Hindi Family Story: सबकुछ मिल गया था मोनिका को. अच्छी ससुराल, शुभम जैसा प्यार करने वाला पति. मां से बढ़ कर खयाल रखने वाली वंदना जैसी सास लेकिन कभीकभी इंसान अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार लेता है. मोनिका ने कुछ ऐसा ही कर डाला.
कई दिनों से देख रही थी वंदना, उस के बेटेबहू शुभम और मोनिका के बीच किसी बात को ले कर अनबन चल रही थी. पता नहीं क्या बात थी कि हरदम दोनों का मूड उखड़ा सा रहता है. उन के बीच बात लड़ाई से शुरू होती तो लड़ाई पर ही खत्म होती थी.
एकदूसरे से इतना प्यार करने वाले ये दोनों अब हर छोटीछोटी बात पर एकदूसरे से उलझ पड़ते थे और अपनी गलती मानने के लिए दोनों ही तैयार न होते. इस कारण झगड़ा ज्यों का त्यों बना रहता. वंदना को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर दोनों लड़ किस बात पर रहे हैं. कुछ पता चले तो समझए भी उन्हें लेकिन फिर सोचती कि यह मियांबीवी के बीच की बात है, वे खुद ही सुलझ लेंगे. लेकिन इन के झगड़े तो दिनप्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे.
उस रात फिर दोनों के बीच किसी बात को ले कर बहसबाजी शुरू हो गई. कुछ ही देर में उन की आवाजें इतनी लाउड हो गईं कि वंदना को मजबूरन उन के बीच, बीचबचाव के लिए आना ही पड़ा.
‘‘अरे, क्या हो गया तुम दोनों को, क्यों लड़ रहे हो इस तरह से? बहू, तुम बताओ, क्या हुआ?’’ अपनी बहू मोनिका के करीब जा कर वंदना ने पूछा लेकिन वह यह बोल कर कमरे से बाहर निकल गई कि उस से क्या पूछ रही हैं, अपने बेटे से पूछें न. अपनी बहू के ऐसे रूखे व्यवहार से वंदना हिल गई क्योंकि आज से पहले कभी भी उस ने उस से इस तरह से बात नहीं की थी.
‘‘शुभम, तुम्हीं बता दो बेटा, क्या हुआ, क्यों लड़ रहे हो तुम दोनों? कोई समस्या है तो बताओ मुझे. मिलबैठ कर सुलझ लेंगे. बोलो न, औफिस की कोई टैंशन है क्या,’’ वंदना ने शुभम के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा लेकिन वह भी यह बोल कर घर से बाहर निकल गया, ‘‘कोई जरूरी काम है, थोड़ी देर में आता हूं.’’
‘‘अरे, पर सुनो तो बेटा,’’ पीछे से वंदना बोलती रही लेकिन शुभम गाड़ी स्टार्ट कर जाने कहां चला गया. घंटेभर बाद वापस लौटा और आते ही अपने कमरे में चला गया. वंदना को सब पता है वह कहां गया होगा. इसलिए उस ने कुछ पूछा नहीं और बाहर से दरवाजा भिड़का कर अपने कमरे में चली आई.
शुभम की शुरू से आदत रही है, जब भी उसे किसी बात को ले कर टैंशन होती है, वह बाहर जा कर सिगरेट का कश लगा आता है. वह कहते हैं न, ‘हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया…’ लेकिन अपनी मां को अपना दर्द कभी नहीं बताता, क्योंकि वह अपनी मां से बहुत प्यार करता है और उन्हें किसी बात की टैंशन नहीं देना चाहता लेकिन वंदना भी तो अपने बेटे से उतना ही प्यार करती है तो कैसे वह उसे टैंशन में देख सकती थी भला. इसलिए जानना चाहती थी कि आखिर क्या बात है जो दोनों इस तरह से लड़ रहे हैं पर शुभम कैसे और क्या बताए अपनी मां से कि वह दो चक्की के पाटों के बीच में पिस रहा है.
नहीं सोचा था उस ने कि उस से इतना प्यार करने वाली, उस के घर को अपना घर और उस की मां को अपनी मां की तरह प्यार करने का दावा करने वाली मोनिका एक दिन इस तरह से बदल जाएगी और उस से ऐसी मांग रखेगी जिसे वह कभी पूरा कर ही नहीं सकता.
जिस मां ने उसे जिंदगी दी, इस दुनिया में लाई, उसे लायक इंसान बनाने के लिए रातदिन एक कर दिया, उसी मां को वह अपनी जिंदगी से, अपने घर से बाहर निकाल दे इसलिए कि मोनिका ऐसा चाहती है?
नहीं, वह कभी भी ऐसा नहीं कर सकता. भले ही मोनिका इस के लिए उसे और इस घर को छोड़ कर क्यों न चली गई पर वह अपनी मां को इस घर से जाने के लिए कभी नहीं कह सकता. अपने मन में सोच शुभम फफक कर रो पड़ा लेकिन पीछे से वंदना का स्पर्श पा कर जल्दी से उस ने अपने बहते आंसू पोंछ डाले और झठी मुसकराहट चेहरे पर लाते हुए पलट कर बोला, ‘‘अरे, मां, आप सोईं नहीं अब तक?’’
