Hindi Social Story: जिंदगी में जब फुरसत के क्षण नहीं मिलते तो हम उस के लिए तरसते हैं और जब यही फुर्सत मिलती है तो हमें खालीपन खलने लगता है. लता के साथ ऐसा ही हो रहा था.

आज सब काम जल्दी खत्म हो गया. क्या रह गया, बस, खिड़की के किनारे खड़े हो कर आते-जाते लोगों को निहारना. आज सोच ही लिया बाहर जाना ही है, यह भी कोई बात है इतनी दूर, परदेस में कोई दो पल बात करने को भी नहीं. कल ही एक देसी लड़की दिखी थी. आसपास ही रहती होगी. यह सोच कर लता घर से निकल गई. सामने वही लड़की आती दिखी. लता मन ही मन सोच रही थी, कैसे बात करूं. यहां विदेशी लोग तो फिर भी मुसकरा कर ‘हैलो’ कह देते हैं लेकिन देसी लोग तो देख कर भी बिना देखे एक तटस्थ भाव से आगे बढ़ जाते हैं.

जैसे ही वह लड़की पास से गुजरी, लता ने एक मधुर मुस्कान फेंकी. उधर से जवाब में मुस्कान मिली. अरे भई, जो दोगे वही तो मिलेगा. लता का दिल गुनगुना उठा. लड़की चली जा रही थी. अरे, थोड़ी देर ठहर तो, लता ने सोचा.

‘‘कहां से हो?’’ लता ने पीछे मुड़ कर पूछा.

लड़की रुकी और हंस कर बोली, ‘‘दिल्ली से.’’

‘‘अरे, यह क्या इत्तेफाक है, मैं भी दिल्ली से हूं.’’

‘‘यहां कहां रहती हो?’’ लता ने अगला सवाल दागा.

लड़की ने थोड़ा हिचकते हुए बताया, ‘‘इस सामने वाली बिल्डिंग के पीछे एच ब्लॉक में.’’

‘‘तुम तो मेरी पड़ोसी निकलीं.’’

और फिर वहीं पर खड़े-खड़े दोनों ने अपने घरों की खिड़कियां दिखा दीं. लड़की ने अपना नाम रुचि बताया.

इस छोटी सी मुलाकात ने लता का दिन गुलजार कर दिया. उसे पता लगा कि रुचि यहां अपने पति के साथ रहती है और उस का पति ओहियो यूनिवर्सिटी में पढ़ता है. वह कोई काम नहीं करती, घर पर ही रहती है. लता को लगा एक सहेली मिल गई. उम्र में जरूर वह उस की बहू के बराबर है लेकिन बात करने के लिए एक हमउम्र की नहीं, हमदिल की जरूरत होती है.

लता ऐसे ही जहां भी जाती, कोई न कोई सहेली बना ही लेती. यों तो उस का भी एक घर है दिल्ली में. इलाहाबाद में खेती भी है लेकिन उस की समझ में ही नहीं आता कि वह कहां रहे? जिंदगी ने सब कुछ दिया. एक बेटा और एक बेटी जिन पर वह अपनी ममता लुटाती है. लता को किसी से कोई शिकायत नहीं है लेकिन अपना बेटा और अपनी बेटी कहां अपने होते हैं जब उन का अपना परिवार बस जाता है. लता के पति तो 15 वर्षों पहले ही उस का साथ छोड़ गए थे.

परिवार में अपने बच्चों को पालने व उन को पढ़ाने-लिखाने के लिए उस ने हजारों संघर्ष किए. इस संघर्ष ने उसे मान-सम्मान दिया और उस के चेहरे पर खरे सोने सी चमक आ गई. उस के बच्चे भी अच्छे निकले और पढ़-लिख कर अच्छी नौकरियों पर लग गए. यह लता के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी. आज सब कुछ था उस के पास. काश, उस के पति राकेश आज यहां होते तो देखते कैसे उस ने सब कुछ संभाल लिया है लेकिन यह भी क्या, इतनी खुशी लेकिन कोई बांटने वाला ही नहीं. बच्चों की शादियां हुईं और रह गई लता अकेली.

उस के बच्चे तो हमेशा ही जिद कर के उसे अपने पास बुलाते लेकिन वह कहां जाए, उस की समझ में ही नहीं आता था. बेटी के घर जाए तो समाज और दामाद का डर सताता था. कभी कोई गलती हो जाए तो दामाद जी तो कह देंगे, जाओ अपने बेटे के पास. बेटे के पास जाती है तो बहू से यह डर लगता है कि कहीं कोई बात बुरी न लग जाए.

