Consensual Sex: सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी आए जब भी आए लेकिन मुद्दा गंभीर और संवेदनशील है किशोरों की यौन इच्छाओं और सक्रियता पर अंकुश लगाने की बात ही अव्यवहारिक है. हां, इसे मैनेज करने के उपायों पर जरूर हर किसी को विचार करने की जरूरत है. खासतौर से खुद टीनएजर्स और पेरेंट्स को तो विवेक से काम लेना पड़ेगा.

चक्रपाणि महाराज, डा. विक्रम सिंह, नाजिया इलाही खान और डा. एपी सिंह के नाम हालांकि कम ही लोगों ने सुने होंगे लेकिन जिन्होंने भी सुने होंगे वे यह भी जानते हैं कि इन लोगों का पसंदीदा कामधंधा धर्म रक्षा का है. इसके लिएए लोग हर उस काम का विरोध करते रहते हैं जिसके होने से मानव मात्र और उसमें भी महिलाओं का भला होता हो लेकिन धर्म, संस्कृतिऔर भगवा गैंगवगैरह उसे सहमति और अनुमति न देते हों. जो कोई भी उदारवादी संकुचित धार्मिक धारणाओं और पूर्वाग्रहों के खिलाफ जाता है ए और ऐसे लोग उस पर शाब्दिक लावलश्कर लेकर रट्टू तोते की तरह चढ़ाई यह कहते कर देते हैं कि इससे धर्म को खतरा है. हमारी संस्कृति नष्टभृष्ट करने की साजिश रची जा रही है. लिहाजा संस्कृति के ठेकेदार होने के नाते हम इस का विरोध करते हैं.
क्यों ए लोग मशहूर अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह को एक संवेदनशील मुद्दे पर घेर रहे हैं इसे जानने से पहले इनके विचारों को थोड़े से में समझ लें तो स्पष्ट हो जाएगा कि अपने अपने पेशे में गहरा दखल पकड़ और नालेज रखने वाले ए लोग दरअसल में भगवा गैंग के बौद्धिक मोहरे हैं.जो धर्म या संस्कृति संबंधी कोई भी मसला या विवाद खड़ा होने पर वही भाषा बोलने लगते हैं जो संघी और भाजपाई बोलते हैं. यही भाषा हिंदूराष्ट्र को मुहिम की शक्ल देने वाले धर्मगुरु बोलते हैं, धीरेधीरे यही भाषा और उसके विचार जिनका स्रोत धर्म ग्रंथ ही होते हैं सड़क चौराहों और चौपालों तक को जकड़ लेती है.

चौकड़ी के 4 चेहरे
इस चौकड़ी में से चक्रपाणि महाराज के बारे में तो इतना भर कह देना काफी है कि वे तथाकथित हिंदू महासभा के तथाकथित राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और बेहद हास्यास्पद बात यह है कि वे खुद के कृष्ण का कलयुगी अवतार होने का दावा अपने चेलेचपाटों और अनुयायियों से करवाते रहते हैं.आज से कोई पांच साल पहले उन्होंने एक गौ मूत्र पार्टी का आयोजन कर हर किसी को हंसने और हर किसी को ही सोचने का मौका जरूर दे दिया था कि हिंदू राष्ट्र अगर कभी बन पाया तो उस का राष्ट्रीय पेय क्या होगा. दिल्ली का नाम बदलकर इन्द्रप्रस्थ करने का आईडिया या सुझाव भी इन्हीं महाराज का है.
नाजिया इलाही खान कहने को ही यानी एक्सिडेंटल मुसलमान हैं. दरअसल में वे एक कट्टर हिंदू महिलाओं सरीखी मानसिकता वाली अधिवक्ता हैं जिसने कभी यह कहते सनसनी मचा दी थी कि मैं अभिनेता पुनीत वशिष्ट के साथ काशी में शादी करूंगी और अयोध्या के राममंदिर में फेरे लूंगी.