‘‘तू भी तो नहीं सोया अब तक,’’ उस के करीब बैठती हुई वंदना ने गौर से बेटे का चेहरा देखा. पता है उसे शुभम रो रहा था और उसे देखते ही उस ने अपने आंसू पोंछ डाले. ‘‘क्या बात है बेटा, बता न मुझे. किस बात की टैंशन है तुझे? औफिस में कुछ हुआ है क्या? या फिर मोनिका बहू ने कुछ?’’
‘‘अरे नहीं मां, कोई बात नहीं है. आप बेकार में टैंशन मत लो. जाओ, सो जाओ आप भी.’’ भले ही शुभम ने कह दिया कि कोई टैंशन नहीं है पर एक मां की नजरों से क्या अपने बच्चे की परेशानी छिपी रह सकती है कभी? बच्चे की एक सांस से मां समझ लेती है कि वह परेशान है या खुश. तो क्या अपने जिगर के टुकड़े की परेशानी महसूस नहीं कर सकती वंदना? आखिर उसी में तो उस की जान बसती है, उस के लिए ही तो वह जी रही है.
याद है उसे जब शुभम 3 साल का था, तभी उस के सिर से पिता का साया उठ गया था. वंदना के पति फौज में थे. जम्मूकश्मीर के कारगिल युद्ध में वे शहीद हो गए थे. 527 जवानों में एक जवान वंदना के पति भी थे जो अपने देश के लिए शहीद हो गए थे. तब वंदना मात्र 26 साल की थी. वंदना के मातापिता, नातेरिश्तेदारों ने उस से कितना कहा था कि अभी उस की उम्र ही क्या हुई है, वह दूसरी शादी कर ले. शुभम को भी पिता मिल जाएगा लेकिन वंदना ने किसी की बात नहीं मानी और कहा कि अब उस की जिंदगी सिर्फ उस के बेटे के लिए है. अब वह उस के लिए ही जिएगी.
पढ़ीलिखी वंदना को जल्द ही एक स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गई, जिस से वह बेटे का पालनपोषण करने लगी. वक्त के साथ शुभम बड़ा होने लगा. उस ने बचपन से ही अपनी मां को संघर्ष करते देखा था, इसलिए वह अपनी पढ़ाई पूरी कर जल्द से जल्द नौकरी पाना चाहता था ताकि वह अपनी मां को सुख का जीवन दे सके. अपने पापा की तरह शुभम भी देश की सेवा करना चाहता था मगर वंदना इस बात के लिए कतई राजी नहीं थी.
नहीं, देश की सेवा करना गर्व की बात है, लेकिन अब वंदना में इतनी हिम्मत नहीं बची थी कि वह अपने एकलौते बेटे को फौज में भेज सके. सो, उस ने शुभम को फौज में जाने से मना कर दिया. अपनी मां की बात रखते हुए शुभम ने बैंक की नौकरी चुनी. हैदराबाद में बैंक की ट्रेनिंग के दौरान शुभम और मोनिका एकदूसरे से टकराए. दोनों की आंखें चार हुईं जो एक दिन प्यार में बदल गईं. दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि ट्रेनिंग के दौरान ही दोनों ने एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार कर दिया. वैसे, मोनिका का सपना शुरू से ही बैंक में जाने का था.
3 साल तक रिलेशनशिप में रहने के बाद शुभम ने बड़ी हिम्मत कर के अपनी मां को बताया था कि वह एक दूसरी जाति की लड़की से प्यार करता है और उसी से शादी करना चाहता है लेकिन अगर वंदना नहीं चाहेगी तो वह उसे भूल जाएगा. बेटे का अपने प्रति इतना सम्मान देख कर वंदना ने भी इस रिश्ते के लिए हामी भर दी थी और दिल से उस ने मोनिका को अपनी बहू स्वीकार कर लिया था. बेटे की खुशी में ही तो वंदना की खुशी छिपी थी.
जब मोनिका इस घर में दुलहन बन कर आई थी तब वंदना ने खानदानी जड़ाऊ कंगन उस के हाथों में पहनाते हुए कहा था कि अब यह घर उस का भी है. वंदना ने कभी उसे इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि यह उस की ससुराल है, मायका नहीं. बल्कि, उस ने उसे अपने तरीके से जीने की पूरी आजादी दी. जो चाहा, करने दिया. मोनिका भी अपनी सास वंदना की बहुत इज्जत करती थी. उसे सम्मान देती थी, उस की खुशियों का खयाल रखती थी.
जब वंदना किचन में काम कर रही होती तो वह आ कर काम में उस की मदद करने लग जाती और कहती कि वे आराम करें, वह सब कर लेगी लेकिन वंदना कहती कि वह भी तो शुभम की तरह औफिस से थकीमांदी घर आती है. और वैसे भी, वह पूरे दिन घर में आराम ही तो करती रहती है.
अपनी मां और पत्नी का आपस में मांबेटी जैसा प्यार देख कर शुभम सोचता कि मोनिका से शादी का उस का फैसला बिलकुल सही था. जहां वंदना अपनी बहू के सुख व आराम का पूरा खयाल रखती थी, वहीं मोनिका भी अपनी सास के मानसम्मान में कोई कमी नहीं रखती थी. वह अपनी मां की तरह ही वंदना का खयाल रखती थी.
