घर बचाने के लिए जिल्लत की आग में
जलना पड़ा मुझे
भूखे बच्चों की खातिर
नंगे पांव चलना पड़ा मुझे
सच को सच साबित करने के लिए
मुसीबतों के दरिया से गुजरना पड़ा मुझे
अपने उसूलों को जिंदा रखने के लिए
हर रोज एक मौत मरना पड़ा मुझे
सूखे पत्तों सा मुझे न उड़ा ले जाए कहीं
वो सिरफिरी हवा थी, संभलना पड़ा मुझे
कल ला देंगे बाजार से खिलौना तुझे
इस बहाने से हर रोज बहलना पड़ा मुझे
गर्दिश में जब हालत देखी मैं ने
पत्थर था, मोम सा पिघलना पड़ा मुझे.
- डा. तेजपाल सोढ़ी ‘देव’
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