Bihar Election Result 2025: राजनीतिक दलों में पार्टी उपाध्यक्ष के पद पर कमजोर नेता रखे जाते हैं. उस से मजबूत नेता महासचिव के पद पर होते हैं. पार्टी का संविधान पार्टी उपाध्यक्ष को ही सब से प्रमुख मानता है क्योंकि राष्ट्रीय अध्यक्ष के बाद वह ही सब से प्रमुख होता है. उस की जिम्मेदारी अधिक होती है. ऐसे में पार्टी के संगठन और नंबर दो के नेता का मजबूत होना जरूरी होता है.

 

लोकतंत्र में राजनीतिक दलों का काम देश का प्रबंध संभालना होता है. ऐसे में अगर किसी सत्ताधारी दल में उत्तराधिकार का संकट आता है तो उस का प्रभाव देश की जनता पर पड़ता है. हमारे समाज में एक सामान्य नियम सा है कि पूरा परिवार एक साथ सफर नहीं करता. उस के पीछे का मकसद यह होता है कि अगर कोई दुर्घटना हो तो परिवार को चलाने वाला कोई न कोई व्यक्ति बचा रहे. देश को चलाने का काम राजनीतिक दलों का है. ऐसे में उन के लिए यह नियम बनना चाहिए जिस से पार्टी में कोई संकट न आ सके जिस का प्रभाव देश पर पड़े.

कांग्रेस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जब हत्या हुई तो पार्टी को संभालने के लिए राजीव गांधी को सामने लाया गया. राजीव गांधी की हत्या के बाद जब सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान नहीं संभाली तो पीवी नरसिम्हाराव को सामने लाया गया. भारतीय जनता पार्टी में वर्तमान अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल एक साल पहले खत्म हो गया है. इस के बाद भी वह पार्टी अध्यक्ष बने हुए हैं. अटल, आडवाणी और जोशी के दौर में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोषी के रूप में उत्तराधिकारी मौजूद थे.

अटल बिहारी वाजपेयी जब पीएम थे तो लालकृशण आडवाणी डिप्टी पीएम थे. आज की भाजपा में यह नहीं है. दुनिया की सब से बड़ी ताकत वाला देश भी इस तरह की व्यवस्था कर के चलता है. इस की वजह यह है कि देश को चलाने का काम सरकार करती है. सरकार को बनाने का काम राजनीतिक दल करते हैं. इन दलों के सामने देश की जनता का प्रबंधन करना होता है. किसी भी सूरत में जनता को अनाथ नहीं छोड़ा जा सकता है. ऐसे में उपाय कर के चलना ही समझदारी होती है. अमेरिका जैसे ताकतवर देश भी इस तरह की व्यवस्था कर के चलते हैं.

 

अमेरिका में क्या होता है ‘डेजिग्नेटेड सर्वाइवर’

अमेरिका में ‘डेजिग्नेटेड सर्वाइवर’ नाम से एक नेता का चुनाव लंबे समय से होता आ रहा है. वैसे अमेरिका का व्हाइट हाउस कभी भी ‘डेजिग्नेटेड सर्वाइवर’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करता. वो उन्हें ‘उपस्थित न होने वाला कैबिनेट सदस्य’ कहता है. इस व्यक्ति को एक सुरक्षित और गुप्त स्थान पर रखा जाता है, जहां से वह आपातकालीन स्थिति में काम कर सके.

डोनाल्ड ट्रंप ने जब 20 जनवरी को संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली तो उन के नए प्रशासन के सभी लोग वहां मौजूद नहीं थे. शपथ ग्रहण समारोह और स्टेट औफ द यूनियन एड्रेस (सालाना भाषण) जैसे आयोजनों के लिए एक ‘डेजिग्नेटेड सर्वाइवर’ चुना जाता है. यह व्यक्ति, आमतौर पर राष्ट्रपति के मंत्रिमंडल का कोई व्यक्ति होता है, जिसे कार्यक्रम में शामिल न होने के लिए चुना जाता है.

जिस से किसी इमरजैंसी में राष्ट्रपति पद का उत्तराधिकार बरकरार रखा जा सके. यह इसलिए किया जाता है कि राष्ट्रपति की मृत्यु या अक्षम होने की स्थिति में उन का उत्तराधिकारी कौन होगा ? वैसे तो उपराष्ट्रपति और सदन के अध्यक्ष सहित लगभग 20 अधिकारियों की सूची है जो राष्ट्रपति पद के उत्तराधिकारी हो सकते हैं. इस के बाद भी ‘डेजिग्नेटेड सर्वाइवर’ उस स्थिति में राष्ट्रपति के पद पर आ सकता है जब वे सभी लोग किसी भयावह घटना में मारे गए हों.

