नरेंद्र मोदी को आगे रख कर भारतीय जनता पार्टी किला फतह करेगी या आत्महत्या करेगी, यह 2014 में पता चलेगा पर इतना साफ है कि नरेंद्र मोदी विकास की चाहे जितनी बात कर लें वे असल में कट्टर हिंदूवादी नेता हैं और अपनी वही सोच वे देश पर लादने की कोशिश करेंगे. एक इंटरव्यू में उन्होंने साफ कहा भी है कि वे हिंदू राष्ट्रवादी हैं जिस का अर्थ केवल एक है, हिंदू कट्टर हैं.

उन का कहना कि वे हिंदू हैं, वे राष्ट्रवादी हैं इसलिए हिंदू राष्ट्रवादी कहलाने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं, उन के लिए चाहे सही हो पर देश के लिए घातक है. इसी तरह के शब्दों से मुसलिम राष्ट्रीयता का जन्म हुआ था जिस का नतीजा देश का विभाजन और 66 सालों से लगातार चलता आ रहा झगड़ा है.  धर्म राष्ट्रीयता तो हो ही नहीं सकता क्योंकि यह थोपा हुआ विचार है. धर्म प्रचारक बचपन से ही लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं और उन का इकलौता मकसद अपने भक्तों से पैसा कमाना होता है. हर धर्म दान और धर्म के दुकानदारों की सेवा पर टिका होता है, भक्त को संतोष देने की दवा पर नहीं.

आज आदमी ने पहचान लिया है कि सुख तकनीक से मिलता है, प्रकृति को अपने अनुसार ढालने से मिलता है. पिछले 400 सालों की वैज्ञानिक उन्नति ने जीवन बदल दिया है पर अफसोस है कि सोच पर उस का असर नहीं है. इस का कारण विज्ञान की कमजोरी नहीं बल्कि धर्म प्रचारकों का जोर और धर्म पर विश्वास न करने वालों की चुप्पी है.   नरेंद्र मोदी हिंदू धर्म के नाम पर अगर वोट पाने का सपना देख रहे हैं तो पक्का है कि देश में तनाव फैलेगा. धर्म प्रचारकों की इतनी खूबी तो है कि वे लच्छेदार बातों में उलझा कर अच्छोंअच्छों को कायल कर देते हैं कि उन के साथ जो बुरा हो रहा है वह दूसरे धर्म के लोगों के कारण है. भारतीय जनता पार्टी ने 1990 के दशक में यह रास्ता अपनाया और अब फिर अपनाने की कोशिश में हैं.

भारतीय जनता पार्टी के साथ कठिनाई यह है कि उस के समझदार नेताओं के हाथ बंधे हुए हैं. उन के पास कुछ नया कहने या करने को नहीं बचा. संसद में व टैलीविजन पर बोलबोल कर वे थक गए हैं और जमीनी नरेंद्र मोदी को टक्कर देने में असमर्थ हैं. उन के पास अब चारा यही बचा है कि वे फिर उसी रास्ते पर चलें जिस पर नरेंद्र मोदी हांक रहे हैं, चाहे अंत में नदी में क्यों न कूदना पड़े.

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