बहुत दिन से मैं ने देखी नहीं है धूप
कैसी होती है, भूल सी गई हूं
थोड़ी रोशनी उधार दे दो न तुम
अंधेरे तहखानों में छूट रही हैं सांसें
सीलन और उमस फैली है चारों ओर
अपनी खुशबू उधार दे दो न तुम
सन्नाटों ने घेरा है मुझ को
तन्हाई में घूमती हूं उदास
ये मुस्कुराहट उधार दे दो न तुम
परेशान हूं न जाने क्यों
पशेमां हूं अपने आप पर
थोड़ी जिंदगी उधार दे दो न तुम
चाहती हूं फिर लौट आए
वो जो मेरा खो गया था
मेरा बचपन उधार दे दो न तुम
जो तुम दोगे कोई न दे सकेगा ‘उधार’
लौटा सकूंगी तुम्हारा सबकुछ
यह जानती नहीं
जो भी तुम दोगे रखूंगी संभाल कर
क्या तुम दोगे बस, थोड़ा प्यार
मुझे उधार.
– अर्चना भारद्वाज
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