Stray Dogs Issue : कुत्ता हमेशा से ही आदमी का साथी रहा है जो भावनात्मक रूप से भी उस का मोहताज है लेकिन अब कुत्तों की उपयोगिता पहले सी न रह जाने के चलते पारस्परिक लाभ का सिद्धांत फीका पड़ता दिखाई देने लगा है. भले ही कुत्ते की वफ़ादारी की मिसालें दी जाती हैं लेकिन यही कुत्ता अब इंसानी समाज के लिए खतरा साबित होने लगा है जिस में दखल सुप्रीम कोर्ट को भी देना पड़ रहा है. 

पहले बीती 11 अगस्त को और फिर 7 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश जानकर हर किसी के मन में यह ख्याल आया था कि आखिर अदालत कुत्तों से इतनी नरमी और दयानतदारी से पेश क्यों आ रही है. जबकि वह चाहे तो दो टूक भी कह सकती है कि कटखने आवारा कुत्ते बहुत बड़ा खतरा हैं इसलिए इन्हें बेरहमी से इंसानी समाज से बेदखल कर देना चाहिए. लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि अदालतों के हाथ भी कानूनी डोर से बंधे रहते हैं. अदालतें क़ानूनी दायरे के बाहर जा कर बहुत ज्यादा सोच नहीं पातीं और कानून सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि जानवरों की हिफाजत और सहूलियत के लिए भी बने और बनाए गए हैं. इसलिए 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया था कि नागरिकों की सुरक्षा और पशु कल्याण दोनों ही समान रूप से संवैधानिक दायित्व है.

कुत्तों से सम्बंधित सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों में एक शब्द एबीसी का कई बार उल्लेख हुआ जिस का पूरा नाम एनिमल बर्थ कंट्रोल है. यह नियम साल 2001 में पशुओं पर क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की धारा 38 के तहत 2001 में बनाया गया था. इसे दरअसल में पशु जन्म नियंत्रण नियम ( कुते ) कहा गया था लेकिन साल 2023 में इस में एक संशोधन करते कुत्ते तक न सीमित रख दूसरे आवारा जानवरों जैसे बिल्ली आदि को भी शामिल कर लिया गया था.

7 नवम्बर के अपने निर्देशों में सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि सख्ती बरक़रार रखी है लेकिन आम लोगों की हिफाजत पर भी बराबरी से तव्व्जुह देते इस बात का भी मैसेज दिया है कि समाज को जानवरों खासतौर से कुत्ते के प्रति क्रूर नहीं हो जाना है. यानी यह मानव पशु संघर्ष को नियंत्रित करने और समझौता कराने की कोशिश है जो सफल हो पाएगी इस में शक है.

शक इसलिए कि इस की एक अहम कड़ी प्रशासन है जिस में पसरा भ्रष्टाचार, लापरवाही और निकम्मापन किसी सबूत के मोहताज नहीं. इस के बाद भी हलचल का शुरू होना एक अच्छा संकेत है. तमाम राज्यों के सम्बंधित विभाग खासतौर से स्थानीय निगम सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करने की कवायद में जुट गए हैं.

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने

अपने पिछले 11 अगस्त के आदेश पर सलीके से अमल न होते देख उस में थोड़ा सा फेरबदल करते लेकिन ज्यादा तल्खी लाते सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए कि –

1 – देश के सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सार्वजनिक स्थानों से बेघर हुए कुत्तों को खासतौर से शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल, बस अड्डे, रेलवे स्टेशन और खेल परिसरों से हटाएं.

2- इन संस्थानों और सार्वजनिक जगहों को फेंसिंग या बाउंड्री वाल बनाई जाएं जिस से इन में भटकते हुए कुत्ते दाखिल न हों .

3- पकड़े गए कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण किया जाए ( एबीसी  ( डाग ) रूल्स 2023 के तहत ) लेकिन इन कुत्तों को इस के बाद रिहा नहीं किया जाएगा बल्कि उन्हें निर्धारित आश्रय केन्द्रों यानी शेल्टर होम्स में भेजा जाना होगा.

5 – राष्ट्रीय व अन्य राज्य मार्गों से भटकते जानवरों यानी कुत्तों के साथसाथ गाय भैंस जैसे मवेशियों को भी बाहर निकाला जाए तथा इन मार्गों पर पेट्रोलिंग टीम बनाई जाए और

6- सभी राज्यों और केंद्र शासित राज्यों के मुख्य सचिवों पर इस आदेश का पालन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी होगी व उन्हें 8 सप्ताह के अंदर स्थिति यानी स्टेटस रिपोर्ट पेश करना होगी.

