राजेश रात के 2 बजे एकाएक उठ बैठा. उस के पेट में असहनीय दर्द और सीने में जलन हो रही थी. रमेश अपने बेटे राजेश को ले कर तुरंत अस्पताल के आपातकक्ष में पहुंचा. तमाम परीक्षणों से पता चला कि उस की छोटी आंत में घाव है. उसी समय उस को भरती किया गया और डाक्टर की देखरेख में 15 दिनों तक चले इलाज से रोग पर काबू पाया जा सका.

40 वर्षीय मनोरमा का पेट अकसर फूला रहता है. कई बार असहनीय दर्द उठता है और उस के साथ जी मिचला कर उलटियों का सिलसिला शुरू हो जाता है. जब उस की यह परेशानी हद से ज्यादा बढ़ गई तो उस ने पेट के डाक्टर से सलाह ली, तब जा कर पता चला कि उस के पित्ताशय में पथरी है. शल्यक्रिया से उस की पथरी निकाल दी गई. तब जा कर उसे आराम मिला.

पेटदर्द कोई नई बीमारी नहीं है मगर यह रोगी को बेहद दुखी जरूर कर सकती है. खास बात है दर्द के कारणों को खोज कर उचित इलाज करना. आइए, चिकित्सा शास्त्र के माध्यम से इस के कारणों को खोजा जाए :

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पेट में अल्सर

हमारे आमाशय में लगातार हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का निर्माण होता है जो आमाशय की मुलायम दीवारों को जला डालने में सक्षम होता है. आमतौर पर यहां बनने वाला गोंद जैसा लसलसा पदार्थ, जिसे ‘म्यूकस’ कहा जाता है, अम्ल के घातक प्रहारों से आमाशय की रक्षा करता है क्योंकि इस में अम्ल को अपने अंदर घोल कर निष्क्रिय बना डालने की अद्भुत क्षमता होती है. वहीं, यदि अम्ल के घातक हमलों से इस की परत नष्ट हो जाती है तो यह तुरंत अपना पुनर्निर्माण कर के अम्ल के प्रहारों को रोकता है.

इस सामान्य प्रक्रिया के अलावा जब कोई व्यक्ति अधिक चाय, कौफी, मदिरा, धूम्रपान, दर्द निवारक दवाएं, मिर्चमसालों का सेवन करता है तो उस में अम्ल की मात्रा सामान्य से कहीं अधिक बनने लगती है और म्यूकसरूपी रक्षक इन तीव्र हमलों से बच नहीं पाता है. फलस्वरूप, यहां की मुलायम दीवारें जल जाती हैं और ऐसा लंबे समय तक लगातार होता रहे तो आमाशय में ‘घाव’ बन जाते हैं जिसे डाक्टरी भाषा में ‘पेप्टिक अल्सर’ कहते हैं.

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इस प्रकार के रोगियों में सीने व पेट के मिलन स्थल पर ‘जलन के साथ दर्द’ होता है जो कंधों, पीठ और हाथ तक फैल जाता है. यदि घाव पेट यानी आमाशय में है तो दर्द भोजन के आधे से डेढ़ घंटे के भीतर शुरू हो जाता है और यदि घाव ‘छोटी आंत’ में है तो दर्द भोजन के 3 या 4 घंटे बाद होता है.

इस रोग का दर्द ज्यादातर मध्यरात्रि में होता है जिस से व्यक्ति की नींद उचट जाती है, क्योंकि उस समय पेट में भोजन न होने से वह खाली होता है जिस से अम्ल के विध्वंस को रोकने वाला कोई नहीं होता. जब पेट में अम्ल अधिक मात्रा में बनता है तो दबाव बढ़ने से कई बार यह अम्ल छाती के बीचोंबीच भोजन नली को भी क्षति पहुंचाते हुए मुंह के रास्ते भी बाहर निकलता है. इस स्थिति को चिकित्सा विज्ञान में ‘हार्ट बर्न’ के नाम से जाना जाता है.

ऐसे रोगी को थोड़े समय के अंतराल पर हलका भोजन लेते रहना चाहिए, यानी दिन में 5-6 बार. इसी प्रकार भोजन के डेढ़ घंटे बाद 1 कप ठंडा दूध पीते रहना चाहिए क्योंकि भोजन और दूध अम्ल को निष्क्रिय बनाते हैं.

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आधी रात में दर्द होने पर 1 कप दूध व बिस्कुट या डबलरोटी लेने से राहत महसूस होती है. किसी भी दवा का सेवन अपने डाक्टर की सलाह पर ही करें. ऐसे रोगी को भोजन वसायुक्त करना चाहिए जो अम्ल को निष्क्रिय बनाता है और घाव के स्थान पर भी मरहम का कार्य करता है. रोगी को मानसिक तनाव से बचना चाहिए और मिर्चमसाले, शराब, सिगरेट, दर्द निवारक औषधियों से परहेज करना चाहिए.

