इधरउधर देख कर मालविका ने पार्टी में आए अन्य लोगों का जायजा लेने का यत्न किया था पर कोई परिचित चेहरा नजर नहीं आया था.
‘‘अरे मौली, तुम यहां?’’ तभी पीछे से किसी का परिचित स्वर सुन कर उस ने पलट कर देखा तो सामने नमन खड़ा मुसकरा रहा था.
‘‘यही प्रश्न मैं तुम से भी कर सकती हूं. तुम यहां क्या कर रहे हो?’’ मालविका मुसकरा दी थी.
‘‘बोर हो रहा हूं और क्या. सच कहूं तो इस तरह की पार्टियों में मेरी कोई रुचि नहीं है,’’ नमन ने उत्तर दिया था.
‘‘ऐसा है तो पार्टी में आए ही क्यों हो?’’
‘‘आया नहीं हूं, लाया गया हूं. सेठ रणबीर मेरे चाचाजी हैं. उन का निमंत्रण मिलने के बाद पार्टी में न आने से बड़ा अपराध कोई नहीं हो सकता,’’ नमन मुसकराया था.
‘‘वही हाल मेरा भी है. पर छोड़ो यह सब, बताओ, जीवन कैसा चल रहा है?’’
‘‘कुछ विशेष नहीं है बताने को. तुम्हारी ही तरह बैंक में अफसर हूं. पूरा दिन यों ही बीत जाता है. सप्ताहांत में थोड़ाबहुत रंगमंच पर अभिनय कर लेता हूं. हम कुछ मित्रों ने मिल कर नाट्य क्लब बना लिया है.’’
‘‘यह तो शुभ समाचार है कि तुम कालेज के दिनों के कार्यकलापों के लिए अब भी समय निकाल लेते हो. कभी हमें भी बुलाओ अपने नाटक दिखाने के लिए.’’
‘‘क्यों नहीं, हमारा एक नाटक शीघ्र ही मंचित होने वाला है. आमंत्रण मिले तो आना अवश्य. आजकल मेरे अधिकतर मित्र फिल्म या डिस्को में रुचि लेते हैं, नाटकों से वे दूर ही भागते हैं, पर तुम उन सब से अलग हो.’’
तभी नमन का कोई परिचित उसे पकड़ कर ले गया था और उतनी ही तेजी से हाथ में बीयर का गिलास थामे रोमी उस की ओर आया था.
‘‘कौन था वह?’’ रोमी ने तीखे स्वर में प्रश्न किया था.
‘‘किस की बात कर रहे हो तुम?’’
‘‘वही जिस से बहुत घुलमिल कर बात कर रही थीं तुम.’’
‘‘अच्छा वह, वह नमन है. कालेज में मेरा सहपाठी था और अब मेरी ही तरह बैंक की एक अन्य शाखा में कार्यरत है. मेरा अच्छा मित्र है,’’ मालविका ने उत्तर दिया था.
‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि इन टुटपुंजियों को मुंह मत लगाया करो. तुम अब केवल एक मध्यवर्गीय परिवार की युवती नहीं बल्कि मेरे जैसे जानेमाने उद्योगपति की महिलामित्र हो. मैं नहीं चाहता कि तुम अब अपने पुराने मित्रों से कोई भी संबंध रखो,’’ रोमी गुर्राया था. उस का तीखा स्वर सुन कर मालविका स्तब्ध रह गई थी.
वह चित्रलिखित सी पार्टी में भाग लेती रही थी पर मन ही मन सहमी हुई थी. यह सच था कि वह एक मध्यवर्गीय परिवार से संबंधित थी. जबकि रोमी एक जानेमाने उद्योगपति परिवार से था. मर्सिडीज, बीएमडब्लू जैसी गाडि़यों में घूमने वाले और पांचसितारा होटलों में उसे ले जाने वाले रोमी से मालविका बेहद प्रभावित थी. और कोई उस की नजरों में ठहरता ही नहीं था.