बाकी सब तो ठीक है लेकिन अपने हुक्म की तामीली के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जिम्मेदारी व्यक्तिगत रूप से मुख्य सचिवों के गले में डालते इस बार सख्ती और स्मार्टनेस दोनों दिखाए हैं क्योंकि ये अधिकारी अगर किसी का लिहाज करते हैं तो वह अदालत ही है जहां कोर्ट रूम में दाखिल होने के पहले इन्हें भी हुलिया ठीक करते हुए और सर झुका कर बात करना होती है. अब अपने साहबों को फटकार न लगे और उन्हें अदालत की चोखट पर पांव न रखना पड़े इसलिए सभी राज्यों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश मुताबिक काम शुरू हो गए हैं लेकिन उस में भी झंझटें कम नहीं हैं.

अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने केवल प्रशासनिक मुखिया को नहीं बल्कि सभी संबधित विभागों  को जिम्मेदारी सौंपी हैं मसलन

–  सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेस वे से भटक्त्ते हुए पशुओं को पूरी तरह हटाए और इस के लिए राजमार्ग पेट्रोलिंग टीमें बनाए.

– केन्द्रीय पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह सभी राज्यों को एक मानक राष्ट्रीय नीति जारी करे व शेल्टर होंम बनाने टीकाकरण व नसबंदी कराने के इंतजाम के लिए वित्तीय सहयोग दे.

–  स्थानीय निकाय नगर निगम नगर पालिका और ग्राम पंचायतों को आदेश दिया है कि वे अपनेअपने अधिकार क्षेत्र में कुत्ता पकड़ अभियान चलाएं और पकड़े गए कुत्तों को एबीसी रूल्स 2023 के मुताबिक नसबंदी व टीकाकरण के बाद शेल्टर होम में रखें, उन्हें वापस न छोड़ें इन्ही निकायों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उपर बताए गए सार्वजनिक स्थानों पर गेट या फेंसिंग हो और नागरिक शिकायत कर सकें इस के लिए हेल्प लाइन या कंट्रोल रूम स्थापित करें

– राज्य पुलिस और नगर प्रशासन को आदेश दिया है कि अगर कोई व्यक्ति या संस्था इन आदेशों का पालन नहीं करते हों तो पुलिस प्रशासन उन के खिलाफ कार्रवाई करे. जिला पुलिस प्रमुख स्थानीय निकायों को मदद दें जिस से विरोध या हिंसा की स्थिति निर्मित न हो.

– अपने आदेश के पालन को सुनिश्चित करने सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी राज्यों की स्थिति रिपोर्टों की समीक्षा के लिए एक केन्द्रीय समन्वय समिति गठित की जाएगी.

जाहिर है अदालत की मंशा और मैसेज यह है कि इस समस्या पर सभी विभागों की मिलीजुली कोशिशों से ही काबू पाया जा सकता है नहीं तो अभी तक स्थानीय निकायों के सर पर ही सारी जिम्मेदारी ढोल दी जाती थी जिस से बजाय हल होने के समस्या और बढ़ती जाती थी.

अब कोई यह रोना नहीं रो सकता कि हम यह नहीं कर सकते, हम वह नहीं कर सकते, हमारे पास फंड नहीं है या हमारे पास साधन और अधिकार नहीं हैं वगैरहवगैरह. जैसे घरों में सदस्यों के बीच काम का बंटवारा होता है वैसे ही सभी को जिम्मेदारी दे दी गई है. इसे समझने यह बेहद सटीक उदाहरण है कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय का काम केवल सड़कों का निर्माण नहीं बल्कि अपने बनाए रास्तों पर से मवेशियों को हटाना भी होगा. इसी तरह पशु प्रेमी सड़कों पर आते आदतन जज्बाती हो कर हायहाय न करें. इस बाबत पुलिस को आगाह किया गया है, जिस का असर भी दिखा कि पशु प्रेमी संगठनों ने इस बार धरने प्रदर्शन अगस्त सितम्बर के मुकाबले कम हुए.

