Remembering Macaulay : 1835 में थौमस मैकाले के मिनट औन एजुकेशन के लागू होने के बाद ही 19वीं में भारत में वैचारिक क्रांति की शुरुआत हुई. सती उन्मूलन, विधवा विवाह, बाल विवाह पर रोक और कई सामाजिक सुधार करने वाले नेता मैकाले की शिक्षा से ही उभरे और समाज में बड़े परिवर्तन कर पाए.

मैकाले की नीति ने ही 19वीं में भारत की शिक्षा व्यवस्था को आकार देना शुरू किया जिस में सरकारी स्कूल, कालेज और यूनिवर्सिटीज में अंग्रेजी भाषा, पश्चिमी विज्ञान, कानून और साहित्य पर जोर दिया गया. जिस से पहली और दूसरी पीढ़ी के वे तमाम लोग निकल कर सामने आए जिन्हें आज हम 19वीं और 20वीं सदी के महान लोगों में गिनते हैं. आज आरएसएस और बीजेपी जिन बड़े नेताओं को अपने आदर्श के रूप में रखती है उन में से ज्यादातर मैकाले की शिक्षा की पैदाइश ही हैं.

श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कालेज से अंग्रेजी में औनर्स किया और कलकत्ता यूनिवर्सिटी से एमए और कानून की डिग्री ली थी.

एम.एस. गोलवलकर ने नागपुर के हिसलौप कालेज से स्नातक और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से एमएससी तथा कानून की पढ़ाई की थी. बीएचयू के नाम में भले ही हिंदू शब्द जुड़ा था, लेकिन उस का पाठ्यक्रम मैकाले की शिक्षा पर ही आधारित था.

के.बी. हेडगेवार ने कलकत्ता के नेशनल मेडिकल कालेज से मेडिसिन में डिग्री ली. यह कालेज भी मैकाले की शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा था.

लाला लाजपत राय ने रेवाड़ी के गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल और लाहौर के गवर्नमेंट कालेज से पढ़ाई की, जो सीधे ब्रिटिश सरकारी शिक्षा प्रणाली के तहत थे जिसे मैकाले ने बनाया था.

अरविंदो घोष ने इंग्लैंड में सैंट पौल स्कूल और कैमब्रिज के किंग्स कालेज से पढ़ाई की, जो पूरी तरह ब्रिटिश शिक्षा थी.

बाल गंगाधर तिलक ने पूना के डेक्कन कालेज से गणित और संस्कृत में स्नातक किया हालांकि तिलक की शुरुआती शिक्षा घर पर हुई, लेकिन कालेज स्तर पर उन्होंने मैकाले की शिक्षा को ही ग्रहण किया.

विनायक दामोदर सावरकर ने पूना के फर्ग्यूसन कालेज से स्नातक किया और लंदन में कानून की पढ़ाई की. फर्ग्यूसन कालेज डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी का था, लेकिन पाठ्यक्रम ब्रिटिश था.

बंकिम चंद्र चटर्जी ने हुगली कालेजिएट स्कूल और प्रेसिडेंसी कालेज से पढ़ाई की जो मैकाले की नीति पर चलने वाली संस्थाएं थीं. वे कलकत्ता यूनिवर्सिटी के पहले स्नातकों में से एक थे.

गोपाल कृष्ण गोखले ने बौम्बे के एलफिंस्टन कालेज से स्नातक किया और लंदन में कानून की पढ़ाई की. यह ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली का हिस्सा था.

ये सभी नेता ब्रिटिश काल में शिक्षित हुए. इन तमाम लोगों की पढ़ाई उस मैकाले की शिक्षा व्यवस्था के कारण हुई जो अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी ज्ञान पर आधारित थी. मैकाले की शिक्षा से निकले इन में से कई नेताओं ने बाद में मैकाले के एजुकेशन सिस्टम की आलोचना की.

सवाल यह है की मैकाले के एजुकेशन सिस्टम के लागू होने से पहले भारत का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग क्या कर रहा था? अगर मैकाले से पहले भारतीय शिक्षा व्यवस्था इतनी ही उन्नत थी तो भारतीय शिक्षा व्यवस्था से निकले लोग नजर क्यों नहीं आते? तमाम भारतीय इतिहासकार, वैज्ञानिक, समाज सुधारक और नेता मैकाले की शिक्षा लागू होने के बाद ही क्यों पैदा हुए? मैकाले की शिक्षा व्यवस्था लागू होने के बाद इस देश में छः सौ से ज्यादा रियासतें थीं सभी रियासतों ने अपनी औलादों को मैकाले की दी हुई ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली में ही क्यों शिक्षित किया? मैकाले की शिक्षा व्यवस्था में शिक्षित होने वाली पहली पीढ़ी भारत की ऊंची जाती के लोग थे.
अगर मैकाले की शिक्षा व्यवस्था इतनी ही बुरी थी तब ऊंची जाति के लोगों ने इस का बहिष्कार क्यों नहीं किया?