ऐसे बहुत कम मौके होते हैं जब अमेरिका के शीर्ष नेता एक ही कमरे में इकट्ठा होते हैं. आम तौर पर राष्ट्रपति के स्टेट औफ द यूनियन एड्रेस यानी सालाना भाषण में न केवल राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और कांग्रेस के दोनों सदन बल्कि सुप्रीम कोर्ट के सभी 9 न्यायाधीश और राष्ट्रपति के मंत्रिमंडल के सदस्य भी शामिल होते हैं. यह कल्पना करना जितना भयानक है इस तरह के आयोजन के दौरान कैपिटल बिल्डिंग पर टारगेटेड परमाणु हमला या आतंकवादी हमला एक झटके में अमेरिकी संघीय सरकार के लगभग पूरे नेतृत्व को मिटा सकता है.

 

कैसे चुना जाता है डेजिग्नेटेड सर्वाइवर

डेजिग्नेटेड सर्वाइवर का चयन राष्ट्रपति और उन के सलाहकारों द्वारा किया जाता है. इस के लिए आमतौर पर कैबिनेट के किसी सदस्य को चुना जाता है, जो संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति पद के लिए पात्र हो. डेजिग्नेटेड सर्वाइवर की पहचान आमतौर पर सार्वजनिक नहीं की जाती है, ताकि उन की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. कुछ मामलों में मीडिया या जनता को इस की जानकारी मिल जाती है.

शपथ ग्रहण समारोह और स्टेट औफ द यूनियन एड्रेस आयोजन के लिए ‘डेजिग्नेटेड सर्वाइवर’ का नाम गुमनाम रखा जाता है. आम तौर पर शपथ ग्रहण के लिए निवर्तमान प्रशासन डेजिग्नेटेड सर्वाइवर को चुनता है. 2021 में जो बाइडन के शपथ ग्रहण समारोह के लिए चुने गए ‘डेजिग्नेटेड सर्वाइवर’ के नाम का कभी खुलासा नहीं किया गया. 2017 में डोनाल्ड ट्रंप के पिछले शपथ ग्रहण समारोह के लिए, दो ‘डेजिग्नेटेड सर्वाइवर’ थे. एक थे रक्षा सचिव जेह जौनसन जिन्हें निवर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चुना था. दूसरे थे सीनेटर ओरिन हैच जिन्हें ट्रंप ने चुना था.

‘डेजिग्नेटेड सर्वाइवर’ की परंपरा शीत युद्ध के दौरान शुरू हुई थी, जब परमाणु हमले का खतरा अधिक था. इस का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अगर किसी आपदा या हमले में सरकार के सभी उच्च पदाधिकारी मारे जाएं, तो भी देश का नेतृत्व करने के लिए कोई व्यक्ति मौजूद हो. क्योंकि शीत युद्ध के समय सोवियत संघ के साथ तनाव चरम पर था. उस दौर में यह अकल्पनीय नहीं था कि सोवियत संघ परमाणु हथियार से कैपिटल पर निशाना नहीं साधेगा. माना जाता है कि यह परंपरा कम से कम 1960 के दशक से चली आ रही है.

कांग्रेस ने 1792 में मूल राष्ट्रपति उत्तराधिकार अधिनियम पारित किया, जिस में उपराष्ट्रपति के बाद सीनेट के अस्थायी अध्यक्ष को नोमिनेट किया गया. उस के बाद प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष को नोमिनेट किया गया. इस अधिनियम में 1886 और 1947 में दो बार संशोधन किया गया जब यह उत्तराधिकार के वर्तमान क्रम पर पहुंचा. उपराष्ट्रपति, सदन के अध्यक्ष, सीनेट के अस्थायी अध्यक्ष, उस के बाद राष्ट्रपति के मंत्रिमंडल के सदस्य उसी क्रम में आते हैं जिस क्रम में उन के मंत्रिमंडल के पद बनाए गए थे. जो राज्य सचिव से शुरू हो कर रक्षा सचिव के साथ समाप्त होता है.

2023 में, राष्ट्रपति जो बाइडन के स्टेट औफ द यूनियन एड्रेस के दौरान वाणिज्य सचिव गीना रायमोंडो को ‘डेजिग्नेटेड सर्वाइवर’ चुना गया था. 2016 में, तत्कालीन गृह मंत्री जेह जॉनसन को ‘डेजिग्नेटेड सर्वाइवर’ चुना गया था. यह परंपरा अमेरिकी सरकार की सुरक्षा और उत्तराधिकार सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय है. व्हाइट हाउस द्वारा स्वीकार किए गए पहले नोमिनेटेड ‘डेजिग्नेटेड सर्वाइवर’ शिक्षा सचिव टेरेल बेल थे, जो राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के 1981 में कांग्रेस के संयुक्त सत्र में दिए गए संबोधन में अनुपस्थित थे, लेकिन काफी समय बाद तक बेल की पहचान नहीं हो पाई थी.