इससे भी ज्यादा अहम उनका यह कहना रहा था कि मुस्लिम पुरुषों द्वारा मुस्लिम महिलाओं के शोषण को रोकने की ताकत मुझे हिंदू धर्म देता है. लव जिहाद जैसे मुद्दे पर नाजिया वही भाषा बोलती हैं जो सड़कों पर हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्त्ता अपना गमछा फहराते नारों की शक्ल में बोलते हैं.
कई अहम और जिम्मेदार पदों पर रह चुके डाक्टर विक्रम सिंह एक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी हैं जो उत्तरप्रदेश के डीजी भी रहे है. बिलाशक उनके पास गहरा प्रशासनिक अनुभव है और वे गंभीर भी हैं लेकिन बात जहां वास्तविक विवेक को इस्तेमाल करने की आती है वे झट से चक्रपानी महाराज और नाजिया इलाहीखान हो जाते हैं. कमोबेश यही स्थिति इंदिरा जयसिंह के हमपेशा एपी सिंह की है जो निर्भया मामले में आरोपियों का आखिर तक बचाव करते रहे थे पुरुष मंत्रालय की मांग उठाकर भी सुर्खियां बटोरने बाले एपी सिंहअपने दौर के बदनाम तांत्रिक चन्द्रा स्वामी के सहयोगी रहे हैं जिनकी बातें और व्यक्तित्व दोनों ही विकट के विरोधाभासी हैं.
इन दिनों लाखोंकरोड़ों हिंदूवादियों की तरहए चारों भी इंदिरा जयसिंह से खासे चिढ़े हुए हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट दायर कर रखी है. 25 जुलाई 2025 को दायर इस याचिका में इंदिरा जयसिंह ने मांग की है किप्रोटेक्शन औफ चिल्ड्रन फ्रौम सैक्सुल औफेंस 2012 यानी पोस्को एक्ट 2012 और आईपीसी की धारा 375 के तहत यौन सहमति की न्यूनतम उम्र को 18 से घटाकर 16 साल किया जाए.
अपनी मांग के बाबत उनके पास जो तर्क, उद्धरण और तथ्य हैं जिनसे असहमत वही हो सकता है जो इस क्या किसी भी उम्र में सैक्स को पाप समझता हो खासतौर सेअविवाहित रहते और विवाहेत्तर मामलों में क्योंकि इन्होंने एक धारणा सैक्स के बारे में बना रखी है कि वह धर्म और उसके निर्देशों के मुताबिक ही करना चाहिए नहीं तो वह पाप है.

दमदार दलीलें इंदिरा जयसिंह की
सुप्रीम कोर्ट में बतौर एमिकस क्यूरी (न्यायालय या कोर्ट का मित्र जिसे सुप्रीम कोर्ट नियुक्त करता है) तैनात इंदिरा जयसिंह ने पहली दलील यह दी है कि यौन संबंधों के लिए सहमति की उम्र 1860 से ही 16 साल रही लेकिन 2013 में इसे बढ़ाकर 18 कर दिया गया. यह बिना किसी आधार के किया गया मनमाना बदलाव है जो संविधान के अनुच्छेद 14 समानता) का उल्लंघन करता हुआ है.
गौरतलब है कि निर्भया हादसे के बाद पूर्व जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई थी जिसके दूसरे दो सदस्य पूर्व जज लीला सेठ और वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम थे. महिलाओं के खिलाफ होने वाली यौन हिंसा से सुरक्षा पर गठित इस कमेटी ने 23 जनवरी 2013 को पेश रिपोर्ट में कहा था कि पोस्को एक्ट में सहमति की उम्र को 16 साल ही रखा जाए.
