अपनी आंखों से सोचती हूं मैं
और पोरों से देखती हूं मैं
जो भी हालात हैं मेरे अंदर के
सब से बेहतर जानती हूं मैं
इक अजब टूटफूट जारी है
अंदर ही अंदर मर रही हूं मैं
रातभर जागने में सोती हूं मैं
और सोते में जागती हूं मैं
इतनी वहशत है अपने होने से
अपने आप से भागती हूं मैं
मेरा हो कर भी जो नहीं मेरा
दिलोजान उस पे वारती हूं मैं
कोई बस भी मेरा नहीं चलता
लाख इस दिल को रोकती हूं मैं
गरचे नौबीना ही सही ऐ गुल
दिल की आंखों से देखती हूं मैं.
– गुलनाज
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