वैसे, दामाद और बहू दोनों ही भले थे. उस के साथ कभी भी किसी ने कहासुनी नहीं की लेकिन उस के साथ रहने की खुशी और दुख भी नहीं जताया तो उन के भावों को लता कभी समझ नहीं पाई. अगर वह वहां है तो भी कोई परेशानी नहीं है अगर वह वहां नहीं है तो भी नहीं. अरे, यह भी कोई बात हुई. यही सोचते हुए लता 6 महीने बेटी के घर चली जाती है और 6 महीने अमेरिका अपने बेटे के पास.

कभी-कभी लता सोचती कि काश, उस की बहू उसे ताने कस के उस का दिल छलनी कर देती या कुछ बुरा-भला ही कहती तो वह कुछ आंसू बहा कर अपनी बहू की बुराई ही कर लेती. कुछ दिन इसी बहाने कट जाते लेकिन यहां तो सब ठीक है लेकिन जैसे कुछ ठीक नहीं है. उसे हमेशा लगता है कि बेटे और बेटी के घर में उस का कोई अस्तित्व ही नहीं है. किसी को न कोई परवाह है, न कोई परेशानी और न ही कोई परेशान करने वाला. उसे अपना जीवन महत्वहीन लगने लगा. किसी को उस की जरूरत नहीं है. यही खालीपन और सूनापन भरने के लिए वह हमेशा ही बाहरी लोगों से दोस्ती करती फिरती. संघर्ष के दिनों में कितना मजा होता है, यह उस ने अब ही जाना.

पहले बच्चों को सुबह-सुबह तैयार कर के वह दौड़ती-भागती आफिस पहुंच जाती थी. कितने लोग उस के साथ काम करते थे. उन के साथ दुख-सुख की बातें कर के और काम की आपाधापी में दिन गुजर जाता था. शाम को घर जाते ही बच्चों के साथ बतियाने और कल के सपने देखते उस के दिन मजे से कट रहे थे. बच्चे भी बिना किचकिच किए अपना सब काम निबटा देते थे. इस से उसे आस-पड़ोस में भी आने-जाने का मौका मिल जाता. दिल की साफ लता हमेशा ही दूसरों के कामों में सहायता करती जिस से लोग उसे बहुत इज्जत देते थे.

लेकिन आज बुढ़ापे में वह लोगों से बात करने को तरस गई है और अमेरिका में इस कमबख्त इंग्लिश ने उस का रास्ता रोक दिया है. पिछले साल जब वह अमेरिका आई थी तो उस ने लौरा से दोस्ती बढ़ानी चाही तो बात ‘हैलोहाय’ से आगे नहीं बढ़ पाई क्योंकि लौरा के लिए हिंदी समझना बेहद मुश्किल था. लौरा को घी के बारे में समझते हुए उस की जबान सूख गई और शायद ही लौरा के पल्ले कुछ पड़ा हो. इस के बाद तो लता ने सोच लिया कि देसी लोगों से ही बात करेगी, चाहे हिंदीभाषी हो या न.

आज रुचि से हुई मुलाकात उसे बहुत अच्छी लगी. वह सारा दिन हलका-हलका महसूस कर रही थी. अगले दिन जैसे ही बेटा-बहू औफिस के लिए रवाना हुए, लता ने नाश्ता कर के रसोई की झटपट सफाई कर दी. सारे बर्तन तरतीब से लगा दिए. 3 ही तो कमरे थे, उस ने सब कमरों में बिस्तर झड़ कर वैक्यूम करने का निश्चय किया. बेटे के कमरे में जैसे ही उस ने तकिया हटाया तो कंडोम के पैकेट्स मिले. उस का तो जैसे दिमाग ही सुन्न हो गया, कहां तो वह पोते-पोतियां खिलाने का सपना पाल रही थी और कहां उस के बच्चे इस बारे में सोच भी नहीं रहे थे. क्या हो गया है इस पीढ़ी को? जिंदगी में स्वतंत्रता की कितनी चाह है इस पीढ़ी को, लेकिन वास्तव में वे समझते ही नहीं कि बच्चे पति-पत्नी के लिए बंधन नहीं बल्कि जुड़ाव होते हैं.

अब वह क्या करे, अपने बेटे से साफ-साफ कह भी नहीं सकती, बहू से तो कहने का सवाल ही नहीं उठता, पता नहीं क्या सोच बैठे. अपनी इस व्यथा को किस से बांटे. यही सोचते-सोचते उस की नजर खिड़की पर गई. सामने रुचि अपने पति के साथ कहीं जा रही थी. उन दोनों को वहीं बैठी-बैठी हाथों से गालों को दबाए वह देखती रही, गुलाबी स्कर्ट और सफेद ब्लाउज रुचि के गहरे सांवले रंग पर फब रहे थे. हंसती-चहकती वह अपने पति से बात करती जा रही थी. लता उन को देर तक देखती रही जब तक वे दोनों आंखों से ओझल न हो गए. थोड़ी देर और ऐसे ही बैठी रही तो सुस्ती घेर लेगी और यों ही दोपहर हो जाएगी, यह सोचते ही वह उठी और बेटे का कमरा ज्यों का त्यों छोड़ दिया. मन ही मन निर्णय भी ले लिया कि कुछ नहीं बोलेगी. आखिर उन को अपनी जिंदगी के फैसले लेने का पूरा अधिकार है.