मौली उर्फ मालविका का परिवार बहुत अमीर न होने पर भी खासा प्रतिष्ठित था. पिता जानेमाने चिकित्सक थे पर पैसा कमाने को उन्होंने अपना ध्येय कभी नहीं बनाया. अपनी संतान में भी उन्होंने वैसे ही संस्कार डालने का यत्न किया था पर मौली रोमी की चकाचौंधपूर्ण जिंदगी से कुछ इस तरह प्रभावित थी कि किसी के समझानेबुझाने का उस पर कोई असर नहीं होता था.
पार्टी समाप्त हुई तो रोमी पूर्णतया सुरूर में था.
‘‘कैसी रही पार्टी?’’ उस ने कार को मुख्य सड़क पर मोड़ते हुए पूछा था.
‘‘बेहद उबाऊ और बकवास पार्टी थी. मेरा तो दम घुट रहा था वहां,’’ मौली बोली थी.
‘‘मैं जानता था तुम यही कहोगी. कभी गई हो ऐसी शानदार पार्टियों में? मैं तो यह सोच कर तुम्हें ऐसी पार्टियों में ले जाता हूं कि तुम सभ्य समाज के कुछ तौरतरीके सीख लोगी. पर तुम तो हर जगह अपने पुराने मित्र ढूंढ़ निकालती हो. कभी अपनी तुलना की है ऊंची सोसाइटी की अन्य युवतियों से? माना, कुदरत ने सौंदर्य दिया है पर ढंग से सजनासंवरना तो सीखना ही पड़ता है. अपनी पोशाक पर कभी दृष्टि डाली है तुम ने? महेंद्र बाबू की बेटी सुहानी पूछ बैठी कि तुम किस डिजाइनर की बनी पोशाक पहने हुए हो तो मैं तो शर्म से पानीपानी हो गया,’’ रोमी धाराप्रवाह बोले जा रहा था.
‘‘बस या और कुछ?’’ रोमी के चुप होते ही मौली चीखी थी, ‘‘तुम और तुम्हारा पांचसितारा कल्चर, मेरा दम घुटता है वहां. भूल मेरी थी जो मैं तुम्हारे साथ पार्टी में चली आई. मुझे नहीं चाहिए यह चमकदमक और तुम्हारे साथ इन बड़ी गाडि़यों में घूमना.’’
‘‘ठीक कहा तुम ने, तुम्हारी औकात ही नहीं है ऊंचे लोगों के बीच उठनेबैठने की या मेरे साथ महंगी कारों में घूमने की. चलो उतरो, इसी समय,’’ रोमी ने झटके से कार रोक दी थी.
मौली को काटो तो खून नहीं. उस के घर से 15 किलोमीटर दूर, निर्जन सड़क और रात के 12 बजे का समय, कहां जाएगी वह.
‘‘क्या कह रहे हो? मैं आधी रात को अकेली कहां जाऊंगी? मुझे मेरे घर तक छोड़ दो. मैं तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूलूंगी,’’ मौली बिलख उठी थी.
‘‘ये भावुकता की बातें रहने दो. मैं तुम मिडिल क्लास लोगों को भली प्रकार पहचानता हूं. अपनी गरज के लिए गिड़गिड़ाने लगते हो, रोनेपीटने लगते हो. काम निकल जाने पर अपने आदर्शों की बड़ीबड़ी बातें करते हो. दफा हो जाओ मेरी आंखों के सामने से,’’ रोमी ने घुड़क दिया था.
हार कर डरीसहमी सी मालविका कार से उतर गई थी. उसे आशा थी कि उस के उतरने के बाद रोमी का दिल पसीज जाएगा और वह उसे फिर कार में बैठने को कहेगा. पर ऐसा नहीं हुआ. उस के उतरते ही रोमी की कार फर्राटे भरते उस की आंखों से ओझल हो गई थी.