वंदना को हाई बीपी की शिकायत थी, इसलिए मोनिका इस बात का पूरा ध्यान रखती कि वह समय से दवाई ले. कभी भूल जाती तो मोनिका अपने हाथों से उसे दवाई खिलाती, प्यार की झिड़की देते हुए कहती कि वंदना तो सब का खयाल रखती है सिवा अपने लेकिन अब वही मोनिका सपनी सास से सीधे मुंह बात तक नहीं करती थी. एक बार पूछने भी नहीं आती कि वह कैसी है और उस ने दवा ली या नहीं. बल्कि, वह उस की हर बात का उलटा जवाब देती.
औफिस से आने के बाद मोनिका का ज्यादा समय अपनी मांबहनों से फोन पर बातें करते ही निकल जाता था. वंदना ही खाना बनाती और परोसती भी थी. मोनिका अब घर के कामों में उस की कोई मदद नहीं करती थी. अगर शुभम कुछ कहता तो पलट कर जबाव देती कि, तो वही क्यों नहीं मदद कर देता मां के कामों में? आखिर, वह भी तो औफिस से आतेआते थक कर चूर हो जाती है. घर में कोई क्लेश न हो, इस के लिए वंदना इशारे से शुभम को ही चुप रहने को बोलती.
मगर वह देख रही थी मोनिका की जिंदगी में उस की मांबहनों का दखल कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था. छोटी से छोटी बात वह अपनी मां से पूछ कर करने लगी थी और अगर वंदना कुछ कहती तो ऐंठ कर कहती कि वह कोई बच्ची नहीं है, जो वह उसे समझ रही है. अपनी मां से प्यार और मां समान सास से उसे इतनी नफरत क्यों होने लगी थी, यह बात वंदना समझ नहीं पा रही थी. बल्कि, पहले तो वह हर बात उस से पूछ कर ही करती थी.
रोज की तरह आज भी वंदना ने बेटेबहू का नाश्ता टेबल पर लगा दिया और फिर जल्दीजल्दी उन का लंच पैक करने लगी. शुभम को लंच का डब्बा पकड़ाते हुए उस ने हिदायत देते हुए कहा कि वह ठीक से खाना खा लिया करे, क्योंकि रोज ही डब्बे में खाना बचा रह जाता है. उस पर शुभम ने मां के हाथ से लंच का डब्बा लेते हुए कहा, ‘हां, खा लेगा. वह चिंता न करे.’
‘‘बहू, यह तुम्हारे खाने का डब्बा है. इस में मैं ने तुम्हारी पसंद की भिंडी की सूखी सब्जी रख दी है, खा लेना.’’ लेकिन मोनिका ने खाने का डब्बा टेबल पर लगभग पटकते हुए कहा कि इस की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि वह उधर से ही अपनी मां के घर जाने वाली है और एकदो दिन वहीं रुकेगी. ‘‘अरे, पर बेटा,’’ वंदना आगे और कुछ कहती रही, पर मोनिका अपना पर्स उठा कर चलती बनी.
मोनिका का मायका इसी शहर में है. मोनिका 3 बहनें ही हैं जिन में मोनिका सब से बड़ी है. उस की एक बहन जौब की तैयारी कर रही है और छोटी बहन अभी स्कूल में पढ़ रही है. मोनिका के पापा एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे लेकिन कोरोना में उन की नौकरी छूट गई तो अभी वे किसी दूसरी कंपनी में नौकरी कर रहे हैं. मोनिका की मां घर संभालती है.
मोनिका के पापा तो सीधेसाधे इंसान लगे थे वंदना को मगर उस की मां जरा तेजतर्रार लगी. पति बच्चों को अपनी मुट्ठी में रखने वाली औरत टाइप. सुना था उस के घर में मोनिका की मां की ही चलती है. खैर, इस बात से वंदना को क्या लेनादेना. उसे तो अपने बेटे के सुख से मतलब था और इसीलिए उस ने इस शादी के लिए हां की थी लेकिन आज उसे लग रहा है कि लड़की के साथ उस के परिवार को भी देखना जरूरी होता है, खासकर मां को, क्योंकि मां ही तो बेटी की पहली शिक्षिका होती है. वही तो उसे दुनियादारी का पाठ पढ़ाती है. मोनिका जो वंदना के साथ ऐसा व्यवहार कर रही थी उस में उस की कोई गलती नहीं थी, बल्कि रेखा, उस की मां उसे जैसाजैसा करने को कहती जा रही थीं, वह कर रही थी.
रोज का यही नियम था, मोनिका को उस के औफिस छोड़ कर शुभम उधर से ही फिर अपने औफिस चला जाता था और आते समय उसे उस के औफिस से पिकअप कर लेता था लेकिन अब दोनों अपनीअपनी गाड़ी से औफिस जाने लगे थे, जो इस बात की ओर इशारा कर रहा था कि उन के बीच जरूर किसी बात को ले कर झगड़ा चल रहा है.
कल रात फिर दोनों के बीच भयंकर झगड़ा हुआ और सुबहसुबह ही मोनिका अपने मायके चली गई. मोनिका के चढ़े तेवर देख कर वंदना ने डर से उस से कुछ पूछा भी नहीं कि वह इतनी सुबहसुबह क्यों जा रही है. शुभम भी काफी चिढ़ा हुआ दिख रहा था, इसलिए वंदना ने उस से भी कुछ नहीं पूछा. उसे लगा, एकदो दिनों में सब ठीक हो जाएगा अपनेआप. मगर ऐसा नहीं हुआ.
