदार टिप्स
बनाना आसान
एक जमाना था जब छोले बनाने होते थे तो रात से ही तैयारी करनी पड़ती थी. छोले को भिगोना और सुबह तमाम मसाले को तालमेल के साथ तैयार करना व फिर छोले उबालना, मसाले पीसना, भूनना वगैरह. लेकिन आज मसाले तो क्या, मौसमबेमौसम हर तरह की सब्जीभाजी से ले कर मछलीमीट तक प्रीकुक्ड यानी पहले से तैयार खाने के सामान बंद पैकेटों में मिल जाते हैं और स्वाद, उस का तो कहना ही क्या.
स्वाद में बेजोड़ होने के कारण इन का बाजार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. अगर किसी परिवार में पैकेट फूड का इस्तेमाल नहीं भी किया जाता है तो भुना तैयार मसाला, गार्लिक पेस्ट, जिंजर पेस्ट के लिए उस के किचन में जगह निकल ही आती है. कुल मिला कर इन तैयार खाने के सामानों ने जीवन को बहुत आसान बना दिया है, खासतौर पर उन कामकाजी महिलाओं के, जिन पर घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी है.
फलताफूलता व्यवसाय
पैकेटबंद फूड के चलन के चलते खाद्य प्रसंस्करण एक बढ़ता, फलताफूलता उद्योग बनता जा रहा है. केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि पिछले एक दशक में आसानी से तैयार हो जाने वाले पैकेटबंद फूड के बाजार में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
कोलकाता के यादवपुर विश्वविद्यालय के फूड टैक्नोलौजी के प्रो. उत्पल राय चौधुरी का कहना है कि ऐसे पैकेटबंद या रेडी टु ईट खाने के सामानों के साथ ढेर सारे ‘लेकिन’, ‘किंतु’ और ‘परंतु’ जुड़े हुए हैं. खाने में स्वादिष्ठ पैकेटबंद सामानों के बारे में फौरी तौर पर कहा जाए तो अव्वल इन में बहुत ज्यादा सोडियम यानी नमक होता है. इस के अलावा कार्बोहाइड्रेट्स, बड़ी मात्रा में फ्रूटोज, ट्रांसफैट होते हैं. उस में सेहत के लिए जरूरी विटामिंस विशेषरूप से विटामिन बी1 और विटामिन सी व मिनरल्स की कमी होती है. दरअसल, इसे तैयार करने में इन के पौष्टिक गुण नष्ट हो जाते हैं. दूसरे, इन में अच्छीखासी मात्रा में प्रिजरवेटिव्स के साथ कृत्रिम रंग और खुशबू का इस्तेमाल होता है.
ये भी पढ़ें- कम पानी पीने से हो सकते हैं ये नुकसान
हकीकत यह है कि बड़ी से बड़ी या नामीगिरामी कंपनी क्यों न हो, पैकेट में कोई भी इस बात का सहीसही जिक्र नहीं करती है कि उस में कितनी मात्रा में प्रिजरवेटिव्स और रंग का इस्तेमाल किया गया है. प्रो. उत्पल राय कहते हैं कि हालांकि इन का इस्तेमाल करने का न केवल एक मानक तय कर दिया गया है बल्कि इस से संबंधित कानून भी हैं लेकिन जागरूकता की कमी के कारण इस पर पूरी तरह से अमल नहीं हो रहा है.
रेडी टु ईट फूड के खतरे
ज्यादातर रेडी टु ईट या फ्रोजन फूड में उपादानों की सूची में हमें उन उपादानों का जिक्र देखने को नहीं मिलता जो हमारी सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. ज्यादातर प्रोडक्ट में मोनोसोडियम ग्लुटैमेट या एमएसजी होता है, लेकिन सूची में इन का जिक्र अजीनोमोटो के रूप में या नैचुरल फ्लेवरिंग के तौर पर होता है.
इन में इतना अधिक नमक होता है कि लगातार इन का सेवन करने वालों को हाइपरटैंशन का खतरा बन जाता है. गर्भवती महिलाओं के लिए तो यह जहर बराबर है. इन्हें हाइड्रोजेनेटेड या आंशिक तौर पर हाइड्रोजेनेटेड तेल में तैयार किया जाता है. इन में आमतौर पर बहुत अधिक कैलोरी होती है. इस कैलोरी को खाद्य विशेषज्ञ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानते हैं.
इन में मौजूद ट्रांसफैट की मात्रा सेहत के लिए हानिकारक होती है. यह ट्रांसफैट हाइड्रोजन गैस और तेल के मिश्रण से तैयार होता है. हालांकि प्राकृतिक रूप से यह ट्रांसफैट बीफ और मिल्क प्रोडक्ट में पाया जाता है. यह कोलैस्ट्रौल को बढ़ाता है. इस से मोटापे के खतरे के साथ धमनियों में चरबी जमने की आशंका होती है.