मौली ने अपना पर्स खोल कर देखा. टैक्सी का बिल चुकाने लायक पैसे थे पर टैक्सी मिले तब न. उस की आंखें डबडबा आईं. घर में तो सब यही सोच रहे होंगे कि वह रोमी के साथ है. वे बेचारे क्या जानें कि वह आधी रात को दूर तक नागिन की तरह फैली सीधीसपाट सड़क पर अपने ही आंसुओं को पीती पैदल चली आ रही होगी.
मौली कुछ दूर ही चली होगी कि उस के पास एक कार आ कर रुकी, जिस में 5 मनचले युवक सवार थे. शराब के नशे में धुत वे तरहतरह की आवाजें निकाल रहे थे. मौली को अकेले चलते देख कर उन्होंने अभद्र इशारे करते हुए उस से कार में बैठने का आग्रह किया. उस ने पहले तो उन की बात अनसुनी कर दी पर जब वे उस के साथ कार चलाते हुए उलटीसीधी हरकतें करने लगे तो वह फट पड़ी.
‘‘मेरा घर पास ही है. मैं ने एक बार कह दिया कि मुझे सहायता नहीं चाहिए तो क्या सुनाई नहीं पड़ता,’’ मौली दम लगा कर चीखी थी. पर कार में से
2 युवक डरावने अंदाज में उस की ओर बढ़े थे. वह सहायता के लिए चीखी तो दूसरी दिशा से आती एक कार उस के पास आ कर रुकी थी.
‘‘क्या हो रहा है यह?’’ कारचालक ने प्रश्न किया था.
‘‘देखिए न, मैं शरीफ लड़की हूं, ये गुंडे मुझे तंग कर रहे हैं,’’ मौली बोली थी.
‘‘शरीफ…हुंह, शरीफ लड़कियां आधी रात को यों सड़कों पर नहीं घूमतीं,’’ कारचालक हिकारत से बोला था, ‘‘और तुम लोग जाते हो यहां से या बुलाऊं पुलिस को?’’ उस ने युवकों को धमकाया तो वे भाग खड़े हुए.
‘‘कृपया मुझे मेरे घर तक छोड़ दीजिए,’’ मौली ने कारचालक से विनती की थी.
‘‘क्षमा कीजिए, महोदया. मेरी बहन नर्सिंगहोम में है. मैं उसे देखने जा रहा हूं. वैसे भी मैं न तो अनजान लोगों को लिफ्ट देता हूं न उन से लिफ्ट लेता हूं,’’ कार- चालक भी उसे अकेला छोड़ कर चला गया था.
अब उस ने अपना फोन निकाला था. अब तक वह डर रही थी कि किसी को उस के इस अपमान का पता चल गया तो कितनी बदनामी होगी पर अब नहीं. पापा भी नाराज होंगे पर इस समय सहीसलामत घर पहुंचना अत्यंत आवश्यक था. उस ने फोन किया तो मां ने फोन उठाया था.
‘‘मौली, कहां हो तुम? 1 बजने जा रहा है. मेरा चिंता के मारे बुरा हाल है. पार्टी क्या अभी तक चल रही है?’’ उस की मां नीता देवी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी. पर जब मौली ने वस्तुस्थिति से अवगत कराया तो उन के पांवों तले से जमीन खिसक गई थी.
‘‘किसे भेजूं इस समय? तुम्हारे पापा तो 2 घंटे पहले ही नींद की गोलियां ले कर सो चुके हैं. किस पड़ोसी को जगाऊं, इस समय. तुम जहां हो, वहीं आड़ में छिप कर खड़ी हो जाओ. सड़क पर अकेले चलना खतरे से खाली नहीं है. मैं अश्विन को जगाती हूं. वह न नहीं करेगा,’’ नीता देवी बोली थीं.
‘‘अश्विन? रहने दो मां. उस के पास तो कार भी नहीं है. मैं पुलिस को फोन करूंगी.’’