इस कमेटी ने यह भी कहा था कि 16-18 साल के किशोरों को परिपक्वता का अधिकार दिया जाए और सहमति वाले संबंधों को अपराध न बनाया जाए. 18 साल की सख्ती से किशोरों में यौन स्वायतता का उल्लंघन होगा जो संविधान के अनुच्छेद 21 के खिलाफ है.कमेटी का सुझाव था कि आईपीसी की धारा 375 में संशोधन किया जाएमसलन बलात्कार की परिभाषा का विस्तार, वैवाहिक बलात्कार को अपराध मानना और तेज ट्रायल.
इस कमेटी की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि इसकी सिफारिशों की बिना पर ही 2013 का आपराधिक कानून ( संशोधन ) अधिनियम बना और 3 अप्रैल 2013 को लागू भी हो गया. लेकिन सहमति की उम्र वाला सुझाव संसद ने किनारे कर दिया गया. अब इसे इंदिरा जयसिंह उठा रही हैं तो कईयों को यह गुनाह लग रहा है तय है ए लोग यथास्थितिवादी हैं.
सुप्रीम कोर्ट में इंदिरा जयसिंह ने दूसरी दलील यह दी है कि एनऍफएचएस-5 ( नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे ) जैसे सर्वे यह दिखाते हैं कि 15 से 19 साल की उम्र वाली लड़कियों में 8 फीसदी से अधिक को यौन संबंधों का अनुभव होता है. पोस्को के तहत 16 से 18 साल के मामलों में महज 4 साल में अभियोजन 180 फीसदी तक बढ़ा लेकिन ज्यादातर इंटर कास्ट और इंटर फेथ ( अंतर्धार्मिक ) संबंधों के खिलाफ पेरेंट्स की शिकायतें हैं.यह कानून सहमति को शोषण के बराबर ठहराता है जबकि किशोरों को शिक्षा और संवाद की जरूरत है न कि जेल की.
बात शीशे की तरह साफ़ है जो बदलते समाज और परिवारों की तरफ ध्यान मोड़ती है कि तेजी से बहुत तेजी से टीनऐजर्स में सैक्स इच्छाएं पनपने लगी हैं जिन्हें घर के बड़े पेरेंट्स तो क्या कोई भी दबा नहीं सकता.
वह दौर गया जब बाहर जाते समय मांबाप लड़की को ताले में बंद कर जाते थे. अब दौर यह है कि एकल परिवारों के चलते लड़की के पास भी घर की एक चाबी है और वह दिन भर अकेली रहती है. दोपहर के 4 घंटे जिन्हें टीनऐजर्स गोल्डन आवर्स कहते हैं में इत्मीनान से लड़कालड़की मिलते हैं पढ़ाईलिखाई करते हैं सिनेमा और ओटीटी की चर्चा करते हैं और फिर एक दिन प्यार रोमांस और सैक्स पर आ जाते हैं.
इसमें गलत कुछ नहीं है क्योंकि उनकी अपनी जिज्ञासाएं हैं, इच्छाए, उत्कंठा, उत्तेजना और भूख है जिसे मिटाने वे एक हो जाते हैं यानी सहवास कर बैठते हैं जो खाना खाने जैसी स्वभाविक बात है. लेकिन एक बड़ा फर्क या डर कुछ भी कह लें इस खाने के बाद लड़की के प्रैगनेंट हो जाने का है जो तमाम फसादों की जड़ है. यह जरूर चिंता की बात है जिससे तमाम पेरेंट्स डरते हैं.
समझदार पेरेंट्स जो बमुश्किल 25 फीसदी ही होंगे संतान से यह कम कहते हैं कि ऐसा मत करना बल्कि इशारों में समझाइश यह देते हैं कि ऐसा वैसा कुछ न हो जाए इसलिए एहतियात बरतना. पूरे सौ फीसदी पेरेंट्स से इतनी समझ की उम्मीद रखना बेकार की बात है जिसकी वजह उन की रूढ़ियां, परम्परागत मानसिकता के साथ साथ पौराणिक और सामाजिक मान्यताएं हैं.