नूडल्स और सूप में काफी मात्रा में स्टार्च और नमक होता है. इस के अलावा एमएसजी यानी मोनोसोडियम ग्लुटैमेट होता है. पैकेट बंद गार्लिक व जिंजर पेस्ट का इस्तेमाल करने वालों को इस में एक विशेष तरह की गंध की शिकायत होती है. उत्पल रायचौधुरी का कहना है कि यह गंध दरअसल प्रिजरवेटिव्स की होती है. अलगअलग कंपनियां 1 साल से 6 महीने तक इस्तेमाल लायक बनाने के लिए उन में अधिक मात्रा में प्रिजरवेटिव्स उपादान डालती हैं.
सेहत का रखें खयाल
आज की भागती जिंदगी में रेडी टू ईट का हम सब को बड़ा सहारा है. खासतौर पर सूप और नूडल्स का. इस से होने वाले नुकसान को कम कर के इसे पौष्टिक बनाने के कुछ तरीके भी हैं. पैकेटबंद खाने में सोडियम की मात्रा को कम करने के लिए इस के मसाले के पाउच का इस्तेमाल आधा या उस से कम करें. रेडी टू ईट सूप को सेहत के लिए उपयुक्त बनाने के लिए इस में उबला अंडा, घर पर तैयार किया गया चिकन, हरे पत्तों वाली सब्जी, मसलन, नूडल्स में पत्तागोभी और सूप में पालक के अलावा गाजर, बींस, शिमलामिर्च और मटर डाला जा सकता है. पैकेटबंद खाना खाना अगर मजबूरी ही है तो इस बात का ध्यान रखें कि इसे अपनी आदत न बनाएं. कभीकभार ही इस का सहारा लें.
ये भी पढ़ें- Holi Special: ताकि रंग न करें रंगत फीकी
खरीदारी के समय सावधानी
- पैकेट के लेबल को जरूर पढ़ कर जान लें कि आप जो चीज खरीद रही हैं, उस की पौष्टिकता का मान क्या है? इस की ‘मैन्यूफैक्चरिंग डेट’, ‘बैस्ट बिफोर ईट’, पैकेजिंग सील और लीकेज के प्रति सुनिश्चित हो लें.
- फ्रोजन फूड को घर पर फ्रिज में हमेशा किसी इंसुलेटेड बौक्स या बैग में ही रखें. वह भी 0 से 4 डिगरी सैल्सियस के बीच तापमान पर. इस से इस में बैक्टीरिया पनपने का खतरा कम हो जाता है.
- एक बार पैकेट खोल लिया है तो पूरा का पूरा पैकेट खत्म कर दें. खुला पैकेट फिर से इस्तेमाल के लिए न रखें. हालांकि कुछ सामग्री के लेबल पर लिखा होता है कि पैकेट खोलने के बाद इतने समय के लिए फ्रिज में सुरक्षित रखा जा सकता है लेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि खुले पैकेट में खाना जल्दी खराब हो जाता है, साथ ही उस का स्वाद भी कम हो जाता है.
- ज्यादातर फ्रोजन फूड में एक खास तरह के लिस्टेरिया बैक्टीरिया होते हैं, जो कम तापमान में नहीं मरते. इसीलिए ऐसी खाद्य सामग्री के लेबल में इन्हें गरम करने से संबंधित निर्देश को ध्यान से पढ़ कर उन्हीं के अनुरूप खाना गरम करें.
सीनियर डायटीशियन रश्मी रायचौधुरी का कहना है कि प्रसंस्करण के दौरान खाद्य सामग्री की पौष्टिकता नष्ट हो जाती है. प्रिजरवेटिव्स और रंग की मिलावट के कारण आजकल समय से पहले अधेड़ दिखने के साथ ही साथ कैंसर जैसी बीमारी की आशंका भी देखी जा रही है. हालांकि पैकेटबंद खाद्य सामग्री तैयार करने वाली कंपनियों की तरफ से सहनीय मात्रा में प्रिजरवेटिव्स और रंग का उपयोग करने का जो दावा किया जाता है, अगर वे सही हैं तो उन से खतरे की गुंजाइश नहीं होती है लेकिन विशेषज्ञों की राय यह है कि कंपनियां आपसी प्रतिद्वंद्विता के चलते पैकेटबंद खाद्य सामग्रियों की ऐक्सपायरी डेट बढ़ाने के लिए ‘परमिसेबल’ मात्रा से कहीं अधिक प्रिजरवेटिव्स का इस्तेमाल करती हैं.
जहां तक सूप और नूडल्स का सवाल है तो एक तरफ इस की कीमत इतनी कम होती है कि स्कूली बच्चे अपनी पौकेट मनी से खरीद लेते हैं. जबकि संतुलित भोजन का उपादान इस में बिलकुल नहीं होता, क्योंकि इस में न तो प्रोटीन होता है और न ही विटामिन और खनिज. जहां तक फाइबर का सवाल है तो वह भी नहीं होता. इसीलिए यह आंतों में चिपक जाता है.