फिर भी दिक्कतें तो हैं

ऐसा भी नहीं है कि इस आदेश के मुताबिक कोई चमत्कार रातोंरात हो गया हो या हो जाएगा बल्कि यह एक धीमी प्रक्रिया है जो सालोंसाल चलेगी इतना जरुर तय है कि सुप्रीम कोर्ट के तेवर सख्त न होते तो हालात वही रहते जो 11 अगस्त के आदेश के बाद थे. इसे लगभग सभी राज्यों के तमाम विभागों और एजेंसियों ने बेहद हल्के में लेते स्टेटस रिपोर्ट भी कोर्ट को नहीं दी थी लेकिन अब उन की मजबूरी हो गई है कि अगली सुनवाई तक जो भी आधा पूरा किया है उस की रिपोर्ट कोर्ट को दें नहीं तो बड़े साहब को दिल्ली दौड़ना पड़ेगा.

तय है आदेश तो अपनी जगह ठीक है लेकिन उस के सौ फीसदी अमल में न आ पाने कुछ दिक्कतें और अड़चनें भी पेश आएंगी मसलन –

– कुत्ता प्रेमियों और कुत्ता पीड़ितों में छुटपुट टकराव तो होगा जो छोटे लेबल पर देखने में भी आने लगा है कुत्ता प्रेमी हर कहीं कुत्तों को खाना खिलाने खड़े हो जाते हैं जिस से डरने वालों की मुसीबत हो आती है मना करने पर कहासुनी शुरू हो जाना आम बात है यानी वैमनस्य और टकराव इस से कम नहीं होने वाले इस के लिए जो जागरूकता और समझ चाहिए उस का समाज में टोटा है.

– अधिकतर नगर निगमों नगर पालिकाओं और ग्राम पंचायतों को यह नहीं मालूम कि उन के इलाके में कितने कुत्ते हैं इन की गिनती आसान भी नहीं है. दूसरे सरकार की तरफ से ऐसा कोई बजट या राशि कुत्तों के नियन्त्रण के लिए जारी नहीं की गई है इसलिए पैसों की दिक्कत तो रहेगी.

– केन्द्रीय पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय ने अभी तक कोर्ट के आदेश का पालन करते कोई धन राशि जारी नहीं की है. इस से ज्यादा हैरत की बात तो यह है कि एबीसी के लिए पिछले चार सालों में केंद्र ने एक धेला भी किसी राज्य को नहीं दिया है.

– सभी विभागों में तालमेल का अभाव एक बड़ा रोड़ा है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक केवल तीन राज्यों पश्चिम बंगाल, झारखंड और तेलांगना ने ही अनुपालन अधिकारियों की नियुक्ति की थी.

– शेल्टर होम्स की कमी जग जाहिर है उदाहरण राजधानी दिल्ली का ही लें तो वहां आवारा कुत्तों की तादाद लगभग 10 लाख है लेकिन शेल्टर होम की संख्या दो दर्जन का आंकड़ा भी नहीं छूती एमसीडी के पास 20 शेल्टर होम्स है जिन में सिर्फ 5 हजार कुत्ते ही समां संकते हैं हालांकि एमसीडी ने 12 और शेल्टर बनाने की घोषणा की है लेकिन चूंकि ऐसी इमारतों की कोई समय सीमा नहीं होती इसलिए कह पाना मुश्किल है कि ये कब तक बनेंगे. यही हाल सभी शहरों का है यह उम्मीद करना फिजूल की बात नहीं है कि जल्द ही बड़े पैमाने पर डौग हाउसेस खुल सकते हैं जिन में कुत्तों को रखने तयशुदा फीस अदा करनी होगी अभी यह व्यवसाय भारत में बहुत छोटे स्तर पर है और सिर्फ पालतू कुत्तों के लिए है.

– क़ानूनी अड़चनें भी कोर्ट के आदेश का पालन करने में आड़े आ सकती हैं जिन MEमें से प्रमुख है कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के लिए एबीसी नियम के मुताबिक पशु कल्याण बोर्ड की इजाजत लेने की अनिवार्यता. यह काम बहुत धीरेधीरे होता है. अदालतें इस पर खीझ जता भी चुकी हैं. वक्त पर यह न होने से कुत्तों की संख्या उन का आतंक और डौग बाइटिंग के मामले बढ़ते जाते हैं.

लेकिन ये और ऐसी कई बातें अब निराशाजनक नहीं रह गई हैं और न ही किसी को कोई राहत सुप्रीम कोर्ट से मिलने वाली. हां स्टेट्स रिपोर्ट देख वह स्थानीय निकायों को मोहलत दे सकता है लेकिन इस के लिए अगली सुनवाई 13 जनवरी 2026 तक इंतजार तो सभी को करना पड़ेगा. Stray Dogs Issue.

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