जब नाबालिग लड़की प्रैगनेंट हो जाती है तो पेरेंट्स कुदरती तौर पर परेशानियों और तनाव से घिर जाते हैं.उनकी पहली कोशिश अबार्शन की होती है जो गलत कहीं से नहीं लेकिन वह मुमकिन न रह जाए तो वे सारा ठीकरा और दोष लड़के के सर फोड़ते अपनी इज्जत बचाने में ही भलाई समझते हैं.
ऐसे अधिकतर मामलों में लड़का दूसरी जाति या धर्म का ही होता है इसलिए उसके खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करा दी जाती है.लड़की अगर उसके साथ भाग गई हो तो फिर मामला अपहरण का भी बन जाता है.
यही होतेहोते ऐसे अपराधों की तादाद 1917 से लेकर 1923 तक 180 फीसदी बढ़ी है. लेकिन ए अपराध वास्तविक नहीं हैं बल्कि इनमें से अधिकतर गढ़े गए होते हैं. दरअसल में यह प्यार रोमांस या सैक्स कुछ भी कह लें होता है. दोषी किशोर को जेल भेज देने से बड़ा गुनाह कोई और ऐसे मामलों में हो भी नहीं सकता जो रोज सैकड़ों हजारों जगह किया जाता है.
जबकि ऐसा करने बाले भी बेहतर जानते समझते हैं कि यह समस्या का हल नहीं है क्योंकि किशोर प्रेम दरअसल में एक ख़ूबसूरत एहसास है जो सदियों से किशोरों के दिलोदिमाग में बसता आ रहा है. लेकिन कम उम्र लड़कालडकी को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता.
दो टूक कहा जाए तो बेहतर यही होगा कि समाज इनके साथ जीना सीख ले इन्हें स्वीकार करना सीख ले. किशोर प्रेम पर बनी दो कामयाब व्यासायिक फिल्में राजकपूर की बाबी और राजेंद्र कुमार की लव स्टोरी इसी अंत के साथ खत्म होती हैं कि पेरेंट्स ने उनके प्यार को समझ और स्वीकार लिया था.
रियल लाइफ और मामलों में कानून का रोल लड़के को बलात्कारी ठहराते उसे सीखंचों के पीछे भेज देने भर का रह जाता है जिससे उनका भविष्य शिक्षा और करियर सब बर्बाद हो जाते हैं और लड़की भी अपराधबोध से ग्रस्त रहते घुटन में जीती रहती है क्योंकि उसने भी प्यार किया था गुनाह नहीं.

इंदिरा जयसिंह इसी कमी या ज्यादती के खिलाफ अदालत से गुहार लगा रही हैं कि 18 साल से कम बालों को दूध पीता बच्चा समझने की भूल न की जाए . इस उम्र में उनकी यौन सक्रियता सामान्य है दिक्कत तो यह है कि हम उसे सहज ढंग से नहीं ले पाते.
इंदिरा जयसिंह की तीसरी दमदार दलील यह है कि पिछड़ना नैतिकता नहीं है कानून को किशोरों की वास्तविकता के अनुरूप बनाना चाहिए जसे क्लोज इन एज अपवाद उम्र का अंतर 2-3 साल तक अपराध न माना जाए और अनिवार्य रिपोर्टिंग ( धारा 19 ) में छूट हो. बकौल इंदिरा जयसिंह कई हाईकोर्ट खासतौर से बौम्बे और मद्रास के फैसले इस बात की पुष्टि करते हैं कि सहमति और शोषण में अंतर हो.
इसे और आसान तरीके से समझें तो मतलब यह निकलता है कि अगर 14 साल की कोई लड़की 14 से 16 साल तक के लड़के से प्यार कर बैठती है तो दोनों में से कोई भी अपराधी नहीं माना जाना चाहिए. हांलड़के की उम्र इससे ज्यादा हो तो क़ानूनी काररवाई में हर्ज नहीं उलटे वह जरूरी है क्योंकि लड़के की मंशा प्यार की न होकर शारीरिक सुख भोगने की होगी. जाहिर है कि वह नादानी के दायरे से बाहर निकल चुका एक दुनियादार युवक होता है जो प्रेम नही शोषण कर रहा है. यानी अपराध तय करने का एक पैमाना समझ भी होना चाहिए.