मोनिका को अपने मायके गए आज 10 दिनों से ज्यादा का समय हो चुका था. वंदना ने कई बार टोका भी शुभम को कि वह कब आएगी लेकिन उस का एक ही जवाब होता कि आ जाएगी, खुद ही. चिंता न करें.
‘‘क्या चिंता न करूं? अरे, बहू को गए इतने दिन हो चुके हैं और तू कहता है मैं चिंता न करूं.’’
‘पता नहीं क्या चल रहा है इन दोनों के बीच, कुछ बोलते भी तो नहीं हैं,’ वंदना खुद में ही भुनभुनाई.
‘‘सुन, कल जा कर तू बहू को ले आ,’’ वंदना की बात पर शुभम ने धीरे से सिर हिला दिया, जैसे उसे पता हो, वह नहीं आने वाली, इसलिए जाने का कोई फायदा नहीं है. ‘‘मुंडी क्या हिला रहा है, कुछ बोल तो?’’ शुभम की प्लेट में एक और रोटी डालते हुए वंदना बोली.
‘‘हां, मां, चला जाऊंगा,’’ जरा खीझते हुए शुभम बोला, ‘‘अब और रोटी मत देना, खाया नहीं जा रहा मुझ से.’’ शुभम को अनमने ढंग से रोटी तोड़ते देख एकाएक वंदना का हाथ बेलन पर रुक गया.
औफिस के लिए निकलते समय एक बार फिर वंदना ने शुभम से कहा कि वह शाम को बहू को लेता आए.
लेकिन शाम को उसे अकेले घर आया देख, वंदना ने पूछा, ‘‘बहू नहीं आई?’’
‘‘नहीं, वह मुझे जाने का समय नहीं मिला,’’ इतना ही बोल कर वह अपने कमरे में जा कर लेट गया. वंदना उसे खाने के लिए बुलाने गई तो देखा, वह छत को टकटकी लगाए देख रहा था. कुछ नहीं पूछा उस ने फिर. सोच लिया उसे ही अब कुछ करना होगा.
सुबह शुभम औफिस जाते हुए बोल गया था उसे आज औफिस से आने में देर लगेगी, इसलिए वंदना खाना खा ले. शाम के 5 बजे ही वंदना घर से निकल गई और सीधे मोनिका के घर पहुंच गई. सोच लिया उस ने कि वह खुद ही अपनी बहू को घर वापस ले कर आएगी. दरवाजा मोनिका की मां रेखा ने खोला.
‘‘जी, आप यहां कैसे?’’ बड़े ही रूखे अंदाज में रेखा ने पूछा और अनमने ढंग से उसे घर के अंदर आने के लिए बोला.
वंदना सोफे पर आ कर बैठ गई और पूरे घर में एक नजर दौड़ाते हुए पूछा, ‘‘बहू अभी औफिस से नहीं आई है क्या?’’
‘‘देख तो रही हैं आप,’’ पानी का गिलास वंदना के सामने रखते हुए रेखा ने व्यंग्य से कहा, ‘‘वैसे, बताया नहीं, क्यों आई हैं आप यहां?’’
‘‘बहनजी, आप से एक जरूरी बात पूछनी थी,’’ बड़े अपनेपन से रेखा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए वंदना बोली, ‘‘आप को कुछ पता है बहनजी, ये शुभम और मोनिका बहू किस बात को ले कर तनाव में हैं? मुझे तो कुछ बताते नहीं, सोचा आप को शायद पता हो?’’
‘‘पूछ रही हैं तो सुनिए,’’ अपना हाथ बड़ी बेदर्दी से वंदना के हाथ से छुड़ाते हुए रेखा बोली, ‘‘उन के तनाव का कारण आप हैं, आप.’’
‘‘मैं?’’ वंदना अवाक रह गई.
‘‘हां, आप. आप के रहते दोनों खुल कर जी नहीं पा रहे हैं. मैं पूछती हूं, चली क्यों नहीं जातीं आप उन की जिंदगी से? क्यों कुंडली मार कर बैठी हैं इस घर में? सिर्फ आप की वजह से दोनों के बीच शीतयुद्ध छिड़ा है और आप कहती हैं आप को कुछ पता ही नहीं है,’’ बोल कर रेखा अजीब तरह से हंसी और फिर बोली, ‘‘कैसी मां हैं आप कि अपने ही बेटेबहू को एकसाथ हंसीखुशी जीने देना नहीं चाहती हैं.’’
रेखा की बातें सुन कर वंदना स्तब्ध रह गई. उस के पैर जहां थे वहीं जम गए. काठ मर गया उसे. वंदना को चुप देख कर रेखा ने फिर बोलना शुरू किया, ‘‘मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि आप यहां कर क्या रही हैं? अरे, गांव जा कर क्यों नहीं रहतीं, ताकि ये लोग सुकून से जी सकें लेकिन नहीं, आप क्यों जाएंगी गांव. आप तो बस डटे रहिए, भले ही फिर बहूबेटे के बीच तलाक ही क्यों न हो जाए.’’
‘‘क-क्या मतलब आप का?’’