पैंक्रियाटाइटिस

यह मछलीनुमा अवयव, जो महत्त्वपूर्ण पाचक रस बनाता है, कभीकभी विनाश की ओर अग्रसर हो उठता है. अधिक व लगातार मदिरापान और पित्ताशय की पथरी यदि लंबे समय तक अनियंत्रित रहे तो इस का विनाश सुनिश्चित है. पेट में असहनीय दर्द, जी मिचला कर उलटियां, वजन में तेजी से गिरावट, अति अम्लता का प्रकोप आदि लक्षण प्रकट हो कर स्थिति को भयानक बनाते हैं. मदिरा का त्याग व पाचन क्रिया को प्रोत्साहित करने वाली दवाएं ही बचाव के श्रेष्ठ उपाय हैं.

पित्ताशय की पथरी

पाचक रस, जो लिवर से स्रावित होता है, को ‘पित्त’ कहते हैं. इस में पित्त अम्ल, पित्त लवण आदि मौजूद होते हैं. रक्त का वसीय घटक कोलैस्ट्रौल इसी पित्त अम्लों में घुला रहता है जिन का समीकरण 1:20 से 1:30 होता है. किसी भी कारण से जब यह सामान्य समीकरण अपने निश्चित अनुपात से नीचे गिरने लगता है तो यह रक्त का वसीय घटक कोलैस्ट्रौल, ठोस अवस्था में आ कर पित्त की थैली में जमा हो जाता है व इस के चारों ओर कैल्शियम और रंगीन पित्त के चकत्ते घेरा डाल लेते हैं, जिसे पथरी कहा जाता है.

इस में रोगी को पेट में असहनीय दर्द उठता है जो पीछे पीठ व आगे गले तक भी जाता है और रोगी दर्द से कराह उठता है.पित्ताशय की पथरी 40 वर्ष की आयु से ऊपर की मोटी महिलाओं में अधिक होती है. सोनोग्राफी और सीटी स्कैन जैसी रोग निदान तकनीकों से रोग का पता लगाया जाता है. शल्यक्रिया द्वारा इस का पूर्ण उपचार संभव है.खून में कोलैस्ट्रौल का स्तर और लिवर परीक्षण समयसमय पर करवाते रहना श्रेष्ठ है. लंबे समय तक यदि यह पथरी रोग अनियंत्रित रहे तो संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

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कुछ सामान्य कारण

  1. कभीकभी मानसिक तनाव की स्थिति में आंतों की संकुचित होने की प्रक्रिया और पाचक रस स्रावन दर बढ़ जाती है जिस की परिणति दस्तों में होती है. इस प्रकार के मल में अधिक मात्रा पानी की होती है.
  2.  कब्ज भी पेटदर्द का एक सामान्य कारण है. मल आंतों में कड़ा हो कर ऐंठन (मरोड़) उत्पन्न करता है. कब्ज निवारण हेतु खूब जल सेवन करें और सलाद खूब खाएं. नियमित व्यायाम बहुत गुणकारी है.
  3. पार्टियों या बाजार में कुछ खाद्य व पेय पदार्थ संक्रमित हो जाते हैं जिन के सेवन से उलटीदस्त शुरू हो जाते हैं. यह फूड पौयजनिंग पेट में मरोड़ भी पैदा करता है.
  4. गरमी के दिनों में उलटीदस्त और पेट में दर्द एक आम शिकायत रहती है. ओआरएस का सेवन उलटीदस्त के कारण शरीर में हुई पानी की कमी को पूरा करता है.

कुछ परीक्षण

  1. अति अम्लता या पेप्टिक अल्सर के निदान के लिए बेरियम मील एक्सरे किया जाता है. इस के लिए बेरियम सल्फेट का घोल पिला कर एक्सरे लिया जाता है जिस से आमाशय और आंतें साफ दिखाई देती हैं और घाव स्पष्ट नजर आता है.
  2. एंडोस्कोपी परीक्षण तकनीक द्वारा आमाशय या आंतों में घाव (पेप्टिक अल्सर) की जांच की जाती है. मुंह या नाक के रास्ते ट्यूब डाल कर इस यंत्र द्वारा इन अंगों को स्पष्ट देखा जा सकता है.
  3. पैंक्रियाज की खास जांच के लिए ‘ईआरसीपी’ तकनीक वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रयोग की जाती है जिस से इस अवयव की भलीभांति जांच होती है.
  4. रक्त परीक्षण जिस में एमाइलेज स्तर, लाइपेज स्तर, कोलैस्ट्रौल स्तर (लिपिड प्रोफाइल) आदि शामिल हैं, से विभिन्न पाचक अंगों की कार्यप्रणाली का स्तर ज्ञात होता है.
  5. मल परीक्षण द्वारा भी इन अवयवों की कार्यप्रणाली के बारे में पता चलता है. मल में रक्तस्राव, जो कई दफा केवल सूक्ष्मदर्शी से ही दिखता है, वस्तुस्थिति को दर्शाता है.

बहरहाल, पेटदर्द को सामान्य समझ कर अनदेखा न करें क्योंकि यह कई रोगों के कारणों का पिटारा हो सकता है. जरूरत है इस का कारण जान कर उचित निदान करने की.

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