सरकार और इस चौकड़ी में फर्क क्या?
केंद्र सरकार बहुत साफ विरोध इस बात का उपर बताई गई चौकड़ी की तरह यह कहते कर रही है सहमति की उम्र 18 से घटाकर 16 नहीं की जा सकती. अगस्त की सुनवाई में एडिशनल सालिस्टर जनरल एश्वर्या भाटी ने कहा कि यह बदलाव नाबालिगों की सुरक्षा को खतरे में डाल देगा. बकौल सरकार 18 साल से कम उम्र के बच्चे खासतौर से लड़कियां शोषण जबरदस्ती और धोखे के प्रति असुरक्षित होते हैं. उम्र घटाने से अपराधी सहमति का हवाला देकर बच जाएंगे मौजूदा प्रावधान नाबालिगों को ढाल की तरह बचाता है.
दूसरे 16 साल पर सहमति बनने से बाल विवाह जो पहले से ही समस्या है और बढ़ जाएंगे क्योंकि उसे वैधता मिल जाएगी. इससे अनचाहा गर्भ धारण गर्भपात और मां बच्चे की मौतें बढ़ेंगी डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ जैसे संगठन 18 साल की सिफारिश करते हैं एनसीआरबी का डेटा बताता है कि पोस्को मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन वह सुरक्षा की वजह से है न कि दुरूपयोग की वजह से है. अनुच्छेद 21 ( जीवन और गरिमा ) के तहत राज्य का कर्तव्य है बच्चों की रक्षा करना, न कि उनकी स्वायतता को जोखिम में डालना. हां क्लोज इन एज यानी उम्र अंतर पर छूट जोड़ सकते हैं लेकिन उम्र घटाना गलत है.
जवाब देखनेपढ़ने में ही सटीक लगता है नहीं तो इसमें कुछ विरोधाभास हैं मसलन यह कि बदलाव नाबालिगों की सुरक्षा को खतरे में डाल देगा एक धारणा भर है हो यह भी तो सकता है कि बदलाव सुरक्षा को मजबूत करे.अपराधी सहमति का हवाला देकर बच जाएंगे यह भी एक फिजूल शंका और पूर्वाग्रह लगता है क्योंकि प्यार करने वालों को पहले ही अपराध मान लिया गया है सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसले इस धारणा को उलटते हुए भी हैं जिनमें से एक चर्चित है मुकदमे का नाम है इन रे राईट टू प्राइवेसी आफ एडोलसेंट्स. इस मामले में फैसला 25 अगस्त 2025 को आया था.
किशोर जोड़े में से लड़की की उम्र 17 और लड़के की 20 साल थी लड़के पर पोस्को एक्ट की धारा 6 और आईपी सी की धारा 376 के आरोप थे. ट्रायल कोर्ट ने लड़के को 20 साल की सजा दी लेकिन कलकत्ता हाई कोर्ट ने उसे बरी कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने पहले तो सजा बहाल की लेकिन बाद में माफी देते हुए कहा फालिंग इन लव इज नोट ए क्राइम. यह भी उसने जोड़ा कि किशोरों के प्रेम संबंधों को पोस्को के तहत स्वत अपराध न बनाया जाए क्योंकि कानून के उद्देश्य शोषण रोकना है न कि प्यार को दंडित करना.
सबसे बड़ी अदालत के इसी मामले में कहे गए इस कथन को खास तवज्जो मिली थी कि मातापिता अक्सर इंटर कास्ट या इंटर फेथ प्रेम के खिलाफ शिकायत करते हैं जिससे किशोरों को जेल और कलंक का सामना करना पड़ता है सामाजिक वास्तविकता को ध्यान में रखा जाना चाहिए किशोरों में यौन जिज्ञासा सामान्य है.