‘‘मतलब यह कि मोनिका अब शुभम से तलाक लेगी, क्योंकि आप का श्रवण बेटा अपनी बीवी को छोड़ने के लिए तैयार है पर अपनी मां को नहीं. अरे, तो फिर शादी ही क्यों की उस ने? रहता अपनी मां के पल्लू में बंध कर,’’ रेखा के इतने कड़वे बाण सुन कर वंदना को लगा किसी ने उस के कानों में गरम पिघला सीसा डाल दिया हो. वह सोफे पर से उठी और जाने लगी लेकिन उसे यह भी होश नहीं रहा कि जिस गिलास में वह पानी पी रही थी उसे भी हाथ में लिए घर से बाहर निकल गई. ‘‘अरे, ओ, गिलास तो रखती जाओ, उसे ले कर कहां चली.’’
पीछे से रेखा की कर्कश आवाज से वह रुकी, अपने हाथ में पकड़े गिलास को देखा, पलट कर उसे टेबल पर रखा, फिर सीढि़यां उतरती हुई आगे बढ़ने लगी. पीछे से रेखा ने अपना अधर टेढ़ा कर कहा, ‘‘हुम्म, बड़ी आईं बहू पर लाड़ जताने वाली, नौटंकीबाज औरत.’’
जैसेतैसे वंदना घर पहुंची, देखा, शुभम हौल में बैठा लैपटौप पर कोई काम कर रहा था. ‘‘अरे, मां, कहां गई थीं आप? और अपना फोन क्यों नहीं उठा रही थीं?’’
वंदना ने उस की बातों का कोई जवाब नहीं दिया.
‘‘अच्छा मां, सुनिए न, एक कप अदरक वाली चाय पिला दीजिए, सिर जोरों से दुख रहा है.’’
वंदना यंत्रवत सी किचन में गई और शुभम के लिए एक कप चाय बना लाई. ‘‘आप नहीं पिएंगी?’’ शुभम ने पूछा तो वंदना ने सिर्फ इतना ही कहा कि उस का मन नहीं है और वह कमरे में चली गई. वंदना को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वह शुभम से इस बारे में बात करेगी लेकिन करनी तो पड़ेगी और वह भी अभी, इसी वक्त करनी होगी, वरना, कहीं देर न हो जाए.
‘‘शुभम बेटा, एक बात करनी थी तुम से?’’
‘‘हां, मां बोलिए न,’’ लैपटौप पर नजरें गड़ाए ही शुभम बोला.
‘‘मैं गांव जाना चाहती हूं. कल का टिकट करा दो मेरा.’’
‘‘गांव, अचानक से आप को गांव क्यों जाना है, मां?’’
‘‘क्योंकि वहां भी तो हमारी जरूरत है न बेटा. गांव में पूर्वजों का मकान है, थोड़ीबहुत जमीन भी है तो उस की देखभाल भी जरूरी है.’’
‘‘हां, तो वहां देखने वाले लोग हैं न. नहींनहीं, कोई जरूरत नहीं आप को वहां जाने की.’’
‘‘नहीं बेटा, जाना पड़ेगा अब. मेरा मतलब है कि ऐसे ही किसी के भरोसे तो हम घरजमीन नहीं छोड़ सकते न. और अचानक से कहां, बल्कि मैं तो कब से वहां जाने की सोच रही थी पर तू ही है कि मुझे जाने नहीं देता. कब तक अपनी मां को अपने पास रोक कर रखेगा रे,’’ बोलतेबोलते वंदना की आंखें भर आईं जिसे उस ने झटके से पोंछ डाला.
शुभम को समझ में आ गया था कि बात जरूर कुछ हुई है, वरना, मां अचानक गांव जाने की बात क्यों करती.
‘‘मां, सच बताओ, आप से किसी ने कुछ कहा क्या? मोनिका ने कुछ कहा आप से? आप को मेरी कसम मां, बताओ क्या बात है,’’ शुभम ने अपनी कसम दे कर पूछा तो न चाहते हुए भी वंदना को उसे सारी बात बतानी पड़ी.
‘‘नहीं बेटा, गुस्सा मत हो. एक मां होने के नाते रेखाजी अपनी जगह सही हैं और एक बार मोनिका के दिल से सोच कर देखो, उसे भी तो लगता होगा वह अपने पति के साथ एक छत के नीचे अपने हिसाब से जिए, जहां तुम दोनों के सिवा और कोई न हो? तो इस में गलत क्या है बेटा? और मेरा क्या है, मैं तो आतीजाती रहूंगी न.’’
शुभम ने लाख कहा कि उसे यहां से जाने की कोई जरूरत नहीं है और वह अपनी मां के बिना नहीं रह सकता. मगर वंदना ने उस की एक न सुनी और गांव रहने चली गई. वंदना के जाते ही मोनिका अपने घर रहने आ गई और कुछ दिनों बाद मोनिका की मां और दोनों बहनें भी अपना बोरियाबिस्तर ले कर यहां जम गईं.
शुभम और मोनिका को बैंक की तरफ से रहने के लिए बड़ा घर और गाड़ी मिली हुई थी. घर के काम और खाना बनाने के लिए घर में दोदो बाई आती थीं. रेखा और उन की बेटियों के मजे के दिन कट रहे थे. रोज घर में छप्पन भोग बनता, हंसीठहाके चलते, बाहर से कभी कपड़े तो कभी कुछ का और्डर होता रहता था और पैसे मोनिका के क्रैडिट कार्ड से पे किए जाते लेकिन इस बात के लिए वह जरा भी उफ न करती थी. इस बात का उसे कोई अफसोस भी नहीं था कि वंदना के गांव चले जाने से शुभम कितना दुखी है.