शकील “प्रेम” : मैकाले के लिए खास

थौमस मैकाले की शिक्षा नीति के बारे में तमाम तरह के भ्रम पैदा किए जाते हैं जबकि ऐतिहासिक नजरिए से समझे तो मैकाले ने शिक्षा व्यवस्था में क्रांति ला कर भारत के लोगों को सभ्य और शिक्षित बनाया. मैकाले शिक्षा नीति के तहत ब्रिटिश काऊंसिल ने एक लाख रूपए का शुरुआती बजट तय किया था जिसे कैसे खर्च करना है इस के बारे में मैकाले कहते हैँ “एक लाख रुपए पूरी तरह से गवर्नर-जनरल इन काउंसिल के अधिकार में होने चाहिए, ताकि भारत में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन का उपयोग जिस भी तरीके से उचित समझा जाए, किया जा सके.
गवर्नर-जनरल को यह पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वह अरबी और संस्कृत के अध्ययन को प्रोत्साहित करना वैसे ही बंद कर दे जैसे गवर्नर जनरल को मैसूर में बाघ मारने के इनाम को कम करने या कैथेड्रल में होने वाले भजनकीर्तन पर सरकारी खर्च रोकने का अधिकार है.”

अब सवाल यह है की मैकाले को अरबी और संस्कृत से समस्या क्या थी? इस का जवाब भी मैकाले ने शिक्षा समिति के सामने रखा था. मैकाले कहते हैँ “सभी लोग इस बात पर सहमत हैं कि भारत के आम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं में न तो साहित्यिक और न ही वैज्ञानिक ज्ञान उपलब्ध है. ये भाषाएं इतनी गरीब और असभ्य हैं कि जब तक इन्हें किसी दूसरी भाषा से समृद्ध नहीं किया जाता, तब तक इन में किसी मूल्यवान पुस्तक का अनुवाद करना आसान नहीं होगा. जिन लोगों के पास उच्च शिक्षा प्राप्त करने के साधन हैं उन की बौद्धिक उन्नति किसी ऐसी भाषा के माध्यम से ही हो सकती है जो उन की मातृभाषा न हो.

इस के बाद वह प्रश्न उठाता है कि वह भाषा कौनसी होनी चाहिए?

मैकाले कहते हैँ “समिति का एक हिस्सा अंग्रेजी भाषा का समर्थन करता है, जबकि दूसरा हिस्सा अरबी और संस्कृत के पक्ष में हैं असली प्रश्न यह है कि कौनसी भाषा जानना सब से अधिक उपयोगी है. संस्कृत में लिखी गई सभी पुस्तकों से प्राप्त ऐतिहासिक ज्ञान, इंग्लैंड के प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली साधारण पुस्तकों से भी कम मूल्यवान है. भौतिक और नैतिक दर्शन के हर क्षेत्र में भारत की भाषाओं की अपेक्षा अंग्रेजी ज्यादा समृद्ध है.

तर्क के दृष्टिकोण से देखें तो मैकाले ने कड़वा सच कहा था. मदरसे या गुरुकुल में प्राथमिक शिक्षा के नाम पर जो कुछ पढ़ाया जाता था उसे एजुकेशन नहीं कहा जा सकता था. आज भी मदरसों और गुरुकुलों की शिक्षा पदवती में कोई ज्यादा बदलाव नहीं है. यह शिक्षण संस्थाएं बाद में हैं पहले यह धार्मिक संस्थाएं होती हैं जिन का उद्देश्य महज मुल्लाओं और पोंगापंडितों को तैयार करना होता है.

सवाल यह है की अगर मैकाले अंग्रेजी की वकालत नहीं कर के पर्शियन की वकालत करता तो क्या आज नरेंद्र मोदी खुश होते. 1835 में हिंदी कहां लिखी जा रही थी, यह भाजपा बताएगी क्या? संस्कृत में कौनकौन से ग्रंथ 1835 के आसपास लिखे गए और छपे और करोड़ों ने पढ़े? मैकाले की शिक्षा नीति लागू होने से पहले इतिहास, भूगोल, भौतिकी, एस्ट्रोनौमी, मेडिसिन और तकनीक पर भारतीय भाषाओं में कितना काम हुआ?

क्या भाजपा के बुद्धिजीवी नरेंद्र मोदी का समर्थन करने के लिए उन संस्कृत ग्रंथों का नाम लेंगे जो 6 से 12 साल तक के बच्चों को 1835 में पढ़ाए जा सकते थे. उस समय तक तो बाल रामायणें और बाल महाभारतें संस्कृत में नहीं लिखी गईं थीं. मैकाले संस्कृत और फारसी की बात कर रहा था, उस भाषा की नहीं जो अलग-अलग जगह बोली जा रही थी लिखी नहीं. Remembering Macaulay :

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