पलक झपकते ही मन में
तुम ने कैसी प्रीत जगा दी
मधुरमधुर मुसकरा कर तुम ने
तन में कैसी अगन लगा दी
इसे बुझाने का कितना भी
यत्न करूं, सब निष्फल होगा
शर्म से दहके गाल बन गए
वे सिंदूरी आम तुम्हारे
दो नटखट वे नैन बन गए
दो अंगूरी जाम तुम्हारे
नशा चढ़ा है, क्या उतरेगा?
यत्न करूं, सब निष्फल होगा.
डा. महेंद्र कौशिक
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