रेखा ने मोनिका का ऐसा ब्रेनवाश किया था कि वह जो कहती, वह वही करती थी. शुभम ने भी अब रिऐक्ट करना छोड़ दिया था. वह तो औफिस से आ कर खाना खाते ही सीधा अपने कमरे में चला जाता और थोड़ी देर फोन पर अपनी मां से बात कर के सो ही जाता.
कितनी बार शुभम ने अपनी मां से कहा था कि उसे खाना पकाने की क्या जरूरत है. कुक आ कर बना जाया करेगी, वह आराम करे लेकिन वंदना कहती कि उसे खाना पकाना अच्छा लगता है और जो बात अपने हाथों से बनाए खाने में है वह दूसरों के हाथों से बने खाने में कहां. लेकिन देखो, वंदना के जाते ही मोनिका ने तुरंत कुक रख लिया ताकि उस की मांबहनों को कोई काम न करना पड़े. मंजु कुक तीनों टाइम का नाश्ताखाना बना जाती थी लेकिन वह भी अब इन से खिंचने लगी थी क्योंकि तीनों मांबेटी अपनीअपनी फरमाइशों का खाना बनवातीं और मंजु को डांटती भी थीं तो कौन भला यहां काम करना चाहेगा?
पापी पेट ही है जिस के कारण बेचारी मंजु यहां टिकी हुई थी. झड़ूपोंछा करने वाली बाई भी रोज बड़बड़ कर के जाती कि ये लोग घर को कबाड़ा बना कर रखते हैं लेकिन ये सब मोनिका को कहां दिखाई पड़ता था. उसे तो अपनी मांबहन इतनी अच्छी लगती थीं कि अपनी सास को ही उस ने घर से बाहर निकाल दिया.
जब भी शुभम फोन पर अपनी मां से कुछ बात कर रहा होता, रेखा, उस की सास, के कान खड़े हो जाते कि वह अपनी मां से क्या बात कर रहा है. यह देखता था शुभम. पूरे घर पर मोनिका के मायके वालों ने कब्जा जमा रखा था. यहां रह कर ये लोग आराम से खापी और मौज कर रहे थे और वह अपने ही घर में मेहमान बन कर रह गया था.
मन तो करता शुभम का कि चिल्ला कर पूछे मोनिका से कि क्या अब उस की प्राइवेसी भंग नहीं हो रही है? उस की मांबहन जो यहां रह रही हैं उस से उसे उकताहट नहीं हो रही है? और उस की मां के रहते उसे बहुत तकलीफ हो रही थी? लेकिन वह कह न पाया क्योंकि वंदना ने उसे अपनी कसमों से बांध जो दिया था. वंदना का कहना था कि अपने बेटेबहू की खुशी में ही उस की खुशी है.
अगर वे यहां सुखशांति और प्रेम से रहेंगे तो वह भी वहां सुकून और चैन से जी पाएगी. इसलिए ही शुभम खून का घूंट पी कर सब बरदाश्त कर रहा था. दुख तो उसे इस बात का हो रहा था कि वंदना ने मोनिका को बेटी की तरह प्यार दिया और बदले में मोनिका ने उसे उस के बेटे से ही दूर कर दिया, ताकि वह अपने मायके वालों को यहां बुला कर रख सके? कैसी साजिश रची इन मांबेटी ने उस की मां के खिलाफ.
खैर, अब जो भी है, बस यही और इसी माहौल में उसे इन्हीं लोगों के साथ जीना होगा, रो कर चाहे हंस कर. शुभम ने एक गहरी सांस लेते हुए अपने मन को समझया कि मोनिका से समझता कर लेने में ही उस की भलाई है. कम से कम रिश्ते तो बचे रहेंगे उन के.
रात में मोनिका सोने जाने से पहले बोली थी कि कल यानी आज उस के बैंक में औडिट आने वाला है तो उसे बैंक जल्दी जाना पड़ेगा. मगर 8 बजने को थे और अब तक वह सोई हुई थी. ‘‘मोनिका, आज तुम्हें बैंक जल्दी जाना है, तो उठो.’’ लेकिन मोनिका कहने लगी कि उस की तबीयत ठीक नहीं लग रही है. ‘‘क्या हुआ तुम्हारी तबीयत को?’’
‘‘रात से पेट में दर्द है’’ पेट पर हाथ रख मोनिका कहने लगी कि रात में उसे एकदो बार उलटी और दस्त जैसा हुआ. अभी भी पेट में ऐंठन लग रही है, इसलिए वह बैंक नहीं जा पाएगी शायद.
‘‘तो तुम ने मुझे उठाया क्यों नहीं? अच्छा, तुम आराम करो. और एक काम करो, फोन कर के बैंक से 2 दिन की छुट्टी ले लो. मैं कोशिश करूंगा घर जल्दी आने की,’’ बोल कर शुभम अपने बैंक तो चला गया लेकिन उस का ध्यान मोनिका पर ही अटका हुआ था. उस ने उसे फोन करने की सोची पर फिर लगा शायद वह दवा खा कर सो रही होगी. जब उस ने रेखा को फोन लगा कर मोनिका की तबीयत के बारे में पूछा तो पता चला कि तीनों मांबेटी ‘टाइगर 3’ फिल्म देखने गई हुई हैं.