‘‘भूल कर भी ऐसी गलती मत करना. मैं अश्विन से पूछूंगी. यदि कार चला सकता है तो हमारी कार ले जाएगा, नहीं तो अपने स्कूटर पर आ जाएगा. यह समय नखरे दिखाने का नहीं है,’’ नीता देवी ने डपट दिया था.
अश्विन की बात सुनते ही मौली को झुरझुरी हो आई. वह मौली के घर में ही किराएदार था और किसी कालेज में व्याख्याता था. आजकल अखिल भारतीय प्रतियोगिता की तैयारी में जुटा था. नीता देवी से उस की खूब पटती थी. पर मौली ने उसे कभी महत्त्व नहीं दिया. प्रारंभ में उस ने मौली से बातचीत करने का प्रयत्न किया था पर उस की बेरुखी देख कर उस ने भी उस से किनारा कर लिया था. इस समय आधी रात को उस से मदद मांगना मौली को अजीब सा लग रहा था. वह आने के लिए तैयार भी होगा या नहीं, कौन जाने.
मौली खंभे की आड़ में खड़ी यह सब सोच ही रही थी कि नीता देवी का फोन आया था.
‘‘अश्विन को कार चलानी नहीं आती. वह अपने स्कूटर पर ही आ रहा है. शास्त्री रोड पर वह अपना हौर्न बजाते हुए आएगा तभी तुम सड़क पर आना,’’ नीता देवी ने आदेश दिया था.
लगभग 15 मिनट में हौर्न बजाता हुआ अश्विन उस के पास आ पहुंचा था, पर मौली को लगा मानो सदियां बीत गई हों. वह चुपचाप पिछली सीट पर बैठ गई थी.
घर पहुंची तो मां से गले मिल कर देर तक रोती रही थी मालविका. मां ने ही अश्विन की भूरिभूरि प्रशंसा करते हुए धन्यवाद दिया था. उस के मुंह से तो बोल ही नहीं फूटे थे.
इस के 2 दिन बाद ही रोमी का फोन आया था. देर तक क्षमायाचना करता रहा था. नशे में उस से बड़ी भूल हो गई. मालविका जो सजा दे उसे मंजूर है.
मौली ने उस की किसी बात का उत्तर नहीं दिया. सबकुछ चुपचाप सुनती रही थी. दोचार बार के फोन वार्त्तालाप के बाद रोमी घर आया. आज फिर वह मालविका को किसी विशेष आयोजन में ले जाने आया था.
उस के पिता के मित्र प्रसिद्ध फिल्म निर्माता नलिन बाबू की नई फिल्म का मुहूर्त था और रोमी सोचता था कि ऐसे ग्लैमरस आयोजन के लिए मौली न नहीं कह पाएगी.
नीता देवी ने तो सुनते ही डपट दिया था, ‘‘उस का साहस कैसे हुआ यहां आने का? उस दिन जो कुछ हुआ उस के बाद तुम उस के साथ जाने की बात सोच भी कैसे सकती हो.’’
‘‘जाने दो, मां. उस दिन रोमी नशे में था. बारबार थोड़े ही ऐसा करेगा. मैं तैयार हो कर आती हूं,’’ मालविका उठ कर अंदर गई थी.
कुछ ही क्षणों में बाहर से शोर उभरा था. किसी की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ पर मालविका के घर के सामने खड़ी रोमी की मर्सिडीज कार धूधू कर जल उठी थी.
आसपास के घरों के लोग घबरा गए थे. कुछ ही क्षणों में अग्निशामक दस्ता आ पहुंचा था. लोगों ने आग बुझाने के लिए पानी डालने का प्रयत्न भी किया था.
कैसे लगी यह आग? जितने मुंह उतनी बातें. कोई भी किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहा था. हैरानपरेशान रोमी अधजली कार ले कर जा चुका था. तभी नीता देवी की नजर मालविका पर पड़ी थी. उस के चेहरे पर अजीब संतुष्टि का भाव था. उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं. मानो, बिना कहे ही सब समझ गई हों.