 

मराठा राज रहा प्रभावी:

भारत के इतिहास को देखें तो यह बात आसानी से समझी जा सकती है. जहां सही उत्तराधिकारी नहीं थे वह राज खत्म हो गया. भले ही राजा कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो ? सही उत्तराधिकारी न होने के कारण राज्य खत्म होते देखे गए हैं. इस कारण राजा हमेशा जब बूढ़ा हो जाता था तो अपना उत्तराधिकारी चुन लेता था. जहां सही उत्तराधिकारी नहीं बने वह राज्य खत्म हो गया. मराठा साम्राज्य भी इस का एक उदाहरण है. 17वीं शताब्दी में दक्षिण एशिया के एक बड़े भाग पर मराठों का प्रभाव था. छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक के बाद अस्तित्व में आया यह राज्य 1761 में पानीपत का तृतीय युद्ध के साथ खत्म होता गया.

17 वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी के नेतृत्व में मराठे प्रमुख हो गए थे. जिन्होंने आदिल शाही वंश के खिलाफ विद्रोह किया और अपनी राजधानी के रूप में रायगढ के साथ एक हिंदवी स्वराज्य का निर्माण किया. शिवाजी के पिता महाबली शहाजी राजे ने उस से पहले तंजावुर पर विजय प्राप्त की थी. जो छत्रपती शिवाजी के सौतेले भाई वेंकोजीराव उर्फ एकोजीराजे को विरासत में मिला था. उस राज्य को तंजावुर मराठा राज्य के रूप में जाना जाता था. बैंगलोर जो 1537 में विजयनगर साम्राज्य के एक जागीरदार, केम्पे गौड़ा द्वारा स्थापित किया गया था, जिस ने विजयनगर साम्राज्य से स्वतंत्रता की घोषणा की थी उसे 1638 में उन के उपसेनापति, शाहजीराजे भोंसले के साथ, रानादुल्ला खान, के नेतृत्व में एक बड़ी आदिल शाही बीजापुर सेना द्वारा कब्जा कर लिया गया था.

मुगल-मराठा युद्धों के दौरान मराठे अपने क्षेत्र को मजबूत करने में सक्षम थे और बाद में मराठा साम्राज्य पूरे भारत में फैल गया. पेशवाओं को मराठा साम्राज्य के प्रधान मंत्री के रूप में काम करने का जब मौका मिला तब मराठा शासन का विस्तार अटक से कटक तक ओर गुजरात से बंगाल दक्षिण से उत्तर से पाकिस्तान पेशावर ध्लाहौर तक फैला हुआ था. छत्रपती ने मुगल सिंहासन को समाप्त करने के लिए सदाशिव राव भाव को दिल्ली भेजा था. 1761 में मराठा सेना ने अफगान दुर्रानी साम्राज्य के अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ पानीपत का तीसरा युद्ध हार गए, जिस से उन का अफगानिस्तान में साम्राज्य विस्तार नहीं हो पाया.

ईस्ट इंडिया कंपनी ने पुणे में पेशवा पद के उत्तराधिकार संघर्ष में हस्तक्षेप करने का प्रयास किया, जिसके कारण, पहला एंग्लो मराठा युद्ध हुआ. जिसमें मराठे विजयी हुए. दूसरा और तीसरा एंग्लो-मराठा युद्ध (1805 से 1818 तक) में उन की पराजय होने तक, मराठे भारत में शक्ति केन्द्र बने रहे. अंगरेजों के सामाने सही उत्तराधिकारी न होने से मराठों का संघर्ष टिक नहीं पाया. मुगल से ले कर मराठों तक कई ऐसे उदाहरण है जहां सही उत्तराधिकारी न होने से पूरा राज्य खत्म हो गया. दूसरों ने उस पर कब्जा कर लिया.