शुभम को बहुत गुस्सा भी आया कि वहां मोनिका की तबीयत खराब है और इन लोगों को देखो, फिल्म देखने चली गईं. अपने सीनियर को बोल कर शुभम तुरंत अपने घर जाने को निकल गया. रास्ते में उस ने मोनिका को कई बार फोन लगाया पर उस ने उस का फोन नहीं उठाया तो शुभम को उस की चिंता होने लगी कि वह ठीक तो है. घर आया तो देखा मोनिका बिछावन पर बेसुध पड़ी थी और उस का शरीर बुखार से तप रहा है. जल्दी से वह उसे डाक्टर के पास ले गया, जहां पता चला कि मोनिका को डायरिया हुआ है. डाक्टर कहने लगा कि वैसे तो डायरिया कोई बहुत बड़ी बीमारी नहीं है मगर लापरवाही से आदमी की जान भी जा सकती है. पूछने पर डाक्टर कहने लगा कि डायरिया किसी संक्रमण के कारण या फिर खानेपीने में लापरवाही बरतने या गंदगी के कारण हो सकता है.
जब से वंदना यहां से गई है, लगभग रोज ही बाहर से खाना आ रहा है. बाहर के खाने में पैसे तो जाते ही हैं, सेहत भी बिगड़ती है. अब लो, बीमारी, डाक्टर और दवाइयों पर भी हजारों रुपए खर्च होंगे लेकिन शुभम यह बात बोल भी तो नहीं सकता किसी से, वरना, घर में बेवजह क्लेश होगा और मोनिका कहेगी कि उस की मांबहनों का यहां रहना उसे अच्छा नहीं लग रहा है लेकिन आज झेलना तो शुभम को ही पड़ रहा है न. बैंक से छुट्टी ले कर वह घर और अस्पताल की दौड़ लगा रहा है.
2 दिन अस्पताल में रहने के बाद मोनिका को छुट्टी दे दी गई, क्योंकि उस ने कहा कि वह पहले से बेहतर फील कर रही है. दवा की परची लिखते हुए डाक्टर ने उसे हिदायत देते हुए कहा कि वह अपने खानेपीने का पूरा ध्यान रखे और जहां तक हो सके, तरल पदार्थ ज्यादा ले, जैसे नारियल पानी, नीबूपानी वगैरह. लेकिन घर आने के बाद मोनिका फिर लापरवाह हो गई जिस से उस की तबीयत फिर बिगड़ गई. उसे बारबार दस्त और उलटी होने लगी.
शुभम ने उसे फिर अस्पताल में भरती करवा दिया. 2 सप्ताह अस्पताल में रहने के बाद मोनिका घर आई तो सही पर वह शरीर से बहुत कमजोर हो गई थी. जब मोनिका को पता चला कि दोनों बाई काम छोड़ कर जा चुकी हैं तो उस ने अपना माथा पकड़ लिया कि अब घर का सारा काम कैसे होगा?
‘‘अरे, क्या कैसे होगा, मम्मीजी हैं न, और तुम्हारी दोनों बहनें भी तो हैं. सब संभाल लेंगी, क्यों मम्मीजी?’’ रेखा की तरफ देखते हुए शुभम बोला.
रेखा ने भले ही हां, में सिर हिला दिया लेकिन वह अब यहां नहीं रह सकती, क्योंकि वे यहां घर का काम या मोनिका की सेवा करने थोड़े ही आई थीं? वे तो बेटी के घर मजे करने आई थी, बेटी की कमाई पर राज करने आई थीं. तभी तो उस ने मोनिका को उस की सास के खिलाफ कर दिया था ताकि वह इस घर में आराम से रह सके.
लेकिन आज जब मोनिका बिस्तर पर पड़ी थी तो कैसे वह यह बोल कर चली गई कि वहां उस के पति को उस की जरूरत है, इसलिए वह अब यहां नहीं रह सकती. यह भी नहीं सोचा उस ने कि उस की प्यारी बेटी मोनिका अभी इतनी कमजोर है और उसे उस की सब से ज्यादा जरूरत है. दोनों बहनें भी जो दीदी-दीदी कह कर मोनिका से महंगीमहंगी चीजें झटकती थीं, वे भी अपनी पढ़ाई का बहाना बना कर यहां से चलती बनीं. कितना रोका उस ने अपनी मां को कि वह कुछ दिन बस रुक जाए, वह जब ठीक हो जाए तो चली जाना पर रेखा नहीं रुकी, स्वार्थी औरत.
जैसेतैसे कर के घर के काम तो हो ही रहे थे मगर बारबार मोनिका की आंखों से यह सोच कर आंसू गिर पड़ते कि उस की मांबहन ने ऐसी हालत में उस का साथ छोड़ दिया और यहां से चली गईं.
शुभम आज थोड़ा जल्दी ही बैंक के लिए निकल गया लेकिन जाने से पहले उस ने मोनिका को दवा और ब्रैड सेंक कर दे दी और कुकर में उस के लिए खिचड़ी भी बना गया ताकि वह दोपहर में खा सके. दवा खाते ही मोनिका को नींद आ गई. जब उठी तो उस का मन एकदम खालीखाली सा लगने लगा. मन किया खूब रोए.
