SC News: अदालतों के इतिहास में कई बार ऐसे मामले सामने आते हैँ जिनमें अदालतों के फैसले अलग अलग होते हैँ. ऐसे कुछ मामलों में जब हाईकोर्ट भी कन्फ्यूज़्ड नजर आता है तब सुप्रीम कोर्ट अदालतों को न्याय का रास्ता दिखाता है. ऐसा ही एक मामला समर घोष और जया घोष का है जिसमें समर घोष ने अपनी पत्नी पर मानसिकता क्रूरता का आरोप लगाते हुए तलाक की याचिका दायर की थी. निचली अदालत और हाई कोर्ट इस मामले पर कन्फ्यूज़्ड थे मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मानसिकता क्रूरता की ऐसी व्याख्या की जो आज भी अदालतों के लिए एक लैंडमार्क है.

क्या है पूरा मामला?

समर घोष एक सरकारी अधिकारी थे और जया घोष एक डॉक्टर थीं. दोनों की शादी 1984 में हुई थी, लेकिन वैवाहिक जीवन में कलह बढ़ती गई. समर घोष ने पत्नी पर मानसिक क्रूरता का आरोप लगाते हुए तलाक की मांग की. ट्रायल कोर्ट ने समर घोष की तलाक याचिका खारिज कर दी. समर घोष हाईकोर्ट गये जहाँ उनकी तलाक याचिका स्वीकार कर ली गई और हाईकोर्ट ने समर घोष के पक्ष में फैसला सुना दिया. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ जया घोष सुप्रीम कोर्ट गईं. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया और समर घोष की तलाक की याचिका ख़ारिज कर दी.

जस्टिस बी.एन. अग्रवाल और पी.पी. नाओते की बेंच ने पाया कि पत्नी के व्यवहार में क्रूरता के सबूत नहीं थे. इस मामले में पत्नी का पति के परिवार से दूरी बनाना या कभी-कभी तीखे शब्द कहना क्रूरता नहीं माना गया. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मानसिक क्रूरता की अवधारणा समय, संस्कृति और सामाजिक परिवर्तनों के साथ बदलती रहती है. इसे स्थाई रूप से परिभाषित नहीं किया जा सकता.

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