 

राजनीतिक दलों में बढ़ती जिम्मेदारी

देश के आजाद होने के बाद लोकतंत्र में राजषाही खत्म हो गई तो यह जिम्मा राजनीतिक दलों के उपर आ गया. वह देश की जनता की हिफाजत करें. इस में सब से प्रमुख वह दल होता है जो सत्ता में होता है. उस दल में नम्बर दो की हैसियत हमेशा उस पार्टी के प्रमुख यानि राष्ट्रीय अध्यक्ष की होती है. आज केन्द्र में भाजपा की सरकार है. उस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर सब की निगाह रहती है. भारतीय जनता पार्टी के संविधान के अनुसार प्रत्येक सदस्य को 9 साल के बाद अपनी सदस्यता का नवीनीकरण कराना होता है. इस के तहत प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष को भी अपनी सदस्यता का नवीनीकरण कराना होता है.

राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल 3 साल का होता है. एक व्यक्ति लगातार 2 बार से ज्यादा इस पद पर रह नहीं सकता है. पार्टी के संविधान की धारा 20 के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष को 120 सदस्यों वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी के गठन का अधिकार होता है. पार्टी की रणनीति बनाना, चुनावी उम्मीदवारों को चयन करना और संगठन को मजबूत बनाने के लिए काम करने की जिम्मेदारी उस के ही कंधों पर होती है. ऐसे में वह कई बार प्रधानमंत्री के भी ऊपर होता है. जब प्रधानमंत्री उस की पार्टी का हो.

भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल 2022 में खत्म हुआ तो उस को 2024 लोकसभा चुनाव तक बढ़ा दिया गया. लोकसभा चुनाव के बाद जब नरेन्द्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो जेपी नड्डा केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गए. भाजपा का पार्टी संविधान कहता है कि एक व्यक्ति एक ही पद पर रह सकता है. जेपी नड्डा 2024 जून माह से लगातार दो पदों पर बने हैं. वह केन्द्रीय मंत्री भी हैं और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं. ऐसा लग रहा है जैसे भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए दूसरा कोई बेहतर नेता ही नहीं है. इस की वजह यह है कि मोदीशाह की जोड़ी ऐसा राष्ट्रीय अध्यक्ष चाहती है जो उन के अनुसार काम कर सके.

हर पार्टी में प्रमुख नेता अपने आसपास कमजोर नेताओं को रखना चाहते हैं. वैसे यह बात ठीक नहीं होती है. पार्टी में नम्बर दो की हैसियत वाला नेता मजबूत होना चाहिए. जिस से वह इमरजैंसी में देश और पार्टी दोनों को संभाल सके. भारत में पार्टी और सरकार दोनों में ही नम्बर एक पर रहने वाला नेता नम्बर दो पर कमजोर नेता को ही रखना चाहते हैं. इसलिए पार्टी टूटती है. समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में टूट गई इस की वजह यह थी कि मुलायम सिंह यादव ने अपने समय नम्बर दो रहने वाले नेता शिवपाल यादव की जगह पर अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना दिया.

अपना दल में विभाजन इस लिए हुआ क्योंकि उस की नेता अनुप्रिया पटेल ने अपनी मां या बहन की जगह पर अपने पति को जिम्मेदारियां सौंप दी. इस के बाद अपना दल एस और अपना दल कमेरावादी में बंट गया. जवाहरलाल नेहरू के बाद जब कांग्रेस में इंदिरा गांधी को उत्तराधिकारी बनाया गया तो कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी. राजनीतिक दल छोटे हो या बड़े उन को अपना पार्टी तंत्र इस तरह से बनाना चाहिए कि नम्बर दो का नेता किसी भी इमरजैंसी को संभालने की हालत में तैयार रहे.

राजनीतिक दलों में पार्टी उपाध्यक्ष के पद पर कमजोर नेता रखे जाते हैं. उस से मजबूत नेता महासचिव के पद पर होते हैं. पार्टी का संविधान पार्टी उपाध्यक्ष को ही सब से प्रमुख मानता है क्योंकि राष्ट्रीय अध्यक्ष के बाद वह ही सब से प्रमुख होता है. उस की जिम्मेदारी अधिक होती है. ऐसे में पार्टी के संगठन और नंबर दो के नेता का मजबूत होना जरूरी होता है. आज के दौर में कोर्ट का दखल हर जगह बढ़ गया है. किसी विवाद का फैसला वहां होता है. ऐसे में एक चूक भारी पड़ती है, जैसे शिवसेना में उत्तराधिकार का विवाद को कोर्ट गया तो पार्टी के चुनाव चिन्ह पर अधिकार एकनाथ शिंदे को मिला. उद्धव ठाकरे हाथ मलते रह गए. ऐसे में राजनीतिक दलों  को अपने संगठन के चुनाव और पदाधिकारियों को ठीक से रखना चाहिए. नहीं तो परेशानी खड़ी होते देर नहीं लगेगी. Bihar Election Result 2025.

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