आज उसे अपनी सास की बहुत याद आ रही थी कि कैसे वह उस का और पूरे घर का खयाल रखती थी. उसे कोई टैंशन लेने नहीं देती थी लेकिन उस ने उन्हें क्या दिया, बेइज्जती और तिरस्कार. यहां तक कि उन्हें उन के बेटे से भी अलग कर दिया उस ने. उन्हें गांव में टूटीफूटी झेपड़ी में रहने को मजबूर कर दिया ताकि वह अपनी मांबहन को बुला कर अपने घर में रख सके. ओह, कितनी गंदी और स्वार्थी है वह. तभी पीछे से किसी का स्पर्श पा कर जब वह पलटी तो देखा, सामने वंदना खड़ी उस के बालों को सहला रही है. ‘‘मां’’ बोल कर मोनिका उन से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगी.
‘‘बस, बेटा बस, मैं आ गई हूं न, अब,’’ उस के बगल में बैठती हुई वंदना बोली.
‘‘मां, मुझे माफ कर दो, मां. मुझ से गलती हो गई,’’ वंदना की गोद में सिर रख मोनिका फिर सिसक पड़ी.
‘‘मां भी कहती हो और माफी भी मांग रही हो? नहीं बेटा, तुम ने कुछ नहीं किया, इसलिए खुद को दोष मत दो. और कहा न मैं ने, अब सब ठीक है,’’ यह बोल कर वंदना हंसी तो मोनिका ने उन्हें कस कर पकड़ लिया और हंस कर बोली, ‘‘हां, अब सब ठीक है, मां.’’
वहां, दरवाजे के पास खड़ा शुभम, सासबहू को प्यार से एकदूसरे को गले लगाते देख मंदमंद मुसकराया और अपने मन में ही बोला, ‘हां, अब सब ठीक है’ मोनिका को बिना बताए ही वह सुबहसुबह वंदना को लेने गांव निकल पड़ा था और मोनिका को लगा वह बैंक गया है. खैर, जो भी हो, पर अब सब ठीक है.
भारत के 70 फीसदी युवा तनाव और डिप्रैशन से जूझ रहे
जोश, उमंग और उत्साह ये तीनों युवाओं की पहचान होते हैं. किसी भी देश में युवा ही बदलाव लाते हैं लेकिन जहां 70 फीसदी युवा तनाव और अवसादों का शिकार हों, उस देश का भविष्य उज्ज्वल भला कैसे हो?
एसआरएम यूनिवर्सिटी आंध्र प्रदेश और अन्य संस्थानों ने युवाओं पर एक चौंकाने वाला शोध किया है. यह एक्सपैरिमैंट अक्तूबर 2025 में क्रौस-सैक्शनल स्टडीज में प्रकाशित हुआ है. इस शोध में 1,628 युवाओं को शामिल किया गया जो देश के 9 बड़े शहरों
के कालेज छात्र थे. इस अध्ययन में
70 फीसदी युवा एंग्जाइटी से प्रभावित थे. तकरीबन 60 फीसदी युवाओं में डिप्रैशन के लक्षण पाए गए. 70.3 फीसदी युवा तनाव का सामना कर रहे हैं. अध्ययन के अनुसार, भारतीय युवा कैरियर के दबाव में एंग्जायटी और डिप्रैशन जैसी मानसिक स्थिति का शिकार हो रहे हैं.
सिंगापुर विश्वविद्यालय के मैंटल हैल्थ एक्सपर्ट डा. जोन वोंग के मुताबिक युवाओं में एजुकेशन और कैरियर को ले कर मानसिक दबाव बेहद ज्यादा है. ग्रेड और कैरियर में आगे बढ़ने का दबाव अकसर इमोशंस पर हावी हो जाता है. ऐसे में यूनिवर्सिटीज को स्टूडैंट्स की मैंटल हैल्थ को ले कर काउंसलिंग करने पर ध्यान देना चाहिए.
इस एक्सपैरिमैंट को देखते हुए भारत की बड़ी यूनिवर्सिटीज अपने स्टूडैंट्स की मैंटल हैल्थ को बेहतर बनाने के लिए कदम उठा रही हैं. इस में आईआईटी खड़गपुर ने सेतु ऐप बनाया है. जहां स्टूडैंट्स को तनाव से निकलने में मदद मिल रही है. आईआईटी गुवाहाटी ने फर्स्ट ईयर के छात्रों के लिए काउंसलिंग की शुरुआत की है. वहीं आईआईटी कानपुर में आउटरीच, आईआईटी दिल्ली में मैंटल हैल्थ पर चर्चाएं कराना और आईआईटी बौम्बे ने डाक्टरों के साथ साझेदारी की पहल की है ताकि छात्रों को स्ट्रैस से मुक्ति मिल सके.
युवा भारत का भविष्य हैं. यदि
70 फीसदी तनावग्रस्त हैं तो विकास कैसे संभव है? इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए लेकिन सरकारें युवाओं को सिर्फ वोटबैंक की तरह देखती हैं. व्यर्थ के राजनीतिक मुद्दों में युवाओं को फंसाया जा रहा है. सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया युवाओं में तनाव को बढ़ा रहे हैं. युवाओं के अंदर जहर भरा जा रहा है. इस से सांप्रदायिक और जातीय नफरत तो बढ़ ही रही है, युवाओं का भविष्य भी खराब हो रहा है. Hindi Family Story.