इस मामले में कोर्ट ने जाहिर है सहमति की उम्र 18 ही रखी थी यानी न्यायिक विवेक का इस्तेमाल किया था क्योंकि लड़की ने एक बच्चे को जन्म दिया था अब अगर कोर्ट उसके पति की सजा बरक़रार रखता तो तय है पत्नी दर दर की ठोकरें खाती और हैरानी नहीं होती अगर वह किसी रेड लाइट इलाके का हिस्सा बन गई होती सभ्य समाज ऐसी पापिनो और कलंकनियों पर कोई रहम नहीं करता बल्कि उनका बहिष्कार तिरस्कार कर उसकी जिंदगी नर्क बना देता.
लेकिन इन और ऐसी सैकड़ों हकीकतों से सरकार और हिंदूवादी भोंपुओ को कोई सरोकार नहीं सरकार को हक है कि वह कोर्ट में अपना पक्ष रखे और फैसले का इंतजार करे लेकिन चौकड़ी के पेट में उठती मरोड़ें बता रही हैं कि वह आशंकित है इसलिए इंदिरा जयसिंह पर पिल पड़ी है

आइए देखें कि किसने क्या कहा?
डाक्टर विक्रम सिंह – इंदिरा जयसिंह बेशक बड़ी और सुप्रीम कोर्ट की सीनियर काउन्सिल हों लेकिन उनके महिला होने के नाते मैं उनसे कतई यह उम्मीद नहीं रखता कि वह ही आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र 18 साल से घटाकर 16 करने जैसी बेहूदा मांग करेंगी. क्या वे नहीं जानती कि एक 16 साल की बच्ची या किशोर की इस अवस्था में क्या और कितनी अपरिपक्व होती है वह जब बच्चे को जन्म देगी तब क्या इसे मौत के मुंह मे धकेनले जैसी बात नहीं.
क्या इंदिरा जयसिंह नहीं जानतीं कि इससे किशोरों के अंदर यौन हिंसा की भावनाएं ज्यादा बढ़कर दावानल की तरह भड्केंगी. 37 साल पुलिस अफसरी करने के अनुभव से मैं दावे से कह सकता हूं कि इससे हमारी आने वाली और मौजूदा पीढ़ी सेक्स के मामले में तबाही और बर्बादी के दरिया में उतार दी जाएगी.
डाक्टर एपी सिंह – इंदिरा जयसिंह जी क्या कह रही हैं क्या कर रही हैं.. वह सीता, सावित्री, अहिल्या के देश में क्या करने पर उतारू हैं मेरी तो समझ के ही बाहर है कि एक महिला ही महिला के बारे में इतना बेहूदा सोच ले. तब तो फिर ऐसे बकवास मुद्दे पर जन आन्दोलन की जरूरत है. इंदिरा जयसिंह को पता चल जाएगा कि उन्होंने कैसे मुद्दे को लेकर गलत समय सही देश में गलत मुद्दे पर हाथ डालने की नाकाम कोशिश की है.
इंदिरा जयसिंह से भारत नहीं चल रहा है न ही एपी सिंह से भारत चला रहे हैं. यह देश दुर्गा, लक्ष्मी बाई, सरस्वती, मां काली कामख्या का देश है. यह वह देश है जहां स्त्री बेटी – देवी स्वरूप में पूजी जाती है. बात चूंकि देश की महिलाओं बेटियों की अस्मिता और उनके मौलिक अधिकारों से जुडी है तो ऐसे में मैं खुद भी सुप्रीम कोर्ट का वकील और एक भारतीय होने के नाते खामोश हो जाऊंगा. वैसे बेफिक्र रहिए देश में इस वक्त जो सरकार राज कर रही है वह सुप्रीम कोर्ट से आगे ही नहीं बढ़ने देगी इस वाहियात विषय को.