मन कड़ा कर उस ने बाकी के काम निबटाए. ये सभी काम उसे बहुत प्रिय हैं और वह बड़ी खुशी से करती है लेकिन गानों के साथ. उस के बेटे ने कंप्यूटर में दुनियाभर के पुराने गाने भर दिए हैं. लता गानों की आवाज तेज कर के सभी काम फटाफट निबटाती जाती है लेकिन आज उसे कुछ भी उतना अच्छा नहीं लग रहा है. वह थोड़ी देर बैठ कर सुस्ताने लगी. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सामने रुचि थी. दरवाजा खुलते ही बोली, ‘‘नमस्ते आंटी. आप कैसी हैं? मैं ने कहीं आप को डिस्टर्ब तो नहीं किया?’’

लता ने हंसते हुए उस के सिर पर हाथ रखा और बोली, ‘‘नहीं बेटा, अंदर आओ. आज मैं तुम्हें स्पेशल चाय पिलाती हूं, तुलसी वाली.’’

‘‘क्या,’’ रुचि की आंखें फटी की फटी रह गईं. यहां तुलसी कहां मिलती है?

‘‘अरे बेटा, मैं ही कुछ तुलसी के बीज अपने पर्स में रख के इंडिया से ले आई थी. यहां गमले में बो दिए और देखो, वे जी गए.’’

रुचि की ललचाई आंखें देख कर वह भांप गई कि अभी भी उस में अपनी भारतीयपन जिंदा है. चाय पी कर दोनों ने ढेर सारी बातें कीं. फिर रुचि अपने घर चली गई.

लता को बहुत अच्छा लगा कि चलो, रुचि खुद ही उस के घर आई है, अब वह भी उस से बेतकल्लुफी से मिल सकेगी. यहां आए 10 दिन हो गए थे और लता को कोई साथी नहीं मिला था.

अगले दो-तीन दिनों तक रुचि दिखी नहीं तो लता को लगा जरूर कोई बात हो गई है. लता रुचि के घर पहुंच गई. रुचि ने उसे अदरक की चाय और गुजिया खिलाई. बातों-बातों में रुचि रोंआसी हो कर बोली, ‘‘अच्छा हुआ आंटी आप आ गईं, मेरे पास तो आप का फोन नंबर भी नहीं था. इधर कुछ दिनों से उदास थी क्योंकि मेरी मम्मी को आना था लेकिन उन को वीजा नहीं मिला.’’

लता ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं, तुम्हारी मम्मी अगली बार आ जाएंगी.’’

रुचि ने कहा, ‘‘मैं बहुत दिनों से सोच रही थी कुछ काम करूं. बहुत बोर हो गई हूं लेकिन मेरा वीजा इस की इजाजत नहीं देता.’’

लता ने नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद काम के बारे में सोचा भी नहीं. उस ने रुचि से कहा, ‘‘आज कहीं बाहर घूमने चलें?’’

‘‘कहां?’’

‘‘फार्मर्स मार्केट चलते हैं.’’

‘‘वहां क्या है?’’ रुचि ने पूछा.

अभी तक तुम कभी फार्मर्स मार्केट नहीं गईं. अरे, फिर तो तैयार हो जाओ, मैं तुम को वहां ले चलती हूं. पास ही है. रुचि जल्दी से तैयार हो गई. दोनों साथ-साथ निकल पड़ीं. सच में ज्यादा दूर नहीं था. वहां लोकल किसानों ने बहुत सारी सब्जियां बेचने के लिए सजा रखी थीं. पहली बार रुचि ने ताजी हल्दी और अदरक को उस के पत्तों सहित देखा था. दोनों ने बहुत थोड़ी सी सब्जियां खरीदीं क्योंकि वे दुकान से जरा ज्यादा ही महंगी थीं. बाजार के आखिरी छोर पर कुछ दुकानें खाने-पीने की थीं. पिज्जा, बर्गर, बरीतो, पीता हम्मस से ले कर, शिकंजी और जूस के स्टॉल लगे थे. दोनों ने बर्गर और शिकंजी ली.

दोनों ने एक-साथ ही कहा, ‘‘अगर समोसा और चाय होता तो मजा आ जाता. यह बर्गर भी कोई खाने की चीज है.’’

दोनों हंस पड़ीं.

‘‘क्यों न हम दोनों ही समोसे और चाय का स्टौल लगाएं,’’ लता ने यों ही कह दिया.