नाजिया इलाही हसन – मुझे उन महिला वकील की सोच पर ही शर्म आ रही है जो खुद को एक उच्च शिक्षित अनुभवी और उपर से कानून की जानकर वकील ही सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र 18 से 16 साल किए जाने पर क्यों आमादा हैं. क्या वे खुद एक औरत नहीं हैं. उन्हें क्या यह नहीं पता है एक औरत होने के नाते कि जब 16 साल की उम्र में बच्चे शारीरिक संबंध बनाने के लिए फ्री छोड़ दिए जाएंगे तो भारत जैसे संस्कारशील देश में कम उम्र में ही यौन संबंध को लेकर यह अवधारणा समाज में फ़ैल जाएगी जो पश्चिमी संस्कृति से भी ज्यादा कुलच्छिनी होगी.
मुझे तो इस विषय पर बात करते ही घिन आ रही है. क्योंकि मैं एक महिला हूं. कम उम्र में शादी और फिर बच्चा पैदा करने का दर्द मैंने जबरदस्ती भोगा झेला है. हो सकता है कि स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाने के लिए उम्र 18 से 16 किए जाने की वकालत कर रहीं इंदिरा जयसिंह ने यह दुःख न झेला हो कि कम उम्र में बच्चा पैदा करना किसी भी लडकी के लिए जिंदगी मौत का सवाल हो सकता है. यह हमारे पूरे समाज को शर्मसार कर देने वाला है इस काम के लिए अब तक मुस्लिम समुदाय ही जाना पहचाना जाता था.
चक्रपाणि महाराज – ऐसी वकील का तो नाम मैं अपनी जुबान पर भी लेना गुनाह समझूंगा जो भारत की युवा पीढ़ी को ही दुश्मन बनाने पर आमादा हो. क्या इंदिरा जयसिंह को नहीं पता है कि स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र 18 से घटाकर 16 कर दिए जाने पर भारत जैसे गौरवशाली और खूबसूरत संस्कृति वाले देश में यौन संबंधों को लेकर हिंसा का वातावरण पनप उठेगा.
इंदिरा जयसिंह को एक संवेदनशील और काबिल वकील मैं तब मानता जब वह भारत की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए यही उम्र 18 से बढ़ाकर 21 कराने की वकालत करतीं. यह राम सीता , सावित्री , दुर्गा , लक्ष्मी , सरस्वती और लक्ष्मीबाई का भारत है अमेरिका यूरोप ब्रिटेन का नहीं इंदिरा जयसिंह इसका ख्याल रखें.
साफ दिख रहा है कि बयानों में कुंठा और इर्ष्या ज्यादा है तुक की बातें कम है इनके बयान थोड़े अहम इसलिए हो जाते हैं कि 142 करोड़ की आबादी वाले देश में कोई 12 – 15 करोड़ की पीड़ा हैं कि क्यों कोई महिला अधिवक्ता प्यार की वकालात कर रही है. लड़कियों को उस मुद्दे पर आजादी देने की बात कर रही है जिसके जरिए औरतों को गुलाम बनाकर रखा जाता था और आज भी इसकी संभावनाए मरी नहीं हैं दूसरे तरीके से ही सही उन्हें सेक्स को लेकर भी दबाया जाता है.
लेकिन फैसला अब तर्कों और तथ्यों की बिना पर सुप्रीम कोर्ट को करना है इसलिए इनके प्रलाप की ज्यादा अहमियत भी नहीं क्योंकि ये लोग कानून की नहीं बल्कि पौराणिक दुहाई दे रहे हैं.हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर खुदा न खास्ता सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा जयसिंह से इत्तफाक रखा तो ये लोग सचमुच आसमान सर पर उठाने लोगों को धर्म और संस्कृति की दुहाई देते बर्गालाएंगे और उकसाएंगे भी. Consensual Sex.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...