‘‘मैं ने मास्टर्स की है वह भी साइंस में, मैं तो ऐसा करने की सोच भी नहीं सकती. लोग क्या कहेंगे. भारत में लोग मेरा मजाक उड़ाएंगे कि अमेरिका दुकान खोलने गई थी,’’ रुचि बोली.

लता ने कहा, ‘‘हां, तुम ठीक कहती हो. भारत में तो सब के काम से ही उस की पहचान होती. कौन छोटा कौन बड़ा, यह उस का काम ही बताता है लेकिन यह तो सोचो, समय और स्थिति के साथ बदलना चाहिए या नहीं.’’

रुचि ने कहा, ‘‘बदलना तो चाहिए लेकिन यहां अपने मन पर भी चोट लगेगी.’’ लता को खुद ही बहुत अजीब लग रहा था इस बारे में बात कर के लेकिन उस ने रुचि को मनाने की कोशिश की. उस ने कहा, ‘‘अच्छा, हम इस मार्केट में अगली बार चाय और समोसे का स्टॉल लगाएंगे, अगर अच्छा न लगेगा तो बंद कर देंगे.’’

रुचि को लगा कि चलो थोड़े से मजे के लिए ही कर लेते हैं, कौन सा यह असली काम है. दोनों बर्गर के स्टॉल पर गईं और पूछा, ‘‘स्टौल लगाने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है?’’ पता चला कि ज्यादा कुछ नहीं, बस, 10 डॉलर देने होते हैं और एक मेज पर स्टॉल लगा सकते हैं. दोनों को बात जंच गई. रुचि ने कहा, ‘‘समोसे और चाय मेरे घर पर ही बनेंगे.’’ रुचि के पति को भी कोई दिक्कत नहीं थी. वह भी चाहता था कि बस पत्नी व्यस्त रहे. रात को ही पति-पत्नी समोसे और चाय का सारा सामान खरीद लाए. अगले दिन लता ने घर का काम जल्दी ही निबटाया और रुचि के घर पहुंच गई.

रुचि ने पहले ही आलू उबाल लिए थे. लता आलू छीलने बैठ गई और रुचि को मिर्च व धनिया काटने का निर्देश देने लगी. काम जल्दी होने लगा. लता ने आलू का मसाला तैयार कर उसे मटर और अदरक के छौंके के साथ भून दिया. अब बारी थी समोसे को बेलने, भरने और तलने की. दोनों ने गाने चला दिए और बातें करती रहीं. इस तरह पता भी नहीं चला कब समोसे बन गए. करीब सौ समोसे और चाय के साथ वे दोनों तैयार हो गईं. रुचि ने कार निकाली और सब सामान उस में डाल कर फार्मर्स मार्केट की ओर चल दीं.

थोड़ा-थोड़ा डर भी था दोनों को. पता नहीं क्या होगा. आज कोई आएगा भी या नहीं. खैर, वहां पहुंच कर उन्होंने एक मेज के पैसे दे कर चाय व समोसे सजा कर रख दिए. थोड़ी देर में एक औरत आई और समोसे को देख कर बोली, ‘‘व्हाट इज दिस?’’ रुचि ने बताया कि इस में आलूमटर है और इसे समोसा कहते हैं. औरत ने एक समोसा खरीदा और चली गई. लता को एक बात सूझ और उस ने एक कागज पर समोसे की सामग्री और दाम लिख कर मेज पर लटका दिया, जिस से लोगों को समझने में आसानी हो. थोड़ी देर में पहले वाली औरत वापस आई और बोली, ‘‘इट वाज वैरी टेस्टी, कैन आई हेव वन मोर?’

लता ने उसे समोसा दिया. उस को समोसा खाते देख बहुत से और लोग भी वहां आ गए, समोसा और चाय खरीदने लगे. सभी सिर्फ यही कहते जा रहे थे, ‘‘इंडियन फूड इज वैरी टेस्टी.’ देखते ही देखते सब समोसे खत्म हो गए और चाय भी थोड़ी ही बची थी. रुचि और लता को विश्वास नहीं हुआ कि इतनी जल्दी सब सामान खत्म हो जाएगा. तभी कुछ और लोग भी आए लेकिन लता और रुचि को अफसोस के साथ बताना पड़ा कि सारे समोसे और चाय खत्म हो गई है. रुचि ने आधे पैसे लता को दे दिए और आधे खुद रख लिए. रुचि और लता को इस काम में बहुत मजा आया. सब से ज्यादा मजा तो इस बात में आया कि वे दोनों अपने भारत के खाने को दुनिया के सामने ला रही हैं. भारत की तारीफ वह भी विदेश में. दोनों बहुत व्यस्त हो गईं, साथ ही, उन्हें आमदनी और जीने का एक मकसद भी मिल गया. जिंदगी मजे के साथ एक पटरी पर आ गई. Hindi Social Story.

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